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राज ठाकरे के भगवा रंग- ढंग देख घबराए उद्धव, कभी भी यू टर्न मार सकती है शिवसेना?

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बेंगलुरू। भारतीय राजनीति ऊंट कब किस करवट बैठगा, इसका जवाब कोई भी राजनीतिज्ञ भरोसे से नहीं दे सकता है। कुछ ऐसा ही नजारा वर्तमान में महाराष्ट्र की क्षेत्रीय राजनीति में दिखाई पड़ रहा है, जहां मनसे चीफ राज ठाकरे के हिंदू, हिंदुत्व और हिंदूवादी राजनीति की ओर कदम बढ़ाने से सियासी पारा बढ़ गया है।

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वर्ष 2006 में शिवसेना को छोड़कर अलग पार्टी बनाने वाले राज ठाकरे 14 वर्ष के वनवास के बाद एक बार फिर हिंदुत्व की राजनीति में वापस लौट रहे हैं, क्योंकि पिछले 54 वर्ष से हिंदूवादी राजनीति कर रही शिवसेना अब महाराष्ट्र में परस्पर विरोधी दल एनसीपी और कांग्रेस के साथ गठबंधन सरकार चला रही है। इससे महाराष्ट्र में हिंदुवादी राजनीति में शून्यता आ गई है।

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यही कारण है कि महाराष्ट्र में हिंदूवादी राजनीति की शून्यता को भरने के लिए भगवा झंडा थामने जा रहे हैं, जिससे शिवसेना चीफ और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की त्यौरी चढ़ गई है। महाराष्ट्र में एक रैली को संबोधित करते हुए महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के अध्यक्ष राज ठाकरे ने नागरिकता संशोधन कानून का समर्थन करके शिवसेना की ताबूत में एक और कील ठोकने की कोशिश की है।

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राज ठाकरे के सियासी बयान से तिलमिलाए उद्धव ठाकरे को इसलिए बयान देना पड़ गया है कि शिवसेना का रंग और अंतरंग अभी भी भगवा है। शिवसेना चीफ के इस बयान का महाराष्ट्र के गठबंधन सरकार पर क्या असर पड़ेगा, यह तो आने वाले समय में पता चलेगा, क्योंकि बयान देते वक्त शिवसेना चीफ ने गठबंधन धर्म, सेक्युलर कांग्रेस और एनसीपी की छवि और कॉमन मिनिमम प्रोग्राम तीनों का ख्याल नहीं रखा है।

गौरतलब है मनसे चीफ राज ठाकरे पूरी तरह से भगवा रंग में रंगने पर अमादा हैं और चाचा और शिवसेना संस्थापक बालासाहिब ठाकरे के असली उत्तराधिकारी बनने के लिए जोर आजमाइश करते दिख रहे हैं। अभी हाल में मनसे के पांच रंगों वाला झंडा भगवा रंग में बदलते ही इसकी पुष्टि हो गई है।

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राज ठाकरे बालासाहिब ठाकरे के जन्मदिन पर महाराष्ट्र में एक बड़ा कार्यक्रम आयोजित करने जा रहे हैं और माना जा रहा है कि उसी दिन मनसे चीफ पार्टी के नए झंडे का अनावरण भी करेंगे और शिवसेना के बाद रिक्त हुए हिंदूवादी राजनीति को भरने का आह्वान भी करेंगे।

मनसे का झंडा भगवा में बदलने और महाराष्ट्र की हिंदूवादी राजनीति में राज ठाकरे के बढ़ते कदम से शिवसेना चीफ को महाराष्ट्र में अपनी सियासी जमीन खिसकती हुई दिख रही है। यही कारण है कि उद्धव ठाकरे को बयान जारी करके कहना पड़ा कि सियासत के लिए शिवसेना ने कांग्रेस और एनसीपी का दामन थामा है और उसका रंग अभी भी भगवा है।

