पश्चिम-बंगाल में 3 से 200 सीटों की छलांग कैसे लगाएगी भाजपा?
कोलकाता। भाजपा की पश्चिम बंगाल में सिर्फ तीन सीटें हैं। गृहमंत्री अमित शाह का दावा है कि भाजपा 200 से अधिक सीटें जीत कर सरकार बनाएगी। अगर ऐसा मुमकिन हुआ तो पश्चिम बंगाल की राजनीति में एक नया इतिहास बनेगा। आज तक इस राज्य में किसी दल ने 3 से सीधे 200 की छलांग नहीं लगायी है। स्ट्रीट फइटर माने जाने वाली ममता बनर्जी ने भी 2011 में 30 से 186 की लॉन्ग जम्प लगायी थी। यानी भाजपा को शून्य से शिखर पर जाना है। यह बहुत मुश्किल लक्ष्य है। इसके बावजूद भाजपा को पश्चिम बंगाल में एक मजबूत राजनीतिक शक्ति माना जा रहा है। भाजपा के नेता आखिर किस आधार पर जीत का सपना देख रहे हैं?
ममता की छवि पर असर
जुझारू तेवर और सादगीपूर्ण जीवनशैली के कारण ममता बनर्जी बंगाल की जननेता बनी थीं। इसकी वजह से उन्हें सत्ता मिली। लेकिन दस साल बीतते-बीतते उनकी यह छवि अब खंडित होने लगी है। उनके भतीजे अभिषेक बनर्जी पर समानांतर सत्ता स्थापित करने का आरोप है। अभिषेक अपनी बुआ ममता बनर्जी से चार गुना अधिक धनी हैं। भ्रष्टाचार के आरोपों की आंच भी उन तक पहुंच गयी है। अभिषेक की कंपनी लीप्स एंड बाउंड्स विवादों है। ममता बनर्जी ने अभिषेक के राजनीति में होने का बचाव किया है। उन्होंने कहा है, अगर उनके परिवार का सिर्फ एक व्यक्ति अगर रजनीति में है तो हंगामा क्यों खड़ा किया जा रहा है ? लेकिन वंशवाद को लेकर अब उनके घर के अंदर भी मतभेद उभरने शुरू हो गये हैं।
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परिवार में विवाद
ममता बनर्जी के पांच भाई हैं। अभिषेक उनके बड़े भाई अमित मुखर्जी के पुत्र हैं। ममता बनर्जी के पांच भाइयों में एक कार्तिक बनर्जी भी हैं। उन्होंने बंगाल में वंशवाद की राजानीति को खत्म करने की वकालत की है। 2015 के पंचायत चुनाव में कार्तिक बनर्जी ने तृणमूल कांग्रेस का प्रचार किया था। लेकिन अब वे अपनी दीदी ममता बनर्जी से दूर बताये जा रहे हैं। इस साल जनवरी में उनके भाजपा में जाने की जोरदार चर्चा चली थी। ममता के दो भाई बाबेन बनर्जी और गणेश बनर्जी ने भी 2015 पंचायत चुनाव में तृणमूल कांग्रेस के लिए प्रचार किया था। लेकिन इनकी राजनीतिक गतिविधियां परवान नहीं चढ़ सकीं। कहा जा रहा है कि परिवार में सिर्फ एक व्यक्ति (अभिषेक) को तरजीह मिलने से ममता के अन्य भाइयों में नाराजगी है।
पहले चरण की 30 सीटों पर भाजपा की स्थिति
पहले चरण में पांच जिलों (पुरुलिया, बांकुड़ा, झाड़ग्राम, पश्चिमी मेदिनीपुर, पूर्वी मेदिनीपुर) की 30 सीटों में से एक पर भी भाजपा का कब्जा नहीं है। फिर भी उसका कहना है कि हमें अपनी मेहनत और ममता बनर्जी के गिरते ग्राफ के कारण कामयाबी मिलेगी। ये जिले झारखंड के नजदीक हैं। उन जिलों में आदिवासी समुदाय की अच्छीखासी आबादी है। इसलिए भाजपा ने झारखंड के तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों को यहां मोर्चा संभालने के लिए भेज दिया है। अर्जुन मुंडा झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हैं और अभी केंद्र सरकार में मंत्री हैं। आदिवासी समुदाय में उनकी अच्छी पैठ है। वे यहं डेरा जमाये हुए हैं। बाबूलल मरांडी और रघुवर दास इन जिलों का दौरा कर चुके हैं। इन नेताओं का कहना है कि आंकड़े भले हमारे पक्ष में नहीं है लेकिन हमें जनता का समर्थन मिल रहा है। जनता अगर बदलाव का मन बना ले तो कोई भी नयी शुरुआत कर सकता है। अगर वामपंथियों के 34 साल के शासन का खात्मा हो सकता है तो ममता बनर्जी के 10 के शासन का क्यों नहीं ?
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क्या है बदलाव का आधार ?
अमित शाह ने कहा है कि 'जय श्रीराम' का नारा कोई धार्मिक नारा नहीं है बल्कि यह बंगाल में परिवर्तन का नारा है। इसमें वंदे मातरम और इन्कलाब जिंदाबाद की तरह ताकत है। कुछ लोग भाजपा के इस दावे को हंसी में उड़ा सकते हैं लेकिन हम मौजूदा स्थिति के आंकलन के आधार पर ऐसा कह रहे हैं। ममता बनर्जी की तुष्टिकरण की राजनीति के चलते जय श्रीराम का नारा अब बदलाव का नारा बन गया है। भाजपा के स्थानीय नेताओं ने एक उदहरण दे कर बताया है कि कैसे ममता बनर्जी की तुष्टिकरण की नीति से राजनीतिक परिदृश्य बदल रहा है। 2017 में ममता बनर्जी ने सांतवी क्लास की किताब (पर्यावरण और विज्ञान) का नाम इसलिए बदल दिया क्योंकि इसका नाम रामोधेनु था। बांग्ला में इंद्रधनुष को रामोधेनु कहा जाता है। इंद्रधनुष पर्यावरण विज्ञान का एक अहम पक्ष है इसलिए किताब का नाम रामोधेनु रख गया था। लेकिन ममता बनर्जी को लगा कि इस नाम की किताब से उन्हें राजनीतिक नुकसान हो सकता है इसलिए इसका नाम बदल कर रंगोधेनु कर दिया। रंगोधेनु अर्थात रंगों का धनुष। ममता बनर्जी के इस फैसले के बाद पश्चिम बंगाल में लंबी बहस चली थी। जनता इन चीजों को ध्यान से देख रही है। चुनाव में पता चल जाएगा कि वोटर किसके समर्थन में हैं। हालांकि ममता बनर्जी ने भाजपा की इस रणनीति को बेअसर करने के लिए 'बाहरी बनाम स्थानीय' को चुनावी मुद्दा बना दिया है।