दुनिया के बड़े देशों के समक्ष यूएन ने रखीं ये मांगें, कहां खड़ा है भारत
बेंगलुरु। जलवायु परिवर्तन पर यूनाइटेड नेशन्स क्लाइमेट ऐक्शन समिट 23 सितंबर को शुरू होने जा रहा है। इस शिखर सम्मेलन से पहले संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटर्रस ने दुनिया के बड़े देशों के समक्ष जलवायु परिवर्तन से निबटने के लिये मांगें रखी हैं। ये वो मांगें हैं, जो सीधे तौर पर वायु प्रदूषण से जुड़ी हैं। खास बात यह है कि इसी के आधार पर आगे की रणनीति तैयार की जायेगी, जिसमें हर देश की अहम भूमिका होगी। जी हां भारत की भी।
पहले बात करेंगे बड़े देशों के द्वारा रखी गई मांगों की-
1. नो न्यू कोल बेस्ड पावर प्लांट- पहली मांग में संयुक्त राष्ट्र ने सभी देशों से अपील की है कि अब वे कोई भी नया बिजली संयंत्र स्थापित न करें, जो कोयले पर अधारित हो।
2- नो फॉसिल फ्यूल सब्सिडी- जैव ईंधन यानी पेट्रोल, डीजल और गैस पर जो सब्सिडी दी जाती है, उसे अब बंद कर देना चाहिये।
3- मेक पॉल्यूटर्स पे- जो फैक्ट्रियां नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए प्रदूषण फैला रही हैं, उन पर भारी कर और पेनाल्टी लगायी जानी चाहिये।
4- नेट जीरो ऑन 2050- सभी देशों से अपील की गई है कि 2050 तक जीरो कार्बन एमिशन का वातावरण बनाने में सहयोग दें।
इन मांगों पर कहां खड़ा है भारत
1. नो न्यू कोल
बात अगर नये कोयला आधारित बिजली संयंत्रों की बात करें तो 2020 के बाद से नये कोयला अधारित प्लांट के लिये कोई निवेश नहीं होगा।
राष्ट्रीय विद्युत योजना के अनुसार वर्तमान में सक्रिय 48.2 गीगावॉट बिजली पैदा करने वाले कोयला आधारित संयंत्र 2027 तक रिटायर्ड हो जायेंगे। वहीं 47.8 गीगावॉट बिजली पैदा करने के लिये नये संयंत्र निर्माणाधीन हैं। लेकिन इसके बावजूद आने वाले समय में कोयला आधारित प्लांट ज्यादा समय तक सक्रिय नहीं रहेंगे। गुजरात सरकार पहले ही ऐलान कर चुकी है कि राज्य में अब और कोयला आधारित प्लांट नहीं लगाये जायेंगे। वहीं यही सुझाव ऊर्जा मंत्रालय ने पीएमओ को दिया है। यही कारण है कि भारत बहुत तेजी से अक्षय ऊर्जा की ओर अग्रसर है। भारत का लक्ष्य है 2022 तक देश में 175 गीगा वॉट के अक्षय ऊर्जा संयंत्र स्थापित किये जायेंगे। यह लक्ष्य हासिल होने पर भारत में कुल बिजली उत्पादन का 50 प्रतिशत अक्षय ऊर्जा से आयेगा। टाटा एनर्जी ने अक्षय ऊर्जा के उत्पादन में 75 प्रतिशत इजाफा करने का लक्ष्य रखा है।
क्या होगा छत्तीसगढ़ का
मालूम हो कि छत्तीसगढ़ की अर्थव्यवस्था कोयले पर टिकी हुई है। यह राज्य तीसरा सबसे बड़ा कोयले का खजाना भी है। अगर भारत संयुक्त राष्ट्र की इस मांग का समर्थन करता है, तो छत्तीसगढ़ के लिये बेहतर विकल्प तलाशने की जरूरत होगी।
2-नो फॉसिल फ्यूल सब्सिडी
पेट्रोल-डीजल और गैस पर अचानक सब्सिडी हटाना किसी भी सरकार के लिये खतरा हो सकता है। लिहाजा इस मांग को पूरा करना भारत के लिये चुनौतीपूर्ण है। 2017 की रिपोर्ट के अनुसार भारत में कुल 8 बिलियन डॉलर की सब्सिडी तेल पर दी जाती है। विशेषज्ञों की मानें तो साउदी अरब में हमले के बाद से अंर्ताष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतें ऊपर उठ सकती हैं, लिहाजा भारत को तेल के दाम नियंत्रित करने के लिये सब्सिडी बढ़ानी पड़ सकती है। ऐसी स्थिति में भारत संयुक्त राष्ट्र की इस मांग को पूरा करने में असमर्थ साबित हो सकता है। लेकिन हां भविष्य में ऐसा माहौल तैयार करना जरूरी होगा, जिसमें पेट्रोल-डीजल का प्रयोग को कम किया जा सके और वह केवल इलेक्ट्रिक व्हीकल से संभव है। भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ाना देने के लिये कंपनियों का उत्साहवर्धन जरूर है। साथ ही लोगों को यह बताना होगा कि यही भविष्य है।
3- मेक पॉल्यूटर्स पे
जिस तरह से नेश्नल ग्रीन ट्रिब्यूनल सक्रिय है, उसे देखते हुए इस दिशा में भारत संयुक्त राष्ट्र की इस मांग को आसानी से पूरा कर सकता है। भारत सरकार ने सख्त नियमों के तहत उन इकाईयों पर कार्रवाई तेज़ कर दी है, जो प्रदूषण फैला रही हैं। लेकिन अभी भी देश में हज़ारों फैक्ट्रियां ऐसी चल रही हैं, जिनकी वजह से स्थानीय लोगों का स्वास्थ्य प्रभावित हो रहा है। जैसे कोरबा में स्थानीय लोगों को फेफड़ों से संबंधी बीमारियां हो रही हैं। टीबी के मरीजों में निरंतर वृद्धि भी अच्छे संकेत नहीं हैं। इसी प्रकार रायपुर में इस्पात की फैक्ट्रियां लोगों के स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव डाल रही हैं। इन सबके विरुद्ध भी सरकार को सख्त कदम उठाने की जरूरत है। लेकिन अगर कर बढ़ाने की बात करें तो, उसमें पीछे हट सकता है, क्योंकि यह एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन सकता है।
4- नेट जीरो ऑन 2050
आपको बता दें कि भारत ने अब तक ऐसा कोई ऐलान नहीं किया है कि 2050 तक देश में जीरो एमिशन का माहौल बन जायेगा। लेकिन हां हाल ही में जी7 शिखर सम्मेलन में भारत और फ्रांस के साथ संयुक्त प्रेसवार्ता में भारत ने यह जरूर कहा था कि 2020 तक इस दिशा में भारत एक लॉन्ग टर्म प्लान तैयार करेगा। लेकिन यह प्लान जीरो एमिशन के लिये होगा, यह बात भारत ने कहीं भी नहीं कही है।