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शायद शिवसेना के भगवा कलेवर को साबित करने के लिए ही उद्धव ठाकरे ने महा विकास अघाड़ी मोर्च की सरकार के 100 दिन पूरे होने पर अयोध्या जा रहे हैं। उद्धव अयोध्या यात्रा के जरिए अपने कोर वोटरों को संदेश देना चाहते हैं कि शिवसेना नहीं बदली है, बल्कि उसकी रणनीति बदली हैं, लेकिन लगता है कि शिवसेना भूल गई हैं कि वह कांग्रेस और एनसीपी के साथ गठबंधन में हैं, जो हिंदुत्व को नहीं, बल्कि सेक्युलरिज्म के पैरोकार हैं।

आंशका है कि शिवसेना चीफ के ताजा बयान से महा विकास अघाड़ी मोर्च की सरकार में हलचल हो सकती है। जिस तरह से भगवा राजनीति को लेकर शिवसेना चीफ उद्धव ठाकरे मुखर हैं, उससे सहयोगी दल एनसीपी और कांग्रेस दोनों नाराज हो सकते हैं।

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परस्पर विरोधी विचारधारा वाली दलों के साथ गठबंधन करके मुख्यमंत्री बने उद्धव ठाकरे के लिए मौजूदा स्थिति खतरे की घंटी से कम नहीं है, क्योंकि मुस्लिम वोट बैंक की और मजबूती के लिए लिए कांग्रेस और एनसीपी नेता देर-सबेर शिवसेना चीफ के बयान पर पलटवार जरूर करेंगे, क्योंकि उनके बयान से दोनों पार्टियों की छवि और वोट बैंक दोनों पर बड़ा असर पड़ना संभव है।

उल्लेखनीय है शिवसेना चीफ उद्धव ठाकरे भले ही महाराष्ट्र की गठबंधन सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं, लेकिन उनकी हैसियत अभी रबड़ स्टैंप से अधिक कुछ नहीं हैं। महाराष्ट्र सरकार में गृह, वित्त और राजस्व जैसे महत्वपूर्ण मंत्रालयों पर कांग्रेस और एनसीपी का कब्जा है। कांग्रेस अभी भी शिवसेना से कृषि मंत्रालय छीनने का दवाब बना रही है जबकि उसके पास 18 मंत्री पद और विधानसभा स्पीकर पद है।

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सभी जानते हैं कि एनसीपी चीफ शरद पवार महाराष्ट्र में समानांतर सरकार चला रहे हैं और बिना उनकी अनुमति के उद्धव ठाकरे एक पत्ता भी इधर से उधर नहीं रख पा रहे हैं। इसमें अकेले एनसीपी चीफ शरद पवार नहीं, बल्कि उद्धव ठाकरे की सरकार चलाने की अनुभवहीनता भी दोषी है।

माना जा रहा है कि शिवसेना चीफ उद्धव ठाकरे अभी 'माया मिली ना राम' वाले मोड में चल रहे हैं। उन्हें आभास हो चुका है कि परस्पर विरोधी दलों वाली सरकार में कांग्रेस और एनसीपी न केवल फायदे हैं बल्कि उनकी राजनीतिक हैसियत भी दांव पर नहीं है जबकि गठबंधन सरकार में उसका सबकुछ दांव पर लगा हुआ है।

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गठबंधन सरकार के लिए शिवसेना को उन हिंदूवादी मुद्दों को लगभग त्याग करना पड़ा है, जिसके दम पर शिवसेना स्थानीय राजनीति से विधानसभा और केंद्र की राजनीति में पहुंचने में कामयाब हुई थी। अभी उसके हाथ में भले महाराष्ट्र के मुखिया की कमान है, लेकिन उसकी डोर एनसीपी चीफ के हाथ हैं, दूसरी ओर उसके सियासी जमीन पर चचेरे भाई राज ठाकरे द्वारा सेंध लगना तय है।

