क्विक अलर्ट के लिए
अभी सब्सक्राइव करें  
क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

भीमा कोरेगांव हिंसा से पहले 'यलगार परिषद' में क्या हुआ था?

भारिपा बहुजन महासंघ के प्रकाश आंबेडकर भी इस रैली में शामिल थे. वह पुलिस के आरोपों से असहमति जताते हुए कहते हैं, "मेरी राय में वे लोग पागल हो गए हैं. जैसा कि जस्टिस पीबी सावंत और जस्टिस कोलसे पाटिल ने कहा कि यलगार परिषद का आयोजन वो पहले भी कर चुके हैं. उन्होंने छात्रों की मदद ली और अपने स्तर से चंदा इकट्ठा किया. हमें सबूत दिखाइए. हमें बताइए कि कौन माओवादी और कौन आतंकवादी था?"

By BBC News हिन्दी
Google Oneindia News

भीमा कोरगांव हिंसा मामले में पांच कार्यकर्ताओं की गिरफ़्तारी की घटना से यलगार परिषद चर्चा में है.

एक जनवरी 2018 को पुणे के पास स्थित भीमा कोरेगांव में हिंसा भड़की थी. इससे एक दिन पहले वहां यलगार परिषद नाम से एक रैली हुई थी और पुलिस मानती है कि इसी रैली में हिंसा भड़काने की भूमिका बनाई गई.

यलगार परिषद आख़िर है क्या?

भीमा कोरेगांव पेशवाओं के नेतृत्व वाले मराठा साम्राज्य और ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच हुए युद्ध के लिए जाना जाता है. एक जनवरी 2018 को इस युद्ध की 200वीं सालगिरह थी.

मराठा सेना यह युद्ध हार गई थी और कहा जाता है कि ईस्ट इंडिया कंपनी को महार रेजीमेंट के सैनिकों की बहादुरी की वजह से जीत हासिल हुई थी. बाद में भीमराव आंबेडकर यहां हर साल आते रहे. यह जगह पेशवाओं पर महारों यानी दलितों की जीत के एक स्मारक के तौर पर स्थापित हो गई, जहां हर साल उत्सव मनाया जाने लगा.

31 दिसंबर 2017 को जब इस युद्ध की 200वीं सालगिरह थी, 'भीमा कोरेगांव शौर्य दिन प्रेरणा अभियान' के बैनर तले कई संगठनों ने मिलकर एक रैली आयोजित की, जिसका नाम यलगार परिषद रखा गया. शनिवार वाड़ा के मैदान पर हुई इस रैली में 'लोकतंत्र, संविधान और देश बचाने' की बात कही गई थी.

दिवंगत छात्र रोहित वेमुला की मां राधिका वेमुला ने रैली का उद्घाटन किया, इसमें कई नामी हस्तियां मसलन- प्रकाश आंबेडकर, हाईकोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस बीजी कोलसे पाटिल, गुजरात से विधायक जिग्नेश मेवानी, जेएनयू छात्र उमर ख़ालिद, आदिवासी एक्टिविस्ट सोनी सोरी आदि मौजूद रहे.

इनके भाषणों के साथ कबीर कला मंच ने सांस्कृतिक कार्यक्रम भी पेश किए. अगले दिन जब भीमा कोरेगांव में उत्सव मनाया जा रहा था, आस-पास के इलाक़ों- मसलन संसावाड़ी में हिंसा भड़क उठी. कुछ देर तक पत्थरबाज़ी कुछ चली, कई वाहनों को नुकसान हुआ और एक नौजवान की जान चली गई.

इस मामले में दक्षिणपंथी संस्था समस्त हिंद अघाड़ी के नेता मिलिंग एकबोटे और शिव प्रतिष्ठान के संस्थापक संभाजी भिड़े के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज की गई. पुणे की ग्रामीण पुलिस अब भी इसकी जांच कर रही है.

भीमा कोरेगांव में किस तरह हालात बेक़ाबू हो गए?

कोरेगांव: आखिर पेशवा के ख़िलाफ़ क्यों लड़े थे दलित?

