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गांधी के बारे में क्या सोचती है उनकी पांचवीं पीढ़ी?

इस सवाल के जवाब में सुनीता कहती हैं, "जब लोगों को हमारे बैकग्राउंड के बारे में पता चलता है तो वो कहते हैं कि हाँ अब समझ में आया कि आप सियासत के प्रति इतने उत्साहित क्यों हैं."

लेकिन इससे उनकी दोस्ती पर कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता.

वो गांधी की शिक्षा को अपने जीवन में अपनाने की कोशिश करते हैं लेकिन वो इस बात पर ज़ोर देते हैं कि वो एक अलग दौर में अपनी ज़िंदगी जी रहे हैं और उनके अनुसार ये ज़रूरी नहीं है कि गांधी की 20वीं शताब्दी की सभी सीख आज के युग में लागू हो.

By BBC News हिन्दी
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आज मोहनदास करमचन्द गांधी की 150वीं जयंती है. वो महात्मा बने, प्यार से बापू भी कहलाये और उन्हें अंत में राष्ट्रपिता होने का सम्मान भी दिया गया.

गांधी अहिंसा और सत्याग्रह के पैग़ंबर थे. अंग्रेज़ी राज को घुटने टिकाने वाले उनके इस मंत्र का जन्म साउथअफ़्रीका में हुआ था.

आज भारत में शायद कम लोगों को इस बात का अंदाज़ा होगा कि साउथ अफ़्रीका में, जहाँ गांधी ने अपनी जवानी के 21 साल गुज़ारे, उनकी विरासत बची है या नहीं. उनका नाम यहाँ लिया जाता है या नहीं?

कुछ समय पहले हम यही जानने के लिए भारत से यहाँ आये.

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डरबन और जोहानसबर्ग जैसे बड़े शहरों में गांधी को भुलाना आसान नहीं है. यहाँ के कुछ चौराहों और बड़ी सड़कों पर गांधी का नाम जुड़ा है. उनकी प्रतिमाएं लगी हैं और उनके नाम पर संग्रहालय बने हैं जहाँ इस देश में गुज़रे समय को क़ैद कर दिया गया है.

डरबन में गांधी की विरासत

गांधी 1893 में साउथ अफ्रीका आये और 1914 में हमेशा के लिए भारत लौट आए.

शायद इस बात पर इतिहासकारों की सहमति हो कि इस देश में गांधी जी की सबसे अहम विरासत डरबन के फ़ीनिक्स सेटलमेंट में है जो भारतीय मूल के लोगों की एक बड़ी बस्ती है.

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फ़ीनिक्स सेटलमेंट में गांधी जी ने 1903 में 100 एकड़ ज़मीन पर एक आश्रम शुरू किया था जहाँ, उनकी पोती इला गांधी के अनुसार, गांधी जी की शख़्सियत में भारी परिवर्तन आने लगा.

सत्याग्रह के आइडिया से लेकर सामूहिक रिहाइश, अपना काम खुद करने की सलाह हो और पर्यावरण संबंधी क़दम (जैसे मिट्टी के बर्तनों का इस्तेमाल और जल संरक्षण) जैसे विचार फ़ीनिक्स सेटलमेंट के गांधी आश्रम में जन्मे और पनपे.

गांधी इस देश में एक बैरिस्टर की हैसियत से सूट और टाई में आये थे. उनके क़रीबी दोस्तों में गोरी नस्ल और भारतीय मूल के लोग अधिक थे.

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कहा जाता है कि आश्रम में बसने से पहले उनका लाइफ़ स्टाइल अंग्रेज़ों जैसा था. खाना वो काँटा छुरी से खाते थे.

वो काली नस्ल की स्थानीय आबादी से दूर रहते थे. इसी कारण उनके कुछ आलोचक उन्हें रेसिस्ट भी कहते हैं.


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गांधी को नस्लवादी क्यों कहते थे लोग?

लेकिन 78 वर्षीया उनकी पोती इला गांधी के अनुसार लोगों को ये नहीं भूलना चाहिए कि गांधी साउथ अफ़्रीक़ा जब आये थे तो उनकी उम्र केवल 24 वर्ष थी.

इंग्लैंड में वकालत की पढ़ाई तो कर ली थी लेकिन व्यावहारिक जीवन में पूरी तरह से क़दम नहीं रखा था.

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इला गांधी का जन्म इसी आश्रम में 1940 में हुआ था और इनका बचपन यहीं गुज़रा. तेज़ बारिश के बावजूद वो खुद गाड़ी चलाकर हमसे मिलने आयी थीं.

