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UNHRC: कश्‍मीर पर रोने वाले पाक को पाकिस्तानी अल्पसंख्‍यकों की क्‍यों नहीं सुनाई पड़ती सिसकियां

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बेंगलुरु। भारत द्वारा जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाए जाने को मावाधिकारों का हनन से जोड़कर संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार काउंसिल (यूएनएचआरसी ) जाने वाले पाकिस्तान को पहले अपने गिरेबां में झांक देखना चाहिए। कश्‍मीर में रह रहे मुसलमानों को न्‍याय दिलाने का दम भरने वाले पाक के प्रधानमंत्री इमरान खान को फिलहाल अपने देश में रह रहे अल्पसंख्‍यकों की चिंता करनी चाहिए क्‍योंकि वहां पर वर्षों से अल्पसंख्यकों की हालत मानवाधिकार के लिहाज से बहुत बदतर है। वो लगातार हिंसा का शिकार हो रहे हैं लेकिन उन अल्‍पसंख्‍यकों की सिसकियां उन्‍हें सुनाई नहीं पड़ रही।

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बता दें जम्मू-कश्मीर मसले को दुनिया के कई मंचों पर उठा चुका पकिस्तान अब संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार काउंसिल (यूएनएचआरसी )में यह मुद्दा लेकर गया है। जिसमें भी उसे एक बार फिर मुंह की खानी पड़ेगी क्योंकि भारत के पास पाकिस्तान में हो रहे अल्‍पसंख्‍यकों पर हो रहे अत्याचार के पुख्‍ता सबूत हैं । जिसके दम पर भारत मानवधिकारी हनन के मुद्दे पर पाकिस्तान को घेर कर कटघरे में खड़ा करेगा। यहां मानवाधिकारों के हनन की दास्तां बहुत पुरानी है। आतंकवाद और कट्टरपंथ की आग में जल रहा पाकिस्तान अब झुलस रहा है। वहां का सामाजिक असमानता चरम पर है।

आलम ये है कि नया पाकिस्तान बनाने का दावा करने वाले इमरान खान की पार्टी के नेता ही खुद को सुरक्षित नहीं मान रहे। पाकिस्तान की आरक्षित सीट से पूर्व में विधायक चुने गए तहरीक-ए-इंसाफ के बलदेव कुमार भारत आ गए हैं। उन्होंने पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों को असुरक्षित बताते हुए कहा कि अब वह पाकिस्तान वापस नहीं जाना चाहते। बलदेव ने भारत सरकार से शरण की गुहार भी लगाई है। उन्‍होंने पाकिस्तान में असुरक्षित माहौल का दावा करते हुए कहा, 'पाकिस्तान में सिर्फ अल्पसंख्यक नहीं, खुद मुस्लिम भी सुरक्षित नहीं हैं। हम पाकिस्तान में बहुत मुश्किल हालात का सामना कर रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि मोदी सरकार को विशेष पैकेज का ऐलान करना चाहिए ताकि पाकिस्तान के हिंदू और सिख अल्पसंख्यक भारत आ सके। उन्हें वहां प्रताड़ित किया जा रहा है।

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यह ताजातरीन मामला एक बानगी मात्र हैं कुछ दिनों पहले पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के ननकाना साहिब में रहने वाली 19 वर्षीय सिख लड़की का बंदूक की नोक पर छह लोगों ने अगवा करके एक मुस्लिम युवक से निकाह करा दी और उसका जबरन धर्म परिवर्तन करवा दिया। कुछ माह पूर्व पाकिस्तान के सिंध प्रांत में होली से एक दिन पहले दो नाबालिग हिंदू बहनों का अपहरण कर लिया गया। इसके बाद जबरदस्ती धर्म परिवर्तन कराकर उनकी शादी करा दी गई।

