क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

यूआर राव ने 36 महीनों में बना दिया था सैटेलाइट

  • डॉक्टर विक्रम साराभाई ने डॉक्टर यूआर राव को आर्टभट्ट का काम संभालने के लिए कहा था.
  • भारत में स्पेस सैटेलाइट कार्यक्रम के पुरोधा डॉक्टर उडुपी रामचंद्र राव की मौत हो गई है.
  • उनके काम का असर देश की आर्थिक तरक्की में दिख सकती है

By इमरान क़ुरैशी - बेंगलुरु से, बीबीसी हिंदी डॉट कॉम के लिए
Google Oneindia News

भारत में स्पेस सैटेलाइट कार्यक्रम के पुरोधा डॉक्टर उडुपी रामचंद्र राव की मौत हो गई है. वो 85 साल के थे.

उनके काम का असर देश की आर्थिक तरक्की में दिख सकती है. यूं कहें तो इस कारण देश के दूरसंचार क्षेत्र में क्रांति आई, इंटरनेट टेक्नोलॉजी क्षेत्र में तरक्की हुई, रिमोट सेन्सिंग, टेली मेडिसिन और टेली एजुकेशन क्षेत्र में प्रगति हुई है.

कुटीर उद्योगों के बड़े शहर बेंगलुरु के पेन्या में एक छोटे टीन के बने घर के नीचे उन्होंने अपना काम शुरू किया था. उन्होंने देश के विभिन्न संस्थानों से इंजीनियरों और वैज्ञानिकों को इकट्ठा शुरू किया ताकि वो देश का पहला सैटलाइट 'आर्यभट्ट' बना सकें और उसे अप्रैल 1975 में लॉन्च के लिए सोवियत रूस को सौंप सकें.

भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम: बैलगाड़ी से मंगल तक

'अलजेब्रा, पायथागोरस भारत की देन'

डॉक्टर यूआर राव 1984 से 1994 तक भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र (इसरो) के चेयरमैन रहे.

तब से ले कर बीते हफ्ते तक डॉक्टर राव देश में बने लगभग हर सैटेलाइट के बनने की प्रक्रिया के साथ किसी ना किसी रूप में जुड़े रहे.

'कभी नहीं मिस की कोई मीटिंग '

श्रीहरिकोटा से पीएसएलवी रॉकेट लांचर के ज़रिए सैटलाइट स्पेस में छोड़ा गया.
EPA
श्रीहरिकोटा से पीएसएलवी रॉकेट लांचर के ज़रिए सैटलाइट स्पेस में छोड़ा गया.

भारत के अग्रणी खलोगशास्त्री और इंडियन इस्टीट्यूट ऑफ़ साइंस के एरोस्पेस इंजीनियरिंग के चेयरमैन प्रोफ़ेसर आर नरसिम्हा कहते हैं, "बीते हफ्ते वो एक मीटिंग में भी शिरकत करने वाले थे लेकिन तबीयत ख़राब होने के कारण वो नहीं आ सके थे."

प्रोफ़ेसर नरसिम्हा याद करते हैं, "ये पहली बार था जब वो किसी मीटिंग में नहीं आ सके थे."

उन्होंने बीबीसी को बताया, "डॉक्टर राव देख पाते थे कि किस क्षेत्र में अधिक ध्यान देने की ज़रूरत है. वो उस पीढ़ी से थे जो मानती थी कि समाज की भलाई के लिए विज्ञान और तकनीक का विकास होना चाहिए. वो भारत के स्पेस कार्यक्रम के जनक कहे जाने वाले डॉक्टर विक्रम साराभाई के छात्र थे और उनसे काफी प्रभावित भी थे."

इसरो के पूर्व चेयरमैन डॉक्टर के कस्तूरीरंगन कहते हैं, "डॉक्टर साराभाई चाहते थे कि कोई ज़िम्मेदार व्यक्ति सैटेलाइट कार्यक्रम को संभाले. डॉक्टर राव एक मेधावी छात्र थे, कर्मठ थे और विज़नरी थे. वो बड़े काम भी आसानी से कराना जानते थे."

