करुणानिधि के बाद तमिलनाडु की राजनीति के शून्य से निकलकर कौन बनेगा सियासी सितारा?
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नई दिल्ली। द्रविड़ मुनेत्र कड़गम यानी डीएमके, वही पार्टी जिसकी कमान सन 1969 में एम करुणानिधि ने संभाली थी। डीएमके के संस्थापक थे सीएन अन्नादुरई, जिन्होंने कांग्रेस राज खत्म कर तमिलनाडु में नए विचार के साथ सत्ता स्थापित की। अन्नादुरई सिर्फ एक साल सीएम रह सके। फरवरी 1969 में उनका निधन हो गया। कुछ महीने बाद करुणानिधि ने पार्टी की कमान संभाली। उस वक्त तमिलनाडु के दो सितारे एक ही मंच पर विराजमान थे। पहले खुद करुणानिधि और दूसरे थे मरुदुर गोपालन रामचंद्रन यानी एमजीआर। उस वक्त दोनों दोस्त थे, लेकिन आगे चलकर एमजीआर करुणानिधि के दुश्मन बने और ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (एआईएडीएमके) की स्थापना की। वही एआईएडीएमके जिसकी कमान एमजीआर के बाद जयललिता ने संभाली। एमजीआर जयललिता के राजनीतिक गुरु थे।
करुणानिधि को एमजीआर से खतरा होने लगा था और पार्टी की कमान संभालने के 3 साल बाद ही उन्होंने एमजीआर को बाहर का रास्ता दिखा दिया। अपमान का घूंट पीने के बाद एमजीआर ने नई पार्टी बनाई- एआईएडीएमके। तमिलनाडु से कांग्रेस का सफाया तो 1967 के चुनाव में अन्नादुरई ने ही कर दिया था। अब राज्य में सिर्फ दो पार्टी थीं डीएमके और एआईएडीएमके। दो ही नेता थे करुणानिधि और एमजीआर, एकदम आमने-सामने। यहां से इन दोनों पार्टियों का राजनीतिक खेल ऐसा शुरू हुआ कि तमिलनाडु की सत्ता ने कोई और चेहरा देखा ही नहीं। कभी करुणानिधि तो कभी एमजीआर, कभी जयललिता तो कभी करुणानिधि। इन्हीं तीन बड़े चेहरों का स्टारडम तमिलनाडु की जनता को लुभाता रहा है।
एक बार फिर पुराने मोड़ पर आकर खड़ी हो गई तमिलनाडु की राजनीति
करुणानिधि, एमजीआर और जयललिता में से सबसे पहले दुनिया को एमजीआर ने अलविदा कहा। दिसंबर 1987 में किडनी फेल होने के कारण एमजीआर का निधन हो गया। उनके बाद 2016 में एमजीआर की विरासत संभालने वाली जयललिता भी चल बसीं। करुणानिधि अकेले बचे थे, 7 अगस्त 2018 को वह भी चल बसे। इस समय तमिलनाडु की सत्ता पर एआईडीएमके काबिज है, लेकिन पार्टी के अंदरूनी हालात ठीक नहीं हैं। दूसरी ओर डीएमके की कमान करुणानिधि के बेटे स्टालिन के हाथों में हैं। करुणानिधि और जयललिता के जाने के बाद डीएमके और एआईएडीएमके दोनों की कमजोर पड़ती दिख रही हैं। तमिलनाडु की राजनीति एक बार फिर पुराने मोड़ पर आकर खड़ हो गई है। राजनीति के उस मोड़ पर कांग्रेस का सफाया हुआ था और पहले करुणानिधि, उनके बाद एमजीआर का उदय हुआ। ठीक उसी प्रकार से आज तमिलनाडु में दो और सितारे आमने-सामने हैं। एक नाम है रजनीकांत और दूसरे हैं कमल हासन। तब कांग्रेस ने तमिलनाडु में राजनीतिक वजूद खोया था और आज बीजेपी के पास तमिलनाडु की सियासत में जगह बनाने का एक मौका है।
करुणानिधि-एमजीआर के बाद होगी रजनीकांत-कमल हासन के स्टारडम की टक्कर
तमिलनाडु की राजनीति में फिल्मी हस्तियां दशकों से जादू बिखेरती आ रही हैं। करुणानिधि स्क्रिप्टराइटर थे, एमजीआर सुपरस्टार, जयललिता भी फिल्मों से आईं और अब कमल हासन और रजनीकांत। स्टारडम और फैन फॉलोइंग के मामले में रजनीकांत निश्चित तौर पर से कमल हासन से आगे हैं। दूसरी ओर कमल हासन बेहद संजीदा हैं, वह सोच-विचाकर कार्य करते हैं। उनकी समझ काफी बेहतर है। अब बची कांग्रेस, जो कि दशकों से तमिलनाडु की राजनीति में बेअसर हो चुकी है, लेकिन बीजेपी के पास एक मौका है। चुनौती बीजेपी के लिए भी कम नहीं है, क्योंकि तमिलनाडु में इस समय ऐसा कोई नेता नहीं है जो रजनीकांत के सामने खड़ा होकर ताल ठोक सके। तमिलनाडु में स्टारडम ही राजनीतिक सफलता की पहली शर्त है, जो कि रजनीकांत के पास है। कांग्रेस की तरह बीजेपी के पास भी ज्यादा विकल्प नहीं हैं। हां, इतना जरूर है कि बीजेपी करुणानिधि, जयललिता के जाने के बाद पैदा हुए खालीपन के इस दौर में तमिलनाडु में थोड़ा-बहुत आधार जरूर बना सकती है। साथ ही 2019 के लिए एनडीए के लिए एक बेहतर साथी भी तलाश सकती है।
बीजेपी के पास तमिलनाडु में कई विकल्प
तमिलनाडु की राजनीति को अगर गठबंधन के लिहाज से देखें तो सभी विकल्प खुले हैं। डीएमके, एआईएडीएमके, रजनीकांत और कमल हासन सभी ने अभी तक पत्ते नहीं खोले हैं। चूंकि, एआईएडीमके सत्ता में है, उसे केंद्र सरकार से काफी मदद की जरूरत है। ऐसे में उसका झुकाव निश्चित रूप से एनडीए की ओर बना हुआ है। हालांकि, रजनीकांत भी नरेंद्र मोदी के बड़े प्रशंसक माने जाते हैं। उनकी और बीजेपी की विचारधारा भी काफी हद तक मिलती है। यह समीकरणों की संभावनाएं तलाशने का दौर है और इस समय तमिलनाडु की सियासत में सब यही कर रहे हैं।