तेजस्वी के दर्द की दवा क्या? कप्तान के 'शो कॉल्ड इंजरी' से टीम राजद में बेचैनी
पटना। कभी क्रिकेट खेलने वाले तेजस्वी यादव अब लुका-छिपी का खेल रहे हैं। वे कह कुछ रहे हैं, और कर कुछ रहे हैं। लंबे इंतजार के बाद वे विधानसभा सत्र के पांचवें दिन गुरुवार को सदन में पहुंचे थे। तब उन्होंने कहा था कि शुक्रवार बताएंगे कि वे इतने दिन कहां थे और क्यों थे। राजद के स्थापना दिवस के मौके पर उम्मीद थी कि वे राबड़ी देवी और तेजप्रताप के सामने अपनी बात रखंगे। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। उन्होंने एक दिन पहले राजनीतिक सक्रियता दिखायी और अगले दिन खामोश हो गये। शुक्रवार को राजद कार्यालय में जब स्थापना दिवस मनाया जा रहा था तब तेजस्वी नदारत रहे। हालत ये हो गयी कि उनकी कुर्सी पर प्रदेश अध्यक्ष रामचंद्र पूर्वे को बैठाना पड़ा। तेजस्वी कभी सामने आते हैं तो कभी पर्दे में छिप जाते हैं। उनके इस रवैये से राजद की हताशा और बढ़ गयी है।
क्या सचमुच तेजस्वी अस्वस्थ हैं?
तेजस्वी यादव का कहना है कि उनके घुटने का एक पुराना दर्द फिर उभर आया है। वे उसी दर्द का इलाज कराने के लिए दिल्ली में थे। तेजस्वी के मुताबिक, जब वे क्रिकेट खेलते थे तब उनका एक घुटना चोटिल हो गया था। उस समय इलाज के बाद दर्द ठीक हो गया था। लेकिन लोकसभा चुनाव के दौरान अचानक उनका पैर गड्ढे में पड़ गया जिससे उनके घुटने के लिगामेंट्स चोटिल हो गये । उसी समय से उनके घुटने में दर्द हो रहा था। लिगामेंट्स का घायल होना खिलाड़ियों के लिए आम बात है। लिगामेंट्स सॉफ्ट टिशु हैं जो घुटने की हड्डियों को जोड़े रखते हैं। ये घुटने को आगे पीछे मोड़ने में मदद करते हैं। डाइव लगाने, ऊंचाई से कूदने या फिर बॉल से चोट लगने से खिलाड़ियों के लिगामेंट्स अक्सर घायल हो जाते हैं। तब असहनीय दर्द होता है। बोलचाल की भाषा में इसे मोच आना भी कहते हैं।
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क्रिकेट की चोट और सियासत का दर्द
तेजस्वी राजनीति में आने से पहले क्रिकेट खेलते थे। क्रिकेट से मिले दर्द की कीमत अब उन्हें राजनीति में चुकानी पड़ रही है। क्या घुटने की चोट इतनी खतरनाक है कि उन्हें अज्ञातवास में रह कर इलाज कराना पड़ा ? क्या एक महीने के इलाज के बाद भी उनका दर्द ठीक नहीं हुआ है ? विरोधियों का कहना है कि चोट तो बहाना है, असल में तेजस्वी को सियासी दर्द ने परेशान कर रखा है। वे राजद पर पूर्णरुपेण अधिकार चाहते हैं जो कि उन्हें मिल नहीं रहा। इस लिए उन्होंने पार्टी की गतिविधियों से दूरी बना ली है। वे खुल कर तेजप्रताप यादव का न विरोध कर पा रहे हैं और न ही उन्हें स्वीकर कर पा रहे हैं। इस कश्मकश में वे कभी सामने आते हैं तो कभी ओझल हो जाते हैं।
उलझन में राजद कार्यकर्ता
राजद स्थापना दिवस से दूरी बनाने के बाद तेजस्वी और भी सवालों के घेरे में आ गये हैं। राबड़ी देवी ने स्थापना दिवस कार्यक्रम का शुभारंभ किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता रामचंद्र पूर्वे ने की। राबड़ी देवी के साथ तेजप्रताप तो मौजूद थे लेकिन इंतजार के बाद भी तेजस्वी नहीं आये। पार्टी के लिए ये खास मौका था। चुनावी हार के बाद राजद को नये सिरे से संगठित करने की जिम्मेवारी तेजस्वी पर है। लेकिन वे इस अहम जवाबदेही को नहीं निभा रहे । कार्यकर्ता उलझन में हैं कि आखिर अब करना क्या है। अगर यही स्थिति रही तो पार्टी बिल्कुल शिथिल पड़ जाएगी जिसकी कीमत विधानसभा चुनाव में चुकानी पड़ेगी। दूसरी तरफ तेजप्रताप यादव ने इस मौके को भुनाने में कोई कमी नहीं रखी। उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि लोग अक्सर कहते हैं कि तेजप्रताप, दूसरा लालू हैं। वरिष्ठ नेता शिवानंद तिवारी पर उखड़े रहने वाले तेजप्रताप ने उनके प्रति नरम रवैया अपना कर एक नया संकेत देने देने की कोशिश की। लेकिन अब पानी सिर से ऊपर पहुंच गया है। राजद अपने 22 साल के राजनीतिक सफर के सबसे बुरे दौर में है।