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वेंकैया नायडू: दक्षिण भारत में बीजेपी का स्टार क्या अब सियासत से ग़ायब हो जाएगा?

उपराष्ट्रपति का पद छोड़ने के बाद नायडू सक्रिय राजनीति को अलविदा कह देंगे. जिस दक्षिण भारत में बीजेपी अपना दायरा बढ़ाना चाहती है, वहां से वेंकैया नायडू ने अपना राजनीतिक सफ़र शुरू किया था.

By BBC News हिन्दी
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साल 2017 में जब उपराष्ट्रपति पद के लिए एम वेंकैया नायडू के नाम पर चर्चा चल रही थी और आधिकारिक घोषणा नहीं हुई थी- तब वेंकैया नायडू से पूछा गया कि क्या वो उपराष्ट्रपति बनने की रेस में शामिल हैं?

उनका जवाब आया, "मैं ना राष्ट्रपति और ना ही उपराष्ट्रपति बनना चाहता हूं. मैं उषा का पति बनकर ही खुश हूं."

इस वक्त तक बहुत से लोगों को नहीं पता था कि उषा, वेंकैया नायडू की पत्नी का नाम है.

राजनीतिक गलियारों में वेंकैया नायडू ऐसी ही हाज़िर जवाबी और तुकबंदी के लिए जाने जाते रहे हैं.

दक्षिण भारत से आने के बाद भी वो जिस तरह से नेताओं, सहयोगियों और पत्रकारों से हिंदी भाषा में सरलता से संवाद स्थापित कर पाते थे, इसके मुरीद कई हैं.

उपराष्ट्रपति वाले सवाल पर जो जवाब उन्होंने दिया, वो भले ही उन्होंने मज़ाकिया लहज़े में दिया हो, लेकिन ये बात सच है कि वेंकैया नायडू उप-राष्ट्रपति बनने के इच्छुक नहीं थे.

अपनी किताब 'लिस्निंग, लर्निंग एंड लीडिंग' के विमोचन के मौक़े पर उन्होंने ख़ुद इस बात को स्वीकार किया था.

उन्होंने उस समय कहा था, "मैंने प्रधानमंत्री मोदी के सामने उनके दूसरे कार्यकाल में सरकार से हटने की इच्छा ज़ाहिर करते हुए नानाजी देशमुख के पदचिह्नों पर चलने की बात कही थी."

उपराष्ट्रपति पद के लिए कैसे राज़ी हुए?

डॉ. यलामनचाली शिवाजी, वेंकैया नायडू के राजनीतिक सफ़र के तक़रीबन 50 साल के साथी रहे हैं. वे राज्यसभा के सांसद रह चुके हैं.

बीबीसी से बातचीत में वो अपने और वेंकैया नायडू के बीच उपराष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी को लेकर हुई बातचीत के बारे में बताते हैं.

वो कहते हैं, "उपराष्ट्रपति बनने के लिए वेंकैया उत्साहित नहीं थे. वो कैबिनेट मंत्री ही बने रहना चाहते थे. मैंने उनको एनडीए के प्रस्ताव को स्वीकार करने के लिए काफ़ी मनाया था. मैंने उनको कहा था कि ये सेफ़-लैंडिग का मौक़ा है. इसके बाद आगे राष्ट्रपति बनने के रास्ते भी खुल सकते हैं. इसके पहले ऐसे कई उदाहरण रहे थे जहां नेता उपराष्ट्रपति बनने के बाद राष्ट्रपति भवन की शोभा बढ़ाते नज़र आए."

डॉ. शिवाजी ने आगे बताया, "डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन, ज़ाकिर हुसैन, वीवी गिरी, आर वेंकटरमण, शंकरदयाल शर्मा, केआर नारायणन जैसे उदाहरण मैंने उनको गिनाए. 2019 में बीजेपी की जीत लगभग तय मानी जा रही थी. मैंने उनको भरोसा दिलाया. 2019 की बीजेपी की जीत के साथ ही राष्ट्रपति पद पर उनकी जीत भी सुनिश्चित ही होगी."

इसी तरह की दलील, उनको दूसरे कई करीबी लोगों ने भी दी. आख़िरकार वो उपराष्ट्रपति बनने के लिए तैयार हो गए.

सच तो ये भी है कि पार्टी अनुशासन से भी वो बंधे थे इस वजह से पार्टी का फ़ैसला मानने के अलावा उनके पास कोई दूसरा विकल्प भी नहीं था.

राष्ट्रपति बनने का सपना टूटा

जो सपना दिखाकर वेंकैया नायडू के करीबियों ने उनको उपराष्ट्रपति बनने के लिए राज़ी किया था, वो अब पूरा नहीं होगा.

