पाकिस्तान के खिलाफ जंग में वीर चक्र से सम्मानित फौजी ओला कैब चलाने को मजबूर
चंडीगढ़। लेफ्टिनेंट कमांडर (रिटायर्ड) रमिंदर सिंह सोढ़ी, यह नाम याद कर लीजिए क्योंकि हो सकता है कि अगली बार जब आप चंडीगढ़ जाएं और ओला कैब से सफर करें, आपके ड्राइवर इसी नाम से आएं। ले. कमांडर सोढ़ी वीर चक्र से सम्मानित हैं। वही वीर चक्र जिससे विंग कमांडर अभिंनदन वर्तमान को सम्मानित किया गया है। इसके बाद भी वह चंडीगढ़ में कैब ड्राइव कर रहे हैं। इस बात पर उन्हें कोई अफसोस नहीं होता बल्कि वह इसे अपने लिए सम्मान बताते हैं। उन्हें जानने वाले कहते हैं कि वह एक सच्चे फौजी हैं, जो सिर कटा सकता है मगर किसी के सामने झुक नहीं सकता है।
दुश्मन पर कहर बनकर टूटे थे लेफ्टिनेंट कमांडर सोढ़ी
हीरोज ऑफ यूनिफॉर्म, इस नाम से बने फेसबुक पेज पर इंडियन नेवी के योद्धा की कहानी को कुछ दिनों पहले शेयर किया गया है। अब उनकी कहानी हर जगह वायरल हो रही है। लेफ्टिनेंट कमांडर सोढ़ी ने सन् 1971 में भारत-पाकिस्तान के बीच हुई जंग के बाद वीर चक्र सम्मान मिला था। वह दुश्मन पर कहर बनकर टूटे थे। उनकी कैब में बैठते ही यात्रियों को उन मशहूर इंग्लिश गानों को सुनने का मौका मिलता है जो किसी जमाने में क्लासिक माने जाते थे। आप जानकर हैरान होंगे कि जब वह वीर चक्र से सम्मानित हैं और नेवी की शान थे तो फिर क्या वजह है जो वह कैब चला रहे हैं।
बच्चों ने छोड़ा पिता का साथ
लेफ्टिनेंट कमांडर को उनके उन अपनों ने छोड़ दिया है जिन्हें उन्होंने सारी जिंदगी लाड़ और दुलार से रखा था। नौसेना का एक ऐसा पायलट जिसके पास 80 के दशक की शुरुआत में आईएनएस विक्रांत पर सीहॉक्स की लैंडिंग कराने का अनुभव हो, वह बुढ़ापे में अपने बच्चों की वजह से इस हाल में जीने को मजबूर हैं। 71 की जंग में जब ऑपरेशन कैक्टस लिली लॉन्च हुआ तो लेफ्निेंट कमांडर सोढ़ी को बांग्लादेश में दुश्मन के बंदरगाहों पर हमलों की जिम्मेदारी सौंपी गई। उन्होंने एक, दो नहीं बल्कि आठ ऐसे बंदरगाहों पर हमले किए जहां पर दुश्मन की मौजूदगी कहीं ज्यादा थी।
11 दिसंबर को तोड़ी दुश्मन की कमर
लेफ्टिनेंट कमांडर सोढ़ी ने चिंटगांव, खुलना और मोंगला में दुश्मन के अड्डों को निशाना बनाया था। छह दिसंबर 1971 को खुलना हार्बर पर हुए हमले में वह सेक्शन लीडर की भूमिका में थे। उनके एयरक्राफ्ट पर दुश्मन ने हमला कर दिया था मगर वह लगातार हमले करते रहे। वह दुश्मन को तब तक निशाना बनाते रहे जब तक की उसका एक जहाज और बंदरगाह पर तेल के अड्डे पूरी तरह से जलकर खाक नहीं हो गए। 11 दिसंबर को उन्होंने चिंटगांव के बंदरगाह पर हमला किया था। दुश्मन की तरफ लगातार उनके एयरक्राफ्ट को निशाना बनाया जा रहा था मगर फिर भी वह दो ऑयल टैंक्स को नष्ट करने में सफल रहे।
पीएम का एयरक्राफ्ट तक उड़ा चुके हैं सोढ़ी
इस युद्ध में उन्होंने अदम्य साहस का प्रदर्शन किया और इसकी वजह से उन्हें उसी वर्ष के वीर चक्र पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। लेफ्टिनेंट कमांडर सोढ़ी के पास पीएम के एयरक्राफ्ट को भी उड़ाने का अनुभव है। उन्हें आज भी एयरक्राफ्ट कैरियर पर नाइट लैंडिंग का विशेषज्ञ माना जाता है।