यलगार परिषद से जुड़ी दो एफ़आईआर

इसी दौरान यलगार परिषद से जुड़ी दो और एफ़आईआर पुणे शहर के विश्रामबाग पुलिस थाने में दर्ज की गईं. पहली एफ़आईआर में जिग्नेश मेवानी और उमर ख़ालिद पर भड़काऊ भाषण देने का आरोप लगाया गया था.

दूसरी एफ़आईआर तुषार दमगुडे की शिकायत पर यलगार परिषद से जुड़े लोगों के ख़िलाफ़ दर्ज की गई. इस एफ़आईआर के संबंध में जून में सुधीर धवले समेत पांच एक्टिविस्ट गिरफ़्तार किए गए. इसे बाद 28 अगस्त को पुणे पुलिस ने गौतम नवलखा, सुधा भारद्वाज, वरवरा राव, अरुण फरेरा और वरनॉन गोन्ज़ाल्विस को गिरफ़्तार कर लिया.

पुलिस ने अदालत में क्या कहा

पुणे पुलिस ने अदालत में कहा कि गिरफ्तार किए गए पांचों लोग प्रतिबंधित संगठन भाकपा (माओवादी) के सदस्य हैं और यलगार परिषद देश को अस्थिर करने की उनकी कोशिशों का एक हिस्सा था. पुलिस ने कहा कि यलगार परिषद सिर्फ़ एक मुखौटा था और माओवादी इसे अपनी विचारधारा के प्रसार के लिए इस्तेमाल कर रहे थे.

पुणे कोर्ट में पुलिस ने सुधीर धवले और कबीर कला मंच के लोगों पर यलगार परिषद में आपत्तिजनक गीत गाने के आरोप लगाए. उन पर भड़काऊ और विभाजनकारी बयान देने और पर्चों और भाषणों के ज़रिये विवाद पैदा करने के आरोप भी लगाए गए.

पुलिस ने कहा कि दलितों को भ्रमित करना और असंवैधानिक और हिंसक विचारों को फैलाना प्रतिबंधित भाकपा (माओवादी) की नीति है और इसी के तहत सुधीर धवले आदि कई महीनों से पूरे महाराष्ट्र में भड़काऊ भाषण दे रहे थे और अपने नुक्कड़ नाटकों और गीतों आदि में इतिहास को ग़लत रूप में पेश कर रहे थे. पुलिस ने कहा है कि इसी वजह से भीमा कोरेगांव में पत्थरबाज़ी और हिंसा शुरू हुई.

लेकिन यलगार परिषद से जुड़े कार्यकर्ताओं और संगठनों ने इन सभी आरोपों से इनकार किया है.

दो पूर्व जजों ने बुलाई थी यलगार परिषद?

भीमा कोरेगांव
BBC
भीमा कोरेगांव

यलगार परिषद में बॉम्बे हाईकोर्ट के पूर्व जज बीजी कोलसे पाटिल भी शामिल थे. उन्होंने मुंबई में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि यलगार परिषद को 300 से ज़्यादा संगठनों का समर्थन हासिल था.

उन्होंने कहा, "यलगार परिषद मैंने और जस्टिस पीबी सावंत ने आयोजित की थी. केवल हम दो लोग इसमें शामिल थे. हमने सोचा कि आंबेडकरवादी और सेक्युलर लोगों हर साल एक जनवरी को भीमा कोरेगांव आते हैं तो हम 31 दिसंबर को उनके साथ एक कार्यक्रम कर सकते हैं. हमने इससे पहले शनिवार वाड़ा में ही चार अक्टूबर को एक रैली की थी और संघ मुक्त भारत की मांग की थी. इस रैली में भी उतनी ही संख्या में लोग शामिल हुए थे. इससे पहले पुलिस ने जो एफ़आईआर दर्ज की थी, उसमें कहा था कि यलगार परिषद का माओवादियों से संबंध नहीं है. लेकिन अब वो दूसरी ही कहानी बता रहे हैं."