उद्धव ठाकरे अच्छी तरह जानते हैं कि परस्पर विरोधी विचारधाराओं वाली महाराष्ट्र गठबंधन सरकार का लंबा भविष्य नहीं है और अगर मौजूदा सरकार खींचतान के बीच भी अगर 6-12 महीने चल गई तो 54 वर्ष पुरानी शिवसेना की सियासी जमीन उसके हाथ से पूरी तरह से निकल जाएगी।

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राज ठाकरे की छवि और अंदाज-ओ-बयां उद्धव ठाकरे के पिता और संस्थापक बालासाहिब से बिल्कुल मिलता है इसलिए राज ठाकरे को अपना नेता मानने में हिंदूवादी वोटर देर नहीं लगाएंगे। वर्ष 2005 में जब बालासाहिब ठाकरे ने उद्धव को अपना उत्तराधिकारी चुना था, तो राज ठाकरे ने अकेले शिवसेना को अलविदा नहीं कहा था, उनके साथ शिवसेना में मौजूद उनके समर्थकों का पूरा हुजूम शिवसेना छोड़कर गया था।

चूंकि राज ठाकरे की 14 वर्ष पुरानी राजनीतिक यात्रा कुछ खास नहीं रही है इसलिए राज ठाकरे के लिए यह बढ़िया मौका है कि शिवसेना द्वारा खाली किए गए रिक्त स्थान को भर सके। राज ठाकरे अच्छी तरह जानते हैं कि हिंदूवादी राजनीति के जरिए ही महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना को प्रासंगिक बनाया जा सकता है।

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इसलिए राज ठकारे ने पार्टी को झंडे को भगवा रंग में रंगने में समय जाया नहीं किया। अगर साल भर भी महा विकास अघाड़ी सरकार टिक गई तो हिंदूवादी राजनीति पर मनसे का कब्जा तय हो जाएगा, क्योंकि तब अगर सरकार गिर भी जाती है, तो शिवसेना को वापस अपनी जमीन पर लौटना मुश्किल हो जाएगा।

मनसे चीफ के बीजेपी नेता देवेंद्र फडणवीस के साथ लंबी मुलाकात और राज ठाकरे के नागरिकता संशोधित कानून के समर्थन ने उद्धव ठाकरे की नींद उड़ा रखी है। उद्धव को आभास हो गया है कि विरोधी दलों के साथ गठबंधन सरकार में वह फंस गई है, जिसकी बड़ी कीमत पार्टी को उठानी पड़ सकती है।

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क्योंकि अगर शिवसेना का जनाधार मनसे की ओर शिफ्ट हो गया तो शिवसेना की हैसियत फिर सिमटकर स्थानीय निकाय तक सिमट सकती है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि महाराष्ट्र में संभावित मध्यावधि चुनाव अथवा 2024 विधानसभा चुनाव में शिवसेना का ग्राफ गिरना तय है, क्योंकि सेक्युलर वोट शिवसेना का मिलना नहीं है और हिंदुत्व के नाम पर वह वोट मांग नहीं पाएगी।

यह भी पढ़ें- CAA के समर्थन में आए राज ठाकरे, बोले पाक-बांग्लादेश के अवैध मुस्लिम घुसपैठियों को बाहर किया जाए

MNS चीफ राज ठाकरे में जनता देखती है बालासाहेब ठाकरे की छवि

MNS चीफ राज ठाकरे में जनता देखती है बालासाहेब ठाकरे की छवि

महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना प्रमुख राज ठाकरे अपनी कट्टर छवि वाले नेता के रूप में मशहूर हैं। अधिकांश लोगों को MNS चीफ राज ठाकरे में बालासाहेब ठाकरे की छवि दिखती है। यही कारण है कि जब बालासाहेब ठाकरे ने वर्ष 2004 में पुत्र उद्धव ठाकरे को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया तो एक वर्ष के भीतर ही राज ठाकरे ने शिवसेना को छोड़ दिया था।

