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बेटे का करियर बनाने के लिए महाराष्ट्र की जनादेश का मखौल उड़ा गए उद्धव ठाकरे!

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बेंगलुरू। शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे की पहचान एक कुशल रणनीतिकार के रूप में है, लेकिन पुत्रमोह में अपने ही हाथों उन्होंने अपनी ही पार्टी की राजनीतिक हत्या कर दी है। कम से कम महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2019 के नतीजों और उसकी परिणित को देखकर तो यही कहा जा सकता है। शिवसेना का सबसे बड़ा कसूर यह है कि उसने महाराष्ट्र के जनादेश का मखौल बनाया है और उसका अपमान किया है।

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एनडीए सहयोगी शिवेसना और बीजेपी को महाराष्ट्र की जनता ने एक बार फिर चुनकर महाराष्ट्र में भेजा था, लेकिन दोनों दलों के बीच सत्ता के बंटवारे ने पूरे जनादेश का मखौल बना कर रख दिया। हालांकि महाराष्ट्र के जनादेश का जितना अपमान शिवसेना ने किया है, उसकी दोषी बीजेपी भी है। क्योंकि गठबंधन की राजनीति में एलायंस को साथ रहने की जिम्मेदारी दोनों दलों की होती है और शिवसेना के मुकाबले बीजेपी की जिम्मेदारी अधिक बनती है, क्योंकि बीजेपी एक पैन इंडिया दल है और 17 राज्यों में सरकारें सत्ता में हैं।

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बीजेपी और शिवसेना के बीच सत्ता संघर्ष और रस्साकसी का नाता तब से है जब वर्ष 1990 में दोनों दलों ने एक साथ चुनाव लड़ा था। महाराष्ट्र में बड़े भाई और छोटे भाई का खेल वर्ष 1995 विधानसभा में परवान चढ़ा जब शिवसेना ने पहली बार महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में नंबर पार्टी बनकर उभरी और उसने मनोहर जोशी के नेतृत्व में सरकार बनाने में कामयाब हुई है।

बीजेपी के मुकाबले शिवसेना की सीट अधिक जीती थी, तो स्वाभाविक रूप से शिवसेना का मुख्यमंत्री चुना गया और दिवंगत महाराष्ट्र बीजेपी के धाकड़ नेता गोपीनाथ मुंडे को डिप्टी सीएम बनाया गया। बीजेपी और शिवसेना के साझेदारी वाली सरकार पूरे पांच वर्ष तक बिना किसी उठापटक के चली, क्योंकि बीजेपी एक केंद्रीय पार्टी थी और उसने शिवसेना के साथ गठबंधन धर्म का पालन करते हुए नुक्ता-चीनी पर ध्यान नहीं दिया।

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हालांकि 1999 में हुए महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में बीजेपी और शिवसेना गठबंधन को बहुमत नहीं मिला और दोनों दलों को विपक्ष में बैठना पड़ गया, लेकिन शिवसेना की तुलना में बीजेपी को मत फीसदी में तेजी से उभार आ रहा था। वर्ष 1999 के विधानसभा चुनाव में एनडीए शीट शेयरिंग के तहत बीजेपी को 117 सीट और शिवसेना 161 सीटों पर चुनाव लड़ाया गया था।

बीजेपी का जनाधार महाराष्ट्र में तेजी से बढ़ रहा था और उसने 1999 विधानसभा चुनाव में 117 में से 56 निकालने में कामयाब रही जबकि शिवेसना ने 69 सीटों पर सिमट गई थी। इसके बाद बीजेपी ने पीछे मुड़कर नहीं देखा, महाराष्ट्र में बीजेपी के मत फीसदी में उत्तरोत्तर वृद्धि हो रही थी जबकि शिवसेना सिकुड़ रही थी।

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वर्ष 2014 विधानसभा चुनाव में बीजेपी और शिवसेना ने फिर अलग-अलग चुनाव लड़ा और बीजेपी 122 सीट जीतकर महाराष्ट्र में नंबर वन पार्टी बनी और शिवसेना महज 62 सीटों पर सिमट गई। शिवसेना और बीजेपी ने एक बार पुरानी रस्साकसी को छोड़कर साथ आईं और महाराष्ट्र में संयुक्त रूप से सरकार में शामिल हुईं।

लेकिन महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2019 में शिवसेना और बीजेपी साथ चुनाव लड़ी और जनता ने दोनों दलों की सरकारों एक बार फिर मौका दिया, लेकिन दोनों दलों की हेकड़ी से महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लगाया जा चुका है। शिवसेना प्रमुख पुत्र आदित्य ठाकरे को मुख्यमंत्री बनाने की मोह में जहां संभावित सत्ता से दूर हो गए, वहीं बीजेपी शीर्ष नेतृत्व भी झुकने को तैयार नहीं हुईं।

