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जानिए, कैसे उद्धव ठाकरे की सफाई ने उड़ा रखी है सहयोगी NCP-कांग्रेस की नींद!

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बेंगलुरू। महाराष्ट्र में महा विकास अघाड़ी मोर्चे की सरकार के 100 दिन पूरे होने पर मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने एक साक्षात्कार में एक वाक्य में यह कहना चाहते हैं कि उनसे गलती हुई है और पश्चाचाप करना चाहते हैं, लेकिन इज्जत बख्शने की शर्त पर। यह संकेत शिवसेना चीफ उद्धव ठाकरे पिछले एक पखवाड़े से दे रहे हैं, लेकिन अभी तक उन्हें कोई खास सफलता मिलते नहीं दिख रही है।

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महाविकास अघाड़ी मोर्च की सरकार में उद्धव ठाकरे की अकुलाहट का असली कारण हिंदूवादी राजनीति पर चचेरे भाई राज ठाकरे की नजर है, जिसके जरिए राज ठाकरे महाराष्ट्र की राजनीति में पुनर्वापसी का सपने देख रहे हैं। उद्धव इसलिए घबराए हुए हैं कि अगर हिंदूवादी राजनीति की उर्वर जमीन पर राज ठाकरे ने एक बार फसल काट ली, तो फिर उस जमीन पर शिवसेना चीफ कभी दावा नहीं ठोंक पाएंगे।

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हालांकि असम को देश से अलग करने' की बात कहने वाले जेएनयू छात्र शरजील इमाम के हाथ कटवाकर हाइवे पर रखने जैसे पारंपिक और उत्तेजक बयान देकर शिवसेना ने मौजूदा महाराष्ट्र सरकार को ही नही, बल्कि कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी तक को हिला दिया था, क्योंकि कॉमन मिनिमम प्रोग्राम से बंधे उद्धव ठाकरे से ऐसे बयान की उम्मीद सोनिया ने नहीं होगी।

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ऐसी चर्चा थी कि सोनिया गांधी महाराष्ट्र में शिवसेना के साथ सरकार बनाने के लिए राजी तब हुईं थीं जब शिवसेना की ओर से लिखित आश्वसान मिल गया था कि वो गठबंधन तोड़कर नहीं जाएंगे। चूंकि अभी महाराष्ट्र गठबंधन सरकार में उद्धव की हालत किसी से छिपी नहीं है, इसलिए सीएम उद्धव ठाकरे ने जोखिम लेने से गुरेज नहीं किया।

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शिवसेना को आंशिक ही सही, लेकिन इसका फायदा हुआ, क्योंकि शिवसेना को उसकी पुरानी रंगत में लौटता देखकर बीजेपी ने मौके पर चौका लगाते हुए महाराष्ट्र में सरकार बनाने के लिए फिर ऑफर तक दे डाला, लेकिन बीजेपी के शीर्ष आलाकमान की ओर से कोई पहल नहीं होने पर मामला ठन-ठन गोपाल हो गया।

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अब एक बार उद्धव ठाकरे ने अपनी ही पार्टी के मुखपत्र सामना को साक्षात्कार देकर अपनी विरह का वर्णन किया है। उद्धव ठाकरे के साक्षात्कार के पहले हिस्से में दिए बयान में उद्धव कहते हैं कि उन्होंने कोई चांद-तारे नहीं मांग लिए थे, बस सत्ता में बराबर भागीदारी ही तो मांगी थी।

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उद्धव ठाकरे साक्षात्कार में एक बार फिर दोहराया कि भाजपा ने शिवसेना से वादा किया था कि महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2019 के नतीजे आने के बाद सत्ता में बराबरी की भागीदारी होगी और प्रदेश में मुख्यमंत्री शिवसेना का होगा। माना जा रहा है कि यही वह वजह है, जिससे मोदी और शाह उद्धव ठाकरे को ग्रीन सिग्नल देने से बच रहे हैं।

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क्योंकि अमित शाह कई बार कह चुके हैं कि बीजेपी ने महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के पूरे चुनावी कैंपेन शिवसेना-बीजेपी के सीएम कैंडीडेट के तौर पर देवेंद्र फडणवीस का नाम जनता के सामने रखा था और जनता ने दोनों दलों को जनादेश देकर सत्ता में पहुंचाया था। शाह ने शिवसेना पर झूठ बोलने का आरोप लगाते हुए कहा था कि चुनाव से पूर्व ऐसा कोई वादा नहीं किया गया था वरना पूरे चुनावी कैंपेन में शिवसेना चुप क्यों बैठी रही।

