नजरियाः राहुल की नई सेना क्या उन्हें प्रधानमंत्री बना पाएगी
हाल फिलहाल दलित आंदोलन की परछाई इस समिति के चयन पर दिखी. राहुल गांधी ने दलित चेहरें के रूप में मल्लिकार्जुन खड़गे, कुमारी शैलजा, मुकुल वासनिक और पीएल पुनिया को शामिल किया है. हालांकि अल्पसंख्यक के नाम पर तीन मुसलमान चेहरे ही समिति में शामिल हुए.
उनमें से दो कश्मीर से गुलाम नबी आज़ाद और तारिक़ हामिद खर के साथ गुजरात से अहमद पटेल शामिल हैं.
साल 2019 के लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने अपनी सेना तैयार कर ली है. उन्होंने पार्टी की सर्वोच्च नीति निर्धारण संस्था कांग्रेस कार्यसमिति (सीडब्ल्यूसी) का पुनर्गठन किया है.
राहुल गांधी की सीडब्लूसी में युवा और दलित चेहरों को ख़ास जगह दी गई है. वहीं बुजुर्ग और पुराने चेहरो को अलविदा कहा गया है. कार्यसमिति के 23 सदस्यों में सोनिया गांधी समेत तीन महिलाओं को जगह मिली, वहीं तीन मुसलमान चेहरे नज़र आए. इस समिति में प्रधानमंत्री मोदी के गृह राज्य गुजरात पर ख़ासा ज़ोर डाला गया है.
राहुल गांधी की कांग्रेस वर्किंग कमेटी में कुल 51 सदस्य हैं. इनमें 23 सदस्य, 18 स्थायी सदस्य और 10 विशेष आमंत्रित सदस्य बनाए गए हैं. राहुल गांधी ने पहली बार कांग्रेस के मोर्चा संगठन मसलन यूथ कांग्रेस, एनएसयूआई, महिला कांग्रेस, इंटक और सेवा दल के अध्यक्षों को सीडब्लूसी में विशेष आमंत्रित सदस्य बनाया है.
अभी तक ये विस्तारित सीडब्लूसी समिति के सदस्य होते थे. कांग्रेस संविधान के मुताबिक समिति में 25 सदस्य होते हैं. पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी ने अभी सिर्फ 23 सदस्यों की घोषणा की है. यानी अभी दो पद खाली हैं.
राहुल गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष का पद संभालने के सात महीने बाद कांग्रेस कार्यसमिति का गठन किया है. पिछली कार्य समिति को मार्च में अधिवेशन से पहले भंग कर दिया गया था. अधिवेशन में पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी को अपनी टीम चुनने के लिए अधिकृत किया गया. तब से राहुल गांधी को समिति गठन करने में चार महीने लग गए.
हालांकि इस दौरान वो दूसरे मामलों में भी व्यस्त रहे. राहुल गांधी ने अपनी नई टीम बनाते वक्त इस बात का ख्याल जरूर रखा कि अनुभव और युवा दोनों का सामंजस्य रखा जाए जिसके लिए उन्होंने खासी कोशिश भी की है.
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सोनिया के पसंदीदा चेहरों की छुट्टी, युवा को तरजीह
जिन नेताओं का पत्ता नई समिति में कटा है, उनको इस दौरान पहले ही एक-एक करके किनारे कर दिया गया था. वरिष्ठ नेता जिन्हें कार्यसमिति से बाहर किया गया, उनमें जनार्दन द्विवेदी, दिग्विजय सिंह, कमलनाथ, सुशील शिंदे, मोहन प्रकाश, कर्ण सिंह, मोहसिना किदवई और सीपी जोशी के नाम शामिल हैं.
बाहर किए गए नेताओं में जनार्दन द्विवेदी, मोहन प्रकाश और बीके हरिप्रसाद को पार्टी के महासचिव पद से भी हटा दिया गया. जनार्दन द्विवेदी यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी के काफ़ी नजदीकी माने जाते रहे हैं.
जबकि बाकी सोनिया गांधी के अध्यक्ष रहते हुए कार्यसमिति के प्रमुख सदस्य हुआ करते थे. कर्ण सिंह, मोहसिना किदवई, ऑस्कर फर्नांडीस, मोहन प्रकाश और सीपी जोशी को नई कार्य समिति में जगह नहीं मिली है.
सीपी जोशी भले ही कार्यसमिति से बाहर हो लेकिन उनका महासचिव पद बरकार है. बताया जा रहा है कि आगामी राजस्थान विधानसभा चुनाव में उन्हें कांग्रेस के प्रचार का काम दिया जा सकता है.
हालांकि अनुभव को भी तरजीह दी गई है. राहुल की कार्यसमिति में सोनिया गांधी, मनमोहन सिंह, मोतीलाल वोरा, अहमद पटेल, अशोक गहलोत को सदस्य के तौर पर जगह मिली. वहीं दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित, पी चिदंबरम जैसे नेताओं को स्थायी आमंत्रित सदस्य के रूप में चुना गया.