अब ये साफ़ है कि वेंकैया नायडू इस बार राष्ट्रपति पद की रेस में नहीं हैं. हालांकि उपराष्ट्रपति पद पर दूसरे कार्यकाल की उम्मीद अभी बाक़ी है.

वैसे उनके करीबियों ने अब इसकी भी उम्मीद खो दी है. सार्वजनिक मंच पर कभी वेंकैया नायडू ने राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवारी के लिए इच्छा जाहिर भी नहीं की, लेकिन उनके साथ काम करने वालों की माने तो अंदर ही अंदर एक आस तो रहती ही है.

ये भी मुमकिन है कि पिछले उदाहरणों को देख कर, उनके दिल में भी राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी की आस जगी हो.

वैंकया नायडू फ़िलहाल 73 साल के हैं. इसके बाद माना जा रहा है कि उनके सक्रिय राजनीतिक जीवन का एक तरह से अंत होगा.

वैंकया नायडू
Getty Images
वैंकया नायडू

छात्र जीवन से सक्रिय राजनीतिक सफ़र

भारत की आज़ादी के लगभग दो साल बाद एक जुलाई 1949 को वेंकैया नायडू का जन्म नेल्लोर में हुआ था. नेल्लोर उस समय मद्रास प्रेसीडेंसी के अंतर्गत आता था. राज्य के रूप में आंध्र प्रदेश का तब जन्म नहीं हुआ था .

उनके पिता किसान थे. उनकी शुरुआती पढ़ाई नेल्लोर के वीआर हाई स्कूल से हुई, नेल्लोर से उन्होंने स्नातक की पढ़ाई पूरी की. उन्होंने राजनीति विज्ञान और क़ानून की पढ़ाई की है. छात्र राजनीति में भी उन्होंने वहीं कदम रखा.


शुरुआती राजनीतिक सफ़र


  • 1971 में वीआर कॉलेज में छात्र संगठन चुनाव जीता और अध्यक्ष बने.
  • 1973-74 में वो आंध्र यूनिवर्सिटी यूनियन के अध्यक्ष रहे.
  • 1974 में जयप्रकाश नारायण स्टूडेंट संघर्ष समिति के राज्य संयोजक नियुक्त किए गए.
  • 70 के दशक में ही 'जय आंध्र' मूवमेंट की शुरुआत हुई. हैदराबाद में ही सारा विकास क्यों- इस विषय पर शुरू हुए आंदोलन में वेंकैया नायडू भी कूद पड़े.
  • 1975 में इमरजेंसी के दौरान वो जेल भी गए.
  • 1977-80 में जनता पार्टी के यूथ विंग के प्रेसिडेंट बने.
  • 1978 में उदयगिरि सीट से पहली बार विधायक बने.
  • 1980-83 तक वो बीजेपी के यूथ विंग के प्रेसिडेंट रहे.
  • 1985 में वो बीजेपी के आंध्र प्रदेश के जनरल सेक्रेटरी बने.
  • 1998 में आंध्र प्रदेश बीजेपी के अध्यक्ष बने.

उनका राजनीतिक करियर सबसे अधिक सवांरा 70 से 80 के दशक के बीच के वक्त ने. उनके करीबियों के मुताबिक़, छात्र जीवन में जब वो जनसंघ और एवीबीपी से जुड़े उस समय से ही उनके हिंदी सीखने की शुरुआत हुई.

आंध्र प्रदेश की राजनीति में हालांकि उन्हें अच्छी हिंदी की ज़रूरत नहीं थी. तब अंग्रेजी में ही वो 'राइमिंग वर्ड' और 'वन लाइनर्स' का इस्तेमाल करते थे.

लेकिन आंध्र प्रदेश की राजनीति से निकलकर जब वो राष्ट्रीय राजनीति में आए, तब हिंदी में भी उन्होंने वही प्रयोग शुरू किया.