पाक में निष्क्रिय पड़ा है मानवाधिकारआयोग

पाकिस्तान का राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग इसके शीर्ष पदाधिकारियों का कार्यकाल पूरा होने की वजह से तीन महीने से अधिक समय से निष्क्रिय पड़ा है। डॉन अखबार ने एक रिपोर्ट में कहा कि अध्यक्ष और सात में से छह सदस्यों का चार वर्ष का कार्यकाल गत 30 मई को समाप्त हो चुका है। आयोग के कर्मचारियों को डर है कि प्रधानमंत्री इमरान खान और नेशनल असेंबली में नेता विपक्ष शहबाज शरीफ के बीच कटु संबंधों की वजह से हो सकता है कि आयोग अभी और समय तक निष्क्रिय रहे।

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लड़कियों का जबरन धर्म परिवर्तन

रिपोर्ट की मानें पाकिस्तान में हर साल 1 हजार से अधिक लड़कियों का जबरदस्‍ती धर्म परिवर्तन करवा दिया जाता है। वर्ष 2010 में पाकिस्तान में मानवाधिकार आयोग के एक अधिकारी ने कहा था कि पाकिस्तान में हर महीने तकरीबन 20 से 25 हिंदू लड़कियों का अपहरण करने के बाद जबरिया धर्म बदलकर उनकी शादी कराई जाती है। जन स्वास्थ्‍य और लिंग आधारित हिंसा पर शेफील्ड हलम यूनिवर्सिटी में रिसर्च करने वाली सादिक भंभ्रो ने पाया कि 2012 से 2017 तक 286 लड़कियों का जबरदस्ती धर्म बदला गया। ये वो संख्या है, जो पाकिस्तान के अंग्रेजी अखबारों की रिपोर्ट्स के आधार पर काउंट की गई। ये तादाद और बड़ी भी हो सकती है। साउथ एशिया पार्टनरशिप का कहना है कि पाकिस्तान में हर साल कम से कम 1000 लड़कियों का जबरन धर्म बदला जाता है।

दो लाख से अधिक हिंदू शरणार्थी को भारत ने दी शरण

पाकिस्तान में हिंदुओं के खिलाफ अत्याचार की घटनांए बानगी मात्र है। वहां पर हर दिन अल्पसंख्यकों के खिलाफ इस तरह की घटनाएं होती हैं। लेकिन बहुत कम घटनाएं सुर्खियोंमें आ पाती है क्योंकि अधिकांश घटनाओं को सरकारी तंत्र द्वारा दबा दिया जाता है। यहीं कारण कि वहां पर स्‍वयं को असुरक्षित महसूस करने वाले हजारों हिंदू परिवार हर साल भागकर भारत आ जाते है और भारतीय नागरिकता की गुहार भी लगाते हैं। पिछले पांच सालों में भारत सरकार ने काफी बड़ी संख्या में पाकिस्तान से आए शरणार्थी हिंदुओं को नागरिकता दी है। भारत में एक अनुमान के तौर पर दो लाख से ज्यादा हिंदू शरणार्थी देश के विभिन्न हिस्सों में शरण लिए हुए हैं। अकेले राजस्थान में ही उनकी संख्या सवा लाख के आसपास है। वो अपने देश नहीं लौटना चाहते।

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हिंदुओं की मात्र 1.2 प्रतिशत आबादी बची

हाल ही में पाकिस्तान जनगणना में हिंदुओं की आबादी 1.2 फीसदी बची है। 1941 की जनगणना के अनुसार पाकिस्तान वाले इस भूभाग पर बंटवारे से पहले 5.9 करोड़ गैर मुस्लिम रहते थे। बंटवारे के दौरान बड़े पैमाने पर हिंदुओं और सिखों का पलायन भारत की ओर हुआ। हिंदुओं की आबादी तब वहां 24 फीसदी के आसपास थी। अब हालत एकदम बदल गई है। बता दें वर्ष 2011 में प्रकाशित इश्तियाक अहमद की पुस्तक के अनुसार पाकिस्तान में गैर मुस्लिमों की आबादी को 10 फीसदी बताया गया है।

