कारगिल दिवस: कैसे एक रात में ही बनकर तैयार हो गई थी द ग्रेट वॉल ऑफ इंडिया
कारगिल की जंग के दौरान ट्रक की ऊंचाई से भी ऊंची एक दीवार भारत के जवानों ने मात्र एक रात में खड़ी कर दी थी। जी हां, 1999 में जिस समय कारगिल युद्ध हो रहा था, उस समय पाकिस्तान ने सीमा पर मौजूद सैनिकों को तो निशाना बनाया ही साथ ही उसने एनएच-1 से गुजरने वाले ट्रकों को निशाना बनाना शुरू कर दिया था।
कारगिल। आपको फिल्म निर्माता जेपी दत्ता की फिल्म बॉर्डर जरूर याद होगी, जिसमें भारत-पाकिस्तान की राजस्थान बॉर्डर के पास हुई जंग को दर्शाया गया था। फिल्म में भारतीय सैनिक पाक सैनिकों से निपटने के लिये एक दीवार बनाते हैं, जो अंत में जंग के दौरान अहम भूमिका निभाती है। क्या आप जानते हैं कारगिल की जंग के दौरान ट्रक की ऊंचाई से भी ऊंची एक दीवार भारत के जवानों ने मात्र एक रात में खड़ी कर दी थी। जी हां, 1999 में जिस समय कारगिल युद्ध हो रहा था, उस समय पाकिस्तान ने सीमा पर मौजूद सैनिकों को तो निशाना बनाया ही साथ ही उसने एनएच-1 से गुजरने वाले ट्रकों को निशाना बनाना शुरू कर दिया था।
राष्ट्रीय राजमार्ग-1 पर हुआ था हमला
युद्ध के समय ही भारतीय सेना के जवानों ने एक ऐसी दिवार का निर्माण किया जिसकी ऊंचाई उनके ट्रकों की ऊंचाई से ज्यादा थी। दीवार की ऊंचाई 5 मीटर, लंबाई 500 मीटर और चौड़ाई 1 मीटर है। इस दिवार की आड़ लेकर जब सेना के ट्रक गुजरते तो वह पाक की गोलीबारी भी उनका कुछ नहीं बिगाड़ पाती। इस दिवार के बन जाने के बाद सेना को रसद और दूसरा सामान सप्लाई करने वाले ट्रक आसानी से गुजर सकते थे। यह वो दीवार है, जिसकी आड़ लेते हुए जवानों ने पाक सैनिकों का जमकर मुकाबला किया। यह वो दीवार है, जिसने देश के तमाम सैनिकों की जान बचायी। अब तक आप सात अजूबों में से एक दि ग्रेट वॉल ऑफ चाइना का ही नाम लेते होंगे, उम्मीद है इस दीवार को अब आप कभी नहीं भूलेंगे क्योंकि यह है "दि ग्रेट वॉल ऑफ इंडिया"।
ऊंची पहाड़ियां कर रही थी पाक की मदद
द्रास और कारगिल में 9,000 फीट से लेकर 14,000 फीट तक की पहाडि़यां आपको मिल जाएंगी। ऐसी पहाड़ियां जिन पर पहुंचने के बाद सांस लेना भी मुश्किल होता है।यह पहाड़ियां ही उस समय पाकिस्तान का हथियार बन गई थीं। दुश्मन ऊपर बैठकर हमारे सैनिकों की हर हरकत को देखता था। वहीं से वह सैनिकों पर फायर करता और बम बरसाता। उसके पास उस समय इस तरह के हथियार थे कि वह 250 किमी तक की रेंज पर निशाना लगा सकता था। हमारे सैनिक रात में इन पहाडियों पर धीरे-धीरे चढ़ते ताकि दुश्मन को उनकी भनक तक न लग सके। पूरी रात वह चढाई करते और अगली सुबह दुश्मन पर वार करते थे। द्रास में एनएच-1 की हालत युद्ध के समय उसकी हालत बहुत ही बदतर थी। इस रास्ते से सेना के लिए रसद और डीजल जैसी जरूरी चीजों की सप्लाई उस समय की जाती थी। भारतीय सेना की कमर तोड़ने के लिए पाक ने इस रास्ते पर हमले करने शुरू किए। इसके लिए उसने तोलोलिंग रेंज को अपना निशाना बनाया। ऐसे में भारत के लिए तोलोलिंग पर कब्जा काफी अहम हो गया था।