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मेरे घर की दीवार पर लिखा गया तुम आतंकवादी हो: प्रवीन कुमार

एटीएस ने क़रीब एक हफ़्ते की पूछताछ के बाद प्रवीन कुमार को क्लीन चिट देकर घर वापस भेज दिया. लेकिन उसके बाद प्रवीन के साथ जो हुआ वह हैरत में डालने वाला था.

By BBC News हिन्दी
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प्रवीन कुमार
Shahbaz Anwar/BBC
प्रवीन कुमार

लगभग 32 साल का एक युवक हाइवे पर सीधा चला जा रहा है. उसके हाथ में एक तिरंगा है. साथ में एक ट्रॉली बैग भी है. हल्की फुहार हो या फिर तेज़ बारिश, उसमें भी उनके क़दम रुकते नहीं हैं.

ये नज़ारा सहारनपुर से मेरठ और दिल्ली के बीच कई लोगों ने पिछले दिनों जगह-जगह देखा. लोगों में उत्सुकता भी हुई कि आख़िर यह युवा ऐसा क्यों कर रहा है.

बाद में मालूम पड़ा कि ये कहानी सामाजिक प्रताड़ना से आजीज़ आए प्रवीन कुमार की ज़िन्दगी से जुड़ी है. यह वही प्रवीन कुमार हैं जिनसे जून में यूपी पुलिस की एटीएस (एंटी टेररिस्ट स्क्वाड) ने धर्मांतरण मुद्दे पर पूछताछ की थी.

पुलिस के अनुसार उनका नाम दिल्ली स्थित इस्लामिक दावा सेंटर नाम की संस्था में धर्म परिवर्तित करने वाले एक युवक के रूप में शामिल था, जो प्रवीन कुमार से अब्दुल समद बन गए थे.

हालांकि, एटीएस ने क़रीब एक हफ़्ते की पूछताछ के बाद प्रवीन कुमार को क्लीन चिट देकर घर वापस भेज दिया. लेकिन उसके बाद प्रवीन के साथ जो हुआ वह काफ़ी हैरत में डालने वाला था.

प्रवीन कुमार बताते हैं, "एटीएस ने मुझे क्लीन चिट दे दी थी. मैं 30 जून को अपने घर वापस आ गया था, लेकिन गांव में मेरे साथ कई लोग अजीब हरकतें करने लगे थे."

"मेरे घर की दीवार पर कोई मुझे आतंकवादी लिख रहा था. एक बार एक पर्चा लिखकर मेरे घर में फेंका गया. इस पर्चे पर लिखा था तुम पाकिस्तानी आतंकवादी हो, पाकिस्तान चले जाओ."

सहारनपुर पुलिस ने भी उन्हें क्लीन चिट दिए जाने की पुष्टि की है.

बीबीसी से बातचीत में सहारनपुर ज़िला के अंतर्गत आने वाले नागल पुलिस स्टेशन के प्रभारी बीनू सिंह ने कहा, "एटीएस वाले प्रवीन सिंह को पूछताछ के लिए ले गए थे. वहां से इन्हें क्लीन चिट मिली है. बाक़ी तथ्यों की जानकारी एटीएस को ही है. मेरी जानकारी के मुताबिक़ इन्हें क्लीन चिट दे दी गई है."

प्रवीन कुमार
Shahbaz Anwar/BBC
प्रवीन कुमार

प्रवीन से एटीएस की पूछताछ

दरअसल, दिल्ली स्थित इस्लामिक दावा सेंटर से जुड़े उमर गौतम और जहांगीर आलम पर जबरन धर्मांतरण कराए जाने के इल्ज़ाम लगे थे. एटीएस के अनुसार जब उन्होंने वहां जाँच पड़ताल की तो उनमें प्रवीन कुमार का नाम लिखा एक प्रमाण पत्र मिला.

