वेस्टर्न रेलवे ने चूहे मारने पर 1 करोड़ 52 लाख रुपये खर्च किए, जानिए एक चूहे पर आई कितने हजार की लागत
नई दिल्ली- वेस्टर्न रेलवे ने मुंबई सेंट्रल डिविजन में चूहे के कहर से बचने के लिए पिछले तीन वर्षों में 1.52 करोड़ रुपये खर्च किए हैं। इसका खुलासा एक आरटीआई से सामने आया है। लेकिन, इतने पैसे खर्च करने के बावजूद रेलवे सिर्फ 5,457 मारने में सफल हुआ है। हालांकि, वेस्टर्न रेलवे की दलील है कि खर्च की तुलना मारे गए चूहों की संख्या से करना इसलिए सही नहीं है, क्योंकि कई मारे गए चूहों की गिनती ही संभव नहीं थी, क्योंकि वह बिलों में या कहीं दूर जाकर मर गए होंगे। यही नहीं रेलवे का ये भी दावा कि इस मुहिम के बाद चूहों के खिलाफ मिलने वाली शिकायतों में 70 फीसदी से ज्यादा कमी आई है।
एक चूहे मारने की लागत करीब 3 हजार रुपये
पिछले तीन वर्षों में वेस्टर्न रेलवे के ने चूहों की समस्या से निपटने के लिए 1.52 करोड़ रुपये खर्च किए हैं। लेकिन, इतना खर्च करने के बाद भी वेस्टर्न रेलवे 5,457 चूहों को ही पकड़ने या मारने में सफलता पाई है। इस हिसाब से एक चूहे को पकड़ने पर करीब तीन हजार रुपये (2,785 रुपये) खर्च किए गए हैं। हालांकि, वेस्टर्न रेलवे की दलील है कि खर्च और मारे गए चूहों की तुलना करना सही नहीं है, क्योंकि इस मुहिम से काफी ज्यादा लाभ पहुंचा है। उनका ये भी कहना है कि मारे गए चूहों की संख्या कहीं ज्यादा होगी, क्योंकि काफी सारे तो बिलों के अंदर ही मारे जा चुके होंगे। वेस्टर्न रेलवे के चीफ पब्लिक रिलेशन ऑफिसर रविंदर भाकर ने बताया है कि 'पकड़े गए चूहों के आधार पर खर्च का औसत निकालना सही नहीं है। यह उन चूहों की गिनती है जिन्हें हम गिन सके हैं। जो दवा के असर से कई दूसरी जगह मर गए होंगे, उनकी गिनती नहीं हो सकी है। इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि एक चूहा पकड़ने में 2,785 रुपये खर्च हुआ। इस मुहिम से चूहों के मारने के अलावा सफाई भी बेहतर हुई है।'
कैसे हुई मारे गए चूहों की गिनती ?
वेस्टर्न रेलवे के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक पेस्ट कंट्रोल का काम सभी ट्रेनों के कोच में ,पिट लाइन्स, कोचिंग डिपोट और यार्ड में संपन्न कराए गए। एक अधिकारी ने नाम नहीं बताने की शर्त पर मीडिया को बताया कि 'रेलवे ने पेस्ट और रॉडेंट कंट्रोल के लिए इस काम में माहिर एजेंसियों की सेवाएं लीं...कई तरीकों से इस समस्या के खिलाफ अभियान चलाया गया, जिसमें बैट्स,ग्लू बोर्ड, मान्यता प्राप्त केमिकल्स का इस्तेमाल किया गया....' मारे गए चूहों की गिनती के लिए रेलवे की एक टीम ने पटरियों का भी सर्वे किया। हालांकि, मिट्टियों में दबे और पत्थरों के अंदर दबे चूहों की गिनती करना आसान नहीं था।
चूहों की शिकायतों में 70% से ज्यादा की कमी
रेलवे के मुताबिक इस मुहिम में पैंट्री कारों के मामले में पेस्ट कंट्रोल के दौरान काफी सावधानी बरती गई और ऐसे जगहों पर विशेष प्रक्रिया का पालन किया गया। इस मुहिम से जुड़े रेलवे के एक अधिकारी ने दावा किया है कि पेस्ट कंट्रोल के बाद कीटों खासकर चूहों को लेकर मिलने वाली शिकायतों की तादाद बहुत कम हो गई है। रेलवे अधिकारियों के मुताबिक इस मुहिम के बाद उनके पास चूहों को लेकर पहुंचने वाली शिकायतों में 70 फीसदी से ज्यादा कमी हुई है। यही नहीं इसके बाद पहले हो रहे नुकसानों में भी काफी कमी आई है। यह नुकसान सबसे ज्यादा बोगियों, सिंग्नलों और यात्रियों के सामानों के साथ हो रहा था।
इसे भी पढ़े- फूल झाड़ू के बीज से तैयार होता है नकली जीरा, यूपी से दिल्ली तक बाजार में बेचा जा रहा