रक्षा क्षेत्र में 100 प्रतिशत FDI के बाद देश में ही बन सकेगा सुखोई
इस खबर के बाद हमने कुछ डिफेंस एक्सपर्ट्स से बात की, तो हमें नरेंद्र मोदी की वो बात याद आ गई, जो वो रैलियों में कहा करते थे, "हमें विमान और तमाम हथियार रूस से खरीदने पड़ते हैं, क्यों न हम खुद हथियार और विमान बनायें और दूसरे देशों को बेचें।"
मोदी की यह बात तब कुछ विरोधियों को मजाक भी लगती थी। लेकिन कैबिनेट जो अपना अगला कदम उठाने जा रही है, वो असल में मोदी के इसी सपने को साकार करने के लिये होगा।
सरकार यह कदम उठाती है तो कहीं न कहीं रक्षा क्षेत्र में एक बड़ा बदलाव आने की उम्मीद है। देश के रक्षा क्षेत्र में सुधार के अलावा भारत के पास कई एडवांस टेक्नोलॉजी आ सकती हैं, जो आगे चलकर सेनाओं को बड़े स्तर पर मजबूती देंगी।
भारतीय सेना के रिटायर्ड मेजर जनरल गगनदीप बख्शी से जब हमने इस बारे में प्रतिक्रिया जानने की कोशिश की तो उन्होंने कहा कि यह एक बड़ा कदम होगा। मेजर जनरल बख्शी के मुताबिक अगर 100 प्रतिशत एफडीआई की मंजूरी सरकार की ओर से मिलती है तो फिर देश में ही बेहतरीन फाइटर जेट्स, वॉरशिप्स, जेट्स के इंजन और इस तरह के कई नए आविष्कारों को अंजाम दिया जा सकेगा।
साथ ही वह यह भी मानते हैं कि इसके जरिए कुछ हद तक हम अमेरिका, रूस और चीन पर निर्भरता कम कर सकेंगे। डिपार्टमेंट ऑफ इंडस्ट्रीयल पॉलिसी एंड प्रमोशन (डीआईपीपी) की ओर से केंद्र में आई नई सरकार के पास जो प्रस्ताव भेजा गया है, उसके तहत रक्षा क्षेत्र में तीन तरीकों के तहत एफडीआई की मंजूरी की सिफारिश की गई है।
इस सिफारिश के तहत 49 प्रतिशत, 74 प्रतिशत और 100 प्रतिशत एफडीआई का प्रस्ताव रखा गया है। 49 प्रतिशत एफडीआई किसी भी तरह के 'नो टेक्नोलॉजी ट्रांसफर' के लिए , 74 प्रतिशत एफडीआई उन जगहों के लिए जहां पर टेक्नोलॉजी का ट्रांसफर होता है।
फिलहाल रक्षा क्षेत्र में मैन्यूफैक्चरिंग के लिए सिर्फ 26 प्रतिशत एफडीआई की मंजूरी ही है। हालांकि सरकार के पास यह आजादी है कि वह किसी खास के मुद्दे पर अपनी इच्छा से विदेशी निवेश को मंजूरी दे सकती है।
रिटायर्ड एयरमार्शल बीके पांडेय इसे एक बड़ा फैसला बताते हैं। उनके मुताबिक यह कदम वाकई काबिल-ए-तारीफ होगा और पिछले कई वर्षों से मांग की जा रही है कि रक्षा क्षेत्र में ज्यादा से ज्यादा विदेशी कंपनियों को आने की छूट मिले।
अगर सरकार एफडीआई को मंजूरी दे देती है तो यह आर्मी, एयरफोर्स और नेवी तीनों के लिए कारगर साबित होगा। एयर मार्शल पांडेय के मुताबिक फाइटर जेट्स पुराने हो चुके हैं।
हम इस हालत में अभी नहीं हैं कि नए जेट्स का उत्पादन जरूरत के हिसाब से कर सकें। इसके लिए हम अभी भी रूस और अमेरिका पर निर्भर हैं। विदेशी निवेश के बाद जो तकनीक हम इजरायल से हासिल करते हैं, उसे हम यही अपने देश में तैयार कर सकेंगे।