उन्नाव कांड: 'सात दिन के भीतर अभियुक्तों को सज़ा नहीं हुई तो...'- ग्राउंड रिपोर्ट
उन्नाव में गैंगरेप पीड़ित लड़की के अंतिम संस्कार के बाद किसी छावनी में तब्दील हुए हिन्दूनगर गांव में अब गहमागहमी थोड़ी कम हो गई है. पुलिस वाले अब उतने ही रह गए हैं जो पीड़ित परिवार की सुरक्षा में लगे हैं और उधर बिहार थाने के थानाध्यक्ष समेत सात पुलिसकर्मियों को लापरवाही बरतने के आरोप में निलंबित किया जा चुका है.
उन्नाव में गैंगरेप पीड़ित लड़की के अंतिम संस्कार के बाद किसी छावनी में तब्दील हुए हिन्दूनगर गांव में अब गहमागहमी थोड़ी कम हो गई है.
पुलिस वाले अब उतने ही रह गए हैं जो पीड़ित परिवार की सुरक्षा में लगे हैं और उधर बिहार थाने के थानाध्यक्ष समेत सात पुलिसकर्मियों को लापरवाही बरतने के आरोप में निलंबित किया जा चुका है.
रविवार को कड़ी सुरक्षा व्यवस्था और परिजनों और प्रशासन के बीच चली लंबी जद्दोजहद के बाद पीड़ित लड़की का शव पास के ही एक गांव में दफ़नाया गया. परिजनों की मांग थी कि उन्हें सुरक्षा दी जाए, पीड़ित लड़की की बहन को नौकरी दी जाए, आवास दिया जाए इत्यादि.
प्रशासन ने सभी मांगें मानने की घोषणा की. मौक़े पर मौजूद लखनऊ के कमिश्नर मुकेश मेश्राम ने कहा कि इन्हें हर वो सुविधा दी जाएगी जो इनकी कमज़ोर आर्थिक स्थिति के लिहाज़ से ज़रूरी है. परिवार को प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत दो आवास दिए जाने की भी घोषणा की गई, एक लड़की के भाई के लिए और एक उनके पिता के लिए.
उच्चाधिकारियों और मंत्रियों के आश्वासन के बाद परिजन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को वहां बुलाने की ज़िद छोड़कर अंतिम संस्कार के लिए तो तैयार हो गए लेकिन इन सब आश्वासनों पर अमल के लिए सात दिन का अल्टीमेटम भी दे दिया है.
पीड़ित लड़की की बहन का कहना था, "अगर सात दिन के भीतर अभियुक्तों को सज़ा नहीं हुई और मांगें नहीं मानी गईं तो सीएम आवास के सामने आत्मदाह कर लूंगी."
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उन्नाव के हिन्दूनगर गांव में शनिवार देर शाम जब पीड़ित लड़की का शव पहुंचा तो पूरा माहौल गमगीन हो गया. लड़की के शव के साथ उनकी बहन, एक भाई और मां थीं तो पिता और दूसरे भाई बहन गांव में ही थे. परिवार के लोगों के सामने सफ़ेद कपड़े में लिपटा शव घर के बाहर रखा गया तो परिजनों की ही नहीं, वहां मौजूद तमाम लोगों की आंखें नम हो गईं. लड़की के बुज़ुर्ग माता-पिता फूट-फूटकर रो रहे थे.
'बेटी को इंसाफ़ दिलाइए...'
अंतिम संस्कार से संबंधित तमाम सामग्री की मौजूदगी और बड़ी संख्या में पुलिस बल की तैनाती बता रही थी कि प्रशासन ने रात में ही अंतिम संस्कार कराने की तैयारी कर रखी थी लेकिन पीड़ित परिवार इसके लिए तैयार नहीं था.
इसकी जानकारी जब प्रशासनिक अधिकारियों को हुई तो मौक़े पर मौजूद ज़िलाधिकारी देवेंद्र पांडेय ने कहा कि अंतिम संस्कार कब होना है, इसे परिवार की मर्ज़ी पर छोड़ दिया गया है.
वहीं, लड़की का शव गांव पहुंचने से ठीक पहले राज्य सरकार के मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य और उन्नाव ज़िले की प्रभारी मंत्री कमला रानी वरुण ज़िले के अधिकारियों के साथ मुख्यमंत्री राहत कोष की ओर से पीड़ित परिवार को 25 लाख रुपए की आर्थिक सहायता देने पहुंचे, लेकिन लड़की के पिता का कहना था कि उन्हें पैसा नहीं न्याय चाहिए.
अधिकारियों से रोते हुए बोले, "पैसा हमारी बेटी की ज़िंदगी की भरपाई नहीं करेगा. बेटी को इंसाफ़ दिलाइए, दोषियों को सज़ा दिलाइए."
पीड़ित परिवार के मिट्टी से बने और छप्पर से ढँके घर के बाहर अधिकारियों, नेताओं, परिजनों और मीडिया के अलावा आस-पास के लोगों का भी जमावड़ा लगा था. समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के कई स्थानीय नेता और विधायक भी वहां जमा थे.
स्वामी प्रसाद मौर्य जब 25 लाख रुपए का चेक देने के लिए दरवाज़े के सामने आए तो पीछे से समाजवादी पार्टी के विधायक सुनील साजन समेत उनकी पार्टी के कई नेता भी वहां पहुंच गए.
सपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्य से मुआवज़े की राशि बढ़ाने के लिए कहने लगे तो स्वामी प्रसाद मौर्य सपा नेताओं को उनकी पार्टी की सरकार रहते ऐसे मामलों में की गई कार्रवाइयों को याद दिलाने लगे.
