राहुल को आगे कर स्टालिन क्या करना चाहते हैं: नज़रिया
स्टालिन इन सभी सफलताओं को अपने पक्ष में भुनाना चाहते हैं. वो न सिर्फ़ नरेंद्र मोदी के ख़िलाफ़ बोले बल्कि उनके ख़िलाफ़ एक चेहरा भी सुझाया.
और इस तरह वो यह धारणा बनाना चाहते हैं कि डीएमके गठबंधन तमिलनाडु की 39 और पुद्दुचेरी की एक सीट पर जीत दर्ज करेगा.
आगामी लोकसभा चुनाव से पहले विपक्ष की तरफ़ से प्रधानमंत्री पद के लिए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के नाम का प्रस्ताव डीएमके अध्यक्ष एमके स्टालिन ने आगे किया है.
ऐसा कर वो अपने पिता एम करुणानिधी के सजाए राष्ट्रीय राजनीति की फलक पर अपनी जगह तलाशने की उम्मीद कर रहे हैं
तमिलनाडु के पांच बार मुख्यमंत्री रह चुके करुणानिधी ने नेशनल फ्रंट, युनाइटेड फ्रंट, राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन(एनडीए) और संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन(यूपीए) जैसे राष्ट्रीय गठजोड़ों को बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.
ये करुणानिधी ही थे, जिन्होंने इंदिरा गांधी और सोनिया गांधी को राष्ट्रीय राजनीति की फलक पर स्थापित करने के लिए लोकप्रिय नारे दिए थे.
1980 में उन्होंने इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में आगे किया था. वहीं साल 2004 में उन्होंने सोनिया गांधी के पक्ष में नारा दिया था, "इंदिरा की बहू, भारत की महान बेटी."
स्टालिन ने इन दो उदाहरणों की ओर संकेत करते हुए रविवार को कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को कथित "फासीवादी नाज़ी" प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ख़िलाफ़ लड़ाई की अगुवाई करने का निमंत्रण दिया.
तब और अब में क्या फ़र्क़ है
लेकिन देश की वर्तमान राजनीति माहौल साल 1980, 1989 और 2004 से बिल्कुल अलग है. उस वक़्त जब भी दिल्ली में सत्ता बदलने की आहट सुनाई देती थी, विपक्षी एकता मज़बूत हो जाती थी.
1980 और 2004 में कांग्रेस अपने नेतृत्व के समर्थन के लिए सहयोगियों की तलाश करती थी, लेकिन आज ऐसी स्थिति नहीं है.
आज पार्टी ख़ुद राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में पेश करने में सावधानी बरत रही है.
पार्टी नहीं चाहती है कि चुनाव से पहले मोदी का मुकाबला करने के लिए बनाया जाने वाला गठबंधन ख़तरे में पड़े.
यही कारण है कि स्टालिन के बाद बोलने आईं यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी ने राहुल की उम्मीदवारी के प्रस्ताव पर कुछ नहीं कहा.
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हिंदी क्षेत्र की राजनीति में दख़ल देने वाली पार्टियां, जैसे समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के अलावा तृणमूल कांग्रेस, तेलुगू देशम पार्टी जैसी क्षेत्रीय पार्टियां भी राहुल गांधी के नाम पर सहमत नहीं दिख रही हैं.
वाम दल भी इस पूरे मुद्दे पर चुप्पी साधे बैठे हैं. स्टालिन के प्रस्ताव को ममता बनर्जी और मायावती ख़ारिज कर चुकी हैं.
ऐसा नहीं है कि स्टालिन इस वर्तमान माहौल से वाक़िफ़ नहीं हैं. डीएमके की दूसरी पंक्ति में खड़े नेताओं को भी इस बात से आपत्ति थी कि तमिलनाडु में अभी इसकी घोषणा की गई है.
वो मानते हैं कि राज्य में गठबंधन की अगुवाई डीएमके कर रहा है और द्रविड़ इलाक़े में कांग्रेस एक छोटा खिलाड़ी है.
मोदी बनाम राहुल
इस साल अगस्त में सीपीआईएम के महासचिव सीताराम येचुरी और नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता फ़ारूक़ अब्दुल्ला ने स्टालिन से कहा था कि वो विपक्षी गठबंधन को मज़बूत करने की कोशिश वहां से शुरू करें जहां उनके पिता एम करुणानिधी ने इसे छोड़ा था.
उन्होंने सभी धर्मनिरपेक्ष ताक़तों को साथ लाने की बात भी कही थी.
स्टालिन जानते हैं कि सिर्फ़ राहुल गांधी के नाम का प्रस्ताव रखना मोदी के ख़िलाफ़ जंग जीतने के लिए काफ़ी नहीं है. फिर भी वो इससे आगे बढ़ कर लड़ाई को मोदी बनाम राहुल करने की कोशिश करते दिखे.
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2021 के विधानसभा चुनावों पर नज़र
डीएमके के प्रमुख के इस प्रस्ताव को मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ चुनावों में कांग्रेस की जीत और दूसरे ग़ैरभाजपा दलों की हार से भी जोड़ कर देखे जाने की ज़रूरत है.
लोकसभा चुनावों के छह महीने पहले हुए विधानसभा चुनावों में तेलंगाना में टीडीपी की हार के बाद चंद्रबाबू नायडू के उस सपने पर पानी फिर गया है, जिसमें वो ख़ुद को चुनाव के बाद प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में देखते थे.
अगर यही ट्रेंड आगे रहा तो स्टालिन को उम्मीद है कि कांग्रेस गठबंधन में शामिल दलों में सबसे आगे रहेगी और वो इसकी अगुवाई करती दिखेगी.
उस स्थिति में डीएमके को इस क़दम के लिए लाभ दिया जाएगा और सरकार में प्राथमिकता भी मिलेगी.
पार्टी केंद्र से राज्य के लिए अनुकूल योजनाएं ला सकेगी और जाहिर है कि साल 2021 में होने वाले विधानसभा चुनावों में वो इसका इस्तेमाल सत्ता में वापसी के लिए कर सकेगी.
स्टालिन अन्य विपक्षी नेताओं के मुक़ाबले निडर होकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को "फासीवादी" और "निराशावादी" कहते हैं.
राहुल गांधी का प्रस्ताव रखने के पीछे दूसरा नज़रिया यह हो सकता है कि राज्य में मोदी विरोधी भावना मज़बूत है.
इस साल चेन्नै में 'मोदी वापस जाओ' जैसे अभियान और केंद्र सरकार की योजनाओं के ख़िलाफ़ पार्टी के प्रदर्शन काफ़ी सफल रहे थे.
स्टालिन इन सभी सफलताओं को अपने पक्ष में भुनाना चाहते हैं. वो न सिर्फ़ नरेंद्र मोदी के ख़िलाफ़ बोले बल्कि उनके ख़िलाफ़ एक चेहरा भी सुझाया.
और इस तरह वो यह धारणा बनाना चाहते हैं कि डीएमके गठबंधन तमिलनाडु की 39 और पुद्दुचेरी की एक सीट पर जीत दर्ज करेगा.
इसके अलावा वो कांग्रेस को यह भी संदेश देना चाहते हैं कि पार्टी चुनाव बाद भाजपा से किसी तरह का गठबंधन नहीं करेगी और धर्मनिरपेक्ष ताक़तों और अल्पसंख्यकों को एकजुट करने के लिए प्रतिबद्ध है.
उनका यह क़दम डीएमके के संभावित सहयोगियों को कथित तीसरे मोर्चे से दूर करने के प्रयास के रूप में भी देखा जा सकता है.