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गौरतलब है उद्धव ठाकरे हिंदुत्व की राजनीति में पुनर्वापसी की गुंजाइश के लिए ही केंद्र मोदी सरकार द्वारा लाए गए नागरिकता संशोधन विधेयक को संसद में न केवल सपोर्ट किया था बल्कि महराष्ट्र विधानसभा में सीएए के खिलाफ अब तक प्रस्ताव नहीं लाकर महाराष्ट्र की जनता को लगातार समझाने की कोशिश की है कि उन्होंने हिंदुत्व को नहीं छोड़ा है।

अपनी सरकार के 100 दिन पूरे होने पर अयोध्या यात्रा की योजना की घोषणा की शिवसेना चीफ की हिंदुत्व की जमीन बचाने की कवायद के रूप मे देखा जा सकता है, क्योंकि जिन सेक्युलर दलों के साथ शिवसेना अभी सरकार में हैं, उनमें शामिल कांग्रेस तो राम के अस्तित्व पर भी सवाल उठा चुकी है।

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शिवसेना चीफ उद्धव ठाकरे की मौजूदा गठबंधन सरकार में बिलबिलाहट को समझना मुश्किल नहीं है। यह इसलिए क्योंकि उद्धव भले ही महाविकास अघाड़ी मोर्च वाली सरकार के अगुवा हैं, लेकिन उनकी हालत सरकार में एक रबड़ स्पैम्प से अधिक कुछ नहीं है। इसके पीछे की वजह साफ है।

मुख्यमंत्री की अगुवाई सरकार में शिवसेना महाविकास अघाड़ी मोर्चे की सरकार की अगुवाई भले ही कर रही है, लेकिन उसके पास सरकार में कोई भी महत्वपूर्ण हाथ नहीं लगा है जबकि गठबंधन के दूसरे दल मसलन एनसीपी और कांग्रेस का लगभग सभी महत्वपूर्ण मंत्रालयों पर कब्जा हैं। एनसपी के पास गृह मंत्रालय और वित्त मंत्रालय है जबकि कांग्रेस के पास मलाईदार लोक निर्माण मंत्रालय, राजस्व मंत्रालय और विधानसभा में स्पीकर पद है।

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यही वजह है कि शिवसेना चीफ महाराष्ट्र के चीफ बनकर भी छटपटा रहे हैं। उनके छटपटाने की एक और बड़ी वजह यह है कि सत्ता की धमक और ठसक उनके हिस्से में आना चाहिए, वह भी उनके पास नहीं है, क्योंकि एनसीपी चीफ शरद पवार रिमोट के जरिए सरकार को कंट्रोल कर रह हैं।

सरकार चलाने में अनुभवहीन उद्धव ठाकरे महज एनसीपी के इशारों पर सरकार लेने को मजूबर हैं। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री का आधिकारिक आवास वर्षा भी एनसीपी चीफ शरद पवार के सिल्वर ओक आवास के सामने फीका है, क्योंकि सत्ता के गलियारों के चक्कर लगाने वाले वर्षा की जगह सिल्वर ओक को प्राथमिकता देते हैं, क्योंकि लोगों को कही न कहीं एहसास हो चुका है कि कहां जाने से काम जल्द हो जाएगा।

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उद्धव ठाकरे के असहनीय दर्द को विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष और पूर्व महाराष्ट्र मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की प्रशंसा से भी समझा जा सकता है। सदन में महाराष्ट्र में पूर्व सहयोगी और बीजेपी नेता देवेंद्र फड़णवीस की तारीफ करते हुए उद्धव ने कहा कि उन्होंने देवेंद्र फडणवीस से बहुत चीजें सीखी हैं और वो हमेशा उनके दोस्त रहेंगे। उद्धव यही नहीं रूके। उन्होंने आगे कहा कि शिवसेना ने पिछले 5 साल में कभी भी बीजेपी को धोखा नहीं दिया है।

