विशाखापट्टनम गैस लीक: पर्यावरण मंत्रालय की मंजूरी के बिना एलजी पॉलिमर में हो रहा था काम
नई दिल्ली। आंध्र प्रदेश के विशाखापट्टनम स्थित एलजी पॉलिमर प्राइवेट लिमिटेड की यूनिट में गैस लीक से 12 लोगों की मौत और 5000 लोगों के बीमार होने के बाद से कंपनी मुश्किलों में फंस गई है। पहले नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने 50 करोड़ रुपये की अंतरिम राशि जमा करने का निर्देश दिया है था और अब यह खुलासा हुआ है कि एलजी पॉलिमर महज राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की मंजूरी के आधार पर 2004 से 2018 तक काम करती रही। इस दौरान केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय की मंजूरी नहीं ली गई थी।
एलजी पॉलिमर प्राइवेट लिमिटेड ने ऐसा करने के लिए पर्यावरण प्रभाव आकलन (ईआईए) की अधिसूचना, 1994 और 2006 को भी दरकिनार कर दिया, जिसमें कहा गया है कि मौजूदा परियोजनाओं के आधुनिकीकरण और विस्तार के लिए पर्यावरणीय मंजूरी की जरूरत है। केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के अधिकारियों ने बताया कि कंपनी ने नियमों के उल्लंघन कैटेगरी के तहत ईसी के लिए अप्लाई किया था। यह एक स्पेशल कैटेगरी है, जिसे मंत्रालय ने 2017 में विभिन्न क्षेत्रों की परियोजनाओं के लिए वन-टाइम एमनेस्टी के हिस्से के रूप में स्थापित किया था। ये व्यवस्था खास तौर पर उनके लिए थी, जिन्होंने काम शुरू करने से पहले पर्यावरण मंजूरी नहीं ली थी।
अंग्रेजी वेबसाइट न्यूज 18 से खास बातचीत में एक अधिकारी ने बताया 'मार्च में लॉकडाउन से ठीक पहले फाइल हमारे पास आई थी। हमें पहले परियोजना के इतिहास का मूल्यांकन करना होगा। यहां तक कि अगर कोई उद्योग ईआईए अधिसूचना से पहले स्थापित किया गया था, तो जिस समय यह आधुनिकीकरण के विस्तार की योजना बना रहा है, उसे नए सिरे से मंजूरी प्राप्त करनी होगी।' दिक्कत ये है कि केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ईआईए अधिसूचना, 2020 के संशोधित मसौदे में परियोजनाओं के लिए पोस्ट-फैक्टो की मंजूरी पर जोर दे रहा है और पर्यावरण कार्यकर्ताओं द्वारा इसका विरोध किया गया है। मंत्रालय ऐसा इसलिए भी कर रहा है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट और नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने अपने फैसलों में कुछ स्पष्ट नहीं किया है।
FIR में कंपनी के किसी कर्मचारी का नाम नहीं
स्थानीय पुलिस ने गोपालपट्टनम थाने में जो एफआईआर रिपोर्ट दर्ज की है, वह चौंकाने वाली है। 7 मई को दुर्घटना के करीब पांच घंटे बाद दर्ज एफआईआर में एलजी पॉलिमर फैक्ट्री के किसी कर्मचारी का नाम नहीं है। एफआईआर में लिखा गया है कि फैक्ट्री से कुछ धुआं उठा, वहां कुछ बदबूदार हवा थी और इसी ने वहां लोगों की जिंदगी को खतरे में डाल दिया। पुलिस ने एफआईआर में लिखा, "लगभग 03.30 बजे एलजी पॉलिमर कंपनी से कुछ धुआं निकला, जो बदबूदार थे, जिस कारण से पड़ोसी गाँव (प्रभावित) इससे प्रभावित हुए। बदबूदार हवा के गंध ने मानव जीवन को खतरे में डाल दिया और डर के कारण, सभी ग्रामीण घरों से निकलकर भागने लग गए।
इस घटना में 5 व्यक्तियों की मौत हो गई और शेष लोगों को अस्पतालों में रोगियों के रूप में भर्ती कराया गया।" एफआईआर में पांच लोगों की मौत की पुष्टि हुई है लेकिन जिस वक्त एफआईआर दर्ज हुई, उस वक्त तक 10 लोगों की मौत हो चुकी थी। इतना ही नहीं, एफआईआर में स्टिरीन गैस का उल्लेख तक नहीं है, जबकि घटना के दिन पुलिस अधिकारियों ने इस गैस की उपस्थिति की पुष्टि की थी। एफआईआर में कंपनी से किसी भी कर्मचारी का भी नाम नहीं है। प्राथमिकी आईपीसी की धारा 278 (वातावरण को स्वास्थ्य के लिए हानिकारक बनाते हुए), 284 (जहरीले पदार्थ के संबंध में लापरवाहीपूर्ण आचरण), 285 (खतरे में डालने वाली वस्तु के साथ किसी भी तरह का काम), 304-II (यह जानते हुए भी की इस कृत्य से मृत्यु का खतरा है) के तहत दर्ज की गई है।