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अखिलेश यादव और जयंत चौधरी का 'यूपी बदलो' का नारा मोदी-योगी के ख़िलाफ़ कितना कामयाब होगा

अखिलेश-जयंत ने मेरठ की रैली में बड़ी भीड़ जुटाकर ताक़त दिखाई और कहा कि उत्तर प्रदेश में बदलाव आना तय है. वहीं गोरखपुर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने समाजवादी पार्टी पर तीखा हमला किया.

By BBC News हिन्दी
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अखिलेश यादव और चौधरी जयंत सिंह
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अखिलेश यादव और चौधरी जयंत सिंह

समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव और राष्ट्रीय लोकदल अध्यक्ष चौधरी जयंत सिंह मंगलवार को एक साथ एक मंच पर आए.

मेरठ के दबथुवा में दोनों पार्टियों की संयुक्त सभा को नाम दिया गया 'परिवर्तन रैली'. अखिलेश यादव और जयंत सिंह एक ही हेलिकॉप्टर से पहुँचे.

दोनों पार्टियों ने इस रैली के जरिए एकजुटता दिखाई. बड़ी भीड़ जुटाकर ताक़त दिखाई और विरोधियों को चुनौती भी दी. दूसरी तरफ, गोरखपुर की रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने समाजवादी पार्टी का नाम लिए बिना उस पर तीखा हमला बोला. उनके आतंकवादियों पर मेहरबान होने का आरोप लगाते हुए कहा कि 'लाल टोपी वाले यूपी के लिए रेड अलर्ट हैं यानि ख़तरे की घंटी हैं.'

https://twitter.com/ANINewsUP/status/1468131309336031232

शक्ति प्रदर्शन

चौधरी जयंत सिंह ने मंगलवार सुबह चार शब्दों का एक ट्वीट किया और समर्थकों को नारा दिया "मेरठ_चलो. UP बदलो".

https://twitter.com/jayantrld/status/1468073624087056385?s=20

समाजवादी पार्टी भी दबथुआ परिवर्तन रैली के लिए समर्थकों में जोश भरती रही और रैली में दिखी भीड़ को पार्टी समर्थकों के इसी जोश का नतीजा बताया.

https://twitter.com/samajwadiparty/status/1468033690898878466?s=20

इसके पहले, अखिलेश यादव और जयंत चौधरी ने नवंबर में मुलाक़ात की. उस मुलाक़ात के बाद जयंत चौधरी ने "बढ़ते क़दम" कहते हुए अपनी तस्वीर शेयर की थी, जिसके जवाब में अखिलेश यादव ने लिखा था, "जयंत चौधरी के साथ बदलाव की ओर."

ज़ाहिर है, दोनों नेता रिश्तों में गर्माहट और राजनीतिक एकता दिखाने का लगातार प्रयास कर रहे हैं और गठबंधन को ज़मीन पर उतारने की कोशिश में लगे हुए हैं.

कितने सीटों पर है आरएलडी और समाजवादी पार्टी का समझौता?

हाल में मीडिया में समाजवादी पार्टी और आरएलडी के गठबंधन को लेकर अफ़वाहों का बाज़ार गर्म था और सीटों के बंटवारे को लेकर नोकझोंक की ख़बरें आ रही थीं.

इस 'परिवर्तन संदेश रैली' का एक मक़सद उन अफ़वाहों और अटकलों पर रोक लगाना भी रहा. तीन कृषि क़ानूनों के कारण पश्चिम उत्तर प्रदेश के जाट बहुल इलाक़े में राजनीतिक ज़मीन तैयार होने के बाद आरएलडी और समाजवादी पार्टी दोनों ही अपने पक्ष में बने राजनीतिक माहौल को क़ायम रखना चाहती हैं.

लखनऊ यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर डॉक्टर सुधीर पंवार 2017 में समाजवादी पार्टी के टिकट पर पश्चिम उत्तर प्रदेश की थाना भवन सीट से विधान सभा चुनाव लड़ चुके हैं.

डॉक्टर पंवार कहते हैं, "सीटों और उम्मीदवारों का एलान आने वाले समय में होगा. क़रीब-क़रीब सीटें तय हो चुकी हैं. लेकिन उनका एलान समय देख कर और स्ट्रैटेजी के साथ होगा. अगर अभी से एलान कर देंगे तो फिर भाजपा उस हिसाब से अपनी रणनीति तैयार करने लगेगी."

सीटों के समझौते के बारे में आरएलडी के प्रदेश प्रवक्ता इस्लाम चौधरी का कहना है, "सीटों पर सहमति बन चुकी है और वहां कोई मतभेद नहीं है."

पश्चिम उत्तर प्रदेश की राजनीति पर लंबे समय से नज़र बनाए हुए नवभारत टाइम्स के वरिष्ठ पत्रकार शादाब रिज़वी का कहना है, "गठबंधन फ़ाइनल है. पश्चिम की 36 सीटों पर सहमति बनी है और इसमें एक दो सीटें कम ज़्यादा हो सकती हैं. सीटों में शायद नाम नहीं खुलेंगे, लेकिन सीटों की संख्या खुल जाये. इनमे से कुछ सीटों पर यह हो सकता है कि सिंबल मेरा, कैंडिडेट तुम्हारा की बात तय हो गई हो. दोनों पार्टी दो-तीन सीटों पर ऐसा भी कर सकती है."

