Video: जानिए कौन है चेन्नई का वह इंजीनियर जिसकी वजह से मिला गुम विक्रम लैंडर
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नई दिल्ली। इंडियन स्पेस एंड रिसर्च ऑर्गनाइजेशन (इसरो) के महत्वाकांक्षी अभियान चंद्रयान-2 के तहत चांद की सतह पर गायब हुए लैंडर विक्रम का पता चल गया है। इस लैंडर को अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने खोज निकाला और इस तलाश में नासा की मदद की एक भारतीय इंजीनियर ने। चेन्नई के रहने वाले इंजीनियर शनमुग सुब्रमण्यम की बदौलत ही नासा को चांद पर विक्रम लैंडर का सुराग मिल सका था। आपको बता दें कि चंद्रयान-2, भारत का दूसरा प्रयास था जिसमें स्पेसक्राफ्ट को चांद की धरती पर कदम रखना था। इसरो का यह अब तक का सबसे जटिल मिशन था जिसमें लैंडर विक्रम को सॉफ्ट लैंडिग करनी थी।
इसरो को भी दिया था अलर्ट
स्पेस से जुड़े विषयों के लिए दिवानगी की हद तक रुचि रखने वाले सुब्रह्मण्यम की मानें तो उन्होंने नासा और इसरो दोनों को ही इस बारे में जानकारी दी थी। मगर सिर्फ नासा ने ही उनके अलर्ट को समझा और उसका जवाब दिया। नासा की तरफ से मंगलवार को विक्रम लैंडर के मलबे की तस्वीर शेयर की गई है। नासा ने इसके लिए शनमुगा सुब्रमण्यम को श्रेय भी दिया है। 33 साल के सुब्रमण्यम मैकेनिकल इंजीनियर शनमुग सुब्रमण्यम ने कहा, 'मैंने लैंडर का मलबा ढूंढ़ा और इसके बारे में नासा और इसरो दोनों को जानकारी दी। सिर्फ नासा ने इस पर ध्यान दिया। मुझे बहुत दुख है कि विक्रम लैंड नहीं कर पाया।' शनमुगा सुब्रमण्यम ने केवल लैपटॉप और इंटरनेट कनेक्शन के जरिए ही इसे खोज निकाला।
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रोजाना सात घंटे तक किया काम
शनमुगा सुब्रमण्यम का कहना है कि वह लैंडर को खोज निकालने के अपने मिशन के लिए हर रोज सात घंटे काम करते थे। सुब्रमण्यम ने, लूनर रिकनाइसांस ऑर्बिटल कैमरा (एलआरओसी) से इसकी तस्वीरें डाउनलोड कीं। नासा ने कहा कि उसे भारतीय चंद्रयान-2 विक्रम लैंडर का दुर्घटनास्थल और मलबा मिला है। सुब्रमण्यम ने उस मलबे का पता किया, जिसकी तलाश वैज्ञानिक कर रहे थे और उन्होंने वैज्ञानिकों की वह जगह खोजने में मदद की, जहां विक्रम लैंडर क्रैश हुआ था। नासा ने अपने बयान में कहा, 'शनमुगा ने सबसे पहले मैन क्रैश साइट से लगभग 750 मीटर उत्तर पश्चिम में मलबा देखा।' सुब्रमण्यम की मानें तो उन्होंने विक्रम लैंडर का संभावित मार्ग खोजने में कड़ी मेहनत की। उनकी मानें तो उन्हें इस पूरे प्रोजेक्ट में काफी मेहनत करनी पड़ी। लेकिन उनके शौक ने उनकी काफी मदद की।
क्रैश लैंडिंग ने बढ़ाई दिलचस्पी
उन्होंने कहा कि विक्रम लैंडर ठीक से लैंड कर जाता और कुछ तस्वीरें भेज देता तो शायद चंद्रमा में उनकी रुचि इतनी न बढ़ती, लेकिन लैंडर की क्रैश लैंडिंग ने उसमें दिलचस्पी बढ़ा दी। शनमुग ने कहा कि 17 सितंबर से अक्टूबर की शुरुआत तक उन्होंने रोज करीब चार से छह घंटे तक दिन रात को तस्वीरों को करीब से देखा। तब जाकर उन्हें कहीं लैंडिंग साइट से करीब 750 मीटर दूर एक सफेद रंग का बिंदु दिखा जो लैंडिंग की तय तिथि से पहले की तस्वीर में वहां नहीं था। शानमुग के मुताबिक उसकी चमक ज्यादा थी। इसके बाद उन्हें तीन अक्टूबर को अंदाजा हुआ कि यह विक्रम का ही टुकड़ा है। इसके बाद उन्होंने इसे ट्वीट किया कि शायद इसी स्थान पर विक्रम, चंद्रमा की मिट्टी में धंस गया है। नासा के कुछ वैज्ञानिकों को भी उन्होंने यही जानकारी चंद्रमा की सतह के कोऑर्डिनेट के साथ विस्तार से ई-मेल पर भेजी।
17 सितंबर को नासा ने जारी की तस्वीरें
उन्होंने बताया कि नासा ने 17 सितंबर को इस लोकेशन की पिक्चर जारी की। शानमुग के शब्दों में , ' जो तस्वीरें आईं वह बस 1.5 जीबी की थी। मैंने उसे डाउनलोड किया। शुरुआत में मैंने रैंडमली छानना शुरू किया तो बार-बार लगा कि यहां है, वहां है, लेकिन वह सही नहीं था। मैं जिसे लैंडर मान रहा हूं वह बोल्डर भी हो सकते थे।' उन्होंने आगे कहा, 'बाद में मैंने इसरो के लाइव टेलीमेट्री डेटा के मुताबिक विक्रम लैंडर की अंतिम गति और स्थिति के हिसाब से करीब दो गुणा दो वर्ग किलोमीटर संभावित क्षेत्र की पिक्सल बाय पिक्सल स्कैनिंग की। यहां यह भी समझ लें कि नासा के एलआरओ कैमरे की क्षमता 1.3 मीटर प्रति पिक्सल की है। यानी वह 1.3 मीटर की तस्वीर एक बिंदी के रूप में ले सकता है।'