हिंदूवादी राजनीति में प्रवेश के लिए राज ठाकरे के पास बढ़िया मौका

हिंदूवादी राजनीति में प्रवेश के लिए राज ठाकरे के पास बढ़िया मौका

शिवसेना से इतर नई पार्टी के गठन का राज ठाकरे को फायदा नहीं हुआ। भले ही एमएनएस ने पहले ही विधानसभा चुनाव में 13 जीतकर बेहतरीन आगाज भी किया, लेकिन यूपी और बिहार से पलायित होकर महाराष्ट्र में जीविकोपार्जन कर रहे लोगों के खिलाफ मनसे की राजनीति बैकफायर कर गई। राज ठाकरे ने शिवसेना की हिंदूवादी राजनीति इतर अपनी पार्टी की नई छवि गढ़ने की कोशिश की, लेकिन वो कोशिश पिछले 14 वर्षों में फेल हो गई और मनसे विधानसभा चुनावों में सिकुड़ती चली गई, शिवसेना के हिंदूवादी राजनीति से किनारा के बाद राज ठाकरे के पास हिंदूवादी राजनीति के खाली पड़ी जमीन पर कब्जा करने का अच्छा मौका है। मनसे 2014 से 2019 महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में क्रमशः 1-1 सीट जीत पाई थी।

शिवसेना का हिंदू ह्रदय ही नहीं, सियासी रंग और ढंग भी बदला!

शिवसेना का हिंदू ह्रदय ही नहीं, सियासी रंग और ढंग भी बदला!

हिंदू ह्रदय सम्राट बालासाहेब ठाकरे द्वारा वर्ष 1966 में स्थापित शिवसेना करीब 53 वर्षों का लंबा सफ़र तय कर चुकी है, लेकिन कभी पार्टी ने अपनी मूल विचारधाराओं से समझौता नहीं किया, लेकिन कभी महाराष्ट्र में किंगमेकर की भूमिका में रही शिवसेना जब से किंग की भूमिका में महाराष्ट्र की सत्ता पर सवार हुई है, उसके रंग-ढंग, चाल और चरित्र में तेजी से बदलाव महसूस किया जा रहा है।

आश्चर्य नहीं अगर हिंदुत्व को लेकर शिवसेना में दो फाड़ हो जाए!

आश्चर्य नहीं अगर हिंदुत्व को लेकर शिवसेना में दो फाड़ हो जाए!

पिछले 4-5 दशकों से महाराष्ट्र में कट्टर हिंदुत्व की राजनीति करने वाली शिवसेना का बदला हुआ रूप और रंग शिवसेना से जुड़े एक आम कार्यकर्ताओं को बिल्कुल नहीं सुहा रहा है, क्योंकि जो कार्यकर्ता कल सड़कों पर पर हिंदुत्व की राजनीति करते थे अब उन्हें कांग्रेस और एनसीपी गठबंधन वाली सरकार के चलते कॉमन मिनिमम प्रोग्राम के अनुसार राजनीति करने के लिए विवश होना पड़ा है। अगर राज ठाकरे हिंदुत्व का झंडा महाराष्ट्र में उठाते हैं तो धीरे-धीरे ही सही शिवसेना के भीतर शिवसेना टूट शुरू हो सकती है और कार्यकर्ता और नेता राज ठाकरे की ओर रूख कर सकते हैं। ऐसे में शिवसेना से हिंदूवादी मुद्दा ही नहीं, हिंदूवादी शिवसैनिक भी छूट सकता है।

पहले सीएए विरोध में खड़े मनसे चीफ राज ठाकरे ने लिया यू टर्न

पहले सीएए विरोध में खड़े मनसे चीफ राज ठाकरे ने लिया यू टर्न

मनसे चीफ राज ठाकरे ने राष्ट्रपति की मुहर के बाद कानून बने सीएए के विरोध में भी खड़े हुए थे, लेकिन हिंदुत्व की राजनीति पर सेंध मारने के लिए तैयार मनसे चीफ को यू टर्न लेते देर नहीं लगी और उन्होंने भारत में रह रहे बांग्लादेशियों को देश बाहर करने का समर्थन करते हुए सीएए का सर्मथन भी किया। मनसे चीफ राज ठाकरे में आया यह बदलाव पालघर में लगे बीजेपी के पोस्टर में राज ठाकरे की तस्वीर से पता चलता है।

महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के नए केसरिया झंडे का जल्द होगा अनावरण

महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के नए केसरिया झंडे का जल्द होगा अनावरण

मनसे का नया झंडा पूरी तरह भगवा रंग में है,जिसके बीच राज मुद्रा है। मनसे का यह नया झंडा कट्टर हिंदुत्व की पहचान है। महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के अध्यक्ष राज ठाकरे बालासाहिब की जंयती पर पार्टी के नए झंडे का अनावरण कर सकते हैं। इसी दिन राज ठाकरे हिंदुत्व की राजनीति की घोषणा के साथ ही बीजेपी के साथ भविष्य के रिश्तों पर भी खुलासा भी कर सकते हैं। शिवसेना के संस्थापक बालासाहेब ठाकरे के हॉर्ड हिंदुत्व के असली वारिस माने जाने वाले राज ठाकरे ने शिवसेना की कमान उद्धव ठाकरे के हाथ में जाने के बाद शिवसेना छोड़कर अलग पार्टी बना ली थी।

महाराष्ट्र में मनसे को मिल सकता है बीजेपी का स्वाभाविक समर्थन

महाराष्ट्र में मनसे को मिल सकता है बीजेपी का स्वाभाविक समर्थन

हालिया बीजेपी नेता देवेंद्र फडणवीस और राज ठाकरे की लंबी मुलाकात से अनुमान लगाया जा रहा है कि बीजेपी और मनसे में रणनीतिक समझौते के आसार हैं। हिंदुत्व की राजनीति का बीड़ा उठाने के लिए राज ठाकरे को बीजेपी का सहयोग भी चाहिए, क्योंकि बीजेपी के सहयोग से ही शिवसेना का स्थानीय निकाय से विधानसभा और लोकसभा में आविर्भाव हुआ है। पालघर में बीजेपी के पोस्टर में छपी राज ठाकरे की तस्वीर के जरिए स्पष्ट संदेश देने की कोशिश की गई है।

महाराष्ट्र में शिवसेना का विकल्प बनने में सफल होगी मनसे?

महाराष्ट्र में शिवसेना का विकल्प बनने में सफल होगी मनसे?

शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के सॉफ्ट हिंदुत्व और सेक्युलर राजनीति की ओर कदम बढ़ाने से महाराष्ट्र में हॉर्ड कोर हिंदुत्व राजनीति की जमीन खाली पड़ी है, लेकिन बडा सवाल यह है कि क्या मनसे महाराष्ट्र में खाली पड़ी हिंदूवादी राजनीति की उर्वर जमीन पर खड़ी वोटों की फसल काट पाएंगे। यह कुछ हद तक संभव कहा जा सकता है, क्योंकि शिवसेना संस्थापक बालासाहेब ठाकरे की परछाई कहे जाने वाले राज ठाकरे के लिए यही मुफीद भी है, क्योंकि नई पार्टी की स्थापना के 14 वर्ष बाद भी मनसे अभी भी राजनीतिक वनवास ही झेल रही है।

हिंदू वोट बैंक में सेंध लगाने में सफल हो सकते हैं राज ठाकरे!

हिंदू वोट बैंक में सेंध लगाने में सफल हो सकते हैं राज ठाकरे!

