अंकित सक्सेना के घर इफ़्तार पार्टी में क्या-क्या हुआ
"वो कभी मेरे सपने में नहीं आया. मेरा बड़ा दिल करता है कि वो कभी तो मेरे सपने में आए. उसे देख लूं, लेकिन पांच महीने होने को आए वो कभी नहीं दिखा."
ये शब्द उस शख्स के थे जिसने कुछ महीनों पहले अपने जवान बेटे को नफरत की ऐसी आग में खोया था जिसकी तपन गाहे-बगाहे हमें अक्सर महसूस होती रहती है.
"वो कभी मेरे सपने में नहीं आया. मेरा बड़ा दिल करता है कि वो कभी तो मेरे सपने में आए. उसे देख लूं, लेकिन पांच महीने होने को आए वो कभी नहीं दिखा."
ये शब्द उस शख्स के थे जिसने कुछ महीनों पहले अपने जवान बेटे को नफरत की ऐसी आग में खोया था जिसकी तपन गाहे-बगाहे हमें अक्सर महसूस होती रहती है.
जब इफ़्तार पार्टी ख़त्म हुई और भीड़ छटी तो अंकित सक्सेना के पिता यशपाल सक्सेना से बात करने का मौक़ा मिला.
वही यशपाल सक्सेना जिनके बेटे की सरेराह गला रेतकर हत्या कर दी गई थी.
पश्चिमी दिल्ली के रघुबीर नगर में रविवार के दिन बेटे को याद करते हुए यशपाल सक्सेना ने इफ़्तार पार्टी का आयोजन किया था.
अंकित के घर इफ़्तार
लेकिन जिनका खाना पीना खुद पड़ोसियों के सहारे चल रहा हो वो इफ़्तार कैसे दे सकते हैं?
दरअसल, बेटे की मौत के बाद सक्सेना परिवार की सबसे बड़ी चिंता यह थी कि अब घर कैसे चलेगा...!
अंकित इकलौता बेटा था. मॉडलिंग करता था, वीडियो बनाता था, फ़ोटोग्राफ़ी करता था.
उनकी मौत के कुछ महीने पहले ही यशपाल की हार्ट सर्जरी हुई थी, इसलिए बेटे ने पापा की दुकान बंद करवा दी थी और आराम करने के लिए घर पर बिठा दिया था.
कहा था, "पापा अब मैं सबकुछ संभाल लूंगा."
इतनी बड़ी दावत कैसे?
बेटे की मौत का दुख था लेकिन चिंता रोटी की थी.
यशपाल कहते हैं, "मेरे पास कुछ नहीं है. दो वक़्त का खाना भी पड़ोसियों के भरोसे चल रहा है. आगे क्या और कैसे होगा कुछ पता नहीं...लेकिन हो ही जाएगा."
इस सवाल के जवाब में यशपाल बेहद सादगी से कहते हैं, "मैंने कुछ भी नहीं किया. सबकुछ पड़ोसियों और उन लोगों ने किया है जिन्हें मैं जानता भी नहीं."
"15 दिन पहले ये बात दिमाग में आई लेकिन जो कुछ तैयारी आप देख रहे हैं वो आज सुबह से ही हुई है."
रघुबीर नगर की उस बेहद तंग गली में मीडिया के बड़े-बड़े कैमरे तैनात थे लेकिन कुछ लोग थे जिनके पैर एक जगह ठहर ही नहीं रहे थे.
अंकित की तस्वीर
इनमें से ज़्यादातर अंकित के दोस्त और पड़ोसी थे. कोई तरबूज़ की थाली लेकर दौड़ रहा था तो कोई शरबत.
पैरों में चप्पल नहीं थी लेकिन सबने एक जैसी टी-शर्ट पहन रखी थी, जिस पर अंकित की तस्वीर छपी थी.
अंकित के मौसेरे भाई आशीष कहते हैं, "लोग भले अंकित को भूल जाएं लेकिन हम उसे कभी नहीं भूल पाएंगे."
"इसलिए ये टी-शर्ट बनवाई है. देखिए, इसमें अंकित की तस्वीर दिल के पास है. "
अंकित के एक अन्य दोस्त बताते हैं हमने तो अंकित का जन्मदिन भी मनाया था. हम उसे याद करने का कोई मौक़ा नहीं छोड़ना चाहते.
22 मार्च को अंकित का जन्मदिन था. अगर वो ज़िदा होते तो 22 मार्च को 23 साल के हो जाते.
इफ़्तार की दावत देने का आइडिया आया कहां से?
यशपाल सक्सेना ने बताया कि ये आइडिया इज़हार भाई का था.
इज़हार भाई उसी गली में रहते हैं जहां अंकित का घर है. हर साल वो इसी गली में इफ़्तार का आयोजन करते आए हैं.
इज़हार बताते हैं, "मैं तो हर साल इफ़्तार देता हूं लेकिन इस बार मैंने यशपाल जी से कहा कि क्यों न आप भी इस बार इसमें शामिल हो जाएं."
इज़हार भाई का ये विचार सक्सेना परिवार को भी पसंद आया.
अंकित की मां कमलेश सक्सेना बहुत कम बोलती हैं, उन्हें देख लगता है कि आज भी उनकी आंखों को अंकित का इंतज़ार है.
अंकित की मां
इफ़्तार पर जुटी भीड़ को देखकर वे बेहद भावुक हो गईं और बोलीं, "सब अच्छा है. सब चल रहा है. सब चलता भी रहेगा. लेकिन अंकित तो नहीं आ सकता है न..."
