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नज़रिया: 'ना डर, ना आत्मसमर्पण' से सुलझेगी कश्मीर समस्या?

भारत प्रशासित कश्मीर में चरमपंथियों की 'घर वापसी' की नई नीति से हालात बदलने का दावा किया जा रहा है.

By BBC News हिन्दी
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जम्मू-कश्मीर पुलिस स्थानीय चरमपंथियों को सामान्य ज़िंदगी में वापस लाने के लिए एक नई नीति लेकर आ रही है जिसे एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने नाम दिया है - 'ना डर, ना आत्मसमर्पण' नीति.

स्थानीय मीडिया ने राज्य के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक मुनीर ए ख़ान के हवाले से खबर लगाई है कि जो लोग चरमपंथ को छोड़ना चाहते हैं वे हिंसा का रास्ता छोड़कर दोबारा अपने परिवारों के साथ सामान्य ज़िंदगी जी सकते हैं. हालांकि ये नीति उन चरमपंथियों के लिए नहीं है जो गंभीर अपराधों में लिप्त हैं.

कश्मीर
Getty Images
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क्यों लाई जा रही है ये नीति?

ये 'नरम आत्मसमर्पण' नीति ऐसे वक्त में आई है, जब हाल ही में एक फुटबॉलर से चरमपंथी बने माजिद इरशाद ख़ान ने चरमपंथ छोड़ कर अपने परिवार के साथ रहने का फैसला किया.

माजिद की मां ने उनसे सोशल मीडिया के ज़रिए एक भावुक अपील की थी कि वो चरमपंथ का रास्ता छोड़ अपने घर लौट आएं. पुलिस और सेना ने माजिद के फैसले की तारीफ़ की और बिना किसी दिक्कत के उन्हें उनके परिवार के पास जाने दिया गया.

पुलिस के रिकॉर्ड से पता चलता है कि माजिद के वापस आने के बाद 10 और युवा लड़कों ने चरमपंथ का रास्ता छोड़ दिया है और अपने परिवारों के साथ रह रहे हैं.

पुलिस हिरासत में नहीं रखा जाएगा

बुरहान वानी के 2016 में मारे जाने के बाद ऐसी खबरें थी कि कई स्थानीय युवा चरमपंथ का रास्ता अपना रहे हैं.

जानकारों का मानना है कि इसी चलन की वजह से पुलिस को ये नरम आत्मसमर्पण नीति अपनाने पर मजबूर होना पड़ा ताकि स्थानीय युवाओं को भरोसा दिलाया जा सके कि अगर वो हिंसा का रास्ता छोड़ते हैं तो उन्हें आत्मसमर्पण के बट्टे के साथ नहीं रहना पड़ेगा. उनकी सुरक्षा को कोई ख़तरा नहीं होगा और ना किसी तरह परेशान किया जाएगा.

लेकिन पुलिस ने साफ़ तौर पर कहा है कि यह नई नीति सिर्फ स्थानीय चरमपंथियों के लिए है जो किसी गंभीर अपराध में लिप्त नहीं हैं.

एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया, "उन्हें पुलिस के सामने आत्मसमर्पण करने की ज़रूरत नहीं है. उन्हें पुलिस थानों में बंद नहीं किया जाएगा. उन्हें बस चरमपंथ का रास्ता छोड़ना है, अपने परिवारवालों से संपर्क करना है और वापस सामान्य ज़िंदगी में लौट आना है."

उन्होंने कहा कि पुलिस का नेटवर्क काफ़ी बड़ा है और एक बार जब लड़का वापस अपने परिवार में लौट आएगा तो उसका नाम 'सक्रिय चरमपंथी' की लिस्ट से हटा दिया जाएगा.

हालांकि ये नीति अभी शुरुआती दौर में है लेकिन पुलिस को उम्मीद है कि इससे स्थानीय लड़कों को दोबारा सामान्य जीवन से जोड़ने में मदद मिलेगी.

कश्मीर
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हिंसा छोड़ने वाले युवाओं की सुरक्षा का सवाल

ये नीति उन लड़कों को आकर्षित कर सकती है जो हिंसा का रास्ता छोड़ना चाहते हैं, लेकिन सवाल है कि चरमपंथी ग्रुप इस पर क्या प्रतिक्रिया देंगे.

वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों की बात से समझ आता है कि ऐसे लड़कों को पुलिस हिरासत में नहीं रहना पड़ेगा और वे सीधा अपने परिवार के पास जाकर रह सकते हैं. अगर ऐसा होता भी है तो इस बात कि गांरटी कौन देगा कि जिन चरमपंथी गुटों से ये लड़के जुड़े थे, वे इन्हें कोई नुकसान नहीं पहुंचाएंगे.

इस तरह कि चिंताओं पर वरिष्ठ पुलिस अधिकारी कहते हैं कि ये नीति अभी बहुत शुरुआती दौर में है और वक्त के साथ इन सभी चिंताओं का समाधान ढूंढ लिया जाएगा.

अधिकारी ने कहा, "हम नहीं चाहते कि हमारे लड़के किसी ना खत्म होने वाले हिंसक चक्र में फंसे और एनकाउंटर में मारे जाएं. हम उन्हें उनके परिवार के पास वापस लाना चाहते हैं ताकि वे एक सम्मानजनक ज़िंदगी जी सकें. ये हमारी नीति की मंशा है और मुझे भरोसा है कि इससे नतीजे मिलेंगे."

BBC Hindi
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English summary
Viewpoint Kashmir problem will settle with no fear no surrender
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