उपचुनाव: ये हैं यूपी की वो 5 सीटें, जहां बिगड़ सकता है भाजपा का खेल
नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश में 11 विधानसभा सीटों पर होने जा रहे उपचुनाव को लेकर सरगर्मियां बढ़ी हुई हैं। उपचुनाव को वैसे सत्ताधारी दल के दबदबे के रूप में देखा जाता है लेकिन इस मामले में बीजेपी का रिकॉर्ड अच्छा नहीं रहा है। उपचुनावों में पार्टी को कई मौकों पर करारी हार का सामना करना पड़ा है। इस बार के उपचुनाव में भी भाजपा को विपक्षी दलों से तगड़ी चुनौती मिलती दिखाई दे रही है। यूपी की 11 में से 5 ऐसी सीटें हैं जहां विपक्षी दल सत्ताधारी दल का खेल बिगाड़ सकते हैं।
रामपुर की सीट पर आजम खान के रूप में बड़ी चुनौती
रामपुर की सीट पर पूर्व कैबिनेट मंत्री और सपा सांसद आजम खान का दबदबा रहा है। 1996 को छोड़कर इस किले में कभी दोबारा सेंध नहीं लगाई जा सकी है। 1996 में कांग्रेस उम्मीदवार अफरोज अली खान ने आजम खान को हराया था। इसे छोड़कर आजम खान 1980 से हर बार चुनाव जीतते रहे हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में रामपुर संसदीय सीट से जीतकर सांसद बनने के बाद उन्होंने ये सीट छोड़ दी थी। बीजेपी की स्थिति यहां पर कुछ खास अच्छी रही नहीं है। पार्टी को तीसरे और चौथे स्थान से ही संतोष करना पड़ा है। लेकिन 2017 में पार्टी ने इस सीट पर दूसरा स्थान हासिल किया। यूपी की रामपुर सीट से बीजेपी ने भारत भूषण गुप्ता को उपचुनाव में उतारा है जिनके सामने आजम खान की पत्नी तंजीन फातिमा हैं।
घोसी में भी बीजेपी को मिल सकती है कड़ी चुनौती
भाजपा के लिए दूसरी चुनौती घोसी विधानसभा सीट है, जहां पार्टी को 2017 के विधानसभा चुनावों में बहुत ही कम अंतर से जीत मिली थी। तत्कालीन भाजपा उम्मीदवार फागु चौहान ने पीएम नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता के बावजूद केवल 7,000 वोटों से जीत हासिल की थी। दूसरे स्थान पर बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवार थे, जिन्हें 34 फीसदी वोट मिला था। फागु चौहान को बिहार का राज्यपाल नियुक्त किए जाने के बाद यह सीट खाली हुई थी। इस बार यहां से विजय राजभर को भाजपा ने उम्मीदवार बनाया है। पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ रहे राजभर को विपक्षी दलों से कड़ी टक्कर मिल सकती है।
जैदपुर सीट से पीएल पुनिया के बेटे चुनाव मैदान में
बाराबंकी जिले की जैदपुर सीट पर भी बीजेपी को काफी मशक्कत करनी पड़ सकती है। यहां, बाराबंकी से सांसद रहे पीएल पुनिया के बेटे तनुज चुनाव मैदान में हैं। पुनिया परिवार का बाराबंकी में खासा प्रभाव माना जाता है। हालांकि, बीजेपी के हाथों तनुज पुनिया दो बार बाराबंकी से हार चुके हैं, लेकिन अबकी भी इस सीट पर वे बीजेपी को कड़ी टक्कर देते दिखाई दे हैं। 2017 के विधानसभा चुनाव में तनुज पुनिया 30 हजार वोटों से हारे थे। यहां 10 फीसदी वोटों के अंतर को लेकर बीजेपी भी आश्वस्त रहना नहीं चाहेगी। सियासी जानकारों का मानना है कि जैदपुर से बीजेपी के अंबरीश रावत को कड़ी चुनौती मिल सकती है।
गंगोह सीट को हल्के में नहीं ले सकती है बीजेपी
पश्चिमी यूपी में भले ही बीजेपी ने विधानसभा चुनावों के दौरान जबरदस्त प्रदर्शन किया हो, लेकिन सहारनपुर की गंगोह सीट पर होने जा रहे उपचुनाव को पार्टी हल्के में नहीं ले सकती है। यहां मुकाबला तकरीबन चतुष्कोणीय रहा है। बीजेपी, सपा, बसपा के अलावा कांग्रेस भी इस सीट पर दमखम से चुनाव लड़ती है। आंकड़ों की बात करें तो साल 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 39 फीसदी वोट मिले थे, जबकि कांग्रेस ने 24 फीसदी वोट हासिल किए थे। वहीं, सपा और बसपा को 18-18 फीसदी वोट मिले थे। बीजेपी उम्मीदवार प्रदीप कुमार 14 फीसदी से अधिक वोटों के अंतर से चुनाव जीते थे। वोटों का स्विंग होना हमेशा इस सीट पर चर्चा का विषय रहता है, ऐसे में बीजेपी के कीरत सिंह के लिए राह इतनी आसान नहीं दिखाई दे रही है।
जलालपुर सीट पर है बीजेपी की नजरें लेकिन..
अंबेडकरनगर की जलालपुर विधानसभा सीट, जिसे बसपा का गढ़ माना जाता है और इस सीट पर दलित, मुस्लिम और ब्राह्मण समुदाय की अच्छी खासी संख्या है। अम्बेडकरनगर संसदीय सीट पर बसपा के रितेश पांडे ने जीत दर्ज की थी और इस तरह जलालपुर की विधानसभा सीट रिक्त हुई थी। बीजेपी को यहां 1996 में पहली बार जीत मिली थी, लेकिन इसके बाद से बीजेपी इस सीट पर जीत हासिल नहीं कर सकी है। पार्टी को यहां जीत तो दूर, तीसरे और चौथे स्थान से संतोष करना पड़ा है। हालांकि, 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के राजेश सिंह दूसरे स्थान पर रहे थे। इस चुनाव में दूसरे स्थान पर रहने के बाद बीजेपी यहां से जीत दर्ज करने की पूरी कोशिश कर रही है। लेकिन पार्टी के लिए जलालपुर सीट से जीत दर्ज करना इतना आसान नहीं रहने वाला है। हालांकि, पार्टी की उम्मीदें विपक्षी दलों के बिखराव पर भी टिकीं हैं।