क्या हैं हमेशा जवान रहने के वो नुस्खे, जो MDH वाले महाशय धर्मपाल गुलाटी बताकर गए हैं
नई दिल्ली- एमडीएच अंकल, दादाजी, मसाला किंग या मसालों के बादशाह इन सभी नामों से उतने ही चर्चित महाशय धर्मपाल गुलाटी अपनी मेहनत और संघर्ष के दम पर जीवन में जिन ऊंचाइयों तक पहुंचे वह एक सपने जैसा लगता है। 98 साल की उम्र में कोरोना को भी मात देने वाले महाशय भले ही आखिरकार जिंदगी की जंग हारे हों, लेकिन अंतिम सांसों तक वह हमेशा की तरह एक जिंदादिल इंसान रहे, जिनके चेहरे पर मुस्कुराहट की कमी कभी नहीं दिखाई पड़ी। इतनी ज्यादा उम्र में भी उनकी ऊर्जा, उनका तेज और जीवन को हंसते हुए जीने का उनका अंदाज दिल को छू लेने वाला रहा है। हम यहां उनके जीवन के कुछ ऐसे ही पहलुओं के बारे में चर्चा कर रहे हैं, जो कभी उन्होंने ही खुद अपनी जुबानी बताई थी।
नहीं पढ़ने के सौ बहाने ढूंढ़ लेते थे महाशय
मौजूदा पाकिस्तान के सियालकोट में पिता चुन्नीलाल और माता चन्नन देवी के घर जन्मे धर्मपाल गुलाटी का दाखिला तो पांच साल की उम्र में ही स्कूल में करवाया गया था, लेकिन उन्हें पढ़ने में कभी मन नहीं लगता था। किसी तरह पांचवीं तक पढ़े। पढ़ने की बात आने पर ही सौ बहाने तलाश लेते थे। पिता को लगा कि नहीं पढ़ेगा तो अपनी मसाले की दुकान पर ही काम में लगा लिया। इस काम में वह पूरे लगन से जुट गए। खूब तजुर्बा कमाया और दूसरे काम भी सीखते रहे। रेहड़ी पर मेहंदी की पुड़िया भी बेची। परिवार बड़ा था, लेकिन घर में भैंसे थीं तो पौष्टिक भोजन की कमी नहीं थी। काम के साथ-साथ कुश्ती और दूसरे खेलों में भी खूब मन लगता था।
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कैसे बने मसाला किंग ?
धंधे में मन रम गया तो कारोबार भी अच्छा ही चलने लगा था। लेकिन, जवानी आई तो परिवार ने शादी का दबाव बनाना शुरू कर दिया। 1942 में लीलावंती को लक्ष्मी रूप में ब्याह कर ले आए। देश का विभाजन लाखों पाकिस्तानी परिवारों की तरह इनके परिवार वालों पर भारी पड़ा और जान बचाकर भाग कर भारत आना पड़ा। जैसे-तैसे अमृतसर पहुंचे और फिर दिल्ली चले आए। दिल्ली में उनके तांगा चलाने के किस्से तो खूब मशहूर हो चुके हैं। अजमल खां रोड पर पहले गुड़-शक्कर का धंधा शुरू किया, लेकिन मन तो मसालों से हटता ही नहीं था। फिर वहीं पर मसालों की एक छोटी सी दुकान शुरू की तो तजुर्बा काम आया। धंधा चलने लगा। काम बढ़ा तो फैक्ट्री लगाई और फिर पूरे देश में 'महाशियां दी हट्टी' (एमडीएच) की धूम मच गई। इसके साथ कपड़े और रेस्टोरेंट का भी बिजनेस चलाया।
सत्संग और भजन-कीर्तन में भी खूब दिलचस्पी रही
कारोबार जम गया तो सामाजिक कार्यों में भी दिलचस्पी बढ़ाई। सत्संग और भजन-कीर्तन में भी मन रमने लगाया। माता चन्नन देवी के नाम पर जनकपुरी में अस्पताल बनाया। कई स्कूल, गुरुकुल और आश्रमों का निर्माण किया। गौशालाओं भी योगदान दिया। अपना परिवार भी बड़ा था। कई बार दुख की घड़ी भी आई, लेकिन उसे ईश्वर की इच्छा समझकर इन्होंने अपने कदम को कभी भी रुकने नहीं दिया। करीब तीन साल पहले एक बार उनके निधन की अफवाह भी उड़ी थी, लेकिन महाशय ने उन सभी आशंकाओं को निर्मूल साबित किया था।
ऐसी नियमित थी उनकी दिनचर्या
महाशय धर्मपाल गुलाटी से जब उनकी बढ़ती उम्र के साथ उनकी असीम ऊर्जा के बारे में पूछा जाता था तो वह लोगों को जवान रहने के नुस्खे भी बताते थे। करीब तीन साल पहले जब एक बार उनकी मौत की अफवाह उड़ी थी, लगभग उसी दौरान उन्होंने कहा था 95 की उम्र के बावजूद वह रोजाना सुबह के पौन पांच बजे उठ जाते हैं। सुबह सबसे पहले तांबे के गिलास ले थोड़ी शहद के साथ पानी पीने की उनकी दिनचर्या काफी पुरानी है। सुबह में पार्क में जाकर आसन-प्राणायाम और ठहलने का उनका वक्त 5.25 का फिक्स था। पार्क में शाम में भी जाना होता था। उनका भोजन बहुत ही हल्का होता था।
महाशय ने दिए थे जवान रहने के ये नुस्खे
लोगों को हमेशा जवान रहने के लिए वह तीन बातों का टिप्स देकर गए हैं- रोजाना शेव कीजिए। मखाने वाला दूध कम से कम एक बार जरूर लीजिए और मुमकिन हो तो बादाम तेल की मालिश करवाते रहिए, बुढ़ापा नजदीक में भी नहीं फटकेगा। उनका कहना था कि चेक चाहे 5 रुपये का हो या 5 करोड़ का उसपर साइन वही करते हैं। वह मानते थे कि जिंदगी सफल तभी होगी जब तनाव मुक्त होंगे और इसके लिए सामाजिक और धार्मिक कार्यों में भी भागीदारी होनी चाहिए।