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उमा भारती का अजीबोगरीब बयान- सांसों के उतार-चढ़ाव जैसी है मंदी, आई है तो जल्द चली आएगी

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नई दिल्ली। देश में आर्थिक मंदी को लेकर बहस छिड़ी हुई है। पहली तिमाही में जीडीपी में आई भारी गिरावट के बाद से विपक्षी दल लगातार मोदी सरकार की आर्थिक नीति की आलोचना कर रहे हैं। वहीं, पूर्व केंद्रीय मंत्री और बीजेपी नेता उमा भारती का कुछ और ही कहना है। उमा भारती ने कहा कि ये एक फेज है जो जल्द ही चला जाएगा। उन्होंने इसकी तुलना इंसान के सांस लेने से कर दी।

उमा भारती ने मंदी की तुलना सांसों से की

उमा भारती ने मंदी की तुलना सांसों से की

उमा भारती ने कहा कि इंसान सांस को अंदर-बाहर करता रहता है, लेकिन शरीर अपना काम सुचारू रूप से करता है। उन्होंने कहा कि जब ऐतिहासिक फैसले होते हैं तो कुछ लोगों को चुभते हैं और वे भटकाने के लिए मंदी जैसे आरोप लगाते हैं। उमा भारती ने कहा कि मोदी सरकार के साहस को नकारने के लिए कुछ लोग मंदी-मंदी का शोर कर रहे हैं।

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ऐतिहासिक फैसले कुछ लोगों को चुभते हैं - उमा भारती

ऐतिहासिक फैसले कुछ लोगों को चुभते हैं - उमा भारती

बीजेपी नेता ने कहा कि मंदी के दावे करने वालों में से कुछ लोग जेल चले गए हैं जैसे पूर्व केंद्रीय मंत्री पी. चिदंबरम, और कुछ अन्य लोगों ने स्वंय को ही जेल जैसे माहौल में बंद कर लिया है, वे जमीनी हकीकत से दूर हैं। गुरुवार को देहरादून में जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाने के लाभ के बारे में लोगों को जागरूक करने के देशव्यापी अभियान को लेकर आयोजित बीजेपी के एक कार्यक्रम में उमा भारती ने कहा, 'मंदी तो सांसों के आरोह और अवरोह की तरह है। सांस नीचे होती है, ऊपर होती है लेकिन शरीर का पूरा काम चल रहा होता है। उसका फंक्शन चल रहा होता है। मुझे कहीं कोई मंदी नहीं दिखाई दे रही।'

कहीं कोई मंदी नहीं- उमा भारती

कहीं कोई मंदी नहीं- उमा भारती

पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा कि आर्थिक विकास का आकलन करने के लिए कई तरीके हो सकते हैं, लेकिन महत्वपूर्ण बात ये है कि सभी लोग बिना किसी भेदभाव के रोजगार और जीविका प्राप्त कर रहे हैं, लेकिन आलोचना करने वालों को ये नहीं दिखाई देगा।' उमा भारती ने कहा कि हिंदू और हिंदुत्व कभी भी आक्रामक नहीं हो सकते हैं, लेकिन राष्ट्रवाद में आक्रामकता एक आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि हम आक्रामक राष्ट्रवाद की पूजा कर सकते हैं लेकिन आक्रामक हिंदुत्व की नहीं।

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English summary
uma bharti says- noise of recession is the frustration of opponents
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