क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

यूपी लव जिहाद-विरोधी कानून: क्या कहते हैं दलित-अंबेडकरवादी और बौद्ध संगठन

Google Oneindia News

नई दिल्ली- उत्तर प्रदेश का धर्मांतरण विरोधी अध्यादेश गलत जानकारी देकर दो धर्मों के युवक-युवतियों के बीच शादी और बड़ी संख्या में धर्मांतरण की कोशिशों पर लगाम लगाता है। इस कानून के तहत दो धर्मों के व्यस्कों के बीच शादी की मनाही नहीं है, लेकिन इसकी एक प्रक्रिया तय की गई है, जिसके तहत दोनों पक्षों को अपने फैसले की जानकारी शादी से दो महीने पहले जिलाधिकारी को देनी होगी। क्योंकि, इस कानून का आधार कथित रूप से हुई कुछ लव-जिहाद की घटनाओं और बड़े पैमाने पर राजनीतिक मकसद से धर्मपरिवर्तन कराने से रोकना है, इसलिए इसकी जोरदार आलोचना भी हो रही है। पूरे देश में कई संगठन इसके विरोध में हैं और अब तो इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में भी अर्जी पड़ गई है। लेकिन, इस कानून का उत्तर प्रदेश में कुछ दलित संगठनों, अंबेडकरवादियों और बौद्ध संगठनों पर भी असर पड़ने की संभावना है, इसलिए वो भी इसपर आपत्ति करने लगे हैं।

अंबेडकरवादी और बौद्ध संगठनों का क्या है कहना?

अंबेडकरवादी और बौद्ध संगठनों का क्या है कहना?

उत्तर प्रदेश धर्मांतरण विरोधी कानून बड़े पैमाने पर होने वाले धर्मांतरण पर भी रोक लगाता है। इसका असर ऐसी कोशिशों में लगे रहे कुछ दलित संगठनों, अंबेडकरवादियों और बौद्धों की ओर से चलाए जाने वाले ऐसे कार्यक्रमों पर भी पड़ने की संभावना है। हालांकि, अधिकारियों के मुताबिक इस कानून के तहत सिर्फ उन्हें सजा मिलेगी जो, 'राजनीतिक मकसद से या प्रलोभन देकर बड़े पैमाने पर धर्मांतरण' में शामिल पाए जाएंगे। लेकिन, भारतीय बौद्ध समाज के अध्यक्ष राजरत्ना अंबेडकर का आरोप है कि 'यह दलितों को प्रभावित करने की एक कोशिश है, खासकर वाल्मीकि समाज को ताकि वे हाथरस जैसी घटनाओं के बावजूद किसी प्रतिरोध कार्यक्रम का हिस्सा ना बनें। वे हमें हिंदुओं से अलग विकल्प नहीं देना चाहते। '

Recommended Video

Karnataka High Court ने एक Inter Religion Marriage पर सुनाया फैसला, जानिए क्या कहा? | वनइंडिया हिंदी
यूपी में बड़े पैमाने पर हुए हैं सामूहिक धर्मांतरण

यूपी में बड़े पैमाने पर हुए हैं सामूहिक धर्मांतरण

पिछले महीने भारतीय बौद्ध समाज ने हाथरस की घटना के विरोध में गाजियाबाद में वाल्मीकि कमिटी के 300 सदस्यों को सामूहिक धर्मांतरण का एक कार्यक्रम आयोजित किया था। पिछले पांच वर्षों में इस तरह के कई कार्यक्रम सहारनपुर समेत पश्चिमी यूपी के कई जिलों समेत प्रदेश के 18 जिलों में भी जातीय हिंसा के बाद आयोजित करवाए गए हैं, जिसमें भीम आर्मी के लोगों का भी समर्थन रहा है। दरअसल, विरोध के तौर पर दलितों को बौद्ध बनने का ही रास्ता दिखाया जाता है और इसी वजह से भारतीय बौद्ध समाज जातीय हिंसा की घटनाओं के बाद यूपी में पिछले वर्षों में काफी सक्रिय रहा है। राजरत्ना अंबेडकर का कहना है कि 2017 से अकेले यूपी में 2.18 लाख सर्टिफिकेट जारी किए हैं और आगे भी ऐसे कार्यक्रमों को चलाते रहने की योजना है। अंबेडकर यूनिवर्सिटी के मोगालान भारती का कहना है कि यह कानून, 'मुसलमानों को छकाने के लिए' और दलित समाज के विरोध की संभावना या सामूहिक धर्मांतरण को कुचलने की कोशिश है।'

क्या कहता है कानून ?