इस प्रमाण पत्र पर प्रवीन की फ़ोटो लगी थी. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार इस प्रमाण पत्र में प्रवीन कुमार के धर्मांतरण कर अब्दुल समद बन इस्लाम क़ुबूल किए जाने का ज़िक्र था.

इस बारे में प्रवीन कहते हैं, "ये प्रमाणपत्र मेरा ही था. मैं उन दिनों डिप्रेशन की समस्या से पीड़ित था. मुझे सुक़ून चाहिए था, इसलिए मैं 19 नवंबर 2019 को घर छोड़ कर निकल गया था. मैंने इस बारे में ना तो अपने माता-पिता को बताया और ना ही पत्नी को. मैंने अपना मोबाइल भी बंद कर लिया था."

घर से निकलने के बाद प्रवीन इस्लामिक दावा सेंटर कैसे पहुँचे, इस पर वो बताते हैं, "मैंने इंटरनेट से एक कार्ड निकाला था जिसमें इस्लामिक दावा सेंटर का पता था. मैं वहां पहुँचा तो शुरू के कुछ दिन मैं वहीं रहा."

"वहां क़ुरआन से लेकर वेद की पुस्तकें रखी हुई थीं. मैं अपनी इच्छा से वहां गया था. दो दिन बाद मेरी मुलाक़ात उमर गौतम और जहांगीर आलम से हुई. मैंने कुछ पुस्तकों का अवलोकन किया और प्रवीन से अब्दुल समद बन गया."

इस बातचीत के दौरान प्रवीन लगातार इस बात पर ज़ोर देते रहे कि वह अपनी इच्छा से वहां गए थे, उन्हें किसी ने बुलाया नहीं था. हालांकि, इस बीच वह बार-बार ये भी दोहराते रहे कि इस दौरान वह डिप्रेशन की समस्या में थे. धर्म परिवर्तन अपनी इच्छा से किया था. किसी ने ना तो कोई ज़बर्दस्ती की थी और ना ही कोई लालच दिया था.

प्रवीन कुमार
Shahbaz Anwar/BBC
प्रवीन कुमार

'मुझे इंसाफ़ चाहिए'

पेशे से शिक्षक और यूजीसी की नेट परीक्षा पास कर चुके प्रवीन कुमार इंसाफ़ की माँग कर रहे हैं. उन्होंने इंसाफ़ के लिए सहारनपुर से 27 जुलाई को ये यात्रा शुरू की जो बीते रविवार को सुप्रीम कोर्ट के निकट जाकर ख़त्म हो गई.

इस पदयात्रा को प्रवीन ने सामाजिक न्याय यात्रा का नाम दिया है. लेकिन आख़िर प्रवीन के साथ क्या नाइंसाफ़ी हुई है, इस सवाल के जवाब में वह कहते हैं, "एटीएस ने सबसे पहली बार मुझसे 21 जून को घर पर ही पूछताछ की. अधिकारी मेरे घर पहुँचे थे, इसके बाद मुझसे 24 जून तक घर पर ही पूछताछ होती रही. 29 जून तक मुझसे लखनऊ में पूछताछ की गई."

प्रवीन आगे कहते हैं, "अधिकारियों ने मुझसे विदेशी फ़ंडिंग, आतंकवादी गतिविधियों में संलिप्तता के शक को लेकर सवाल किए, मुझसे कई-कई घंटे पूछताछ की जाती थी. लेकिन, बाद में मुझे क्लीन चिट दे दी गई और घर भेज दिया गया."

प्रवीन कुमार वापस घर लौट कर आए तो उसके बाद उनकी परेशानियां शुरू हो गईं. बक़ौल प्रवीन जब एटीएस 21 जून को पूछताछ के लिए आई तो उसके बाद से गांव में कई लोग उनके बारे में अफ़वाहें उड़ाने लगे थे.

