यूनिफॉर्म सिविल कोड: गोवा में 1962 से लागू है सभी के लिए है एक समान कानून
बेंगलुरू। भारत में समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) कानून बनाने के लिए जद्दोजहद जारी है, लेकिन गोवा हिंदुस्तान का एक अकेला ऐसा राज्य है, जहां वर्ष 1962 से ही यह कानून प्रभावी है। जी हां, बहुत कम लोगों को आज भी यह नहीं मालूम है कि गोवा में रहे भारतीय गोवा में पंजीकृत शादी के बाद कहीं और दूसरी शादी नहीं कर पाते हैं।
दरअसल, हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने गोवा में लागू समान नागिरक संहिता का हवाला देकर टिप्पणी की थी कि सरकार को पूरे देश में समान नागरिक संहिता लागू करने का प्रयास करने चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने अपनी टिप्पणी यह भी याद दिलाया कि पिछले 72 वर्षों में सरकारों को समान नागिरक संहिता कानून निर्माण के लिए निर्देश देती रही है, लेकिन सार्थक प्रयासों की कमी चलते अभी तक यह अटका पड़ा हुआ है।
सुप्रीम कोर्ट की एक पीठ ने उक्त टिप्पणी शुक्रवार, 13 सितंबर को एक संपत्ति विवाद मामले में सुनवाई के दौरान की थीं, जिसके बाद पूरे देश में समान नागिरक संहिता पर एक बार फिर बहस शुरू हो गई। मामले पर टिप्पणी करते हुए न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध की पीठ ने कहा कि गोवा भारतीय राज्य का एक चमचमाता उदाहरण है, जिसमें समान नागरिक संहिता लागू है और कुछ सीमित अधिकारों को छोड़कर वहां यह सभी धर्मों की परवाह किए बिना यह लागू किया गया है।
उल्लेखनीय है गोवा में लागू समान नागरिक संहिता पुर्तगाली नागरिक संहिता, 1867 के तहत लागू किया गया है, जो उत्तराधिकार और विरासत के अधिकारों को भी संचालित करती है। इसमें बहु विवाह पर प्रतिबंध भी शामिल हैं। भारत में कहीं भी गोवा के बाहर ऐसा कोई कानून लागू नहीं है। यह अलग बात है कि आजादी के बाद भारत में समान नागिरक संहिता लागू करने के लिए आंदोलन चल रहा है।
सत्ता में मौजूद बीजेपी सरकार के तीन कोर एजेंडे में एक एजेंडा समान नागरिक संहिता है, जो बीजेपी नीत मोदी सरकार की पहली प्राथमिकताओं में शामिल है। जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने और अयोध्या स्थित राम जन्मभूमि स्थल पर राम मंदिर का निर्माण बीजेपी का पहला और दूसरा प्रमुख एजेंडा है, जो अपनी परिणित की ओर हैं।
यह चौथा मौका था जब सुप्रीम कोर्ट देश में समान नागरिक संहिता को लागू करने की हिमायत की है। सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक देश में समान नागरिक संहिता मतलब 'एक देश एक क़ानून' लागू करने के लिए अब तक कोई ईमानदार कोशिश नहीं की गई जबकि संविधान निर्माताओं को आशा और उम्मीद थी कि राज्य पूरे भारतीय सीमा क्षेत्र में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता सुनिश्चित कराने की कोशिश करेगा, लेकिन अफसोस अभी तक इस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई।
समान नागिरक संहिता पर सुप्रीम कोर्ट की हालिया टिप्पणी को बीजेपी नीति मोदी सरकार के लिए एक सुनहरे मौके की तरह देखा जा सकता है, क्योंकि मोदी सरकार के कार्यकाल में जम्मू-कश्मीर प्रदेश से अनुच्छेद 370 को खत्म किया जा चुका है, जो उसे विशेष राज्य का दर्जा प्रदान करता था।
वहीं, बीजेपी के कोर एजेंडे में शामिल राम मंदिर विवाद के निपटारे के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित पांच सदस्यीय संवैधानिक पीठ पिछले 5 अगस्त से लगातार सुनवाई कर रही है। सुप्रीम कोर्ट ने राम मंदिर विवाद ट्रायल आगामी 18 अक्टूबर तक पूरी करने का निर्देश भी दिया है।
उम्मीद की जा रही है कि दीवाली के आसपास बीजेपी के दूसरे कोर एजेंडे यानी राम मंदिर निर्माण पर भी फैसला आ सकता है। सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी ने बीजेपी को उसके तीसरे कोर एजेंडे को पूरा करने का एक मौका दे दिया है और मौजूदा अंकगणित को देखते हुए बीजेपी समान नागरिक संहिता बिल को भी पास करवाने में कामयाब हो सकती है।
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क्या है समान नागरिक संहिता?
