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West Bengal elections: कैसे बंगाली-बाहरी के दांव में TMC अब खुद फंस गई है ?

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West Bengal assembly elections 2021: तृणमूल कांग्रेस (TMC) ने पश्चिम बंगाल में भाजपा (BJP) को घेरने के लिए बंगाली और बाहरी को मुद्दा बनाने की कोशिश शुरू की थी। सत्ताधारी पार्टी बीजेपी पर आरोप लगा रही थी कि वह बंगाल के बाहर की पार्टी है और उसमें कोई भी कद्दावर बंगाली चेहरा नहीं है। यहां तक कि तृणमूल सुप्रीमो ममता बनर्जी (Mamata Banerjee)तक इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) और गृहमंत्री अमित शाह (Amit Shah) पर गुजरात (Gujarat) से आकर बंगाल में राजनीति करने का तंज कस चुकी हैं। कुल मिलाकर टीएमसी की यह कोशिश रही है कि वह भारतीय जनता पार्टी को गैर-बंगाली पार्टी साबित कर दे। लेकिन, लगता है कि अब पार्टी के नेताओं को यह लगने लगा है कि कहीं बीजेपी पर उसका यह दांव उल्टा ना पड़ जाए। इसलिए उसके सुर और तेवर दोनों बदलने शुरू हो गए हैं।

अब बंगाली बनाम बाहरी से बचेगी टीएमसी?

अब बंगाली बनाम बाहरी से बचेगी टीएमसी?

टीएमसी(TMC) अब बंगाली बनाम गैर-बंगाली (Bengalis vs non-Bengalis) रणनीति पर नए सिरे से काम करने पर मजबूर हो गई है। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा है कि उन्हें इस बात का इल्म है कि बीजेपी(BJP) ने उसकी रणनीति को अपने हक में भुनाना शुरू कर दिया है और वह गैर-बंगाली आबादी को अपने पक्ष में करने में जुट चुकी है। टीएमसी की रणनीति तैयार करने वाले एक वरिष्ठ नेता ने कबूल किया है कि 'हमें पता है कि बीजेपी यह कोशिश करेगी कि वह गैर-बंगाली निवासियों से कहे कि टीएमसी उनका ख्याल नहीं रखती है। हम इसी पर काम कर रहे हैं। टीएमसी के लिए बंगाली की परिभाषा ये है कि जो बंगाल में रहते हैं, इसे समझते हैं, इसकी संस्कृति को जानते हैं और इसके लिए योगदान करते हैं। इससे कोई मतलब नहीं कि वे कहां से आए हैं। बंगाल में उन सबका स्वागत है और आप चुनाव अभियान में भी यह देखेंगे। जो बंगाली संस्कृति पर हमला करते हैं और इसे नहीं समझते वो बाहरी हैं।'

बीजेपी की रणनीति से बैकफुट पर आई?

बीजेपी की रणनीति से बैकफुट पर आई?

दरअसल, ममता बनर्जी (Mamata Banerjee)और उनकी पार्टी की ओर से लगातार बीजेपी(BJP) नेताओं को बाहरी कहे जाने के बाद पिछले साल 2 दिसंबर को पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष (Dilip Ghosh) ने कहा था कि 'जो लोग दूसरे राज्यों से आए हैं, उन्होंने बंगाल के विकास में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।' उन्होंने टीएमसी (TMC)पर विभाजनकारी राजनीति का आरोप लगाते हुए कहा था कि 'जिन लोगों ने राज्य के कल्याण के लिए काम किया है, उन्हें वह बाहरी कहती है।' लगता है कि बीजेपी नेताओं की ओर से यह लाइन लेते ही टीएमसी को अपनी गलती का एहसास हो चुका है और इसलिए उसने अपनी रणनीति में बदलाव को ही समझदारी समझी है।