प्रवीन कहते हैं, "मैं एक राष्ट्रवादी सोच का व्यक्ति हूं. कवि हूं, शिक्षक हूं, लेखक भी हूं. लेकिन 12 जुलाई की रात को जब मेरे घर की दीवारों पर आतंकवादी लिखा गया, पाकिस्तान चले जाने की बातें लिखी पर्ची घर में फेंकी गई तो मैं ख़ूब रोया. मन में आत्महत्या का खयाल आया. लेकिन मैंने सोचा कि मैं इंसाफ़ लूंगा. सामाजिक तौर पर प्रताड़ना से इंसाफ़ - यही सोचकर मैंने 27 जुलाई से सामाजिक न्याय यात्रा की शुरुआत की. ज़िलाधिकारी कार्यालय में अपना ज्ञापन उस दिन दोपहर 12:30 बजे सौंपने के बाद मैं लगभग 200 किलोमीटर दूर दिल्ली सुप्रीम कोर्ट के लिए पैदल ही चल दिया. रविवार को मैं दिल्ली पहुँच गया."

'मैं उन दिनों डिप्रेशन में था'

प्रवीन कुमार 19 नवंबर 2019 को घर से बिना बताए निकल गए थे. उन्होंने अपना मोबाइल नंबर भी स्विच ऑफ़ कर लिया था. इस बारे में वह कहते हैं, "मैं जब घर से निकला तो काफ़ी परेशान था. मुझे सुक़ून चाहिए था. इसके बाद मैं इस्लामिक दावा सेंटर पहुँच गया. मैं कुछ दिन काशी में भी रहा. मैं अपनी इच्छा से अब्दुल समद भी बना. वहां कुछ लोगों ने मेरा इलाज कराया तो मैं ठीक हो गया. जनवरी 2020 को मैं घर वापस आया तो घरवाले मुझे देख कर ख़ुश हो गए. उन्होंने मुझसे मेरे ग़ायब होने के बारे में पूछा तो मैंने सब कुछ सच बता दिया."

प्रवीन के अब्दुल समद बनने की बात परिजनों को मालूम हुई तो उन्होंने नाराज़गी जताई. प्रवीन से जब पूछा जाता है कि अब वह प्रवीन कुमार हैं या फिर अब्दुल समद तो प्रवीन कहते हैं, "मैं उन दिनों डिप्रेशन में था. अब मैं जब भी मौक़ा मिलता है, ध्यान या फिर मेडिटेशन में चला जाता हूं. बस अब मैं और कुछ क्या कहूं."

कुछ स्पष्ट जवाब देने के लिए सवाल किया जाता है तो प्रवीन उसे टाल देते हैं.

प्रवीन बातचीत के दौरान बार-बार ये बात दोहरा रहे हैं कि वो डिप्रेशन में आ गए थे. एक सवाल के जवाब में उन्होंने डिप्रेशन में आने की बात के पीछे की वजह बताई. गांव में उनके भाई की राशन की दुकान थी. कुछ ग्रामीणों को उनके भाई पर शक हुआ कि उनकी वजह से कई राशन कार्ड निरस्त हो गए हैं. यहीं से रंजिश शुरू हुई जिसमें बाद में प्रवीन के अलावा उनके भाई और परिवार के कुछ अन्य सदस्यों के ख़िलाफ़ रिपोर्ट दर्ज हो गई थी.

प्रवीन इस बारे में कहते हैं, "ये बात वर्ष 2015 की है. मेरे भाई की राशन की दुकान थी. सरकार की ओर से अपात्रों के राशनकार्ड निरस्त किए जा रहे थे. ग्रामीणों को मेरे भाई और परिवार के लोगों पर ग़लत शक हो गया. उन्होंने भाई पर कम राशन तोलने का झूठा आरोप लगाया. मामले की जाँच करने पहुँचे एक अधिकारी के सामने झगड़ा हो गया था. बाद में मेरे और मेरे परिवार के कुछ लोगों के ख़िलाफ़ रिपोर्ट दर्ज करा दी गई. जबकि जिस दौरान झगड़ा हुआ था, उस समय मैं एक प्रतियोगी परीक्षा की हरिद्वार में तैयारी कर रहा था. मैं इस पूरे मामले में साज़िश का शिकार हुआ."

