समान नागरिक संहिता: मोदी सरकार अब जल्द पूरा करेगी बीजेपी का तीसरा वादा!
बेंगलुरु। भारतीय जनता पार्टी ने राम मंदिर निर्माण का जनता से जो वादा किया अब उसे पूरा करने जा रही हैं। भाजपा की स्थापना के समय पार्टी के तीन प्रमुख एजेंडे थे जिसमें राममंदिर निर्माण और जम्मू कश्मीर से संविधान के अनुच्छेद 370 को रद्द करना शामिल था। भाजपा ने 2019 के लोकसभा चुनाव में जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने पर वोट मांगा था जिसे मोदी सरकार ने दोबारा सत्ता में आते ही पूरा किया।
आज यह पार्टी जो कुछ भी है, इन्हीं मुद्दों की वजह से ही है। अब भाजपा का एक तीसरा प्रमुख एजेंडा बचा है वो है, कॉमन सिविल कोड यानी समान नागरिक संहिता। राममंदिर निर्माण करवाने के साथ ही भाजपा जनता से किया गया यह तीसरा वादा भी वह जल्द पूरा करेगी। जिसका इशारा रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी कर दिया है। उन्होंने अयोध्या फैसला आने के बाद इसका समर्थन करते हुए कहा कि इसकी अब आवश्कता है।
बता दें अयोध्या फैसले के बाद भाजपा नेता और समर्थक समान नागरिक संहिता की बता करने लगे हैं। सोशल मीडिया पर तो लोग अब समान नागरिक संहिता की बारी जैसी बातें करते दिखाई दे रहे हैं। वहीं रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने पत्रकारों ने समान आचार संहिता को लेकर पूछे गए सवाल पर बोले कि अब समय आ गया है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली राजग सरकार देश में समान आचार संहिता लागू करने की दिशा में लंबे समय से काम कर रही हैं। गौरतलब है कि इस संबंध में कुछ समय पूर्व मोदी सरकार ने विधि आयोग से देश में समान आचार संहिता (यूनिफॉर्म सिविल कोड) लागू करने की स्थिति में उसके निहितार्थों की जांच करने के लिए कहा था और रिपोर्ट भी मांगी थी। इस समय की मीडिया रिपोर्ट के अनुसार आजादी के बाद यह पहला मौका है जब किसी सरकार ने समान नागरिक संहिता पर विधि आयोग से उसकी राय मांगी थी।
समझा जाता है कि भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार के इस कदम से राजनीतिक विवाद शुरू होगा क्योंकि देश में समान नागरिक संहिता लागू करने को लेकर राजनीतिक पार्टियां एकमत नहीं हैं। समान नागरिक संहिता पर राजनीतिक दलों के अपने-अपने तर्क हैं। संसद समान नागरिक संहिता विधेयक को यदि पारित कर देती है तो देश भर में सभी नागरिकों के लिए एक समान कानून लागू होगा।
कोर्ट जल्द करेगा इस मामले पर सुनवाई
गौरतलब हैं कि देश में समान आचार संहिता लागू करने संबंधी मामला कोर्ट में चल रहा है। माना जा रहा है कि दिल्ली उच्च न्यायालय समान आचार संहिता को लागू करने की मांग करने वाली याचिकाओं पर जल्द ही कार्रवाई कर सकता है। आगामी 15 नवंबर को मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल और न्यायमूर्ति सी हरिशंकर की बेंच इस पर सुनवाई करेगी। विगत मई माह में अदालत ने केन्द्र सरकार को इसे लागू करने के संबंध में पीआईएल पर अपना हलफनामा दायर करने को कहा था।
समान नागरिक संहिता क्या है?
समान नागरिक संहिता अथवा समान आचार संहिता का अर्थ एक धर्मनिरपेक्ष (सेक्युलर) कानून होता है जो सभी धर्म के लोगों के लिये समान रूप से लागू होता है। दूसरे शब्दों में, अलग-अलग धर्मों के लिये अलग-अलग सिविल कानून न होना ही 'समान नागरिक संहिता' का मूल भावना है। यह किसी भी धर्म या जाति के सभी निजी कानूनों से ऊपर होता है। देश के सभी नागरिकों के लिए एक समान कानून। यानी ये एक तरह का निष्पक्ष कानून होगा। जब ये कानून बन जाएगा तो हिंदू, मुस्लिम, सिख और ईसाई सभी को एक ही कानून का पालन करना होगा। यानी मुस्लिम तीन शादियां भी नहीं कर सकेंगे।
संविधान में भी है इसका उल्लेख
आपको बता दें कि संविधान के अनुच्छेद 44 में समान नागरिक संहिता की चर्चा की गई है। राज्य के नीति-निर्देशक तत्त्व से संबंधित इस अनुच्छेद में कहा गया है कि ‘राज्य, भारत के समस्त राज्यक्षेत्र में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता प्राप्त कराने का प्रयास करेगा'। संविधान में यह भी उल्लिखित है कि निदेशक तत्व देश के शासन में मूलभूत हैं और विधि बनाने में इनको लागू करना राज्य का कर्तव्य होगा। संविधान में समान नागरिक संहिता को लागू करना अनुच्छेद 44 के तहत राज्य की जिम्मेदारी बताया गया है, लेकिन ये आज तक देश में लागू नहीं हो पाया। इसे लेकर एक बड़ी बहस चलती रही है।