"एक पल को उसका ख़्याल दिमाग़ से नहीं जाता और न ही उस दिन का हादसा."
जिस घटना में अंकित की जान चली गई उस हादसे में अंकित की मां को भी गंभीर चोटें आई थीं.
उनका दावा है कि आरोपी पहले से ही तय करके आए थे कि उन्हें ऐसा करना है वरना वे अपने साथ हथियार लेकर नहीं आते.
एक छोटे से कमरे घर में अंकित की बहुत बड़ी सी तस्वीर टंगी है.
उसको देखते हुए कमलेश कहती हैं, "मेरा तो जवान बेटा चला गया... अब तो बस जी रहे हैं. आगे क्या होगा, कैसे होगा कुछ मालूम नहीं."
अब आगे क्या?
यशपाल सक्सेना कहते हैं कि अंकित का सपना था कि वो बहुत आगे जाए. अमूमन बेटे, बाप का सपना सच करते हैं लेकिन मुझे अपने बेटे का सपना सच करना है.
"अंकित सक्सेना ट्रस्ट बनाया है. इसके लिए पैसे कहां से आएंगे ये नहीं पता लेकिन इसी के ज़रिए कुछ करना चाहता हूं."
यशपाल कहते हैं कि मैं चाहता हूं लोग अंकित को याद रखें. वो उनके दिलों में बस जाए...अब यही सोच लेकर ज़िदा हूं वरना मेरे पास कोई वजह नहीं है.
ट्रस्ट के लिए पैसे कहां से आते हैं?
अंकित के मौसेरे भाई आशीष का दावा है कि उन्हें किसी भी तरह की कोई आर्थिक सहायता नहीं मिली है. न तो दिल्ली सरकार की ओर से और न ही केंद्र सरकार की ओर से.
"ये ट्रस्ट पूरी तरह आम लोगों का है. हमने एक पेज बनाया है और लोगों से अपील की है कि जिसकी जितनी सामर्थ्य हो वो उतना डोनेट करें."
"फिलहाल तो हम दोस्त ही सबकुछ देख रहे हैं."
क्या आपने अंकित की कथित प्रेमिका से संपर्क करने की कोशिश की?
फरवरी से लेकर अब तक अंकित सक्सेना, यशपाल सक्सेना, आरोपी पक्ष और उनके दोस्तों का ज़िक्र कई बार हुआ लेकिन इन सारी बातचीत में इस पूरे घटनाक्रम की केंद्र गुलअफ्शां (अंकित की कथित प्रेमिका का बदला हुआ नाम) का ज़िक्र कहीं नहीं हुआ.
हालांकि अंकित की मौत के बाद जब हम सक्सेना परिवार से मिले थे तो उन्होंने गुलअफ़्शां के बारे में बात नहीं की थी और कहा था कि उन्हें इस मामले में कोई जानकरी नहीं थी लेकिन इफ़्तार के मौके पर उन्होंने बात की.
हालांकि अंकित की मौत के बाद जब हम सक्सेना परिवार से मिले थे तो उन्होंने गुलअफ़्शां के बारे में बात नहीं की थी और कहा था कि उन्हें इस मामले में कोई जानकरी नहीं थी लेकिन इफ़्तार के मौके पर उन्होंने बात की.
आशीष ने बताया, "हमें मालूम चला था कि वो किसी नारी निकेतन में हैं लेकिन कुछ दिनों पहले ही कुछ दोस्तों ने बताया कि वो अपनी मौसी के यहां रह रही हैं."
तो क्या अगर उन्हें किसी तरह की मदद की ज़रूरत होगी तो आप करेंगे?
अंकित के भाई मानते हैं कि गुलअफ़्शां को सपोर्ट की ज़रूरत है लेकिन वो इस पर खुलकर कुछ नहीं कहते हैं.
उनका कहना था, "ये सबकुछ परिस्थितियों पर निर्भर करेगा. हो सकती है वो खुद ही हमसे नहीं मिलना चाहे."
यशपाल कहते हैं हमें कुछ नहीं चाहिए लेकिन हम इंसाफ़ तो मांग सकते हैं न..
वहीं आशीष को धीमी कानूनी कार्रवाई से काफी शिकायत है.
वो बताते हैं, "इस मामले में गुलअफ्शां के माता-पिता, मामा और भाई पर केस है. भाई नाबालिग है तो उसका मामला जुवेनाइल कोर्ट में है."
"उसकी दो सुनवाई हो चुकी है और तीसरी पांच जून को है लेकिन सेशन कोर्ट में तो अभी तक कुछ शुरू भी नहीं हुआ."
क्या हुआ था अंकित के साथ?
पश्चिमी दिल्ली के रघुबीर नगर में अंकित की कथित तौर पर एक युवती के परिवार के चार सदस्यों के साथ बहस के बाद हत्या कर दी गई थी.
पुलिस का कहना है कि अंकित सक्सेना के अल्पसंख्यक समुदाय की 20 वर्षीय युवती के साथ प्रेम सम्बन्ध थे.
जब हम वहां से चलने लगे तो अंकित की मां के साथ बैठी एक औरत ने कहा, "अंकित हमेशा चाहता था कि वो मीडिया में आए. फिल्म वालों की तरह उसके भी चर्चे हों..."
"देखिए चर्चे तो हो रहे हैं लेकिन उसके जाने के बाद..."