अकेले बलूचिस्तान से करीब 500 हिन्दू परिवारों ने अपना घर बार छोड़कर पलायन कर दिया है। स्थिति इतनी खराब हो चुकी है कि हिन्दू परिवार की लड़कियों का जबरन धर्म परिवर्तन कराया जा रहा है। अपहरण के 90% मामलों में लड़कियों के साथ बलात्कार करके उन्‍हें मुस्लिम बनने का दबाव डाला जाता है। पाकिस्तान के मानवाधिकार आयोग की मानें तो ऐसे मामलों में वहाँ की स्थानीय अदलतें भी न्याय नहीं देतीं। अधिकतर मामलों में अदालतें कट्टरपंथियों के सामने झुक जाती हैं। नतीजतन 12-13 वर्ष की नाबालिग लड़कियों व उनके परिवारों को संरक्षण देने के नाम पर जबरदस्ती उनका धर्म परिवर्तन कर दिया जाता है। इस तरह की घटनाएँ विशेष रूप से पाकिस्तान के व्यापारिक शहर कराची में हो रही हैं। जहां पर मौजूद समय में 80 हजार से भी कम हिन्दू बचे हैं जबकि 1998 की जनगणना के अनुसार कराची की आबादी 9,856,318 थी जिसमें 96% आबादी मुस्लिम थी। 90% जिले ऐसे हैं जहां हिन्दू आबादी 1% से भी कम है।

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25 प्रतिशत सिख परिवारों को छोड़ना पड़ा अपना घर

रिपोर्ट के अनुसार पिछले साल हुए आतंकी हमले में विभिन्न समुदायों के 418 मुस्लिमों की हत्या कर दी गई और तालिबान की धमकियों के कारण औरकजई कबीलाई क्षेत्र से तकरीबन 25 प्रतिशत सिख परिवारों को अपना घरबार छोड़ने के लिए विवश होना पड़ा। दूसरी तरफ, जान-माल की धमकियों के कारण बलूचिस्तान प्रात से करीब 500 हिंदू परिवारों को भी विस्थापित होने के लिए मजबूर होना पड़ा। विभिन्न मुस्लिम अल्पसंख्यक समुदायों पर हुई हिंसा के कारण 418 लोगों की मौत हो गई जबकि मुस्लिमों को निशाना बनाकर किए गए आत्मघाती हमले में 628 लोगों की मौत हुई। जो सिख परिवार पाकिस्तान के पश्चिमोत्तर भाग में सैकड़ों साल से रह रहे थे उन्हें उस समय काफी कठिन स्थिति का सामना करना पड़ा जब तहरीक-ए-तालिबान ने उनसे 'जजिया' कर अदा करने या फिर इलाके को छोड़ने की धमकी दी थी। इस कारण औरकजई क्षेत्र में रहने वाले 102 सिख परिवारों में से 25 को घरबार छोड़ने पर विवश होना पड़ा।

धर्मिक स्‍वतंत्रता का अधिकार नहीं

अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता संबंधी अमेरिकी कमीशन की वर्ष 2012 की सालाना रिपोर्ट के अनुसार पाकिस्तान सरकार अल्पसंख्यकों की धार्मिक स्वतंत्रता को लेकर गंभीर नहीं है। पाकिस्तान में लगातार अल्पसंख्यकों के धार्मिक अधिकारों को तोड़ा जाता है, आमतौर पर ऐसा करने वालों पर पाक सरकार की शय पर कोई कार्रवाई नहीं होती। रिपोर्ट में दुनियाभर के देशों की बात की गई लेकिन पाकिस्तान को लेकर खासतौर पर चिंता जाहिर की गई। ह्यूमन राइट वाच दुनिया की जानी मानी मानवाधिकार संस्था है। इस संस्था की रिपोर्ट के अनुसार 2012 के बाद पाकिस्तान में हालत खराब हुई है।सरकार सुरक्षा देने के प्रति लापरवाह है। अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के प्रति कोताही की जाती है। मानवाधिकार संगठनों के अनुसार 2009 के बाद अल्पसंख्यक हिंदुओं पर होने वाले हमलों में तेजी आई है। इनके मंदिरों और पुजारियों को निशाना बनाया जा रहा है। बड़ी संख्या में वहां के हिंदू भारत में शरण लेने को बाध्य हैं।