सरल शब्दों में समझने की कोशिश करें तो समान नागरिक संहिता का मतलब है कि देश में मौजूद सभी धर्म, लिंग, जाति या अन्य वर्ग के लोगों के शादी, उत्तराधिकार, दहेज, संपत्ति या अन्य सिविल मामलों के लिए एक समान कानूनी व्यवस्था। तीन शब्दों से मिलकर बना यूनिफॉर्म, सिविल, कोड में 'यूनिफॉर्म' का मतलब है सभी लोग सभी परिस्थितियों में समान हैं जबकि 'सिविल' लैटिन शब्द 'civils' से लिया गया है जिसका अर्थ सिटीज़न होता है। वहीं लैटिन शब्द 'codex'यानी 'कोड' का मतलब किताब से है। समान नागरिक संहिता का आशय है कि सभी नागरिकों के लिए सभी परिस्थितियों में एक समान नियम जो एक ही पुस्तक में संहिताबद्ध हों। इस संहिताबद्ध किताब में किसी जाति, धर्म, लिंग, जन्मस्थान आदि के आधार पर सिविल मामलों में किसी भी प्रकार का भेदभाव न हो।
गोवा में कैसे लागू है समान नागिरक संहिता?
दरअसल, गोवा के भारत में विलय और वहां पर समान नागरिक संहिता का लागू होना एक दूसरे से जुड़ा हुआ मुद्दा है। भारत को 15 अगस्त, 1947 में ब्रिटिश हुकूमत से आजादी मिली और भारत एक स्वतंत्र देश बन गया, लेकिन इसके बाद भी भारत के कुछ क्षेत्र पुर्तगाली, फ्रांसीसी उपनिवेशी शासकों के अधीन थे, इनमें गोवा समेत दमन दीव और दादर नगर हवेली शामिल हैं, जिनका भारत में विलय बाद हो सका। भारत सरकार ने गोवा पर आधिपत्य पाने के लिए 'ऑपरेशन विजय' अभियान चलाया गया, जिसके बाद वर्ष 1961 में भारत में शामिल होने के बाद गोवा, दमन और दीव के प्रशासन के लिए भारतीय संसद ने गोवा, दमन और दीव एडमिनिस्ट्रेशन एक्ट 1962 कानून पारित किया। इस कानून में गोवा में पहले से प्रावधानित 'पुर्तगाल सिविल कोड' 1867 को शामिल कर लिया गया और इस तरह गोवा में समान नागरिक संहिता लागू हो गयी। वर्ष 1987 में दमन और दीव से अलग करके गोवा को पूर्ण एक राज्य का दर्जा प्रदान कर दिया गया।
गोवा में हिंदू, मुस्लिम, सिख और ईसाई के लिए है एक कानून
गोवा में लागू समान नागरिक संहिता के अंतर्गत यहां पर उत्तराधिकार, दहेज और विवाह के सम्बंध में हिन्दू, मुस्लिम और क्रिश्चियन के लिए एक ही कानून है। इसके साथ ही इस कानून में ऐसा प्रावधान भी है कि कोई भी माता-पिता अपने बच्चों को पूरी तरह अपनी संपत्ति से वंचित नहीं कर सकते। इसमें निहित एक प्रावधान यह भी है कि यदि कोई मुस्लिम अपनी शादी का पंजीकरण गोवा में करवाता है तो उसे बहुविवाह की अनुमति नहीं होगी। यानी न ही गोवा में जन्मा कोई भी शख्स बहु विवाह कर सकता है और न ही गोवा में पंजीकृत शादी करने वाला शख्स देश के किसी हिस्से में दोबारा शादी कर सकता है।
संविधान के अनुच्छेद 44 के अंतर्गत किया गया यह प्रावधान
समान नागरिक संहिता का उल्लेख पवित्र भारतीय संविधान के भाग 4 के अंतर्गत राज्य के नीति निदेशक तत्वों में किया गया है। नीति निदेशक तत्वों की प्रकृति गैर न्यायोचित है यानी इनके हनन पर न्यायालय द्वारा इन्हें लागू नहीं करवाया जा सकता। अतः सरकार इनको लागू करने के लिए बाध्य नहीं है, लेकिन संविधान में यह भी उल्लिखित है कि निदेशक तत्व देश के शासन में मूलभूत हैं और विधि बनाने में इनको लागू करना राज्य का कर्तव्य होगा।
समान नागरिका संहिता नहीं होना यानी मूल अधिकारों का हनन
देश में समान नागरिक संहिता के प्रावधान नहीं होने से संविधान में उल्लेखित अनुच्छेद 14 , अनुच्छेद 15 और अनुच्छेद 21 के अंतर्गत नागिरकों के मूल अधिकारों का हनन होता है। इसको नहीं लागू करने से न केवल लैंगिक समानता को खतरा है बल्कि सामाजिक समानता भी सवालों के घेरे में है। हालांकि अल्पसंख्यक वर्ग इसका विरोध कर रहा है और कहता रहा है कि इसको लागू करने से अनुच्छेद 25 के अनुसार नागरिकों की धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन होगा और जब भी इसे लागू करने की बात की जाती है तो दोनों पक्ष अपने अपने तर्कों के साथ उपस्थित हो जाते हैं। यही कारण है कि देश में अभी तक समान नागरिक संहिता को लागू करने को लेकर सहमति नहीं बन सकी है।