वो कहते हैं, "डॉक्टर साराभाई ने उन्हें मैसाच्युसेट्स इंस्टीच्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी (एमआईटी) से वापस बुलाया और उन्हें सैटेलाइट कार्यक्रम पर काम करने के लिए कहा."

36 महीनों में बनाया आर्यभट्ट

डॉक्टर के कस्तूरीरंगन कहते हैं, "उन्होंने लोगों को एकजुट किया और 36 महीनों में सैटेलाइट बना कर लॉन्च के लिए सोवियत रूस को दे दिया. एसएलवी-3 को 40 किलो का बनाया जाना था."

वो कहते हैं, "उस वक्त के सोवियत रूस के राष्ट्रपति ब्रेझनेव ने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से बात की और सुझाया कि भारत को एक भारी सैटेलाइट बनाना चाहिए. इस तरह आर्यभट्ट बनाया गया."

वो कहते हैं, "इसरो के लिए वो एक पिता की तरह थे. आज हम जो भी सैटेलाइट कार्यक्रम देख रहे हैं सब उनके ही दौर में शुरू किया गया काम है."

ऐसा नहीं है कि डॉक्टर राव को कभी आलोचना का सामना नहीं करना पड़ा. एएसएलवी रॉ़केट का लाॉन्च फेल हो गया और इस कारण उन्हें काफी आलोचना झेलनी पड़ी.

प्रोफ़ेसर नरसिम्हा कहते हैं, "वही वक्त था जब मुझे उनके साथ काम करने का मौक़ा मिला. वो चाहते थे कि मैं उस कमेटी में काम करूं जो लाॉन्च के फेल होने के कारणों की जांच कर रही थी. हमने एक साल में समस्या को सुलझा लिया. हमने इसके बाद पीएसएलवी का लॉन्च किया. इसका पहला लॉन्च भी फेल हुआ. लेकिन उसके बाद से पीएसएलवी कभी फेल नहीं हुआ और हमारे सैटेलाइट सिस्टम के लिए वो एक जादू की गाड़ी जैसा बन गया."

डॉ राव ने नासा के लिए भी उपकरण बनाए

योजना आयोग के पूर्व सदस्य रह चुके डॉक्टर कस्तूरीरंगन बताते हैं, "वो एक प्रेरणा देने वाले व्यक्ति थे और अपनी मेहनत और फ्रोफेशनलिज़्म से उन्होंने हमारा मार्गदर्शन किया. मैं नहीं कह सकता कि मैंने उनसे कुछ सीखा भी या नहीं लेकिन मैंने कोशिश ज़रूर की. मुझे खुद पर गर्व हैं कि मुझे उनके साथ काम करने का मौक़ा मिला."

1971 में जब डॉक्टर साराभाई ने डॉक्टर राव को इसरो में काम संभालने को कहा, उस वक्त वो एमआईटी में कॉस्मिक रेज़ से संबंधित शोध पर काम कर रहे थे और साथ ही वो नासा के अंतरिक्षयानों में इस्तेमाल होने वाले उपकरणों को बनाने के काम में भी शामिल थे.

डॉक्टर राव अहमदाबाद स्थित फिज़िकल रिसर्च लेबोरेटरी की गवर्निंग काउंसिल और तिरुवनंतपुरम के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ स्पेस साइंस एंड टेक्नोलॉजी के के चेयरमैन रहे थे.

वो पहले भारतीय थे जिन्हें साल 2013 में वॉशिंगटन में सैटेलाइट हॉल ऑफ़ फेम में शामिल किया गया.

उन्हें पद्म भूषण और पद्म विभूषण से भी सम्मानित किया गया.

BBC Hindi
Comments
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
English summary
UR Rao made Satellite in 36 months
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X