शाकाहार अपनाए और धरती को बर्बाद होने से बचाएं-यूएन रिपोर्ट
नई दिल्ली: ग्लोबल वार्मिंग के खतरों से केवल जीवाश्म ईधन के उत्सर्जन में कटौती से नहीं निपटा जा सकता है। इसके लिए मजबूत कृषि पद्धतियों, पौधों पर आधारित खाद्य आदतों और बेहतर भूमि उपयोग को अपनाना होगा। यूएन के एक संगठन इंटरगवरमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) ने गुरुवार को जलवायु परिवर्तन और भूमि पर विशेष रिपोर्ट जारी की। इस रिपोर्ट में 52 देशों के 107 वैज्ञानिकों द्वारा तैयार इस रिपोर्ट में 7000 शोधों के निष्कर्ष को शामिल करते हुए अंतिम परिणाम निकाला गया है।
आईपीसीसी के वर्किंग सह-अध्यक्ष जिम सेकिआ ने कहा कि (आईपीसीसी लोगों के आहार की सिफारिश नहीं करता है। । हमने जो कहा है वो वैज्ञानिक प्रमाणों के आधार पर है। इसमें कुछ ऐसे आहार हैं जिनमें कार्बन फुटप्रिंट कम होते हैं। वैज्ञानिकों ने बताया है कि मीथेने का उत्सर्जन सबसे शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैसों में से एक है, जो मवेशी को खाने और चावल के खेतों से आता है। इनमें मांस खासकर एक किलो बीफ को बनाने में जितना पानी खर्च होता है, इसकी तुलना में बहुत कम पानी एक किलो अनाज को पकाने में होता है। आईपीसीसी की रिपोर्ट में ये भी बताया गया है कि 2007-16 के दौरान वैश्विक रूप से कुल ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के लिए असतत कृषि पद्धतियों, वनों की कटाई और भूमि उपयोग जिम्मेदार है।
पाकिस्तान, भारत, नेपाल और चीन के कुछ हिस्सों में, हिंदू-कुश हिमालयी क्षेत्र में लोगों की जलवायु परिवर्तन की वजह से असुरक्षा आ गई है। आईपीसीसी द्वारा संदर्भित अन्य वैज्ञानिक अध्ययनों ने नोट किया कि कैसे कार्बनडाई आक्साइड का उत्सर्जन बढ़ रहा है। 31 फसलों में जिंक की मात्रा कम है। जिंक की कमी से साल 2050 तक 138 मिलियन प्रभावित होंगे। रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि भारत अफ्रीका और दक्षिण एशिया में सबसे ज्यादा लोग प्रभावित होंगे। इनकी संख्या 48 मिलियन है।
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