बाद में जब प्रवीन ने नेट क्वालीफ़ाई किया तो उनके नाम रिपोर्ट दर्ज होने के कारण कुछ लोगों ने उनसे कहा कि जब तक रिपोर्ट दर्ज है उन्हें सरकारी नौकरी नहीं मिल पाएगी. ये बात ख़ुद प्रवीन भी कहते हैं, "मैंने 2020 में नेट की परीक्षा पास की थी. लंबे समय से मेहनत और पढ़ाई के बाद मुझे सफलता मिली थी लेकिन, इतनी मेहनत के बाद भी मैं कामयाब नहीं था क्योंकि मेरे ख़िलाफ़ मुक़दमा चल रहा था."

प्रवीन कहते हैं कि वह गांव के कुछ लोगों को लेकर उनके पास गए जिन्होंने उनके ख़िलाफ़ केस किया था, लेकिन दूसरे पक्ष ने सुलह-सफ़ाई से इनकार कर दिया.

प्रवीन और उनके परिवार के तीन अन्य सदस्यों के ख़िलाफ़ गांव के नरेंद्र ताराचंद ने ही वर्ष 2015 में रिपोर्ट दर्ज कराई थी. ये बात ख़ुद ताराचंद ने बीबीसी से कही.

उन्होंने बताया, "वर्ष 2015 में प्रवीन के परिजनों से राशन के मामले को लेकर मारपीट हुई थी. इस मामले में प्रवीन के ख़िलाफ़ भी रिपोर्ट दर्ज है. मैं इस केस को अभी तक लड़ रहा हूँ."

प्रवीन बताते हैं, "उस दिन से ही मैं डिप्रेशन में जाने लगा. मुझे लगने लगा कि मैं चाहे कितनी भी मेहनत कर लूं, कामयाब नहीं हो पाऊंगा. तभी से मुझे सुकून की तलाश रहने लगी थी."

योगी और मोदी पर लिख चुके हैं किताबें

प्रवीन के अनुसार उन्होंने वर्ष 2003 में इस्लामिया इंटर कॉलेज देवबंद से दसवीं कक्षा पास की. इसके बाद जनता इंटर कॉलेज नागल, सहारनपुर से 12वीं कक्षा और कलीराम डिग्री कॉलेज से स्नातक किया.

एमए करने के बाद उन्होंने वर्ष 2020 में नेट की परीक्षा भी पास की. अब पीएचडी की तैयारी में लगे हैं.

प्रवीन कहते हैं, "मेरे अंदर राष्ट्रीयता कूट-कूट कर भरी है. मैं जिस समय नेट की तैयारी कर रहा था उस समय चौधरी कलीराम कॉलेज में शिक्षण कार्य भी कर रहा था. मैं लेखक हूं, मैंने देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए वर्ष 2016 में 'नमो गाथा मोदी' और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर अलग-अलग पुस्तकों का प्रकाशन भी किया है. दो और पुस्तकें लिखी हैं, लेकिन अभी उनका नाम नहीं बता सकता हूं."

वर्तमान में प्रवीन एक शुगर मिल में केन डेवलपमेंट सुपरवाइज़र का काम कर रहे हैं.

प्रवीन के बारे में क्या कहते हैं गांव के लोग

प्रवीन को लेकर गांव में उनके दोस्त और साथी शिक्षक काफ़ी अच्छे विचार रखते हैं.

एक साथी हिमांशु ने बीबीसी से कहा, "प्रवीन और मैं साथ-साथ पढ़े हैं. वह काफ़ी अच्छे स्वभाव का लड़का रहा है. हम दोनों ही नेट की परीक्षा में साथ-साथ बैठे थे, लेकिन प्रवीन पास हो गया और मैं रह गया. प्रवीन कुछ समय घर से ग़ायब हो गया था, लेकिन वह वास्तव में बीमार था. एटीएस जानकारी के लिए पहुँची तो हमें हैरत हुई. लेकिन प्रवीन मुझसे हमेशा अपनी पढ़ाई-लिखाई के बारे में ही बातें करता था."