हमने गांधी के ख़िलाफ़ नस्ली भेदभाव के इलज़ाम के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा, "बापू के उस युवा दौर के एक दो बयान को लोगों ने कॉन्टेक्स्ट से हटाकर देखा जिससे ये ग़लतफ़हमी हुई कि उनके विचार नस्ली भेदभाव वाले हैं."

अपनी बात ख़त्म करने के तुरंत बाद हमें वो आश्रम के उस कमरे में ले गयीं जो एक ज़माने में परिवार का रसोई घर होता था. लेकिन अब ये पूरा घर एक संग्रहालय है.

उन्होंने दीवार पर लगे गांधी जी के कुछ बयानों की तरफ़ इशारा करते हुए कहा, "ये देखिये, इस बयान को लेकर बापू को रेसिस्ट समझा गया. लेकिन इनके साथ एक-दो और बयान पर नज़र डालिये जिससे लगेगा कि वो नस्लपरस्त बिलकुल नहीं थे"

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इला गांधी महात्मा गांधी के चार बेटों में से दूसरे बेटे मणिलाल गांधी की बेटी हैं.

वो आज एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं और गांधी की एक ज़बर्दस्त शिष्या भी. वो एक रिटायर्ड प्रोफेसर हैं और पूर्व सांसद भी.

इला गांधी ने, जो सात साल की उम्र में बापू की गोद में खेल चुकी हैं, गांधी के शांति मिशन का चिराग़ साउत अफ़्रीका में अकेले ज़िंदा रखा हुआ है.

अपनी मृत्यु से पहले उनकी बड़ी बहन सीता धुपेलिया गांधी के विचारों का प्रचार-प्रसार किया करती थीं. उनकी बेटी कीर्ति मेनन और बेटे सतीश गांधी परिवार की चौथी पीढ़ी हैं.

हमारी मुलाक़ात कीर्ति मेनन से हुई जिन्होंने भारत में बढ़ती हिंसा और विभाजित होते समाज पर दुःख प्रकट किया.

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गांधी की स्थायी विरासत में शामिल है उनके परिवार की नयी पीढ़ी. हमारी मुलाकात गांधी परिवार की पांचवीं पीढ़ी से भी हुई.

ये साउथ अफ़्रीक़ा के डरबन, केप टाउन और जोहानसबर्ग जैसे शहरों में आबाद हैं. उनमें से तीन युवाओं से हमारी मुलाक़ात डरबन में कीर्ति मेनन के घर हुई.

गांधी को कैसे देखती है उनकी पांचवीं पीढ़ी

इनका ज़िक्र स्कूल पाठ्य पुस्तकों में नहीं मिलेगा. इनकी तस्वीरें शायद आपने नहीं देखी होंगी क्योंकि ये मीडिया की चमक-दमक से कोसों दूर रहते हैं.

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ये साधारण जीवन बिता रहे हैं और अपनी ज़िंदगी से संतुष्ट नज़र आते हैं.

तीनों में कुछ बातें समान हैं: वो आत्म विश्वास से भरे हैं. बहुत अच्छा बोलते हैं. गांधी परिवार की संतान होने के बावजूद अपनी विरासत का ग़लत इस्तेमाल करने की कोशिश करते नहीं दिखते और तो और साफ़ सटीक बातें करने से घबराते नहीं हैं.

कबीर धुपेलिया 27 वर्ष के हैं और डरबन में एक बैंक में काम करते हैं. उनकी बड़ी बहन मिशा धुपेलिया उनसे 10 साल बड़ी हैं और एक स्थानीय रेडियो स्टेशन में एक कम्युनिकेशन एग्ज़ीक्यूटिव हैं.

ये दोनों कीर्ति मेनन के भाई सतीश की संतानें हैं. इन दोनों की कज़न सुनीता मेनन एक पत्रकार हैं. वो कीर्ति मेनन की एकलौती औलाद हैं.

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चश्मे और हल्की दाढ़ी में कबीर एक बुद्धिजीवी की तरह नज़र आते हैं.

मिशा अपनी उम्र से काफ़ी छोटी लगती हैं लेकिन बातें समझदारी की करती हैं. सुनीता अपने काम को काफ़ी गंभीरता से लेती हैं.

वो खुद को भारतीय महसूस करते हैं या दक्षिण अफ़्रीकी?

इस सवाल पर कबीर एक झटके में कहते हैं, "हम साउथ अफ़्रीकी हैं."

मिशा और सुनीता के अनुसार वो साउथ अफ़्रीक़ी पहले हैं, भारतीय मूल के बाद में.