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यह दुहाई उद्धव तब दे रहे थे, जब उन्होंने बीजेपी से अलग होने के लिए देवेंद्र फड़णवीस को जिम्मेदार ठहराया था। बाकायदा शिवसेना की ओर बयान जारी करके कहा गया था कि अगर बीजेपी देवेंद्र फडणवीस की जगह केंद्रीय नेता नितिन गडकरी को मुख्यमंत्री बनाती है, तो उसे सरकार में शामिल होने में कोई समस्या नहीं है।

हालांकि उद्धव ठाकरे को सबसे अधिक धक्का जमीन सरकने से हुई है, जिसके कारण उनके चचेरे भाई राज ठाकरे हैं। हिंदुत्व राजनीति पर चचेरे भाई राज ठाकरे के कब्जाने की कोशिश से सेक्युलर राजनीति में फंसे उद्धव की हालत सांप और छछूंदर जैसी हो गई है। न गठबंधन से निकलते बन रहा है और गठबंधन में रहा जा पा रहा है।

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उद्धव अच्छी तरह जानते हैं कि कांग्रेस और एनसीपी के साथ सरकार में बने रहने से शून्य की ओर उत्तरोत्तर हिंदूवादी राजनीति में हाथ आजमाने के लिए राज ठाकरे को सुनहरा मौका दे दिया है। उद्धव अच्छी तरह जानते हैं कि शिवसेना के वास्तविक उत्तराधिकारी राजठाकरे को माना जाता है और अगर एक बार राज ठाकरे ने कमान संभाल ली तो उनसे यह मुद्दा छीनना टेढ़ी खीर हो जाएगा।

महाविकास अघाड़ी मोर्च की सरकार के 100 दिन पूरे होने पर मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के अयोध्या यात्रा के मायने हिंदूवादी राजनीति पर अपनी दावेदारी को पुख्ता करना है, जिसके जरिए उद्धव ठाकरे चचेरे भाई राज ठाकरे और पुरानी सहयोगी बीजेपी को संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं कि शिवसेना हिंदुत्व को नहीं छोड़ने जा रही है।

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लेकिन उद्धव ठाकरे की यह कोशिश बेमानी तक साबित होती रहेगी जब तक कांग्रेस और एनसीपी दलों के साथ सरकार में शामिल रहेंगे। हालांकि महाराष्ट्र सरकार में परस्पर विरोधी दल के साथ शामिल होने के बाद से ही उद्धव ठाकरे शिवसेना के वजूद को जिंदा रखने के लिए एक अलग लाइन पकड़े हुए हैं।

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कांग्रेस और एनसीपी के साथ गठबंधन सरकार चला रहे उद्धव ठाकरे का नागरिकता संशोधन विधेयक के पक्ष में लोकसभा में वोट करना और राज्यसभा में वॉक आउट होना, पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के भारत बचाओ रैली में 'मेरा नाम राहुल सावरकर नहीं है, जो माफी मांगूगा' बयान पर शिवसेना की तल्ख टिप्पणी करने और देशव्यापी विरोध के बावजूद सीएए के खिलाफ विधानसभा में प्रस्ताव लाने की अनिच्छा दर्शाते हैं कि उद्धव ठाकरे पार्टी के वजूद को लेकर कितने चिंतिंत हैं और पार्टी की छवि के लिए वह किसी भी स्तर पर जा सकते हैं। इनमें मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना भी शामिल है।

यह भी पढ़ें-पुरानी रंगत में लौट आई है शिवसेना, BJP ने दिया महाराष्ट्र में सरकार बनाने का ऑफर!

हिंदुत्व राजनीति पर राज ठाकरे के बढ़ते कदम से घबरा गए उद्धव

हिंदुत्व राजनीति पर राज ठाकरे के बढ़ते कदम से घबरा गए उद्धव

उद्धव ठाकरे को सबसे अधिक चोट हिंदुत्व राजनीति पर चचेरे भाई राज ठाकरे के कब्जाने की कोशिश से हो रही है। शिवसेना के सेक्युलर राजनीति के झंडाबरदार कांग्रेस और एनसीपी के साथ सरकार बनाने के बाद महाराष्ट्र में हिंदूवादी राजनीति शून्यता की ओर बढ़ चली थी, क्योंकि उद्धव ठाकरे ने भले ही कॉमन मिनिमम प्रोग्राम के चलते हिंदुत्व की राजनीति से किनारा किया हो, लेकिन हिंदू, हिंदुत्व और भगवा से उद्धव की राजनीति मजबूरी और दूरी ने राज ठाकरे को हिंदुत्व की राजनीति को कब्जाने का मौका दिया।

