विनाश देख चुके बॉर्डर के ग्रामीणों की मंशा, नहीं होना चाहिए युद्ध
तरन तारन (पंजाब)। उरी हमले के बाद से भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव लगातार बढ़ता जा रहा है। इस बीच भारत-पाक बॉर्डर पर मौजूद गांवों के लोग युद्ध की आशंकाओं को लेकर डरे हुए हैं। उनका कहना है कि हमने विनाश को देखा है इसलिए युद्ध नहीं होना चाहिए।
पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध को लेकर क्या सोचते हैं बॉर्डर के गांव
पंजाब का एक गांव राजोक पाकिस्तानी सीमा पर स्थित है। राजोक के बॉर्डर पंचायत सदस्य सुखबीर सिंह (42) ने बताया कि गांव में एक कोठी यानी पक्का घर बनवाया गया है। ये घर भारत-पाकिस्तान सीमा से एक किमी. पहले बना है। इसे बनाने के पीछे मंशा बस यही थी कि इससे पाकिस्तान पर नजर रखा जा सके।
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इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक उरी हमले के बाद जिस तरह से पाकिस्तान के खिलाफ सख्त कार्रवाई की चर्चाएं लोग कर रहे हैं उससे सुखबीर सिंह काफी परेशान हैं। हालांकि उन्हें विश्वास है कि भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध नहीं होगा।
सुखबीर सिंह ने कहा कि उरी हमला बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है और पाकिस्तान इस हमले में शामिल है लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि हम पाकिस्तान पर हमला कर दें। हमारे पास उससे निपटने के और भी कई तरीके हैं।
सीमा पर रहने वाले ग्रामीण नहीं चाहते युद्ध हो
अच्छी खेती और बचत के बावजूद भी सुखबीर सिंह ने अपने और अपने परिवार के लिए अच्छा घर नहीं बनवाया क्योंकि उन्हें पाकिस्तान के साथ युद्ध को लेकर डर है। उन्होंने बताया कि 1965, 1971 और 1999 की लड़ाई के दौरान भी ऐसा ही डर कायम था।
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ये हाल केवल सुखबीर सिंह का नहीं है। पाकिस्तान की सीमा से सटे पंजाब के कई गांव के लोग कारगिल युद्ध के दौरान करीब सालभर तक इसी डर में थे कहीं सीमा पर कुछ गतिविधि न हो जाए। पाकिस्तान के साथ पंजाब की करीब 553 किलोमीटर लंबी अंतरराष्ट्रीय सीमा है और इसमें 1,871 गांव इस सीमा क्षेत्र में आते हैं।
राजोक गांव के पुलिस कांस्टेबल सवर्ण सिंह ने बताया कि सीमा पर स्थित गांवों में लोगों का जीवन बिल्कुल अलग है। मैंने देखा है कि इस गांव में लोगों ने कच्छा घर बनाया है क्योंकि उन्हें डर रहता है कि कभी युद्ध हो सकता है। हमारे गांव में घुसपैठ भी काफी होती है। बावजूद इसके लोग अपना गांव छोड़कर जाने को तैयार नहीं हैं। हालांकि उन्होंने ये जरूर कहा कि हम और लड़ाई नहीं चाहते।
ग्रामीणों की मांग, सीमा को महफूज करे सरकार
राटों के गांव के युवा किसान हरनाम सिंह ने बताया कि हमने कारगिल लड़ाई के दौरान हम टीवी देख रहे थे। लेकिन अब हम देख रहे हैं कि लोग युद्ध की बात कर रहे हैं। लेकिन वो भूल रहे हैं कि इससे सबसे ज्यादा प्रभावित दिल्ली और लाहौर शहर होंगे। हम युद्ध का समर्थन नहीं करते हैं। हमारे गांव में पिछले 15 साल से स्थिरता आ रही है, अब हम दोबारा शरणार्थी नहीं होना चाहते हैं।
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उनके दादा सुबेघ सिंह (80) ने बताया कि नेता कुछ भी कर सकते हैं। युद्ध होने पर दोनों देशों के सीमा पर रहने वाले लोग प्रभावित होते हैं। ये बात हमें नहीं भूलनी चाहिए।
स्थानीय विधायक विरसा सिंह वल्तोहा ने बताया कि 1965 युद्ध के दौरान पाकिस्तान की सेना ने लगभग 35 गांवों को प्रभावित किया था। उन्होंने कहा कि उरी में जो घटना हुई उसमें घुसपैठ अहम वजह है। इसलिए जरूरी है कि सरकार सीमा की सुरक्षा को लेकर खास योजना बनाए। वैज्ञानिक तकनीक इसे महफूज किया जाए। उन्होंने आगे कहा कि अगर अभी युद्ध हुए तो हमारी सोच से ज्यादा का नुकसान हो सकता है।