West Bengal election:मिथुन चक्रवर्ती का 'अर्बन नक्सली' वाला इतिहास, जो भाजपा को परेशान कर सकता है
कोलकाता: अभिनेता से राजनेता बने मिथुन चक्रवर्ती का सियासी इतिहास भगवाधारी भाजपा की विचारधारा से ठीक उलट रहा है। एक वक्त उनकी गिनती 'अर्बन नक्सली' के तौर पर हो चुकी है। उग्र-वामपंथी विचारधारा के बाद उन्होंने वामपंथी विचारधारा को अपना बनाया और फिर वहां से होते हुए, न लेफ्ट और न राइट से जुड़े और सीधे तृणमूल कांग्रेस की सत्ता की हवा में बहकर राज्यसभा पहुंच गए। रविवार को कोलकाता के ब्रिगेड ग्राउंड में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पहुंचने से ठीक पहले वो उस दक्षिणपंथी ब्रिगेड में शामिल हो गए, जिसकी राजनीति उसी कथित 'अर्बन नक्सली' विचारधारा के खिलाफ है, जहां से मिथुन में राजनीतिक करियर का बीज डला था। मिथुन दा की यह सियासी यात्रा दशकों के राजनीतिक सफर के बाद इस नए मकाम पर पहुंची है।
विचारधारा की सियासी 'गुलाटी'
बंगाल चुनाव में मिथुन चक्रवर्ती की पार्टी में एंट्री भाजपा के लिए कितनी महत्वपूर्ण है इसका अंदाजा इसी से लग जाता है कि मंच पर पीएम मोदी की आगवानी के लिए प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष दिलीप रॉय के बाद सिर्फ वही मौजूद थे, जो चंद मिनटों पहले ही कमल थामने पहुंचे थे। भाजपा जैसी विचारधारा से जुड़ी पार्टी के लिए यह बहुत बड़ा सियासी बदलाव है तो खुद मिथुन के लिए उससे भी कहीं बढ़कर है। बीजेपी तो हर हाल में बंगाल जीतने चली है। लेकिन, 16 जुलाई, 1950 को एक मध्यमवर्गीय बंगाली परिवार में जन्मे मिथुन दा के लिए यह कितना बड़ा परिवर्तन है, यह उनके अतीत के विभिन्न पहलुओं को समझने के बाद ही पता चल सकता है। 1960 के दशक में वो अनेकों बंगाली युवाओं की तरह ही नक्सल आंदोलन से बहुत ज्यादा प्रभावित हुए थे। लेकिन, उसी दौरान एक दुर्घटना में उनके भाई की मौत ने सशस्त्र संघर्ष को लेकर उनके विचारों का रुख मोड़ दिया। हालांकि, नक्सलियों के खिलाफ पुलिस कार्रवाई की वजह से उन्हें फिर भी काफी समय तक छिप कर वक्त गुजारना पड़ा। आखिरकार, उन्होंने इस जीवन से पीछा छुड़ाने की कोशिश शुरू की और फिल्म लाइन की ओर बढ़ गए। लेकिन, नक्सल आंदोलन से जुड़े उनके इस अतीत ने बार-बार उनका पीछा किया।
नक्सल आंदोलन से जुड़े अतीत के चलते फिल्मों में भी मिला वही रोल
किसी तरह जब वो पुणे के एफटीआईआई पहुंचे तो अपने इतिहास से पिंड छुड़ाने की गंभीर कोशिशें शुरू की। एक बार उन्होंने अली पीटर जॉन नाम के एक पत्रकार से बातचीत में कहा था कि उनका नाम उनसे पहले ही बॉम्बे (मुंबई) पहुंच चुका था। उन्होंने कहा था, 'इंडस्ट्री और बाहर के लोग कलकत्ता (कोलकाता) में मेरे नक्सली आंदोलन में जुड़े होने और नक्सली नेता चारू मजूमदार के साथ मेरे नजदीकी संबंधों को लेकर सबकुछ जानते थे। मेरे परिवार में एक घटना होने के बाद मैं उस आंदोलन से हट गया, लेकिन नक्सलाइट होने का ठप्पा ऐसा लगा कि मैं जहां भी गया, चाहे पुणे की एफटीआईआई हो या फिर 70 के दशक के