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हालांकि बीजेपी ने शिवसेना को 16 मंत्री पद के साथ डिप्टी सीएम का ऑफर किया था, जो 56 विधानसभा सीटों के लिहाल से कहीं भी अनुचित नहीं था, लेकिन शिवसेना प्रमुख बार-बार यह रट लगाए रहे कि बीजेपी चुनाव पूर्व किए वादों से मुकर रही है, जो उनके मुताबिक 50-50 फार्मूला था।

शिवसेना प्रमुख के मुताबिक चुनाव पूर्व बीजेपी ने 50-50 फार्मूले के तहत सत्ता के हस्तांतरण का वादा किया था, लेकिन बीजेपी नेता और पूर्व महाराष्ट्र सीएम देवेंद्र फडणवीस ने इसका जोरदार खंडन करके शिवसेना को झूठा करार दे दिया। माना जा रहा है देवेंद्र फडणवीस के झूठा करार देने को शिवसेना प्रमुख ने अपने अहम का विषय बना लिया और उस पर अब तक काबिज है।

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यही वजह है कि महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी द्वारा महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन की सिफारिश करने की घोषणा के बाद शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए हैं। महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन की सिफारिश देने के लिए सुप्रीम कोर्ट पहुंची शिवसेना ने राज्यपाल कोश्यारी पर पक्षपात करने का आरोप लगाया है।

शिवसेना के मुताबिक राज्यपाल ने बीजेपी को सरकार गठन के लिए 48 घंटे को मौका दिया, लेकिन शिवसेना को महज 24 घंटे को मौका दिया गया। लेकिन ऐसा लगता है कि शिवसेना प्रमुख सत्ता से बाहर होने की बौखलाहट में यह भूल गए हैं कि शिवसेना जिसके साथ महाराष्ट्र में गठबंधन की सरकार बनाने के सपने देख रही थी, उस कांग्रेस ने पहले ही शिवसेना के साथ गठबंधन को लेकर चुप्पी साध ली थी।

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जी हां, यहां बात कांग्रेस अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी की हो रही है, जिन्होंने बेमेल जोड़ी शिवसेना के साथ महाराष्ट्र में गठबंधन में शामिल होने के लिए लंबी चुप्पी साध ली थी, जिसका मतलब यह लगाया गया कि कांग्रेस शिवसेना के साथ गठबंधन में शामिल होने के लिए तैयार नहीं है। यही वजह थी कि एनसीपी नेता अजीत पवार ने सोनिया गांधी को आड़ों हाथ लेते हुए कहा कि मैडम कंफ्यूज हैं।

हालांकि एनसीपी नेता अजीत पवार ने सरकार बनाने के लिए कम समय मिलने की भी शिकायत की है जबकि सच्चाई यह है कि कांग्रेस शिवसेना के साथ गठबंधन में किसी भी सूरत में शामिल नहीं होना चाहती है और एनसीपी बिना कांग्रेस के समर्थन के सरकार गठन का दावा पेश ही नहीं कर सकती थी और अगर कांग्रेस तैयार भी हो जाती तो भी एनसीपी और कांग्रेस शिवसेना को मुख्यमंत्री पद देने को तैयार नहीं होती।

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अततः कहां जा सकता है कि शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने पुत्रमोह में महाराष्ट्र के जनादेश का मखौल उड़ाया है और इसका खामियाजा शिवसेना को महाराष्ट्र में होने वाले आगामी विधानसभा चुनावों में चुकाना पड़ सकता है। हालांकि शिवसेना चीफ ने महाराष्ट्र के जनादेश के साथ ही साथ बेटे आदित्य ठाकरे की राजनीतिक पारी को भी शुरू होने से पहले खतरे में डाल दिया है।

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पहली बार विधायक चुने गए 26 वर्षीय आदित्य ठाकरे को अभी राजनीतिक ककहरा पढ़ना सीखना था। उनके लिए बीजेपी द्वारा ऑफर किया गया डिप्टी सीएम और 16 मंत्री पद काफी था, लेकिन अहम के शिकार हुए उद्धव ठाकरे के हाथ से न केवल महाराष्ट्र की सत्ता चली गई बल्कि बेटे आदित्य ठाकरे की राजनीतिक यात्रा में ऐच्छिक रूकावट पैदा करने का काम किया है।

यह भी पढ़ें- Maharashtra Govt Formation: रात भर विधायकों संग बैठक करते रहे आदित्य ठाकरे...

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English summary
After 19 days of political drama in Maharashtra, finally Governor of Maharashtra Bhagat Singh Koshiyari recommended imposition of President's rule in Maharashtra. While the bjp-Shiv Sena got the mandate from the people of Mahasharta, the two had failed to form the government due to differences of party leadership on the issue of transfer of power.
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