संगीतकार नहीं अभिनेता बनना चाहते थे खय्याम,हीरो बनने के लिए 10 साल की उम्र में छोड़ा घर
मुंबई। भारतीय सिनेमा के दिग्गज संगीतकार खय्याम का निधन हो गया है। लंबी बीमारी से जूझ रहे खय्याम ने मुंबई के अस्पताल में आखिरी सांस ली। 93 साल के खय्याम के निधन की खबर सुनते ही बॉलीवुड में शोक की लहर दौड़ पड़ी। उनकी मौत की खबर सुनते ही बॉलीवुड सितारे और संगीतगत से जुड़े लोगों ने शोक व्यक्त किया।
फिल्म जगत में ख्ययाम के नाम से मशहूर
खय्याम का पूरा नाम मोहम्मद जहूर खय्याम हाशमी था, लेकिन संगीत और बॉलीवुड जगत में उन्हें खय्याम के नाम से प्रसिद्धी मिली। उनका जन्म अविभाजित पंजाब के नवांशहर में 18 फरवरी 1927 में हुआ था। खय्याम का रुझान बचपन से ही संगीत से था। वो फिल्म देखने के शौकीन थे। कई बार को घर से भागकर फिल्म देखने चले जाते थे। उनकी इस आदत से उनके घर वाले परेशान रहा करते थे। सिर्फ 10 साल की उम्र में ही उन्होंने अपना घर छोड़ दिया और फिल्मों में किस्मत अपनाने के लिए अपने चाचा के घर दिल्ली आ गए।
संगीतरकार नहीं अभिनेता बनना चाहते थे खय्याम
खय्याम जिनकी मधुर धुनों ने लाखों लोगों को अपना दीवाना बनाया वो बचपन में संगीतकार नहीं बल्कि अभिनेता बनना चाहते थे। उन्होंने छोटी उम्र में ही फिल्मों में काम करने का धुन पकड़ लिया और अपना घर छोड़कर चाचा के घर दिल्ली आ गए। उनके चाचा ने जब उनके भीतर संगीत और अभिनय को लेकर रूचि देखी तो उनका दाखिला संगीत स्कूल में करवाया। उन्हें संगीत सीखने की अनुमति दी। ख्याम ने संगीत का प्रारंभिक शिक्षा पंडित इमरनाथ, पंडित हुस्नलाल-भगतराम ले ली। इसी दौरान उनकी मुलाकात पाकिस्तान के मशहूर संगीतरकार जीएस चिश्ती से हुई, जिन्होंने उनके संगीत धुन को सुनते ही उन्हें अपना सहायत रख लिया। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
इन फिल्मों के धुन ने लोगों को बनाया दीवाना
उनके करियर की शुरुआत साल 1947 में हुई। खय्याम ने पहली बार फिल्म 'हीर रांझा' में संगीत दिया। इस फिल्म में भले ही उन्होंने बॉलीवुड में एंट्री की, लेकिन उन्हें पहचान मिली मोहम्मद रफ़ी के गीत 'अकेले में वह घबराते तो होंगे'। इसके बाद उन्होंने फिल्म 'शोला और शबनम' में संगीत दिया, जिसे लोगों ने खूब पसंद किया। खय्याम और साहिर की जोड़ी बॉलीवुड में मशहूर हो गई। उन्होंने एक साथ कई फिल्मों में संगीत दिया। इसके बाद उन्होंने अपनी पत्नी जगजीत कौर के साथ 'बाज़ार', 'शगुन' और 'उमराव जान' में काम किया, जिन्होंने उन्हें नई बुलंदियों पर पहुंचा दिया। फिल्म 'कभी कभी' और 'उमराव जान' जैसी फिल्मों के लिए उन्हें फिल्मफेयर का अवॉर्ड मिला। उनके यादगार गीतों में 'वो सुबह कभी तो आएगी', 'जाने क्या ढूंढती रहती हैं ये आंखें मुझमें', 'बुझा दिए हैं खुद अपने हाथों, 'ठहरिए होश में आ लूं', 'तुम अपना रंजो गम अपनी परेशानी मुझे दे दो', 'शामे गम की कसम', 'बहारों मेरा जीवन भी संवारो' जैसे अनेकों गीतों में अपने संगीत से चार चांद लगा दिए। इन सदाबहार संगीत के लिए खय्याम हमेशा लोगों के दिलों में जिंदा रहेंगे। जब जब ये धुन लोगों के कानों में सुनाई देगी उनकी यादें लोगों को फिर से ताजा हो जाएंगी।