मनसे की राजनीति में भगवा रंग के शामिल होते ही उद्धव के कान खड़े हुए

मनसे की राजनीति में भगवा रंग के शामिल होते ही उद्धव के कान खड़े हुए

राज ठाकरे ने शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के सेक्युलर दलों के साथ सरकार में शामिल होने और हिंदुत्व की राजनीति से किनारा करने के बाद उभरे शून्यता को भरने के लिए हिंदुत्व की राजनीति में पुनः प्रवेश की योजना तैयार की और उसको अमलीजामा पहनाने के लिए राज ठाकरे ने मनसे की तीन रंगो वाले पार्टी के झंडे को पूरी तरह से भगवा रंग में रंग दिया। मनसे की राजनीति में भगवा रंग के शामिल होते ही उद्धव के कान खड़े हो गए और उन्हें आभास हो गया कि मौजूदा सरकार में माया मिली न राम वाली कहावत उनके साथ चरित्रार्थ होने जा रही है।

उद्धव बोले, देवेंद्र चाहते तो बीजेपी-शिवसेना में फूट कभी नहीं होता

उद्धव बोले, देवेंद्र चाहते तो बीजेपी-शिवसेना में फूट कभी नहीं होता

CM उद्धव ने बीजेपी-शिवसेना में फूट का दर्द साझा करते हुए कहा कि उन्होंने फडणवीस से बहुत कुछ सीखा है, वो देवेंद्र फडणवीस को कभी विपक्ष को नेता नहीं कहूंगा, बल्कि एक पार्टी का बड़ा जिम्मेदार नेता कहूंगा। अगर आप हमारे लिए अच्छे होते तो यह सब (बीजेपी-शिवसेना में फूट) कभी नहीं होता। देवेंद्र फडणवीस की ओर इशारा करते हुए उद्धव ने आगे कहा, मैं एक भाग्यशाली मुख्यमंत्री हूं, क्योंकि जिन्होंने मेरा विरोध किया वो अब मेरे साथ बैठे हैं और जो मेरे साथ थे वे अब विपरीत दिशा में बैठे हैं। मैं अपनी किस्मत और जनता के आशीर्वाद से यहां पहुंचा हूं, मैंने कभी किसी को नहीं बताया कि मैं यहां आऊंगा लेकिन मैं आ गया।'

अयोध्या यात्रा के जरिए उद्धव ठाकरे ने चचेरे भाई राज ठाकरे का रोका

अयोध्या यात्रा के जरिए उद्धव ठाकरे ने चचेरे भाई राज ठाकरे का रोका

महाविकास अघाड़ी मोर्च की सरकार के 100 दिन पूरे होने पर मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने अयोध्या जाने की घोषणा की थी। अयोध्या यात्रा के जरिए उद्धव ठाकरे चचेरे भाई राज ठाकरे और पुरानी सहयोगी बीजेपी को संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं कि शिवसेना हिंदुत्व को नहीं छोड़ने जा रही है, लेकिन उद्धव ठाकरे की यह कोशिश बेमानी तक साबित होती रहेगी जब तक कांग्रेस और एनसीपी दलों के साथ सरकार में शामिल रहेंगे, क्योंकि उद्धव ठाकरे अयोध्या यात्रा राम के अस्तित्व से जुड़ा हुआ, लेकिन कांग्रेस तो भगवान राम के अस्तित्व पर ही सवाल खड़ा कर चुकी है।

उद्धव ठाकरे का परस्पर विरोधी विचारधारा सरकार में का दम घुट रहा है

उद्धव ठाकरे का परस्पर विरोधी विचारधारा सरकार में का दम घुट रहा है

महाराष्ट्र की महा विकास अघाड़ी मोर्च सरकार के मुखिया उद्धव ठाकरे को कहावत 'माया मिली न राम' के साथ 'कर्म से गए तो गए धर्म से नहीं जाएंगे' श्लोक भी याद आ गए। निः संदेह कांग्रेस और एनसीपी जैसी परस्पर विरोधी विचारधारा वाली सरकार में उद्धव ठाकरे का दम घुट रहा है। महाराष्ट्र में नई सरकार के शपथ ग्रहण से लेकर मंत्रालय बंटवारे को लेकर हुई खींचतान में शिवसेना को सबसे अधिक नुकसान हुआ है और अब जब पार्टी की मूल एजेंडा हिंदुत्व, जिसको ऊपर रखकर वर्ष 1966 में शिवसेना की स्थापना की गई थी।

