War of Rezang La: जब 6,000 चीनी सैनिकों से लड़े मेजर शैतान सिंह और 120 सैनिक
नई दिल्ली। 18 नवंबर 1962 यह वह तारीख है जब दुनिया ने भारत की सेना के अदम्य साहस को महसूस किया था। पूर्वी लद्दाख के रेजांग ला में जब तापमान इतना कम हो जाता है जो किसी का भी खून जमा दे, वहां भारतीय सेना के सैनिकों ने चीन को मुंह की खाने पर मजबूर कर दिया था। रेजांग ला की लड़ाई 62 में हुए भारत-चीन के पहले युद्ध का वह अध्याय है जो आने वाली कई पीढ़ियों को प्रेरित करता रहेगा। मेजर शैतान सिंह भाटी और उनके जवानों ने जो कारनामा आज से 58 साल पहले किया, वह रोंगटे खड़े करने वाला था।
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वीरता और बलिदान की कहानी है रेजांग ला
रेजांग ला का युद्ध असाधारण वीरता और बलिदान का उदाहरण है जब 13 कुमाऊं के 114 बहादुर ने भारत माता की रक्षा में अपने प्राण त्याग दिए थे। जो लोग भारत और चीन के इतिहास को जानते हैं वो रेजांग ला के युद्ध से भी वाकिफ हैं। चुशुल के तहत आने वाला रेजांग ला भारतीय सेना के लिए बहुत ही रणनीतिक जगह है। यह जगह पहली बार सन् 1962 की जंग सबकी नजरों में उस समय आई थी जब मेजर शैतान सिंह की 13 कुमाऊं ने चीन के 1300 जवानों को धाराशायी कर दिया था। सन् 1962 को जब चीन ने हमला किया तो इस जगह पर हुई लड़ाई को रेजांग ला के युद्ध के नाम से जाना गया। आज भी रेजांग ला की लड़ाई इतिहास में एक अलग जगह रखती है। 62 की जंग में इस जगह पर अगर सेना जीत नहीं हासिल करती तो फिर शायद पूरे लद्दाख पर चीन का कब्जा होता है। रेजांग ला, लद्दाख में दाखिल होने वाले दक्षिण-पूर्व के रास्ते पर पड़ने वाला दर्रा यानी पास है। यह 2.7 किलोमीटर लंबा और 1.8 किलोमीटर चौड़ा है। इसकी ऊंचाई करीब 16,000 फीट है। 62 की जंग के समय रेजांग ला पास में 13 कुमाऊं बटालियन की एक टीम को मेजर शैतान सिंह भाटी लीड कर रहे थे।
सामने थे चीन के हजारों सैनिक
18 नवंबर 1962 को तड़के रेजांगला पास में खून जमा देने वाली सर्दी थी। इस बीच अचानक बर्फ से ढंकी पहाड़ी से चीन ने फायरिंग शुरू कर दी। जो जगह एकदम शांत थी, वहां गोलीबारी शुरू हो गई। पीपुल्स लिब्रेशन आर्मी यानी पीएलए के पांच से 6,000 सैनिक हथियारों और तोप के साथ लद्दाख के रेजांग ला में दाखिल हो गए थे। 13 कुमाऊं की एक टुकड़ी चुशूल वैली की रक्षा में तैनात थी और मेजर शैतान सिंह के पास बस 130 जवान थे। इन जवानों ने चीन के हजारों जवानों को देखकर भी हौंसला नहीं खोया और पूरी क्षमता के साथ चीनी दुश्मनों का सामना किया। मेजर शैतान सिंह पर गोलियों की बौछार होती रही मगर वह अपनी टीम की हौसला अफजाई करते रहे। मेजर शैतान सिंह की टीम को चार्ली कंपनी कहा गया था। चीन की सेना के पास तोप और भारी गोला-बारूद था और भारत के सामने पहाड़ एक ऊंची चोटी जिस पर बर्फ जमी थी, दीवार की तरह खड़ी थी। इस ऊंची चोटी की वजह से मेजर शैतान सिंह को मदद नहीं भेजी जा सकती थी। मेजर शैतान सिंह ने अपने 120 जवानों में दम भरा और चीन का सामना करने के लिए कहा।
आखिर में मिला मेजर शैतान सिंह का शव
तीन दिनों तक लड़ाई होती रही और इसी जगह पर बाद में मेजर शैतान सिंह का शव मिला था। इसी जगह पर उनके नाम पर अब एक स्मारक है। 120 में से 114 सैनिक शहीद हो गए थे। भारतीय सैनिकों के पराक्रम के आगे चीनी सेना को हथियार डालना पड़ा। चीन के 1300 सैनिक मारे गए थे। आखिर में चीन ने 21 नवंबर को यहां पर सीजफायर का ऐलान कर दिया था। मेजर शैतान सिंह को भारत सरकार की तरफ से सन् 1963 में परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था। आज दुनिया रेजांग ला पास को अहीर धाम के नाम से भी जानते हैं। दरअसल 13 कुमाऊं के 120 जवान दक्षिण हरियाणा के उस क्षेत्र से आते थे जिसे अहीरवाल के तौर पर जानते हैं। सभी 120 जवान गुड़गांव, रेवाड़ी, नरनौल और महेंद्रगढ़ जिलों से आते थे। मेजर शैतान सिंह रेवाड़ी के रहने वाले थे। रेजांग ला युद्ध में शहीद सैनिकों की याद में रेवाड़ी और गुड़गांव में याद में स्मारक बनाए गए हैं। रेवाड़ी में हर साल रेजांगला शौर्य दिवस धूमधाम से मनाया जाता है और वीर सैनिकों को श्रद्धांजलि दी जाती है।