Bihar Elections: उपेंद्र कुशवाहा बनेंगे किंगमेकर! चुनावी समीकरण में तीसरे मोर्चे के पास कितने वोट ?
पटना। 2005 के बाद से बिहार विधानसभा चुनाव का महामुकाबला दो पक्षों के बीच ही लड़ा जा रहा है। तब से तीन विधानसभा चुनाव हुए लेकिन किसी तीसरे मोर्चे या छोटे दलों का गठबंधन नहीं बन पाया जो अपना असर दिखा सकता। पर इस बार परिस्थितियां बदली हैं। इस बार उपेंद्र कुशवाहा के नेतृत्व में बना छह पार्टियों का गठबंधन दो बड़े गठबंधनों के बीच अपनी उपस्थिति दर्ज कराने में कामयाब हुआ है।
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कभी नीतीश कुमार के खास रहे उपेंद्र कुशवाहा केंद्र की मोदी-1 सरकार में मंत्री रहे थे। 2019 के चुनाव के पहले वो अलग होकर महागठबंधन में शामिल हुए और चुनाव लड़ा लेकिन सफल नहीं हुए। 2020 के विधानसभा चुनाव में सीट बंटवारे और तेजस्वी के नेतृत्व पर सवाल उठाते हुए उन्होंने महागठबंधन से अलग होने का ऐलान कर दिया। इसके बाद कुशवाहा एक गठबंधन बनाने में जुट गए। पहली सफलता उन्हें राजद के पूर्व नेता और समाजवादी जनता दल डेमोक्रेटिक के प्रमुख देवेंद्र यादव का साथ मिला। इसके बार मायावती की बीएसपी और असदुद्दीन ओवैसी की AIMIM भी उनके गठबंधन में शामिल हुई।
10%
वोट
मिल
सकते
हैं
आज
उपेंद्र
कुशवाहा
के
नेतृत्व
में
बने
'ग्रैंड
डेमोक्रेटिक
सेक्युलर
फ्रंट'
गठबंधन
में
रालोसपा,
बसपा,
सुहेलदेव
भारतीय
समाज
पार्टी
(SBSP),
एआईएमआईएम,
समाजवादी
जनता
दल
डेमोक्रेटिक
और
जनता
पार्टी
(सेक्युलर)
शामिल
हैं।
अगर
इन
पार्टियों
के
वोट
प्रतिशत
की
बात
करें
तो
10
प्रतिशत
वोट
के
साथ
इस
चुनाव
में
किंगमेकर
की
भूमिका
में
आ
जाएं
तो
आश्चर्य
नहीं
होगा।
2015
के
विधानसभा
चुनाव
में
उपेंद्र
कुशवाहा
की
रालोसपा
को
3.6
प्रतिशत
वोट
मिले
थे।
पार्टी
ने
चुनाव
में
दो
सीटें
जीती
थीं।
वहीं
बसपा
को
2
प्रतिशत
वोट
मिले
थे
लेकिन
पार्टी
को
कोई
सीट
नहीं
मिली
थी।
इस बार के विधानसभा चुनाव में रालोसपा 203 में से 104 सीटों पर, बीएसपी 80 सीटों पर जबकि एआईएमआईएम 20 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। रालोसपा का औरंगाबाद, कैमूर, रोहतास, पूर्वी चंपारण, बक्सर, शेखपुरा जमुई और मुंगेर में प्रभाव है। वहीं ओवैसी की एआईएमआईएम सीमांचल में कुछ सीटें निकाल सकती है। इस क्षेत्र में AIMIM ने केवल राजद और कांग्रेस के साथ ही जेडीयू को भी नुकसान पहुंचाएगी। बीएसपी रोहतास, कैमूर और गोपालगंज की यूपी से सटी कई सीटों पर अच्छा खासा प्रभाव है।
मायावती
कर
चुकी
हैं
रैली
अभी
तक
बसपा
प्रमुख
मायावती
और
उपेंद्र
कुशवाहा
बसपा
के
प्रभाव
वाली
करहगर
और
भभुआ
विधानसभा
में
दो
रैलियां
साथ
में
कर
चुके
हैं।
उपेंद्र
कुशवाहा
की
असदुद्दीन
ओवैसी
के
साथ
18
सभाएं
हुई
हैं।
तीसरे
मोर्चे
की
इन
रैलियों
में
एनडीए
और
महागठबंधन
दोनों
पर
हमले
बोले
जा
रहे
हैं।
नौकरियों
के
दावों
पर
सेक्युलर
फ्रंट
के
नेता
पूछ
रहे
हैं
कि
आखिर
इतने
दिनों
तक
आरजेडी
और
नीतीश
की
अलग-अलग
सरकार
रही
है
तब
क्यों
नौकरियां
दी
गईं।
रालोसपा
को
उम्मीद
है
कि
कम
से
कम
40-45
सीटों
पर
पार्टी
5
हजार
से
35
हजार
के
ऊपर
वोट
पाने
वाली
है।
कुशवाहा
की
सबसे
बड़ी
ताकत
उनकी
जाति
के
वोट
हैं।
वे
जिस
कुशवाहा
या
कोइरी
समुदाय
से
आते
हैं
प्रदेश
में
उसकी
आबादी
7
प्रतिशत
है।
देखना
है
कि
वे
इसे
कितना
अपनी
तरफ
खींच
पाते
हैं।
ओवैसी
को
सीमांचल
से
उम्मीद
वहीं
असदुद्दीन
ओवैसी
पिछले
काफी
समय
से
बिहार
में
अपनी
पार्टी
को
मजबूत
करने
में
लगे
हैं।
2015
में
भी
उन्होंने
उम्मीदवार
उतारे
थे
लेकिन
सफलता
उन्हें
किशनगंज
में
हुई
उपचुनाव
में
जहां
एआईएमआईएम
ने
जीत
दर्ज
की
थी।
पार्टी
को
इस
बार
सीमांचल
के
किशनगंज,
पुरनिया,
अररिया
और
कटिहार
जिलों
में
सफलता
की
उम्मीद
हैं।
इन
क्षेत्रों
में
मुस्लिम
मतदाता
प्रभावी
संख्या
में
हैं
ऐसे
में
यहां
पार्टी
को
ओवैसी
से
करिश्मे
की
उम्मीद
है।
ओवैसी सेक्युलर फ्रंट को बिहार के लिए विकल्प बता रहे हैं। वे अपनी रैलियों में एनडीए पर निशाना तो साध ही रहे हैं पर वो राजद वाले महागठबंधन पर भी हमले कर रहे हैं। ओवैसी कह रहे हैं कि आरजेडी के नेतृत्व वाले महागठबंधन में एनडीए को हराने की क्षमता नहीं है। एक रैली में ओवैसी ने कहा कि मुझे वोटकटवा और बीजेपी की बी टीम कहा जाता है। उन्होंने पूछा क्या मुझे सीएए पर बात नहीं करनी चाहिए।
लोकसभा चुनाव के पहले उत्तर प्रदेश की योगी सरकार में मंत्री रहे सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के नेता ओम प्रकाश राजभर भी रोहतास और कैमूर में सभा कर चुके हैं। इन इलाकों में राजभर समाज की आबादी रहती है जिन पर उनके आने से असर पड़ने की उम्मीद है। वहीं पूर्व राजद सांसद और समाजवादी जनता दल डेमोक्रेटिक के नेता देवेंद्र यादव का मधुबनी और दरभंगा जिलों में प्रभाव है।
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