Uttarakhand glacier burst: कैसे टूटते हैं ग्लेशियर और इसके कारण क्या हैं?
नई दिल्ली: उत्तराखंड के चमोली जिले में हिमस्खलन की भारी घटना के चलते अलकनंदा और धौलीगंगा नदियों के आसपास रविवार को भयावह बाढ़ की स्थिति पैदा हो गई। यह हिमस्खलन चमोली जिले के पास ऋषिगंगा पॉवर प्रोजेक्ट के पास होने की सूचना है। यह घटना जून, 2013 में हुई केदारनाथ त्रासदी की याद दिला रही है, इसलिए इसको लेकर पूरे देश में खलबली मच गई थी। तब बादल फटने की वजह से उस तरह की आपदा सामने आई थी, इसबार यह त्रासदी ग्लेशियर टूटने की वजह से पैदा हुई है। आइए जानते हैं कि हिमनद झील की वजह से पैदा होने वाली आपदाएं क्या हैं? ग्लेशियर टूटते कैसे हैं और इसकी वजहें क्या है?
अलकनंदा-धौलीगंगा नदियों में इस मौसम में बाढ़ कैसे आई ?
चमोली पुलिस के बयान के मुताबिक तपोवन क्षेत्र में ग्लेशियर में हुई टूट की वजह से ऋषिगंगा पॉवर प्रोजेक्ट को नुकसान पहुंचा है। पुलिस की ओर से जारी बयान के मुताबिक अलकनंदा नदी के किनारे रहने वाले लोगों को सलाह दी गई है, वो फौरन सुरक्षित स्थानों की ओर चले जाएं। कुछ वीडियो और उसकी आवाजें सामने आई हैं, जिससे बाढ़ की भयावह का अंदाजा लगाया जा रहा है। हालांकि, 3 बजकर 40 मिनट पर एक वीडियो के साथ ट्वीट के जरिए उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने थोड़ी राहत की खबर दी। उन्होंने कहा है कि, "कर्णप्रयाग में आज ३ बज कर १० मिनट पर नदी में पानी की बहाव की स्थिति से साफ है कि बाढ़ की सम्भावना बहुत ही कम है। हमारा विशेष ध्यान सुरंगों में फंसे श्रमिकों को बचाने में है और हम सभी प्रयास कर रहे हैं। किसी भी समस्या से निपटने के सभी जरूरी प्रयास कर लिए गए हैं।"
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ग्लेशियर लेक बाढ़ क्या है?
सामान्यतौर पर जब ग्लेशियर के पिघलने से बने हिमनद झील में बहुत भारी मात्रा में पानी जमा हो जाता है और उसे थामे रखने वाला ग्लेशियर किसी वजह से टूटता है और उससे एक साथ भारी मात्रा पानी निकलता है तो वह बाढ़ का शक्ल ले लेता है। दूसरे शब्दों में यह ग्लेशियर की वजह से बनी डैम के टूटने के चलते एकसाथ भारी मात्रा में जल की निकासी से है। खासकर काफी ऊंचाई पर होने वाली इन घटनाओं के चलते ऐसी बाढ़ की भयानकता ज्यादा होने की आशंका रहती है।
ग्लेशियर कब और क्यों टूटते हैं ?
ग्लेशियर टूटने के कई कारण हो सकते हैं। जैके कि कटाव, पिघले हुए या जमा हुए पानी का भारी दबाव, बर्फ या चट्टानों का स्खलन या बर्फ के नीचे भूकंप के झटके। यह तब भी हो सकता है जब पास में ग्लेशियर का कोई बड़ा हिस्सा टूटने की वजह से हिमनद से बनी झील में जमा पानी की भारी मात्रा अपने स्थान से खिसक जाता है। विशेषज्ञों की राय में ग्लेशियर झील के प्रकोप की वजह से बाढ़ के हालात बनने के कारणों में भारी बारिश या बर्फ में पिघलाव, भूकंप, हिम-प्रपात की प्रक्रिया और झील में तेजी से ढाल का बनना।
ग्लेशियर लेक में कितना पानी जमा हो सकता है?
ग्लेशियर लेक में पानी की मात्रा अलग-अलग होती है, लेकिन इसमें लाखों क्यूबिक मीटर पानी जमा हो सकता है। अगर बर्फ का पिघलना जारी रहा तो यह पानी बनकर हिमनद झील से कुछ मिनटों में भी निकल सकता है, कुछ घंटे भी लग सकते हैं और कई दिन भी लग सकते हैं। लेकिन, अगर अचानक हुआ तो इसी से तबाही मचने की आशंका ज्यादा रहती है।