यूपी चुनाव- राहुल गांधी के राजनैतिक जीवन का निर्णायक पड़ाव
लखनऊ। लोकसभा चुनाव में बुरी हार के बाद तमाम राज्यों में सत्ता से दूर कांग्रेस के लिए आगामी उत्तर प्रदेश का चुनव काफी अहम है। यूपी में पार्टी जीत के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक देना चाहती है, जिसकी कमान खुद कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने अपने हाथों में ली है।
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यूपी में कांग्रेस अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है, ऐसे में राहुल गांधी कि लिए यूपी चुनाव काफी अहम होने वाले हैं। 2500 किलोमीटर का मेगा रोड शो इस बात को साफ करता है कि यूपी राहुल के लिए क्या महत्ता रखता है।
किसानों का कर्ज माफी पार्टी के लिए बड़ी उम्मीद
राहुल ने अपने मेगा रोड शो किसान यात्रा का मुख्य मुद्दा किसानों के कर्ज के मुद्दे को बनाया है। वह गांवों में तमाम ग्रामीणों से मिलकर उनके कर् के बात कर रहे हैं और एक बार किसानों को कांग्रेस की ओर लाने की कोशिश कर रहे हैं।
यूपी में जातीय समीकरण के बीच कांग्रेस के अस्तित्व को बरकरार रखने के लिए कांग्रेस किसानों के कर्ज के मुद्दे को काफी अहम मानकर चल रही है। पार्टी को उम्मीद है कि कर्ज के मुद्दे पर प्रदेशभर के किसान व ग्रामीण जातीय समीकरण से उपर उठकर पार्टी को वोट करेंगे।
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किसानों का कर्ज माफी का मुद्दा
यूपी में यादव व ओबीसी वोटबैंक पर सपा, दलि वोटों पर बसपा व सवर्ण वोटों पर भाजपा की पकड़ है। ऐसे में किसानों का कर्ज माफी का मुद्दा पार्टी के लिए निर्णायक साबित हो सकता है। पार्टी को उम्मीद है कि कर्ज माफी के मुद्दे को लेकर तमाम किसान जातीय समीकरण को भुला कांग्रेस की ओर आ सकते हैं।
हिंदुत्व वोटरों पर पार्टी ने बदली रणनीति
अपने रोड शो के दौरान राहुल गांधी हिंदुत्व के मुद्दे को भी बेहतर समझ रहे हैं और वह इस दौरान तमाम मंदरों के भी दर्शन कर रहे हैं। इसी कड़ी में पहले राहुल गोरखपुर में मंदिर गए उसके बाद उन्होंने हनुमान गढ़ी मंदिर में भी दर्शन के लिए गए।
गांधी नेहरू परिवार में राहुल गांधी ऐसे पहले नेता बने जिन्होंने अयोध्या का दौरा किया। राहुल के ये तमाम कदम हिंदुत्व की ओर पार्टी के झुकाव की ओर इशारा करते हैं। माना जा रहा है कि हिंदुत्व वोटर को रिझाने के लिए पार्टी ने हिंदुत्व पर पार्टी की अलग छवि िखाने का फैसला लिया है।
परंपरागत राजनीति को पार्टी की ना
कांग्रेस को शुरुआत से ही पारंपरिक पार्टी के तौर पर देखा जाता रहा है, लेकिन इस बार पार्टी ने परंपरा से हट प्रशांत किशोर को रणनीतिकार के तौर पर पार्टी में शामिल किया है और वह पार्टी की चुनावी रणनीति को तय कर रहे हैं।
हालांकि पीके को रणनीतिकार बनाए जाने पर कांग्रेस के अंदरखाने में नेताओं की नाराजगी का सामना करना पड़ रहा है लेकिन इन सब को दरकिनार करते हुए यूपी में पार्टी चुनाव से काफी पहले अपना अभियान शुरु कर दिया है।
नई रणनीति के तहत पार्टी ब्राह्मण सम्मेलन में भी हिस्सा लेगी और इस सम्मेलन को पार्टी यूपी में अहम रणनीति का हिस्सा रखना चाहती है। ऐसे में तमाम पुरानी परंपराओं को तोड़ते हुए कांग्रेस यूपी में राहुल को आगे लाकर पार्टी को नयी दिशा देने में जुट गई है।
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हार की जिम्मेदारी से बचना मुश्िल
इस प्रक्रिया में राहुल गांधी ने लोगों से अपनी दूरी को काफी कम कर दिया है। ऐसे में जिस तरह से राहुल गांधी यूपी में खुद चुनावी अभियान को लीड कर रहे हैं उसे देखते हुए अगर प्रदेश में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ता है तो वो वह खुद को हार की जिम्मेदारी लेने से दूर नहीं कर सकते हैं।
कांग्रेस को नया कलेवर देने के लिए राहुल गांधी ने 2012 में तमाम बुजुर्ग नेताओं को दरकिनार करते हुए खुद कमान संभाली थी लेकिन पार्टी को यूपी में हार का सामना करना पड़ा था। यह हार राहुल के नेतृत्व की पहली हार थी और उनकी नेतृत्व क्षमता पर सवाल उठने लगे थे।
2012 के बाद राहुल के नेतृत्व में पार्टी को 2014 में हार का सामना करना पड़ा और इसके बाद कई राज्यों में पार्टी को हार का मुंह देखना पड़ा था। इन तमाम हार के बाद पार्टी के भीतर प्रियंका लाओ कांग्रेस बचाओं के नारे भी लगने लगे थे।
इन तमाम हालात को देखते हुए राहुल के करीबी भी अब इस बात को कहने से कतराने लगे है कि राहुल सामने से आकर लीड करते हैं और वह निर्भीक नेता है। ऐसे में यूपी में राहुल के लिए यह चुनाव निर्णायक साबित होने वाला है।
यूपी साबित होगा निर्णायक
2017 में यूपी में कांग्रेस की मजबूत स्थिति ना सिर्फ कांग्रेस बल्कि राहुल के लिए भी निर्णायक साबित हो सकती है। वहीं यूपी में बेहतर प्रदर्शन पार्टी के लिए पंजाब ें फयदेमंद साबित सकता है। इसके साथ ही उत्तराखंड में जीत पार्टी के लिए राष्ट्रीय स्तर पर ऑक्सीजन का काम कर सकती है। लेकिन अगर इन यूपी में पार्टी की हार कांग्रेस के अस्तित्व को खतरे में डाल सकती है।