भारत के लिए बांग्लादेश के साथ उसके सम्बन्ध क्या मायने रखते हैं ?
कोविड महामारी के शुरू होने से लेकर अभी तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी किसी विदेश यात्रा पर नहीं गए हैं. और अब उनकी पहली यात्रा बांग्लादेश के लिए होगी.
कोविड-19 महामारी के शुरू होने से लेकर अभी तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी किसी विदेश यात्रा पर नहीं गए हैं. और अब उनकी पहली यात्रा बांग्लादेश के लिए होगी.
बांग्लादेश इस साल अपनी स्वतंत्रता के पचास वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में कई कार्यक्रमों का आयोजन कर रहा है. इसमें सबसे प्रमुख आयोजन है -'मुजीब दिबस' यानी 'मुजीब दिवस'. यह बांग्लादेश के निर्माता शेख़ मुजीब उर रहमान के सम्मान में मनाया जा रहा है.
इसी आयोजन में शामिल होने के लिए भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बांग्लादेश जाने वाले हैं. प्रधानमंत्री का यह दो दिवसीय दौरा मार्च 25 और 26 को है.
इससे पहले इसी साल 26 जनवरी को भारत के गणतंत्र दिवस परेड में बांग्लादेश सेना की एक टुकड़ी ने भी हिस्सा था.
दरअसल, साल 1971 में बांग्लादेश को आज़ादी मिली थी. इसमें भारतीय सेना की अहम भूमिका थी. उस समय बांग्लादेश में पाकिस्तान की सेना ने भारतीय सेना के जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के सामने आत्मसमर्पण किया था और उसके बाद ही आज़ाद बांग्लादेश अस्तित्व में आया था.
26 जनवरी को भारत की राजधानी नई दिल्ली के राजपथ पर जब बांग्लादेश सेना की टुकड़ी परेड करती हुई आगे बढ़ रही थी तो कूटनीतिक हलकों में इस क्षण को दोनों देशों के बीच संबंधों की एक नई शुरुआत के तौर पर देखा गया.
दोनों देशों के बीच कई ऐसे लंबित मुद्दे रहे हैं जिनका निपटारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए की सरकार के दौरान हुआ है. इनमें सबसे प्रमुख रहा दोनों देशों के बीच 'एन्क्लेव' के मुद्दे का निपटारा.
लेकिन बावजूद इसके साल 2019 में बांग्लादेश और भारत के बीच संबंधों में तल्ख़ी तब देखने को मिली जब केंद्र सरकार ने नागरिकता संशोधन क़ानून पारित किया.
बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख़ हसीना ने इस क़ानून को 'अनावश्यक' बताया था, जिसके बाद दोनों देशों के बीच प्रस्तावित कई द्विपक्षीय दौरों और मुलाक़ातों को रद्द कर दिया गया था.
बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख़ हसीना ने कई महीनों तक वहां मौजूद भारत के उच्चायुक्त से भी मुलाक़ात करने से इनक़ार कर दिया था. बांग्लादेश की सरकार का कहना था कि- नए क़ानून के ज़रिए भारत ये संदेश देना चाह रहा है कि वहां रहने वाले "9 प्रतिशत हिंदू अल्पसंख्यक असुरक्षित" हैं.
इसके अलावा कोरोना काल में भी कई बार ऐसे हालात बन गए जिससे दोनों देशों के बीच संबंधों में तनाव पैदा हो गया.
पिछले साल सितम्बर महीने में भारत ने प्याज़ के निर्यात पर पाबंदी लगा दी थी. हर साल बांग्लादेश, भारत से लगभग 3.5 लाख टन प्याज़ का आयात करता है. फिर इस साल की शुरुआत में भारत ने सीरम इंस्टिट्यूट से कहा कि वो कोरोना वायरस की वैक्सीन का तब तक निर्यात नहीं कर सकता है जब तक भारत में सबको ये मिल नहीं जाती.
इससे बांग्लादेश नाराज़ हो गया क्योंकि पिछले साल ही उसने भारत से तीन करोड़ वैक्सीन के लिए समझौता कर लिया था. बाद में सीरम इंस्टिट्यूट ने बयान दिया कि वे समझौते के अनुरूप बांग्लादेश को वैक्सीन देंगे.
विदेश और सामरिक मामलों के जानकार कहते हैं कि वो कोरोना काल ही था जब भारत ने बांग्लादेश के साथ पर्दे के पीछे से कूटनीतिक संबंधों को बेहतर करने के लिए प्रयास शुरू कर दिए थे.
जानकार कहते हैं कि इसी का परिणाम है कि बांग्लादेश पहुंचे भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा है कि भारत और बांग्लादेश के सम्बन्ध सिर्फ़ सामरिक दृष्टिकोण से मज़बूत नहीं हुए हैं बल्कि उससे भी आगे जा चुके हैं.
विदेश मंत्री जयशंकर का ये भी कहना था कि सिर्फ़ दक्षिण एशिया ही नहीं, पूरे इंडो-पेसिफ़िक क्षेत्र में बांग्लादेश, भारत का महत्वपूर्ण सहयोगी बन गया है.
सामरिक और विदेश मामलों के जानकार मनोज जोशी कहते हैं, "बांग्लादेश, भारत से सबसे ज़्यादा क़रीब है क्योंकि दोनों देशों की सीमा सबसे ज़्यादा है. सरकार के आंकड़े बताते हैं कि बांग्लादेश और भारत के बीच 4,096 किलोमीटर लंबी सीमा है."
