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राजा को बरी करने वाले जज सैनी ने क्या-क्या कहा

तत्कालीन दूरसंचार मंत्री ए राजा और अन्य लोगों को बरी करने वाले जज ओपी सैनी ने अपने फ़ैसले में क्या कहा.

By BBC News हिन्दी
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ए राजा
MONEY SHARMA/AFP/Getty Images
ए राजा

"मैं सात सालों तक इंतज़ार करता रहा, काम के हर दिन, गर्मियों की छुट्टियों में भी, मैं हर दिन सुबह 10 से शाम 5 बजे तक इस अदालत में बैठकर इंतज़ार करता रहा कि कोई कानूनी रूप से स्वीकार्य सबूत लेकर आए. लेकिन कोई भी नहीं आया."

'सीबीआई बनाम ए राजा एव अन्य' के इस मुकदमे की नियती का अंदाजा स्पेशल जज ओपी सैनी के इन शब्दों से लगाया जा सकता है. जिस कथित घोटाले की सुनवाई के लिए जज सैनी ने ये शब्द अपने फ़ैसले में लिखे, उसके लिए मनमोहन सिंह की नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने बड़ी राजनीतिक क़ीमत चुकाई.

ये कथित घोटाला साल 2010 में सामने आया जब भारत के महालेखाकार और नियंत्रक (कैग) ने अपनी एक रिपोर्ट में साल 2008 में किए गए स्पेक्ट्रम आवंटन पर सवाल खड़े किए.

तत्कालीन सीएजी विनोद राय ने पद पर रहते हुए पूरे देश को बताया कि सरकारी नीतियों के कारण मोबाइल फ़ोन स्पेक्ट्रम आबंटन में राष्ट्रीय ख़ज़ाने को एक लाख 76 हज़ार करोड़ रुपए का घाटा हुआ और फिर भारतीय राजनीति में तूफ़ान खड़ा हो गया.

सरकार के संकटमोचक मंत्रियों ने प्रेस कॉनफ़्रेंस करके इसका प्रतिवाद किया और राष्ट्रीय स्तर पर बहस छिड़ गई.

फिर इस्तीफ़े हुए, मुकदमा शुरू हुआ और गुरुवार को दिल्ली की एक अदालत ने 2 जी घोटाले मामले में जिन 14 लोग और तीन कंपनियों पर आरोप लगा था, उन सबको बरी कर दिया.

आख़िर क्या था 2 जी घोटाला और किन किन पर था आरोप?