अल्पसंख्यक वर्ग करता रहा है विरोध
एक ओर जहाँ देश की बहुसंख्यक आबादी समान नागरिक संहिता को लागू करने की पूरजोर मांग उठाती रही है, वहीं अल्पसंख्यक वर्ग इसका विरोध करता रहा है। मुस्लिम समुदाय ने हमेशा तर्क दिया कि उसके मामले मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत आते हैं जिसमें देश का कानून हस्तक्षेप नहीं कर सकता है। जबकि बाकी धर्मों के लोगों के बीच उनका यही तर्क नाराजगी की वजह बनता रहा हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने यह कानून न लागू करने पर जतायी थी नराज़गी
वहीं पिछले माह ही सुप्रीम कोर्ट में कॉमन सिविल कोड पर चर्चा उठ चुकी है। जस्टिस दीपक गुप्ता और अनिरुद्ध बोस की पीठ ने गोवा के एक संपत्ति विवाद के मामले की सुनवाई करते समय इस पर चर्चा की। कोर्ट ने कहा देश के सभी लोगों के लिए एकसमान नागरिक संहिता लागू न होने पर नाराजगी जताई थी। कोर्ट ने कहा कि हिंदू लॉ 1956 में बनाया गया लेकिन 63 साल बीत जाने के बाद भी पूरे देश में समान नागरिक संहिता लागू करने के प्रयास नहीं किए गए। इस दौरान कोर्ट ने गोवा की मिसाल दी। दरअसल, गोवा में यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू है। आइए समझते है कि किन परिस्थितियों में देश के केवल एक ही राज्य में यह अहम कानून लागू है।
गोवा में सभी धर्मों के लोगो पर लागू होता है एक कानून
भारतीय राज्य गोवा एक शानदार उदाहरण है, जिसने धर्म की परवाह किए बिना सभी के लिए यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू किया है। गोवा में जिन मुस्लिम पुरुषों की शादियां पंजीकृत हैं, वे बहुविवाह नहीं कर सकते हैं। इस्लाम को मानने वालों के लिए मौखिक तलाक (तीन तलाक) का भी कोई प्रावधान नहीं है।''गोवा में लागू समान नागरिक संहिता के अंतर्गत वहां पर उत्तराधिकार, दहेज और विवाह के संबंध में हिंदू, मुस्लिम और ईसाई के लिए एक ही कानून है। इसके साथ ही इस कानून में ऐसा प्रावधान भी है कि कोई माता-पिता अपने बच्चों को पूरी तरह अपनी संपत्ति से वंचित नहीं कर सकते। इसमें निहित एक प्रावधान यह भी है कि यदि कोई मुस्लिम अपनी शादी का पंजीकरण गोवा में करवाता है तो उसे बहुविवाह की अनुमति नहीं होगी
अकेले एक राज्य में कानून कैसे?
ऐसे में यह समझना अहम है कि आखिर अकेले गोवा में कॉमन सिविल कोड कैसे लागू है? दरअसल, गोवा के भारत में विलय और वहां पर समान नागरिक संहिता का लागू होना एक दूसरे से जुड़ा हुआ मुद्दा है। भारत को 15 अगस्त, 1947 में ब्रिटिश हुकूमत से आजादी मिली और भारत एक स्वतंत्र देश बन गया, लेकिन इसके बाद भी भारत के कुछ क्षेत्र पुर्तगाली, फ्रांसीसी उपनिवेशी शासकों के अधीन थे, इनमें गोवा समेत दमन दीव और दादर नगर हवेली शामिल हैं, जिनका भारत में विलय बाद हो सका। भारत सरकार ने गोवा पर आधिपत्य पाने के लिए 'ऑपरेशन विजय' अभियान चलाया गया, जिसके बाद वर्ष 1961 में भारत में शामिल होने के बाद गोवा, दमन और दीव के प्रशासन के लिए भारतीय संसद ने गोवा, दमन और दीव एडमिनिस्ट्रेशन एक्ट 1962 कानून पारित किया। इस कानून में भारतीय संसद ने पुर्तगाल सिविल कोड 1867 को गोवा में लागू रखा। इस तरह से गोवा में समान नागरिक संहिता लागू हो गई।
कॉमन सिविल कानून लागू करना क्यों है जरुरी
सभी के लिए कानून में एक समानता से देश में एकता बढ़ेगी और जिस देश में नागरिकों में एकता होती है, किसी प्रकार भेदभाव नहीं होता है। इससे देश तेजी से विकास के रास्ते पर तेजी से आगे बढ़ेगा। यही नहीं जो अलग-अलग धर्मों के अलग-अलग कानून की वजह से न्यायपालिका पर अतिरिक्त बोझ पड़ता है। इसके लागू हो जाने से एक तो न्यायपालिका का बोझ कम होगा ऊपर से समय बचने और एक कानून होने की वजह से बहुत से लंबित मामलों का निपटारा भी जल्द हो सकेगा।
वहीं दूसरी ओर, जब हर धर्म का कानून एक सा होगा, तब वास्तव में सभी नागरिकों के अधिकार और कानून एक होने की बात कही जा सकती है। उस स्थिति में नागरिकों में एकता बढ़ेगी इतना ही नहीं धर्म के नाम पर राजनीति करने वाले नेताओं की दुकानें बंद हो जाएगी। चुनाव के दौरान जातियों के आधार पर वोट के ध्रुवीकरण में भी कमी आएगी, जिससे निष्पक्ष चुनाव में मदद मिलेगी।
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