उद्धव चाहे-अनचाहे इसलिए शरद पवार को अपना गुरू बनाना पड़ा है

उद्धव चाहे-अनचाहे इसलिए शरद पवार को अपना गुरू बनाना पड़ा है

महाराष्ट्र गठबंधन सरकार में भले ही उद्धव ठाकरे मुखिया हैं, लेकिन गठबंधन सरकार पर एनसीपी चीफ शरद पवार पर स्वैच्छिक अंकुश उन्हें बेचैन कर रहा है। स्वैच्छिक अंकुश इसलिए क्योंकि सरकार चलाने का पूर्व अनुभव होने के चलते उद्धव को शरद पवार के इशारों पर सरकार चलाना पड़ रहा है। उद्धव चाहे-अनचाहे इसलिए शरद पवार को अपना गुरू बनाना पड़ा है, जिससे कई जगहों पर हुए नफा-नुकसान का पता उद्धव को बाद में पता चला है। महाराष्ट्र में विभाग बंटवारे के दौरान उद्धव ठाकरे की स्थिति को अच्छी तरह से समझा जा सकता है।

शरजील इमाम जैसे कीड़ों को तुरंत खत्म करने का सुनाया फरमान

शरजील इमाम जैसे कीड़ों को तुरंत खत्म करने का सुनाया फरमान

शरजील इमाम के खिलाफ सामना में लिखे लेख में बेहद ही उत्तेजक ढंग से शब्द पिरोए गए हैं, जो शिवसेना की पुरानी पहचान है। संपादकीय में शरजील इमाम को टारगेट करते हुए लिखा गया है, जो शरजील इमाम ‘चिकन नेक' पर कब्जा कर भारत को विभाजित करना चाहता है, उसके हाथ काट कर चिकन नेक हाई-वे पर रख देना चाहिए ताकि लोग उसे देखकर सबक ले सके। लेख के जरिए शिवसेना ने गृहमंत्री अमित शाह को हिदायत देते हुए कहा कि शरजील जैसे कीड़ों को तुरंत खत्म कर देना चाहिए।

उद्धव ठाकरे बोले, हिंदूवादी राजनीति से कभी अलग नहीं हुई शिवसेना

उद्धव ठाकरे बोले, हिंदूवादी राजनीति से कभी अलग नहीं हुई शिवसेना

हिंदुत्व को लेकर दी सफाई शिवसेना के मुखपत्र सामना में छपे साक्षात्कार में ठाकरे ने कहा कि महाराष्ट्र में सत्ता परिवर्तन के समीकरण के लिए भाजपा जिम्मेदार ठहराते हुए उद्धव ने कहा तीन दलों के गठबंधन को हिंदुत्व की विचारधारा से अलग होना नहीं कहा जा सकता है। ठाकरे ने भाजपा को याद दिलाया कि उसने कई दलों के साथ विचारधारा अलग होने की वजह से भी हाथ मिलाया था। पार्टी ने केंद्र और राज्य में अलग विचारधारा होने के बावजूद लोगों के साथ गठबंधन किया।

मैंने पिता का वादा दिया था कि एक शिव सैनिक की सीएम बनाऊंगा

मैंने पिता का वादा दिया था कि एक शिव सैनिक की सीएम बनाऊंगा

मैंने अपने पिता का वादा दिया था कि मैं एक शिव सैनिक को प्रदेश की मुख्यमंत्री की कुर्सी पर पहुंचाउंगा और मैंने इसके लिए किसी भी सीमा तक जाने का फैसला लिया। बीजेपी पर वादा खिलाफी का आरोप लगाते हुए उद्धव ने साक्षात्कार में कहा कि अगर इन लोगों ने वादा पूरा किया होता तो मैं उस कुर्सी पर नहीं होता, कोई और शिवसैनिक उस कुर्सी पर होता

Comments
English summary
The real reason for Uddhav Thackeray's unease in the government of Mahavikas Aghadi Morcha is cousin Raj Thackeray's eye on Hinduist politics, through which Raj Thackeray is dreaming of a return to Maharashtra politics. Uddhav is nervous because if Raj Thackeray once harvested the fertile land of Hinduist politics, then the Shiv Sena Chief would never stake claim on that land.
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