जस्टिस कोलसे पाटिल ने कहा, "यलगार परिष्द में हमने लोगों को शपथ दिलाई कि वो किसी सांप्रदायिक पार्टी को कभी वोट नहीं देंगे. हम संघ के इशारों पर चलने वाली भाजपा को वोट नहीं देंगे. उन्हें वो शपथ पसंद नहीं आई."

भीमा कोरेगांव में हुई हिंसा
BBC
भीमा कोरेगांव में हुई हिंसा

माओवादियों से संबंधों पर सफाई देते हुए जस्टिस कोलसे पाटिल ने कहा, "यह पूरी तरह झूठ है कि यलगार परिषद के माओवादियों से संबंध हैं. गिरफ़्तार किए गए लोगों का हमसे कोई संबंध है ही नहीं. यह बिल्कुल सच नहीं है कि यह रैली नक्सलवादियों से मिले चंदे से आयोजित की गई थी. हमें किसी से पैसा नहीं मिला था. ये सब लोग यहां भीमा कोरेगांव के उत्सव में शामिल होने पहुंचे थे. हमें वहां से पहले से तैयार एक मंच मिला था, जहां हमने कार्यक्रम किया."

'हमें सबूत दिखाइए'

भारिपा बहुजन महासंघ के प्रकाश आंबेडकर भी इस रैली में शामिल थे. वह पुलिस के आरोपों से असहमति जताते हुए कहते हैं, "मेरी राय में वे लोग पागल हो गए हैं. जैसा कि जस्टिस पीबी सावंत और जस्टिस कोलसे पाटिल ने कहा कि यलगार परिषद का आयोजन वो पहले भी कर चुके हैं. उन्होंने छात्रों की मदद ली और अपने स्तर से चंदा इकट्ठा किया. हमें सबूत दिखाइए. हमें बताइए कि कौन माओवादी और कौन आतंकवादी था?"

आंबेडकर दावा करते हैं कि मराठाओं के प्रदर्शनों ने महाराष्ट्र की छवि कई जातियों में बंटे प्रदेश की बना दी थी और यलगार परिषद उन सबको साथ लाने की कोशिश थी.

भीमा कोरेगांव
Getty Images
भीमा कोरेगांव

वह कहते हैं, "समाज ने कभी इस तरह की स्थिति का सामना नहीं किया था. इन विवादों ने लोगों में दूरी पैदा कर दी थी और यलगार परिषद सौहार्द के मक़सद से आयोजित की गई थी. भीमा कोरेगांव कई समुदायों का एक साथ आना था. हालांकि यह ब्रिटिश झंडे के तले हुआ, लेकिन अलग अलग गुटों के लोग महार सैनिकों की अगुवाई में एक साथ लड़े. जातीय समूहों में मतभेद दूर करने में इसका योगदान रहा. और आज हम देखते हैं कि मराठा समुदाय ने अपनी मांग बदल ली है. अब वे ओबीसी श्रेणी से अलग से आरक्षण की मांग कर रहे हैं. वह अत्याचार अधिनियम को स्वीकार करने को तैयार हैं बशर्ते वह उनके ख़िलाफ बहुत सख़्त न हो. यह यलगार परिषद की वजह से हुआ है."

वह मानते हैं कि पुलिस की ताज़ा कार्रवाई विरोध की आवाज़ों को दबाने के लिए है. उन्होंने कहा, "यह सिर्फ़ दलितों के साथ अन्याय के बारे में नहीं है. मॉब लिंचिंग हो रही हैं और सवर्णों की बातें भी दबाई जा रही हैं. दलित और मुसलमानों का जब उत्पीड़न होता है तो वे आवाज़ उठाते हैं. अख़बार भी आवाज़ उठाते हैं. और कुछ ऊंची जाति के लोग भी आवाज़ उठाते हैं, यह उन्हें चुप कराने की कोशिश है."

यह भी पढ़ें: आंबेडकर की विरासत संभाल पाएंगे उनके पोते?यह भी पढ़ें: ट्विटर पर लोग क्यों बोले- मैं भी शहरी नक्सली

BBC Hindi
Comments
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
English summary
What happened in Olgaarsha Parishad before Bhima Koregaon violence
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X