नरेंद्र मोदी के साथ वैंकया नायडू
ANI
नरेंद्र मोदी के साथ वैंकया नायडू

राष्ट्रीय राजनीति में एंट्री


  • 1993 में राष्ट्रीय बीजेपी में उनकी एंट्री हुई. उन्हें पार्टी का महासचिव बनाया गया.
  • 1996-2000 में राष्ट्रीय प्रवक्ता रहे, बीजेपी संसदीय समिति के सचिव और सेंट्रल इलेक्शन कमेटी के सदस्य भी रहे.
  • 1998 में कर्नाटक से राज्यसभा पहुंचे. फिर 2004 और 2010 में भी यही सिलसिला चला. इस वजह से भी बीजेपी में उनकी पहचान बीजेपी के दक्षिण भारत चेहरे के तौर पर बनी.
  • 2000 में सितंबर महीने में वाजपेयी सरकार में ग्रामीण विकास मंत्री रहे. प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना को देश के हर गांव तक पहुंचाने की ज़िम्मेदारी उन्हीं की थी.
  • 2002 में बीजेपी के पार्टी अध्यक्ष बने, इस पद पर दोबारा चुने गए.
  • 2004 में पार्टी की लोकसभा चुनाव में हार के बाद उन्होंने पद से इस्तीफ़ा दे दिया और 2004, 2010 में दोबारा राज्यसभा में कर्नाटक से चुनकर आए.
  • 2014 में मोदी सरकार में वो शहरी विकास मंत्री बने.
  • 2016 में वो राजस्थान से राज्यसभा पहुंचे.
  • 2017 में भारत के उपराष्ट्रपति बने.

वेंकैया नायडू
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वेंकैया नायडू

2004 में समय से पहले लोकसभा चुनाव

हैदराबाद के वरिष्ठ पत्रकार दिनेश आकुला कहते हैं, "वेंकैया नायडू की साफ़-सुथरी राजनीतिक छवि ही उनके उपराष्ट्रपति पद तक पहुंचने में मददगार साबित हुई है. हालांकि कुछ विवाद भी उनके साथ जोड़े जाते हैं, जिनका प्रमाण किसी ने कभी दिया नहीं."

माना जाता है कि चंद्रबाबू नायडू से वो काफ़ी प्रभावित रहते थे. उनके प्रभाव में आकर वेंकैया नायडू ने अटल बिहारी वाजपेयी को 2004 में तय वक़्त से कुछ समय पहले लोकसभा चुनाव कराने के लिए राज़ी कर लिया था.

साल 2003 के अक्टूबर में चंद्रबाबू नायडू पर नक्सली हमला हुआ था. उन्हें लगा कि इस बहाने उन्हें सहानुभूति वोट मिलेंगे. बीजेपी थोड़े समय पहले ही राज्यों में विधानसभा चुनाव जीती थी. इस उत्साह में बीजेपी को लगा कि चुनाव कराने के लिए परिस्थितियां अनुकूल हैं."

आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के विभाजन में वेंकैया नायडू की भूमिका

वेंकैया नायडू के बारे में उनके आलोचक अक्सर दो अहम बातों की ओर ध्यान खींचते हैं.

माना जाता है कि आंध्र प्रदेश के विभाजन के दौरान यूपीए सरकार ने आंध्र प्रदेश के लिए 'स्पेशल स्टेटस' की बात मौखिक रूप से स्वीकार की थी. लेकिन एनडीए सरकार ने सत्ता में आने के बाद ये मांग स्वीकार नहीं की.

पूर्व राज्यसभा सांसद डॉ. यलामनचाली शिवाजी कहते हैं, "एक तरह से आंध्र प्रदेश का वही प्रतिनिधित्व कर रहे थे. अगर वो आंध्र प्रदेश को स्पेशल स्टेटस दिला पाते तो उनकी कामयाबी की फेहरिस्त और लंबी होती. लेकिन अफ़सोस ऐसा हो नहीं सका."

राज्य के कई जानकार भी इस बात से इत्तेफ़ाक रखते हैं.

हालांकि आंध्र ज्योति अख़बार से जुड़े कृष्णा राव कहते हैं, "उन पर इन तरह के आरोपों में कोई दम नहीं है. सब जानते हैं एक राज्य को स्पेशल स्टेटस देने पर दूसरे राज्यों से ऐसी मांगों की बाढ़ लग जाती. राजनीतिक रूप से ऐसा संभव ही नहीं था."

मोदी- नायडू
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मोदी- नायडू

पीएम मोदी से रिश्ते

जब उपराष्ट्रपति पद के लिए उनके नाम के प्रस्ताव पर चर्चा हुई थी, तब उनकी उम्र 68 साल थी.

पीएम मोदी और अमित शाह चाहते तो सक्रिय राजनीति में इनको थोड़ा और समय दिया जा सकता था.

हाल के दिनों मे उनके और पीएम मोदी के रिश्तों की खटास की ख़बरें तब भी सुनने में आईं जब राज्यसभा के सेक्रेटरी जनरल को दो महीने के भीतर हटा दिया गया, जिसे वेंकैया नायडू ने नियुक्त किया था.