गैर-बंगाली वोट बैंक के चलते बदली टीएमसी की रणनीति

गैर-बंगाली वोट बैंक के चलते बदली टीएमसी की रणनीति

खुद तृणमूल के नेता मानते हैं कि पश्चिम बंगाल (West Bengal)में गैर-बंगाली वोटरों की संख्या करीब 15 फीसदी है। खासकर कोलकाता और आसपास के इलाकों में यह बहुत ही प्रभावशाली स्थिति में हैं, जहां इनकी जनसंख्या लगभग आधी है। एक वरिष्ठ नेता के मुताबिक 'कोलकाता में आसपास के राज्यों से बड़ी तादाद में कामगार आते हैं और उनकी आबादी काफी ज्यादा है। इनके अलावा मारवाड़ी समाज भी है, जो बहुत ज्यादा प्रभावी होने के साथ-साथ समृद्ध भी हैं। 'यानि ममता बनर्जी (Mamata Banerjee)की पार्टी को पता चल चुका है कि बंगाली-बाहरी मुद्दे को ज्यादा तूल देने से कहीं खुद के ही हाथ ना जलाने पड़ जाएं।

टीएमसी के लिए अब भाजपा 'बाहरी' नहीं !

टीएमसी के लिए अब भाजपा 'बाहरी' नहीं !

कुल मिलाकर बीजेपी(BJP) और उसके नेताओं को बाहरी बताने को लेकर टीएमसी (TMC)के सुर पूरी तरह से बदल चुके हैं। जैसे राज्यसभा में पार्टी के चीफ व्हिप सुखेंदु शेखर रे (Sukhendu Sekhar Ray)ने अब पार्टी लाइन से पीछे हटते हुए यह कहना शुरू कर दिया है कि 'यह धारणा गलत है कि पार्टी बीजेपी को बाहरी कहती है।....हम उन्हें बाहरी सौदेबाज कहते हैं। यह शब्द महत्वपूर्ण है। 2011 में सीपीएम(CPM) के आतंकी साम्राज्य के चलते उन्हें हरमद कहा जाता था। हम बीजेपी को सौदेबाज (bargis) कहते हैं, क्योंकि मराठा आक्रमण के दौरान सौदेबाजों ने फसल को तबाह किया और लूटा। अगर आप भाजपा की भाषा को देखेंगे तो यह चुनाव जीतने की भाषा नहीं है। उसके लिए यह एक विजय की तरह है। वे ये नहीं कहते कि वह बंगाल में आना चाहते हैं, विकास के लिए अपना नजरिया पेश करना चाहते हैं और लोगों को जीतना चाहते हैं...........वह बाहुबलियों के शब्द इस्तेमाल करते हैं......वह हिंसा की हालात पैदा करना चाहते हैं।'

अब 'टूरिस्ट गैंग' पर फोकस करेगी टीएमसी

अब 'टूरिस्ट गैंग' पर फोकस करेगी टीएमसी

यही नहीं तृणमूल कांग्रेस के नेताओं को अब गैर-बंगालियों पर भी गर्व महसूस होने लगा है। मसलन, रे ने कहा है कि 'टीएमसी को गैर-बंगाली निवासियों पर गर्व है और बंगाल हमेशा से एक मिनी इंडिया रहा है। बंगाली और गैर-बंगाली हमेशा भाइयों और बहनों की तरह एक-दूसरे के साथ खड़े रहे हैं। ' सवाल है कि आम जनता में जिस बात को लेकर कभी कोई असमंजस नहीं रहा है, वह अब टीएमसी को समझाने की जरूरत क्यों पड़ रही है? पार्टी ने इस मसले पर अपनी रणनीति थोड़ी और संशोधित की है। मसलन, पार्टी के संचार प्रभाग के एक नेता ने केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह (Amit Shah) की ओर इशारों में तंज कसते हुए कहा है कि अब टीएमसी 'टूरिस्ट गैंग' पर फोकस करेगी। उनके मुताबिक टूरिस्ट या बाहरी अपने आप में गलत शब्द नहीं हैं। लेकिन, जब इसमें 'गैंग' लग जाता है तो यह उन लोगों के लिए है जो बंगाल की कद्र नहीं करते, सिर्फ दिखावा करने आते हैं। इसके लिए उन्होंने ममता बनर्जी के स्वास्थ्य साथी हेल्थ कार्ड के लिए कतार में लगने और अमित शाह के लोगों के घरों में भोजन का हवाला दिया है। उनका कहना है कि अगर इन दो तस्वीरों पर ही नजर डाल लिया जाए तो पता चल जाता है कि कौन बाहरी है और किसने राज्य के लिए काम किया है।

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English summary
West Bengal assembly elections 2021:How is TMC now caught in its own Bengali-outsiders manoeuvre?
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