2 जी घोटाले में सभी अभियुक्त बरी, दिल्ली की अदालत का फ़ैसला

कनिमोझी
MONEY SHARMA/AFP/Getty Images
कनिमोझी

स्पेशल जज सैन ने क्या-क्या कहा

  • मैं सात सालों तक इंतज़ार करता रहा, काम के हर दिन, गर्मियों की छुट्टियों में भी, मैं हर दिन सुबह 10 से शाम 5 बजे तक इस अदालत में बैठकर इंतज़ार करता रहा कि कोई कानूनी रूप से स्वीकार्य सबूत लेकर आए. लेकिन कोई भी नहीं आया. इससे ये संकेत मिलता है कि सभी लोग पब्लिक पर्सेप्शन से चल रहे थे जो अफवाहों, गपबाज़ी और अटकलबाज़ियों से बनी थी. बहरहाल अदालती कार्यवाही में पब्लिक पर्सेप्शन कोई मायने नहीं रखती.
  • शुरुआत में अभियोजन ने बहुत उत्साह दिखाया लेकिन जैसे-जैसे केस आगे बढ़ा, ये समझना मुश्किल हो गया कि आख़िर वो साबित क्या करना चाहता है. और आख़िर में अभियोजन का स्तर इस हद तक गिर गया कि वो दिशाहीन और शक्की बन गया.
  • अभियोजन की तरफ से कई आवेदन और जवाब दाखिल किए गए. हालांकि बाद में और ट्रायल के आख़िरी फ़ेज़ में कोई वरिष्ठ अधिकारी या अभियोजक इन आवेदनों और जवाबों पर दस्तखत करने के लिए तैयार नहीं था. अदालत में मौजूद एक जूनियर अधिकारी ने इन पर दस्तखत किए. इससे पता चलता है कि न तो कोई जांच अधिकारी और न ही कोई अभियोजक इस बात की जिम्मेदारी लेना चाहता था कि अदालत में क्या कहा जा रहा है या क्या दाखिल किया जा रहा है.
  • सबसे ज्यादा तकलीफदेह बात ये रही कि स्पेशल पब्लिक प्रॉसिक्यूटर उस दस्तावेज पर दस्तखत करने के लिए तैयार नहीं थे जो वो खुद कोर्ट में पेश कर रहे थे. ऐसे दस्तावेज़ का कोर्ट के लिए क्या इस्तेमाल है जिस पर किसी के दस्तखत नहीं हों.
ए राजा
RAVEENDRAN/AFP/Getty Images
ए राजा
  • अलग-अलग महकमों (टेलीकॉम विभाग, क़ानून मंत्रालय, वित्त मंत्रालय और प्रधानमंत्री कार्यालय) के अधिकारियों ने जो किया और जो नहीं किया, की जांच से ये पता चलता है कि स्पेक्ट्रम आवंटन के मुद्दे से जुड़ा विवाद कुछ अधिकारियों के गैरजरूरी सवालों और आपत्तियों और अन्य लोगों की ओर से आगे बढ़ाए गए अवांछित सुझावों की वजह से उठा. इनमें से किसी सुझाव का कोई तार्किक निष्कर्ष नहीं निकला और वे बीच में ही बिना कोई खोज खबर लिए छोड़ दिए गए. दूसरे लोगों ने इनका इस्तेमाल गैरज़रूरी विवाद खड़ा करने के लिए किया.
  • नीतियों और गाइडलाइंस में स्पष्टता की कमी से भी कन्फ्यूज़न बढ़ा. ये गाइडलाइंस ऐसी तकनीकी भाषा में ड्राफ्ट किए गए थे कि इनके मतलब टेलीकॉम विभाग के अधिकारियों को भी नहीं पता थे. जब विभाग के अधिकारी ही विभागीय दिशानिर्देशों और उनकी शब्दावली को समझ नहीं पा रहे थे तो वे कंपनियों और दूसरे लोगों को इनके उल्लंघन के लिए किस तरह से जिम्मेदार ठहरा सकते हैं. ये जानते हुए भी कि किसी शब्द का मतलब स्पष्ट नहीं है और इससे समस्याएं पैदा हो सकती हैं, इसे दुरुस्त करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया गया. ये साल दर साल जारी रहा. इन हालात में टेलीकॉम विभाग के अधिकारी खुद ही इस पूरे गड़बड़झाले के लिए जिम्मेदार हैं.
  • कई अधिकारियों ने फाइलों पर इतनी ख़राब हैंडराइटिंग में नोट्स लिखे कि उन्हें पढ़ा और समझा नहीं जा सकता था. कई बार तो ये नोटिंग्स कूटभाषा में या फिर बेहद लंबे और तकनीकी भाषा में लिखे गए. जिन्हें कोई आसानी से समझ नहीं सके और आला अधिकारी अपनी सुविधानुसार इसमें खामी खोज सकें.
  • ए राजा ने जो किया या फिर नहीं किया, उसका इस केस की बुनियाद से कोई लेनादेना नहीं है. ऐसा कोई सबूत नहीं है जिससे ये पता चलता हो कि ए राजा ने कोई साज़िश की थी. मुझे ये कहने में कोई संकोच नहीं है कि अभियोजन पक्ष किसी भी अभियुक्त के ख़िलाफ़ कोई भी आरोप साबित करने में बुरी तरह से नाकाम रहा है. सभी अभियुक्तों को बरी किया जाता है.
BBC Hindi
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English summary
What did the judge who acquitted the king said
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