एक अन्य दोस्त जॉनी भी मानते हैं कि प्रवीन सामाजिक प्रताड़ना से काफ़ी परेशान हैं.

वह कहते हैं, "मैं पिछले कुछ समय से प्रवीन से कम ही मिल पाया हूं. हम दोनों बीए में साथ पढ़े हैं. प्रवीन ने हमेशा गांव का नाम रोशन करने का काम किया है. मैं उनके पड़ोस में ही रहता हूं."

प्रवीन की न्याय यात्रा को जॉनी सही करार देते हैं.

साथी शिक्षक पूरन बताते हैं, ''हमने प्रवीन की न्याय यात्रा के बारे में ख़बरों में ही देखा है. क़रीब दो साल पहले ही प्रवीन हमारे साथ पढ़ा चुके हैं. उन्होंने नेट क्वालीफ़ाई किया था. वह काफ़ी होनहार रहे हैं. वह अपने आप में एक अलग शख़्सियत हैं. उनके निजी मामलों पर मेरी उनसे कभी बात नहीं हुई. उनका एक ही सपना था कि उन्हें नेट क्वालीफ़ाई करना है.''

'प्रवीन की न्याय यात्रा के बारे में तो हमें मीडिया से ही मालूम पड़ा'

प्रवीन के गांव के प्रधान इस बात का दावा करते हैं कि गांव में प्रवीन से किसी को कोई परेशानी नहीं है. वह दावा करते हैं कि प्रवीन के घर की दीवार पर किसने आतंकवादी लिखा, किसने पर्ची डाली, इस बारे में उन्हें कुछ नहीं मालूम है. यह भी कहा कि गांव में किसी से ऐसी कोई बात नहीं है.

वह कहते हैं, 'गांव में मैंने कुछ ऐसा नहीं सुना कि किसी ने दीवार पर कुछ लिखा है. गांव में किसी की प्रवीन से कोई दुश्मनी नहीं है. वैसे, अगर उसके साथ कुछ हुआ था तो उसे सबसे पहले गांव में ज़िम्मेदार लोगों के सामने बात रखनी चाहिए थी."

प्रवीन कुमार का परिवार मीडिया के सवालों से परेशान है और कुछ बोलना नहीं चाहता.

प्रवीन के मुताबिक़ एटीएस की पूछताछ के बाद उसके गांव में आए दिन मीडिया के पहुँचने से परिवार के लोग काफ़ी परेशान हो गए हैं. उनके पिता किसान हैं जबकि परिवार में पत्नी के अलावा दो बच्चे हैं. एक भाई और एक बहन हैं, जिनका विवाह हो चुका है.

पिता ग्राम प्रधान भी रह चुके हैं. बताते हैं कि पिता इस बारे में कुछ भी नहीं बोलना चाहते हैं. दीवार पर जब आतंकवादी लिखा गया था तो उन्होंने ही उस लिखे को साफ़ कराया था.

अब क्या करेंगे प्रवीन

प्रवीन की यह न्याय यात्रा रविवार एक अगस्त को दिल्ली सुप्रीम कोर्ट पहुँचकर ख़त्म हो चुकी है.

प्रवीन कहते हैं, "मैंने सामाजिक प्रताड़ना से तंग आकर इंसाफ़ के लिए इस यात्रा की शुरुआत की थी. मैं जल्द ही वकील के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर करूंगा ताकि कोई और ऐसी प्रताड़ना से परेशान ना हो. उसके साथ नाइंसाफ़ी या फिर उत्पीड़न ना हो."

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मेरे घर की दीवार पर लिखा गया तुम आतंकवादी हो: प्रवीन कुमार
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