न्यूज़ वेबसाइट दि प्रिंट पर छपी रिपोर्ट के मुताबिक़, सितंबर 2021 में वेंकैया नायडू ने पीपीके रामाचारयुलू को सेक्रेटरी जनरल बनाया. अब तक इस पद पर नियुक्ति उपराष्ट्रपति ही करते हैं जो राज्यसभा के सभापति भी होते हैं. लेकिन नवंबर में रामाचारयुलू को पद से हटा कर पीसी मोदी को सेक्रेटरी जनरल बना दिया गया. राज्यसभा के सेक्रेटरी जनरल का पद एक तरह से सभापति के संसदीय सलाहकार का भी पद होता है.

राज्यसभा के पूर्व सेक्रेटरी जनरल रहे विवेक अग्निहोत्री ने बीबीसी से बातचीत में नियुक्ति की प्रक्रिया पर कहा, "सेक्रेटरी जनरल की नियुक्ति उपराष्ट्रपति यानी राज्यसभा के सभापति के विवेधिकार का मामला है. इस पद पर नियुक्ति के लिए कोई नियम क़ानून नहीं बने हैं."

बताया जाता है कि पीपीके रामाचारयुलू वेंकैया नायडू के काफ़ी करीबी थे. लेकिन दो महीने के अंदर, अपने द्वारा ही नियुक्त किए गए व्यक्ति को पद से हटाने की ज़रूरत क्यों पड़ी? इस बारे में राजनीतिक गलियारों में कई तरह की अटकलें लगाई गईं, जिनमें से सबसे अहम ये था कि पीएमओ से इस बारे में इजाज़त नहीं ली गई थी.

हालांकि आधिकारिक तौर पर रामाचारयुलू को हटाने और पीसी मोदी की नियुक्ति को लेकर कोई बयान राज्यसभा सचिवालय से जारी नहीं किया गया. लेकिन सवाल इसलिए भी उठे क्योंकि वेंकैया नायडू के उपराष्ट्रपति पद के कार्यकाल के महज़ आठ महीने ही बचे थे.

इस विवाद के पहले एक मौक़ा ऐसा भी आया जब राज्यसभा की कार्यवाही के दौरान पीएम मोदी के भाषण से दस मिनट का हिस्सा काट दिया गया. ये वाकया 6 फरवरी 2020 का है, जब प्रधानमंत्री के स्पीच का कोई हिस्सा हटा दिया गया. इस बारे में राज्यसभा सचिवालय की तरफ़ से बयान भी जारी किया गया था.

नायडू
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नायडू

हिंदी विवाद

इस साल अप्रैल में भारत के गृह मंत्री अमित शाह ने हिंदी को लेकर एक बयान दिया था. उन्होंने हिंदी भाषा को अंग्रेज़ी का विकल्प बनाने की बात की थी.

उसके कुछ दिन बाद ही वेंकैया नायडू का एक बयान आया, जिसमें उन्होंने कहा, "किसी भाषा को ना तो थोपना सही है और ना ही विरोध करना सही है."

उनके इस बयान को भी अमित शाह के बयान के साथ जोड़ कर ही देखा गया.

उपराष्ट्रपति या राष्ट्रपति के पद पर रहने वाले अक्सर विवादों से बचना पंसद करते हैं. क्या ये नियम है?

इस पर विवेक अग्निहोत्री कहते हैं, "मीडिया को भी एक बात समझनी होगी. उपराष्ट्रपति या राष्ट्रपति का पद कोई सांसद का पद नहीं होता, कोई स्पीकर का पद नहीं होता. वो एक संवैधानिक पद है. संविधान के मुताबिक़ उपराष्ट्रपति ही राज्यसभा के सभापति होते हैं. देश के सर्वोच्च पद पर आसीन व्यक्ति से हर मुद्दे पर टिप्पणी की अपेक्षा क्यों रखते हैं."

आगे क्या?

उपराष्ट्रपति पद पर रहते हुए इन तथाकथित विवादों की वजह से कयास लगाए जा रहे थे कि राष्ट्रपति पद के लिए वो बीजेपी या एनडीए के उम्मीदवार नहीं होंगे, जो आख़िरकार सही ही साबित हुआ.

लेकिन अब वो आगे क्या करेंगे?

इस सवाल के जवाब में आंध्र प्रदेश की राजनीति के जानकार कहते हैं, "वो स्वर्ण भारती ट्रस्ट के साथ काम करेंगे. एक ट्रस्ट जो उन्होंने दोस्तों के साथ मिलकर शुरू किया था और अब जिसे उनकी बेटी चलाती है."

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English summary
Venkaiah Naidu BJP star in South India disappear from politics now?
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