आखिर में यहां बॉम्बे आया तब...।' यही वजह है कि फिल्मकार ख्वाजा अहमद अब्बास ने उन्हें 1980 में 'द नक्सलाइट' नाम की एक फिल्म में मुख्य किरदार का रोल ऑफर किया। शुरू में तो उसके लिए मन से तैयार नहीं थे, लेकिन उसी इंटरव्यू में उन्होंने बताया कि उन्हें डांसर और फाइटर की छवि से बाहर निकलकर खुद को ऐक्टर साबित करना था और अब्बास साहब का ऑफर था तो उन्होंने एक नक्सलाइट वाला रोल स्वीकार कर लिया। उस फिल्म को वह आज भी अपनी सबसे यादगार फिल्मों में से एक मानते हैं। वैसे मिथुन को फिल्मों में पहचान 1976 में रिलीज हुई उनकी पहली फिल्म मृणाल सेन की 'मृग्या' से मिली थी, जिसे नेशनल अवॉर्ड भी मिला था।
ममता ने श्मशान में दिया था टिकट का ऑफर
टीएमसी में उनकी एंट्री बहुत ही दिलचस्प है, जब मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने एक श्मशान में उन्हें पार्टी में शामिल होने और टिकट देने का ऑफर दिया था। ये सारे लोग मशहूर कलाकार सुचित्रा सेन के अंतिम संस्कार के लिए जुटे थे। वैसे, अभिनय की दुनिया के बाद के दिनों में उनकी सियासत में वापसी उग्र-वामपंथी विचारधारा की जगह वामपंथी विचारधारा में ज्योति बसु के शासनकाल में ही हो चुकी थी। बसु का उनपर खास आशीर्वाद रहा। ज्योति दा के बाद बुद्धदेब भट्टाचार्य के कार्यकाल में उनकी पार्टी नेताओं से ज्यादा नहीं बनी। सिर्फ सीपीएम के बड़े नेता शुभास चक्रबर्ती से उनकी खूब छनी और जबतक वो जीवित रहे दोनों के रिश्ते सियासत से भी बढ़कर रहे। उनकी लेफ्ट नेताओं से इतनी करीबी की वजह से ही शुरू में ममता बनर्जी के सिपहसलारों ने उन्हें ज्यादा तबज्जो नहीं देने को कहा था। क्योंकि, सुभास बाबू के लिए मिथुन ने कई कार्यक्रम भी करवाए थे और अमिताभ बच्चन और रेखा जैसी फिल्मी हस्तियों को भी कोलकाता लेकर आए थे।
'अर्बन नक्सली' वाले इतिहास से कैसे पीछा छुड़ाएगी भाजपा
कोलकाता के मशहूर स्कॉटिश चर्च कॉलेज से केमिस्ट्री में डिग्री रखने वाले मिथुन कॉलेज के जमाने में ग्रीस-रोमन स्टाइल कुश्ती में भी चैंपियन रहे हैं। जिस शारदा स्कैम को लेकर भाजपा टीएमसी सरकार को शुरू से निशाने पर लेती रही है, कभी उसके ब्रांड एंबेसडर रहे मिथुन अब बंगाल में उसके 'अशोल पोरिबोर्तन' के मंसूबे को पूरा करने में सहयोग करेंगे। हालांकि, बीजेपी में आने से पहले ही पिछले कुछ वर्षों से वह नागपुर में आरएसएस मुख्यालय के करीब आ चुके हैं। यही वजह है कि फरवरी के मध्य में संघ प्रमुख मोहन भागवत उनके मुंबई वाले आवास पर करीब 90 मिनट तक बातचीत कर आए थे। मिथुन दा का राजनीतिक और फिल्मी करियर उनके कला के मुताबिक ही बहुत ज्यादा परिवर्तनशील रहा है, जिसमें वह डिस्को डांसर भी रह चुके हैं और 'मृग्या' और 'द नक्सलाइट' जैसी फिल्मों को भी लीड कर चुके हैं। लेकिन, सवाल भाजपा और उसके वैचारिक संगठन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का है कि वो अब कैसे कथित लिबरलों या अर्बन नक्सलियों पर निशाना साध पाएंगे ?
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