कहीं सीएम योगी के सुधार ही तो नहीं बन गए उनकी हार के कारण?
नई दिल्ली। बिजली दरों में बढ़ोत्तरी, अवैध खनन पर रोक, पशु बाजारों पर सख्ती और परीक्षा में नकल रोकने की ड्राइव ने भाजपा के हार्डकोर मतदाओं को उससे विमुख कर दिया है। भाजपा नेता इन कारणों को चाहे स्वीकार किया हो या न किया हो, लेकिन गोरखपुर और फूलपुर सीटों पर भाजपा को मिली हार हैरान कर देने वाली थी। चुनाव परिणाम आ जाने के बाद इस पर कई विश्लेषकों ने अपने अपने मत सामने रखे हैं। इनमें से सबसे ज्यादा अपमानजनक यह था कि दो प्रतिष्ठित सीटों में लोकसभा चुनाव से पहले तक ईवीएम की "तटस्थता" पर उठाए गए। आखिरकार विपक्ष ने इन सीटों पर बड़े अंतर से जीत जो दर्ज की थी, लेकिन यह भी हंगामा मचाया कि ईवीएम के साथ छेड़छाड़ की गई।
वहीं दूसरा सिद्धांत इससे भी मजेदार है, इसमें कहा गया है कि भाजपा और प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नाराज थे। इसलिए वह योगी को नीचे गिराना चाहते थे। भगवा परिवार मोदी की तरह उन पर विश्वास करता है। आदित्यनाथ की गिनती करिश्माई, हिंदुत्व का प्रतीक, साफ सुथरी छवि वाले औऱ अच्छे प्रशासक के तौर पर होती है।आरएसएस-बीजेपी योगी को मोदी के एक बेहतर उत्तराधिकारी के तौर पर देख रही है। आदित्यनाथ को डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य की सीट पर मिली हार को लेकर कोई खास फर्क नहीं पड़ा। वह हर हाल में गोरखपुर की सीट बचाना चाहते थे। इसके बाद भाजपा के अंदर एक लड़ाई शुरु हो गई है। इसका असर यह होगा कि भाजपा अगामी लोकसभा चुनावों में अपनी 71 सीटों शायद ही बचा पाए।
वहीं कई और भी कारण है कि जैसे यूपी सरकार ने लोकल चुनावों के समय बिजली की दरों में बढ़त्तरी की थी। हालांकि इससे गरीबों को खास फर्क नहीं पड़ा। क्योंकि सरकार ने गरीबों को मुफ्ती या सस्ती दरों पर बिजली उपलब्ध कराने का वादा किया था। लेकिन इसका सीधा असर बिजनेस पर हुआ जो कि पहले से ही जीएसटी की मार झेल रहा था। वहीं दूसरी ओऱ योगी सरकार की ओर से बंद की गई अवैध खनन के चलते रियल स्टेट सेक्टर को काफी नुकसान पहुंचा है। जिसके चलते बाजार में भवन निर्माण सामाग्री पर खासा असर दिख रहा है। योगी सरकार ने खानों की बोली ई-टेंडर के जरिए मांगी थी। लेकिन वहीं पर कोई बोली लगाने वाला नहीं आया। कोई नहीं चाहता कि जांच का फंदा उनके गले में पड़े। नतीजा यह हुआ कि व्यापारियो और भाजपा के पुराने विश्वासपात्रों ने गोरखपुर और फूलपुर में वोट नहीं दिए।
वहीं एक कारण यह भी रहा कि उत्तर प्रदेश पशु बाजारों में गौवंश की खरीद फरोख्त पर रोक लगा दी जिससे किसानों की काफी नुकसान हुआ। वहीं पारंपरिक पशु बाजरों का काफी नुकसान उठाना पड़ा। इसका असर यह हुआ कि प्रदेश में गौवंशों की तादात एक दम से बढ़ गई। जो किसानों की फसलों की बर्बाद कर रहे हैं। वहीं यूपी में हो रही बोर्ड की परीक्षाओं में सरकार द्वारा की गई सख्ती छात्रों को रास नहीं आ रही है। सरकार की सख्ती के चलते लगभग 10 लाख बच्चों ने बोर्ड के एग्जाम छोड़ दिए। जिसका भी असर इन चुनावों में देखने को मिला। हाल ही मिले इस हार के बाद भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह नई रणनीति बनाने में जुट गए हैं।