रैली
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रैली

दंगों की परछाई अब भी बरक़रार?

सामाजिक एकता को फिर से क़ायम करने के लिए आरएलडी ने 60 से अधिक ज़िलों में "भाईचारी एकता ज़िंदाबाद" सम्मलेन किया है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में इन सम्मेलनों में भारी तादात में लोग शामिल भी हुए.

https://twitter.com/rldparty/status/1420059345035751426?s=21

वरिष्ठ पत्रकार शादाब रिज़वी कहते हैं, "मुज़फ़्फ़रनगर दंगों के बाद जो यहाँ का ताना बाना टूटा था, उसे जोड़ने की कोशिश अजित सिंह ने ही कर दी थी. उन्होंने जगह-जगह भाईचारा सम्मलेन भी किया था. 2019 के लोकसभा चुनाव में चौधरी जयंत सिंह और अजीत सिंह ने चुनाव अच्छा लड़ा लेकिन वो दोनों हार गए."

वो आगे कहते हैं, "किसान आंदोलन इनके लिए सियासी संजीवनी बना. पश्चिम के किसान आंदोलन में अधिकतम भागीदारी जाटों की रहती है. साथ ही अजित सिंह की कोरोना से मौत की सहानुभूति भी है, और आजकल जाट दिल्ली में चौधरियों की चौधराहट वापस मिलने की बात भी कर रहे हैं. अजित सिंह और जयंत सिंह के हारने के बाद जाट अपने आप को दिल्ली की सियासत में कमज़ोर महसूस करते थे. इसीलिए यहाँ पर जाटों के लामबंद होने से आरएलडी की स्थिति पहले से मज़बूत हो रही है."

समाजवादी पार्टी से जुड़े हुए डॉक्टर सुधीर पंवार का कहना है कि जाटों और मुसलमानों में नई एकता की वजह सामाजिक नहीं बल्कि आर्थिक है.

उनके मुताबिक़, "हम लोग उसे हिन्दू-मुस्लिम एकता कह कर उसका सिम्प्लिफ़िकेशन कर रहे हैं. आज सरकार की किसानों, मज़दूरों और ग़रीबों के प्रति नीतियों की वजह से एक नई सामाजिक एकता देखने को मिल रही है. जाट मुस्लिम एकता जो आर्थिक कारणों से बनी एकता है, उसे हम भाजपा के पक्ष में मज़बूत कर रहे हैं. रूरल इकोनॉमी (ग्रामीण अर्थव्यवस्था) के संकट ने लोगों को साथ किया. हक़ीक़त यह है और दिखाया यह जा रहा है कि मीटिंग में जाट-मुसलमान साथ बैठने लगे. उनमें धर्मगुरुओं ने समझौता थोड़े ही न कराया है. दोनों के साथ रहने की एक आर्थिक वजह है."

योगी आदित्यनाथ
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योगी आदित्यनाथ

क्या हैं समीकरण

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट और मुसलमानों से जुड़ी राजनीति मेरठ, बागपत, बुलंदशहर, ग़ाज़ियाबाद, गौतम बुद्ध नगर, हापुड़, शामली, मुज़फ़्फ़रनगर, सहारनपुर, मुरादाबाद, बिजनौर, अमरोहा, संभल, आगरा, फ़िरोज़ाबाद, मथुरा जैसे ज़िलों में देखने को मिलती है.

अक्टूबर में इकोनॉमिक टाइम्स की छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक़ पश्चिम उत्तर प्रदेश के 14 ज़िलों में लगभग 71 विधानसभा सीटें हैं, जिसमें से 2017 में भाजपा ने 51 सीटें जीती थीं. पश्चिम में इतनी भारी संख्या में सीटों ने भाजपा को भारी बहुमत दिलाने में अहम भूमिका निभाई थी. इस रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश में जाट बिरादरी के कुल 13 विधायक हैं जिससे जाटों का भाजपा को समर्थन साफ़ ज़ाहिर है.

पश्चिम उत्तर प्रदेश में सपा और आरएलडी सात प्रतिशत जाट वोट और 29 प्रतिशत मुसलमान वोट के एक साथ होने की उम्मीद लगा रही है. लेकिन अब कृषि क़ानूनों की वापसी के बाद सरकार से नाराज़ जाट वोटरों को क्या भाजपा 2022 में फिर से अपने साथ जोड़ने में कामयाब होगी?

इस बारे में पत्रकार शादाब रिज़वी का कहना है, "लम्बे समय तक किसान सरकार के साथ अड़े रहे, और अब उनका झुकाव कहीं न कहीं आरएलडी की तरफ़ देखा जा रहा था. तो यह माना जा रहा है कि भाजपा का हाल 2014, 2017 और 2019 के चुनावों जैसा नहीं रहेगा. कुछ वापसी की उम्मीद ज़रूर जताई जा रही है.