कार्यसमिति में शामिल किए गए ज्योतिरादित्य सिंधिया को समिति में स्थायी आमंत्रित सदस्य के रूप में चुना गया, वहीं मध्यप्रदेश कांग्रेस प्रमुख अरुण यादव, जितिन प्रसाद, दीपेन्द्र हुडा और कुलदीप बिश्नोई को विशेष आमंत्रित सदस्य के रूप में चुना गया. कुमारी शैलजा और रणदीप सुरजेवाला के नाम भी इसमें शामिल हैं.
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राज्य चुनाव पर नजर, कई राज्यों की अनदेखी
चुनावी राज्यों को साधने के लिए मध्यप्रदेश से सिंधिया के साथ अरुण यादव, छतीसगढ से मोतीलाल वोरा के साथ ताम्रध्वज साहू और राजस्थान से गहलोत, जितेंद्र सिंह के साथ रघुवीर मीना को जगह दी गई है. इस साल के अंत में राजस्थान, मध्यप्रदेश और छतीसगढ़ में विधानसभा चुनाव हैं.
वैसे समिति में पश्चिम बंगाल, बिहार, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना से कोई नाम नहीं है. इसकी एक वजह ये है कि इन राज्यों में कोई बड़ा चेहरा है भी नहीं. लेकिन राजनीतिक तौर पर ये राज्य काफी मायने रखते हैं, खास तौर पर पश्चिम बंगाल जहां पर कांग्रेस अपना वजूद फिर से कायम करने की कोशिश में हैं.
ऐसे में समिति में इन राज्यों के प्रतिनिधियों के नाम की कमी खलती है. वहीं हरियाणा जैसे छोटे राज्य से समिति के 51 में 4 नेता हैं. इसमें कुलदीप बिश्नोई जैसे नेता का नाम भी विशेष आमंत्रित सदस्य में है जो कुछ साल पहले तक अपनी अलग पार्टी बना कर चुनाव लड़ चुके हैं. हालांकि समिति में उत्तर प्रदेश से छह नाम हैं जिनमें राहुल और सोनिया शामिल हैं.
गुजरात पर राहुल गांधी की खास नजर रही है. गुजरात से अहमद पटेल, दीपक बाबरिया, शक्ति सिंह गोहिल और ललित देसाई ने समिति में अपनी जगह बनाई है. गुजरात प्रधानमंत्री मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह का गृह राज्य है.
पंजाब को समिति में खास जगह नहीं मिली. मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह को समिति से बाहर कर दिया. वो पहले समिति में विशेष आमंत्रित सदस्य थे. पंजाब के कोटे से अंबिका सोनी को जगह मिली है हालांकि पंजाब कांग्रेस में उनकी कोई सक्रिय भूमिका नहीं रही है.
समिति में वर्तमान कांग्रेस मुख्यमंत्रियों को स्थान नहीं मिला. हालांकि पूर्व मुख्यमंत्रियों को जरूर शामिल किया गया.
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महिलाओं की मामूली भागीदारी
हालांकि नई समिति में महिलाओं की संख्या को लेकर सवाल उठ रहे हैं. समिति के 23 सदस्यों में सोनिया गांधी समेत केवल 3 महिलाओं को जगह मिली है. दो अन्य हैं अम्बिका सोनी और नया नाम कुमारी शैलजा. शीला दीक्षित, आशा कुमारी, रजनी पाटिल स्थायी आमंत्रित सदस्य बनाई गई हैं.
आमंत्रित सदस्यों को जोड़ लें तो भी महिलाओं की संख्या 51 में से केवल 7 ही है. यानी 15 प्रतिशत से भी कम. राहुल गांधी ने कार्यसमिति के एलान से ठीक एक दिन पहले प्रधानमंत्री मोदी को चिट्ठी लिख कर संसद के मॉनसून सत्र में महिला आरक्षण बिल लाने की मांग की थी ताकि संसद और विधानसभाओं में 33 प्रतिशत सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित हो सकें.
लेकिन उनका ये क़दम उनके समिति चयन में नहीं दिखा.
दलित चेहरों पर खास नजर
हाल फिलहाल दलित आंदोलन की परछाई इस समिति के चयन पर दिखी. राहुल गांधी ने दलित चेहरें के रूप में मल्लिकार्जुन खड़गे, कुमारी शैलजा, मुकुल वासनिक और पीएल पुनिया को शामिल किया है. हालांकि अल्पसंख्यक के नाम पर तीन मुसलमान चेहरे ही समिति में शामिल हुए.
उनमें से दो कश्मीर से गुलाम नबी आज़ाद और तारिक़ हामिद खर के साथ गुजरात से अहमद पटेल शामिल हैं.
कांग्रेस कार्यसमिति पार्टी के सभी महत्वपूर्ण निर्णयों पर एक सलाहकार पैनल के रूप में कार्य करती है. कांग्रेस की नई कार्यसमिति की पहली बैठक 22 जुलाई को होगी. इस बैठक में राहुल ने सभी राज्य इकाइयों के अध्यक्षों और राज्यों के विधायक दल नेताओं को भी आमंत्रित किया है.
हालांकि इस समिति में अच्छे प्रदर्शन करने वालों को इनाम दिया है और पुराने नए चेहरे मिला कर नई टीम बनाई है. राहुल की ये नई टीम की असली परीक्षा आने वाले विधानसभा चुनावों और 2019 लोकसभा चुनाव में होनी है. सवाल है कि क्या ये टीम राहुल गांधी को 2019 में प्रधानमंत्री बना पाएगी?