Bengal assembly elections:कैसे मुस्लिम लीग से सीखकर ISF करना चाहता है TMC की मदद
West Bengal assembly elections 2021:पश्चिम बंगाल में मुसलमानों के लिए प्रसिद्ध दरगाह फुरफुरा शरीफ (Furfura Sharif)के चीफ पीरजादा अब्बास सिद्दीकी (Pirzada Abbas Siddiqui) ने जिस तरह से नई राजनीतिक पार्टी का गठन करके कई दलों के साथ गठबंधन के तहत चुनाव लड़ने का ऐलान किया है, उससे लग रहा है कि वह तृणमूल कांग्रेस (TMC) के लिए बहुत बड़ी चुनौती खड़ी करने जा रहे हैं। क्योंकि, इससे मुसलमान वोट (Muslim Vote) के बंटने की आशंका जताई जा रही है, जिसका स्वाभाविक फायदा भारतीय जनता पार्टी (BJP) को मिल सकता है। लेकिन, जमीनी हकीकत पूरी तरह से अलग है। सिद्दीकी की नई पार्टी इंडियन सेक्युलर फ्रंट (Indian Secular Front) का इरादा चुनाव से पहले या फिर चुनाव के बाद उन सभी दलों और पार्टियों के साथ हाथ मिलाना है, जो बीजेपी को बंगाल में सरकार बनाने से रोक सकें। फुरफुरा शरीफ के मौलाना पीरजादा अब्बास सिद्दीकी ये सब केरल (Kerala)की इंडियन यूनियन मुस्लिम (IUML) लीग पर प्रभावी मुस्लिम धार्मिक घराने थंगल परिवार से सीखकर आए हैं।
सिद्दीकी को कहां से मिला राजनीति में आने का आइडिया?
भारत के मुसलमानों के लिए अजमेर शरीफ दरगाह के बाद अगर कोई सबसे ज्यादा प्रमुख स्थान है तो वह पश्चिम बंगाल (West Bengal )के फुरफुरा शरीफ (Furfura Sharif)का ही माना जाता है। जाहिर है कि इसके प्रमुख होने के नाते मौलाना अब्बास सिद्दीकी (Pirzada Abbas Siddiqui) का पश्चिम बंगाल ही नहीं, कई दूसरे मुल्कों में भी खासा प्रभाव है। अब उन्होंने किसी राजनीतिक पार्टी को पीछे से सपोर्ट करने की जगह यदि अपनी पार्टी लॉन्च की है तो इसका आइडिया वह केरल के इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (IUML) के आध्यात्मिक घराने थंगल परिवार से लेकर आए हैं। सिद्दीकी 2018 में बाढ़ में सहायता के लिए केरल गए थे और वहां पर थंगल परिवार के राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव से इतने प्रभावित हुए कि इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग के साथ हाथ मिलाने की काफी कोशिश की।
मुस्लीम लीग सिद्दी से हाथ मिलाने को तैयार नहीं हुई
सिद्दीकी ने केरल में मुस्लिम लीग के नंबर दो माने जाने वाले पनक्कड सादिक अली शिहाब थंगल (Panakkad Sadiq Ali Shihab Thangal) से कई दौर की बातचीत भी की, लेकिन इसके अध्यक्ष और थंगल परिवार के प्रमुख सैयद हैदर अली शिहाब थंगल (Panakkad Syed Hyderali Shihab )से इसकी हरी झंडी नहीं मिली। लेकिन सिद्दीकी के राजनीतिक अरमानों को पूरा करने में सहायता की मुस्लिम लीग के यूथ विंग के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष सबिर गफ्फार ने। जब वो थंगल परिवार को इसके लिए राजी करने में नाकाम रहे तो उन्होंने इंडियन सेक्युलर फ्रंट (ISF) के साथ काम करने के लिए अपनी पार्टी छोड़ दी। सिद्दीकी की पार्टी के गठन और उसके बंगाल चुनाव लड़ने के फैसले में गफ्फार की बहुत बड़ी भूमिका रही है।
बीजेपी को रोकना ही मुख्य मकसद
सबिर गफ्फार ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया है कि 'इंडियन सेक्युलर फ्रंट (ISF) एक आध्यात्मिक नेता की पहचान को समाज के राजनीतिक महत्व, विकास, उदारवादी और आधुनिक समाज बनाने के लिए राजनीति मॉडल के रूप में पेश करेगा। पश्चिम बंगाल में 30 फीसदी मुसलमान हैं। अगर वहां इसमें विभाजन होगा तो बीजेपी सरकार बना लेगी। हम मुसलमानों का एक मजबूत जनाधार बनाना चाहते हैं, जिससे कि बीजेपी को रोक सकें।' गौरतलब है कि 2011 की जनगणना के मुताबिक बंगाल की आबादी 27.1 फीसदी थी।
चुनाव के बाद टीएमसी को समर्थन दे सकते हैं सिद्दीकी
मौलाना सिद्दीकी की पार्टी ने साफ इशारा किया है कि उसका टारगेट बीजेपी को रोकना है और इसके लिए चुनाव से पहले और बाद में नए सियासी समीकरण बनाने के विकल्प खुले हैं। यानि अगर चुनाव के बाद जरूरत पड़ी तो बीजेपी को सत्ता से दूर रहने के लिए वह ममता बनर्जी का समर्थन कर सकती है, लेकिन इसके लिए उसकी कुछ शर्ते हैं। गफ्फार ने कहा है, 'बीजेपी को रोकने के लिए पार्टी किसी भी गैर-बीजेपी दल के साथ चुनाव पूर्व या चुनाव बाद गठबंधन के लिए तैयार है। लेकिन, टीएमसी को समुदाय (मुसलमानों) को नजरअंदाज करने के लिए माफी मांगनी होगी। जिस चुनाव क्षेत्र में आईएसएफ का उम्मीदवार नहीं होगा, वहां यह बीजेपी के विरोध में खड़े उम्मीदवार का समर्थन करेगा।'
मुस्लीम लीग के गठन में भी अहम भूमिका निभा चुका है सिद्दीकी परिवार
बता दें कि इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (IUML) के अध्यक्ष पनक्कड सैयद हैदर अली शिहाब थंगल ने मुसलमानों के आध्यात्मिक गुरु होने का ओहमदा अपने पिता पीएमएस पूकोया थंगल से हासिल किया था, जिनके बारे में कहा जाता है कि वह पैगंबर मोहम्मद (Prophet Muhammad) के 39वें वंशज थे। केरल में मालाप्पुरम के पनक्कड में थंगल का आशीर्वाद लेने रोजाना सैकड़ों मुसलमान पहुंचते हैं। इसी परिवार की तरह ही फुरफुरा शरीफ के सिद्दीकियों का भी राजनीति और धर्म से पुराना वास्ता है। आज अगर 34 वर्षीय अब्बास सिद्दीकी आज राजनीति में आकर बीजेपी-विरोधी दलों का समर्थन करने का मंसूबा जता रहे हैं तो उनके पूर्वज इंडियन मुस्लिम लीग के गठन में भी अहम रोल निभा चुके हैं, जिसका परंपरागत तौर पर केरल में कांग्रेस के साथ गठबंधन रहा है।
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