बहरहाल, वही चेक पीड़ित लड़की के पिता को सौंपा गया, उन्होंने उसे घर के अंदर भिजवा दिया लेकिन समाजवादी पार्टी के नेता नारेबाज़ी करने लगे. इस दौरान मंत्री तो चले गए लेकिन सपा नेताओं की प्रशासनिक अधिकारियों के साथ भिड़ंत हो गई. देर तक विवाद चलता रहा और इस बीच, पुलिस वाले एक कार्यकर्ता को ज़बरन अपने साथ लेते गए.
शुक्रवार रात को नई दिल्ली के सफ़दरजंग अस्पताल में लड़की की मौत के बाद उन्नाव के हिन्दूनगर गांव में आवाजाही अचानक बढ़ गई और उन्नाव समेत राज्य के तमाम हिस्सों में लोगों का ग़ुस्सा फूट पड़ा. कई जगह प्रदर्शन हुए और दोषियों को सज़ा देने की मांग की जाने लगी.
कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने लखनऊ से सीधे उन्नाव पहुंच कर पीड़ित परिवार से मुलाक़ात की. प्रियंका गांधी ने पीड़ित परिवार से मुलाक़ात के बाद राज्य सरकार पर जमकर अपना ग़ुस्सा निकाला.
प्रियंका जी रुकीं, लेकिन...
हिन्दूनगर गांव में दाख़िल होते ही पीड़ित परिवार के घर से कुछ दूरी पर इस मामले में अभियुक्त बनाए गए लोगों के परिजन भी खड़े थे. जो भी नेता या दूसरा वीआईपी वहां से गुज़रता, तो ये लोग अपने परिजनों को निर्दोष बताने और सीबीआई जांच की मांग करने की कोशिश करते.
प्रियंका गांधी वापसी में जब उधर से निकलीं तो इन लोगों ने उन्हें घेर लिया.
इस मामले में एक अभियुक्त की बहन भी वहां मौजूद थीं. वो बताती हैं, "प्रियंका गांधी पहले हम लोगों से बात करने के लिए गाड़ी से उतरीं लेकिन तब तक किसी ने उन्हें बता दिया कि हम लोग अभियुक्तों के परिजन हैं. इतना सुनते ही प्रियंका गांधी चुपचाप अपनी गाड़ी में बैठ गईं और हम लोगों से एक शब्द भी नहीं बोलीं."
अभियुक्तों के परिजन भी सुबह से वहीं खड़े थे और आने-जाने वाले शख्सियतों पर नज़र बनाए हुए थे. जो कोई भी उधर से गुज़रता, उसे रोकर अपनी व्यथा सुनाने लगते. मीडिया से भी लगातार बात कर रहे थे लेकिन उनकी शिकायत भी थी कि मीडिया उनसे बात ज़रूर कर रहा है लेकिन उसे कहीं दिखा नहीं रहा है यानी उनकी आवाज़ दबा दी जा रही है.
अभियुक्तों के परिजनों ने श्रम मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य से भी बात करने की कोशिश की लेकिन उन्होंने भी उनकी एक न सुनी. बाद में मीडिया से बातचीत में स्वामी मौर्य बोले, "पीड़िता ने जिनका भी नाम लिया है और जो भी इस मामले में दोषी हैं उन्हें तत्काल और सख्त सज़ा दिलाई जाएगी."
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इधर, पीड़ित लड़की के पिता आने-जाने वालों या फिर मीडिया से बातचीत में व्यस्त थे. शनिवार को दोपहर दो बजे के क़रीब बीबीसी से भी उन्होंने बातचीत की. इससे एक दिन पहले भी उन्होंने बीबीसी से बात की थी और घटना के लिए पकड़े गए अभियुक्तों को दोषी ठहरा रहे थे.
शनिवार को उनका कहना था, "सरकार यदि हमारे साथ न्याय करना चाहती है तो दोषियों को वही सज़ा दिलाए जो कि हैदराबाद में गैंगरेप के दोषियों को दी गई. अगर ऐसा कर सके तो ठीक है, नहीं तो हम चाहते हैं कि हमारे घर के ऊपर बम गिरा दे और हम परिवार सहित नष्ट हो जाएं."
अभियुक्तों के परिजनों का डर
और, अभियुक्तों के परिजनों को भी यही डर सता रहा है कि कहीं ऐसा न हो कि 'हैदराबाद वाली न्याय प्रणाली' यहां भी अपनाई जाए.
हिन्दूपुर गांव की क़रीब ढाई हज़ार की आबादी में इस घटना के बारे में शायद ही कोई कुछ बताए. पीड़ित लड़की के घर से आगे जाने पर कुछ दूर एक पुराना मंदिर है. उसके पास कुछ लोग जमा थे. उनमें से एक सज्जन कहने लगे, "कोई कुछ इसलिए नहीं बोल रहा है कि क्योंकि अनावश्यक परेशानी में कोई पड़ना नहीं चाहता."
वहीं मंदिर के दूसरी ओर एक छोटी सी किराने की दुकान चलाने वाले राजेश अपनी दुकान बंद करने ही जा रहे थे. हमें देखकर रुक गए और उन्होंने बातचीत भी की.
बोले, "इस मामले में कौन सही है, कौन नहीं ये हम नहीं जानते. लेकिन इतना ज़रूर जानते हैं कि हमारे गांव में आज तक इस तरह की कोई घटना नहीं हुई है. कभी कुछ ऐसी घटना भी नहीं होती कि पुलिस आए और सच बताऊं तो हमारे गांव वालों ने इतनी ज़्यादा पुलिस शायद पहली बार देखी होगी."