महाराष्ट्र में शिवसेना की हॉर्ड कोर हिंदुत्व राजनीति की जगह लेना राज ठाकरे के लिए मुश्किल नहीं होने वाला है, क्योंकि अगर कांग्रेस, एनसीपी और शिवसेना गठबंधन की सरकार 6-12 महीने भी सत्ता में रह गई तो शिवसेना हिंदूवादी राजनीति से उतनी ही दूर हो जाएगी, जैसे अयोध्या में भगवान राम के अस्तित्व पर सवाल उठाकर कांग्रेस हिंदु बहुसंख्यकों से दूर हो चुकी है। इसका फायदा मनसे को भविष्य में होने वाले विधानसभा चुनाव मे तो मिलेगा ही, इसके साथ-साथ महाराष्ट्र में संभावित सरकार में भी मिल सकता है।

मनसे के हिंदुत्व राजनीति में प्रवेश से बिन आत्मा के शरीर हो जाएगी?

मनसे के हिंदुत्व राजनीति में प्रवेश से बिन आत्मा के शरीर हो जाएगी?

शिवसेना के नेतृत्व में महाराष्ट्र में गठबंधन सरकार की अवधि कितनी लंबी होगी, इसका जवाब तो भविष्य के गर्भ में छुपा हुआ है, लेकिन इतिहास बताता है कि परस्पर विरोधी दलों के मेल वाले गठबंधन सरकारों की उम्र अक्सर छोटी होती हैं। बिहार में महागठबंधन इसका बड़ा उदाहरण है। इसके अलावा में कर्नाटक में कांग्रेस और जेडीस की गठबंधन सरकार को भी इसी खांचे में रखा जा सकता है। अगर महाराष्ट्र में कांग्रेस, एनसीपी और शिवसेना सरकार जल्दी गिरती है, तो सबसे अधिक किसी दल का नुकसान होगा तो वो दल होगी शिवसेना। इस अंतराल में अगर राज ठाकरे ने प्रदेश में हिंदूवादी राजनीति में अपनी जड़ें जमा लीं तो शिवसेना बिना आत्मा वाली एक शरीर भर रह जाएगी।

परस्पर विरोधी दल के साथ गठबंधन में फंस गई है शिवसेना?

परस्पर विरोधी दल के साथ गठबंधन में फंस गई है शिवसेना?

परस्पर विरोधी दल कांग्रेस और एनसीपी के साथ गठबंधन में फंसी शिवसेना की स्थिति सांस और छछूंदर जैसी हो गई है। यह उसकी छटपटाहट ही है कि उद्धव ठाकरे अपनी मुख्यमंत्री कार्यकाल के 100 दिन पूरे होने पर अयोध्या जा रहे हैं। राज ठाकरे के हिंदुत्व की राजनीति में प्रवेश की आहट ने उद्धव को हिंदुत्व की याद आई है, क्योंकि वो जानते हैं कि राज ठाकरे ने अगर खाली पड़ी जमीन पर कब्जा कर लिया तो उसकी सियासी जमीन बर्बाद हो जाएगी। शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से ठीक पहले भी अयोध्या गए थे और अयोध्या में जल्द राम मंदिर निर्माण की बात कही थी।

इसीलिए CCA के खिलाफ प्रस्ताव लाने से बचे रहे उद्धव ठाकरे

इसीलिए CCA के खिलाफ प्रस्ताव लाने से बचे रहे उद्धव ठाकरे

सीएए के खिलाफ विधानसभा में प्रस्ताव लाने की इच्छुक नहीं हैं उद्धव पंजाब की कैप्टन अमरिंदर सरकार और केरल की पिन्राई विजयन सरकार विधानसभा में सीएए के खिलाफ प्रस्ताव लेकर आ चुकी है, जिसकी कोई संवैधानिक औचित्व नहीं है। उद्धव ठाकरे यह बात अच्छी तरह से जानते हैं कि सीएए के खिलाफ विधानसभा में प्रस्ताव लाने से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है, क्योंकि केंद्रीय सूची में निर्मित सीएए के खिलाफ राज्यों को चर्चा करने और प्रस्ताव लाने का अधिकार ही नहीं है। देश के सभी राज्यों को सीएए को बिना किसी लाग-लपेट के लागू करना ही होगा वरना संविधान का उल्लंघन माना जाएगा और ऐसी सरकार बर्खास्त भी की जा सकती हैं।