वो कहते हैं "रिश्तों में उतार-चढ़ाव होता रहता है मगर भारत और बांग्लादेश एक-दूसरे के लिए महत्वपूर्ण बने रहते हैं. उनका कहना है कि जब से बांग्लादेश अस्तित्व में आया है उसके भारत के साथ सम्बन्ध कभी भी चिंताजनक रूप से तनावपूर्ण नहीं रहे हैं."
जोशी के अनुसार, "बांग्लादेश और भारत एक-दूसरे के नेताओं का स्वागत करते रहे हैं और इस बार भी जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वहां जायेंगे तो ऐसा ही होगा."
हालांकि वो मानते हैं कि "कई मुद्दे ऐसे हैं जिनका हल दोनों ही देश नहीं निकाल पाए हैं. इनमें से तीस्ता नदी के जल का बंटवारा भी बहुत महत्वपूर्ण है."
वो कहते हैं, "लेकिन तीस्ता नदी के जल के बंटवारे का मामला इतनी जल्दी नहीं सुलझ पाएगा क्योंकि इस चर्चा में तीन हिस्सेदार हैं - केंद्र सरकार, पश्चिम बंगाल सरकार और बांग्लादेश. जो मामले केंद्र सरकार और बांग्लादेश को बातचीत कर के निपटाने थे वो निपटाए जा चुके हैं जैसे एन्क्लेव का बँटवारा. तीस्ता इसलिए भी लम्बित रहेगा क्योंकि अब दोनों ही देशों में चारों मौसमों में फसल लगाई जा रही है जिसके लिए काफ़ी पानी की ज़रूरत है."
पिछले साल दिसम्बर महीने में भी दोनों देशों के बीच 'वर्चुअल बैठक' हुई थी जिसमें व्यापार, यातायात और निवेश को लेकर चर्चा हुई थी. लेकिन भारत और बांग्लादेश के बीच तीस्ता के मुद्दे पर कोई चर्चा नहीं हो सकी थी. इस पर पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस का मानना है कि तीस्ता का पानी अगर बांग्लादेश के साथ बांटा जाएगा तो फिर पश्चिम बंगाल में सूखे की स्थिति पैदा हो जाएगी.
भारत-बांग्लादेश संबंधों पर नज़र रखने वाले किंग्स कॉलेज लंदन में विदेश और सामरिक मामलों के प्रोफ़ेसर हर्ष वी पंत ने बीबीसी से कहा कि "भारत और बांग्लादेश के लिए अब ये ज़्यादा महत्वपूर्ण हो गया है कि वो किस तरह दोनों देशों के बीच आर्थिक सप्लाई की कड़ी को और मज़बूत और व्यापक बना सकते हैं."
उनका कहना है कि भारत ने बांग्लादेश के मामले में ऐसे कई मुद्दों पर सब्र से काम लिया है जो कूटनीतिक पेंच में फँस सकते थे. वो कहते हैं, "यही वजह है कि दोनों देशों के बीच सम्बन्ध कभी ख़राब नहीं हुए. उन्होंने बांग्लादेश की तटीय सीमा के मुद्दे का उदहारण दिया जिसमें इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस ने बांग्लादेश के पक्ष में फ़ैसला सुनाया और भारत ने उस फ़ैसले का सम्मान किया."
प्रोफ़ेसर पंत कहते हैं, "भारत के लिए सबसे चिंता का मुद्दा है दक्षिण एशिया और दक्षिण पूर्वी एशिया में आतंकवादी संगठनों का पैर पसारना है. भारत नहीं चाहता कि बांग्लादेश में इन संगठनों की गतिविधियाँ बढ़ें जिससे भारत को ख़तरा हो. ख़ासतौर पर दोनों देशों की सीमा से लगे इलाकों में इसके संकेत मिले हैं. लेकिन शेख़ हसीना सरकार ने काफी हद तक इन पर अंकुश लगाने के प्रयास भी किये हैं."
पंत और विदेश मामलों के दूसरे जानकारों का मानना है कि बांग्लादेश से बेहतर और मज़बूत सम्बन्ध दोनों देशों के लिए बेहद ज़रूरी हैं, जिससे दोनों ही देश मज़बूत हो पाएंगे. जानकारों को लगता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दौरे से संबंधों में सुधार देखने को मिलेगा.
पूर्व राजनयिक नवतेज सरना का कहना है कि "भारत और बांग्लादेश के बीच सम्बन्ध ऐसे मुक़ाम पर आ गए हैं जहाँ दोनों देश किसी भी मुद्दे पर खुलकर विचारों का आदान-प्रदान कर सकते हैं."
सरना के अनुसार, "बांग्लादेश ने कभी भारत के साथ सम्बन्ध ख़राब नहीं किये हैं और वो हमेशा से ही मानकर चलता रहा है कि उसकी मुक्ति में भारत का बड़ा योगदान है."
वो कहते हैं, "भारत और बांग्लादेश के बीच राजनयिक और सामरिक संबंधों की 50वीं वर्षगाँठ है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का वहां जाना आवश्यक भी है. उनका दौरा हर मायने में महत्वपूर्ण है क्योंकि एक साल के बाद वो किसी देश जा रहे हैं. बांग्लादेश और भारत एक दूसरे के महत्वपूर्ण आयोजनों में हिस्सा लेते आये हैं. और उनकी स्वाधीनता की पचासवीं वर्षगाँठ भारत और बांग्लादेश - दोनों के लिए महत्वपूर्ण है."