अल्पसंख्यकों पर हिंसा

पाकिस्तान मेंअल्‍पसंख्‍यकों पर हिंसा हर स्तर पर होती है। हिंदू महिलाओं और लड़कियों के अपहरण की घटनाओं में खासी बढोतरी हुई है।अल्पसंख्यकों को नौकरियों से लेकर व्यावसायिक क्षेत्र तक में धर्म के नाम पर निशाना बनाया जाता है। उनसे दोयम दर्जे के नागरिकों सरीखा व्यवहार हो रहा है। 2012 के बाद से सैकड़ों अल्पसंख्यक हमलों में मारे जा चुके हैं, हजारों लोगों का धर्म बदला जा चुका है।अल्पसंख्यक बच्चों को अच्छे स्कूलों में दाखिला नहीं मिल पाता। स्कूलों की किताबों में पाठ्यक्रम ऐसा है जो हिन्दुओं के प्रति विद्वेष ज्यादा फैलाता है अल्पसंख्यकों से कुछ अतिवादी धार्मिक संगठन जबरदस्त जजिया टैक्स वसूलते हैं। हिंदुओं से बड़े पैमाने पर जमीन छीनी जा चुकी है। उन्हें नौकरी से लेकर लोन, हाउसिंग और दूसरे कामों में दिक्कतें आती हैं। चर्च, अहमदियों की मस्जिदों और हिंदुओं के मंदिरों पर अक्सर हमले होते हैं।

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इस कानून के निशाने पर होते हैं अल्पसंख्यक

पाकिस्तान में जनरल जिया उल हक के राज में 1980 के दशक में ईश निंदा कानून को कड़ा करने के बाद से अल्‍पसंख्‍यकों पर अत्‍याचार और बढ़े। इस कानून के अनुसार अगर देश के किसी नागरिक को ईश यानि अल्लाह या पैगंबर की निंदा करते पाया गया तो उसके खिलाफ ये कानून लागू हो जाएगा। इस कानून में आमतौर बेगुनाह अल्पसंख्यक ही फंसते हैं। ये देखने में आया है कि पाकिस्तान में जब बहुसंख्यकों को किसी अल्पसंख्यक से कोई बदला लेना होता है तो उस पर ईश निंदा का आरोप लगाकर उसे फंसा दिया जाता है।

ईश निंदा के दोषियों को फांसी या आजीवन कारावास जैसी कड़ी सजा दी जाती है। पाकिस्तान में हाल के बरसों में 16 से ज्यादा लोगों को इस आरोप में मृत्युदंड दिया जा चुका है जबकि 20 शख्स आजीवन कैद की सजा पा चुके हैं। आशिया बीवी का मामला ईश निंदा से ही जुड़ा है। ईसाई धर्म से ताल्लुक रखने वाली इस महिला को एक मामूली सी बात में कहासुनी के बाद ईश निंदा के मामले में फंसा दिया गया। हालांकि पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट ने उसे बाइज्जत बरी कर दिया गया। लेकिन वो सार्वजनिक तौर पर इसलिए कहीं नहीं निकल सकती कि ऐसा करने पर तुरंत उसकी हत्या हो जाएगी। इस मामले में पाकिस्तान में लगातार हिंसक प्रदर्शन होते रहे हैं।

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Comments
English summary
Pakistan's Prime Minister Imran Khan should worry about the minorities currently living in his country because the condition of minorities over the years is much worse in terms of human rights.
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