क्या कहता है कानून ?

उत्तर प्रदेश में अवैध धर्मांतरण रोकने के लिए जो अध्यादेश लागू हुआ है, उसके मुताबिक जिनका धर्मांतरण हो चुका है और जो धर्मांतरण करना चाहते हैं उन दोनों को जिला प्रशासन के पास इसके लिए आवेधन देना जरूरी है। राजस्थान और अरुणाचल प्रदेश की तरह यूपी के कानून में भी यह प्रावधान हैं कि जो लोग अपने मूल धर्म में वापस लौटना चाहें उनपर किसी तरह की रोक नहीं है। उत्तर प्रदेश सरकार के अधिकारियों के मुताबिक यह कानून प्रदेश में हुई कुछ घटनाओं के मद्देनजर बनाया गया है। उत्तर प्रदेश के डीजीपी (कानून एवं व्यवस्था) प्रशांत कुमार कहते हैं कि यह कानून वैसे धर्मांतरणों पर लागू होगा जो गलत पहचान या 'किसी राजनीतिक इरादे से' किया जाता है। कुछ मामलों में तो 'कुछ संगठनों ने अराजकता फैलाने के मकसद' से भी ऐसा कराया है।

क्या है जानकारों की राय ?

क्या है जानकारों की राय ?

उत्तर प्रदेश लॉ कमीशन के अध्यक्ष जस्टिस (रिटायर्ड) आदित्य नाथ मित्तल भी मानते हैं कि 'अक्सर सामूहिक धर्मांतरण वे लोग आयोजित करवाते हैं जिनका इरादा राजनीतिक होता है' और यह कानून उसी के लिए है।' वे कहते हैं, 'अब हर व्यक्ति जो धर्म बदलना चाहता है उसे व्यक्तिगत रूप से डीएम को आवेदन देना होगा, जो उसके इरादे को देखेगा।' उनका कहना है कि, 'हम नहीं समझते कि सामूहिक धर्मांतरण पूरी तरह से स्वैच्छिक होता है और यह राजनीति से प्रभावित होता है। कुल मिलाकर इसका मकसद लोगों को दूसरे धर्मों का सम्मान सुनिश्चित कराना है और राजनीतिक मकसद से प्रभावित धर्मांतरण रोकना है।' कानपुर स्थित सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ सोसाइटी एंड पॉलिटिक्स के डायरेक्टर अनिल कुमार वर्मा कहते हैं, 'इससे कोई इनकार नहीं कर सकता कि भारत में सामूहिक धर्मांतरण अक्सर एक राजनीतिक संदेश देने के लिए होता है और कई बार इसका धर्म से बहुत ही कम लेना-देना होता है।'

हिंदू संगठनों का क्या है नजरिया ?

हिंदू संगठनों का क्या है नजरिया ?

वहीं संघ परिवार से जुड़े संगठन कभी भी बौद्ध धर्म को अलग चश्मे से नहीं देखते। विश्व हिंदू परिषद के प्रवक्ता विनोद बंसल ने ईटी से कहा भी है कि वीएचपी और पूरा संघ परिवार हमेशा से बौद्धों को हिंदू समाज का ही हिस्सा समझता है, क्योंकि यह भारत से ही शुरू हुआ है। (तस्वीरें-सांकेतिक)

इसे भी पढ़ें- सीतापुर: किशोरी के अपहरण-धर्मांतरण मामले में दो आरोपी गिरफ्तारइसे भी पढ़ें- सीतापुर: किशोरी के अपहरण-धर्मांतरण मामले में दो आरोपी गिरफ्तार

Comments
English summary
UP Anti-Love Jihad Law: What Dalit-Ambedkarist and Buddhist Organizations Say
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
For Daily Alerts
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X