कुछ लोग यह भी कहते हैं कि क़ानून वापस हो गए हैं तो अब हमें भाजपा का साथ देने में कोई ख़ास परेशानी नहीं है और अगर आने वाले समय में एमएसपी, मुक़दमे वापसी और मुआवज़े की माँग भी सरकार मान लेती है तो हो सकता है कि भाजपा में जाट वोटर की कुछ वापसी की रणनीति एक हद तक कामयाब हो सकती है.

लेकिन अब यहाँ मुसलमान और जाट के बजाए, पूरे किसान वर्ग की एक साथ बात होती है. चरण सिंह के समय यह सब किसान थे. अजीत सिंह के समय जाट-मुसलमान में बंट गए और अब फिर से सबकी किसानों के तौर पर ही बात हो रही है."

सपा-आरएलडी को कमज़ोर करने के लिए हो रहा है ध्रुवीकरण ?

भारतीय जनता पार्टी मथुरा में कृष्ण मंदिर बनाने की बात कर रही है. छह दिसंबर को हिंदूवादी संगठनों ने मथुरा के शाही ईदगाह में जलाभिषेक करने का एलान किया था जिसकी वजह से मथुरा को छावनी में बदल दिया गया और कड़े सुरक्षा इंतज़ाम किए गए.

तो क्या भाजपा और हिंदूवादी संगठन फिर से मज़हबी मुद्दों को उठा कर पश्चिम में माहौल बनाने की कोशिश में लगे हुए हैं?

वरिष्ठ पत्रकार शादाब रिज़वी कहते हैं कि सियासत में ऐसी संभावनाओं से इंकार नहीं किया जा सकता है.

उनके मुताबिक़, "पूर्व के चुनावों में मुज़फ़्फ़रनगर (2012) के दंगों और कैराना के पलायन के मुद्दों का भाजपा को राजनीतिक फ़ायदा नज़र आया. उसके बाद माहौल बना, ध्रुवीकरण हुआ, और पूरी तरह समाज में दो हिस्से हो गए. चुनाव हिन्दू मुस्लिम हुआ. तो उसके बाद उन्होंने 2014 का चुनाव जीता, 2017 का चुनाव जीता, 2019 का चुनाव जीता. आप इसे हिंदुत्व कह सकते हैं, या धार्मिक भावनाएं कह सकते हैं. उन पर भाजपा का एजेंडा ख़ूब चला.

लेकिन वो सब चीज़ें अब पुरानी हो गई हैं. अयोध्या में मामला समाप्ति पर है, लेकिन पश्चिम में किसान आंदोलन के बाद सपा-आरएलडी का एक साथ आना एक बड़ा एका माना जा रहा है, तो यह माना जा रहा है कि मथुरा वाला मामला उठाने से पुरानी चीज़ें फिर से ताज़ा हो जाएं और उसका फ़ायदा मिल जाए."

डॉक्टर सुधीर पंवार का मानना है कि भाजपा के पास एक ही नैरेटिव है. "सरकार के ख़िलाफ़ आर्थिक फ़ैक्टर हैं, लेकिन उन्हें यह मथुरा से, काशी से ढकना चाहते हैं. मथुरा में कृष्ण मंदिर की बात हो रही है. प्रदेश के इतिहास में पहली कैबिनेट मीटिंग काशी विश्वनाथ मंदिर में होगी. तो इनके पास एक ही नैरेटिव है."

नरेंद्र मोदी का वार

जब अखिलेश यादव और चौधरी जयंत सिंह ने मेरठ में रैली की, ठीक उसी वक़्त प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मुख्यमंत्री ने योगी आदित्यनाथ के गृह जनपद गोरखपुर में एम्स अस्पताल का उद्धघाटन और करोड़ों की कई परियोजनाओं का लोकार्पण किया.

रैली में नरेंद्र मोदी ने कहा, "लाल टोपी वालों को सत्ता चाहिए, घोटालों के लिए, अपनी तिजोरी भरने के लिए, अवैध कब्जों के लिए, माफ़ियाओं को खुली छूट देने के लिए. लाल टोपी वालों को सरकार बनानी है, आतंकवादियों पर मेहरबानी दिखाने के लिए, आतंकियों को जेल से छुड़ाने के लिए. और इसलिए याद रखिए, लाल टोपी वाले यूपी के लिए रेड अलर्ट हैं यानि ख़तरे की घंटी."

भारतीय जनता पार्टी के नेता समाजवादी पार्टी और आरएलडी के गठबंधन पर सवाल उठा रहे हैं.

भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता नवीन श्रीवास्तव का कहना है, "2019 के चुनावों में तीन दलों का गठबंधन था जिसमें सपा के साथ आरएलडी और बसपा भी शामिल थी. वो इससे भी ताक़तवर गठबंधन था. लेकिन उसका क्या हश्र हुआ वो सबने देखा है. उसका एक मात्र कारण है कि उत्तर प्रदेश की जनता तुष्टिकरण की राजनीति करने वाले दल जो सिर्फ़ अपने और अपने परिवार के कल्याण के लिए काम करते हैं उनको नकार चुकी है."

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English summary
up election 2022 akhilesh yadav and jayant chaudhary alliance
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