ये युवा बापू के दूसरे बेटे मणिलाल गांधी की नस्ल से हैं.

गांधी 1914 में दक्षिण अफ़्रीक़ा से भारत लौट गए थे. मणिलाल भी वापस लौटे लेकिन कुछ समय बाद गांधी ने उन्हें डरबन वापस भेज दिया.

गांधी ने 1903 में डरबन के निकट फ़ीनिक्स सेटलमेंट में एक आश्रम बनाया था जहाँ से वो "इंडियन ओपिनियन" नाम का एक अख़बार प्रकाशित करते थे.

मणिलाल 1920 में इसके संपादक बने और 1954 में अपनी मृत्यु तक इसी पद पर रहे.

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इन युवाओं को इस बात पर गर्व है कि गांधी भारत के राष्ट्रपिता हैं और दुनिया भर में उन्हें अहिंसा और सत्याग्रह का गुरू माना जाता है.

'इंसान की तरह देखे जाएं गांधी'

कबीर कहते हैं, "मेरे विचार में इस बात से मैं काफ़ी प्रभावित हूँ कि किस तरह वो अपने मुद्दों पर शांतिपूर्वक डटे रहते थे. ये आज आपको देखने को नहीं मिलेगा. गांधी ने शांति के साथ अपनी बातें मनवाईं जिसके कारण उस समय कुछ लोग नाराज़ भी रहते होंगे."

गांधी की विरासत की अहमियत का उन्हें ख़ूब अंदाज़ा है लेकिन उनके अनुसार ये भारी विरासत कभी-कभी उनके लिए एक बोझ भी बन जाती है.

सुनीता कहती हैं, "गांधी जी को एक मनुष्य से बढ़ कर देखा जाता है. उनकी विरासत के स्तर के हिसाब से जीवन बिताने का हम पर काफ़ी दबाव होता है."

सुनीता मेनन बताती हैं, "सामाजिक न्याय मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण है. और ये सोच गांधी परिवार में पिछली पांच पीढ़ी से चली आ रही है."

वे कहती हैं कि उनके कई दोस्तों को सालों तक नहीं पता चलता कि वो गांधी परिवार से हैं.

मिशा बताती हैं, "मैं जानबूझ कर लोगों को ये नहीं कहती रहती हूँ कि आप जानते हैं कि मैं कौन हूँ".

जब हमने पूछा कि जब उनके दोस्तों को पता चलता है कि उनका बैकग्राउंड किया है तो उनके दोस्तों की प्रतिक्रियाएं किया होती हैं?

इस सवाल के जवाब में सुनीता कहती हैं, "जब लोगों को हमारे बैकग्राउंड के बारे में पता चलता है तो वो कहते हैं कि हाँ अब समझ में आया कि आप सियासत के प्रति इतने उत्साहित क्यों हैं."

लेकिन इससे उनकी दोस्ती पर कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता.

वो गांधी की शिक्षा को अपने जीवन में अपनाने की कोशिश करते हैं लेकिन वो इस बात पर ज़ोर देते हैं कि वो एक अलग दौर में अपनी ज़िंदगी जी रहे हैं और उनके अनुसार ये ज़रूरी नहीं है कि गांधी की 20वीं शताब्दी की सभी सीख आज के युग में लागू हो.

सुनीता के अनुसार उनके व्यक्तित्व को कई व्यक्तियों ने प्रभावित किया है, गांधी उनमें से एक हैं.

ये युवा गांधी के अंधे भक्त नहीं हैं. गांधी की कई कमज़ोरियों से वो वाक़िफ़ हैं लेकिन वो ये भी कहते हैं कि उन्हें उनके दौर की पृष्ठभूमि में देखना चाहिए.

गांधी परिवार की इन संतानों को इस बात की भी जानकारी है कि भारत में गांधी के आलोचक भी बहुत हैं. मगर वो इससे दुखी नहीं हैं.

कबीर कहते हैं, "काफ़ी लोग ये समझते हैं कि अहिंसा को अपनाने के लिए आपको गांधीवादी होना पड़ेगा. अहिंसा के लिए आप गांधी से प्रेरणा ले सकते हैं लेकिन आप अगर उनके आलोचक हैं और अहिंसा के रास्ते पर चलना चाहते हैं तो आप गांधीवाद के ख़िलाफ़ नहीं है."

सुनीता कहती हैं कि गांधी की आलोचना उनके समय के हालत और माहौल के परिपेक्ष्य में करना अधिक उचित होगा.


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