हिंदुत्व से किनारा करके भी सरकार में उद्धव की स्थिति रबड़ स्टैंप जैसी

हिंदुत्व से किनारा करके भी सरकार में उद्धव की स्थिति रबड़ स्टैंप जैसी

मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के गठबंधन सरकार के 100 दिन पूरे होने पर अयोध्या यात्रा को उनके असंतोष से इसलिए भी जोड़ा जा सकता है, क्योंकि शिवसेना की हालत सरकार में रबड़ स्टैंप जैसी हो गई है। शिवसेना प्रमुख उद्ध ठाकरे भले ही दूर से महाराष्ट्र की गठबंधन सरकार का नेतृत्व करते हुए दिख रहे हैं, लेकिन महाराष्ट्र की महा विकास अघाड़ी मोर्च की सरकार एनसीपी चीफ शऱद पवार के रिमोट से ही कंट्रोल होता है। महाराष्ट्र सरकार में शिवसेना के पास भले 18 मंत्री हैं, लेकिन कोई भी महत्वपूर्ण विभाग शिवसेना के हाथ नहीं लगा है। गृह विभाग और वित्त विभाग जैसे मंत्रालय एनसीपी के हाथ हैं और कांग्रेस के हाथ महत्वपूर्ण राजस्व और लोक निर्माण विभाग के साथ विधानसभा का स्पीकर लगा है जबकि शिवसेना के केवल कृषि और शहरी विकास मंत्रालय मिला है, लेकिन विभागों के बंटवारे के बाद भी कांग्रेस कृषि मंत्रालय पर अपना दावा ठोंक कर रही है।

क्या हिंदूवादी मुद्दे के लिए सरकार से नाता तोड़ेंगे उद्धव ठाकरे

क्या हिंदूवादी मुद्दे के लिए सरकार से नाता तोड़ेंगे उद्धव ठाकरे

ऐसी संभावना है कि मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे अभी अह्म के टकराव में पैदा हुई नई सियासी गठबंधन से बेहद परेशान चल रहे हैं और कर्म से गए तो गए अब पार्टी का धर्म बचाने की जद्दोजहद में हैं। महाराष्ट्र सरकार के 100 दिन पूरे होने पर उद्धव ठाकरे की अयोध्या यात्रा की कवायद महाराष्ट्र के गठबंधन धर्म से बिल्कुल जुदा है, जिससे शायद ही एनसीपी और कांग्रेस खुश होंगे। माना जा रहा है कि अब उद्धव ठाकरे गठबंधन धर्म इतर से शिवसेना के धर्म यानी को तवज्जों देने में लग गए हैं। उद्धव ठाकरे की संभावित अयोध्या यात्रा और राम मंदिर निर्माण का श्रेय बीजेपी को नहीं देने की कोशिश बताती है कि शिवसेना पार्टी की हिंदूवादी छवि को पुनः जीवित करना चाहती है।

उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री पद से इस्तीफे दे दें तो आश्चर्य नहीं होगा

उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री पद से इस्तीफे दे दें तो आश्चर्य नहीं होगा

हिंदूवादी राजनीति की ओर लौटने की शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे की अकुलाहट बताती है कि महाराष्ट्र की गठबंधन सरकार में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है और जल्द ही गठबंधन सरकार में खटपट शुरू हो सकती है और महाराष्ट्र की गठबंधन सरकार गिर सकती है। इसकी शुरूआत अगर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद से शिवसेना चीफ उद्धव ठाकरे के इस्तीफे से होती है, तो कोई आश्चर्य नहीं होगा।

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English summary
Raj Thackeray, who formed a separate party, leaving Shiv Sena in the year 2006, is returning to Hindutva politics once again after 14 years of exile, because Shiv Sena, which has been doing Hindutva politics since 54 years in Maharashtra, now stuck in coalition government with the support of opposing parties NCP and Congress. This has led to a vacuum in Hinduist politics in Maharashtra.
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