उद्धव ने उसे मंत्री बनाया, जिसने कभी बालासाहेब ठाकरे के खिलाफ जारी किया था गिरफ्तारी वारंट!
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बेंगलुरू। महाराष्ट्र में शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में महा विकास अगाड़ी मोर्चा सरकार शपथ ले चुकी है, लेकिन महा विकास अघाड़ी मोर्चे में कैबिनट मंत्री की शपथ लेने वाले छगन भुजबल सुर्खियों में आ गए हैं। उद्धव मंत्रिपरिष्द में बतौर कैबिनेट मंत्री शपथ लेने वाले पहले शिवसेना में थे और बाद में एनसीपी में शामिल हो गए।
एनसीपी नेता छगन भुजबल वर्ष 1992-93 में एनसीपी-कांग्रेस गठबंधन सरकार में गृहमंत्री थे तब उन्होंने शिवसेना के संस्थापक बालासाहेब ठाकरे के खिलाफ गिरफ्तारी का आदेश दिया था, लेकिन आज छगन भुजबल उन्हीं के बेटे उद्धव ठाकरे के मंत्रिमंडल में कैबिनेट मंत्री बन गए हैं। ऐसा लगता है कि उद्धव ठाकरे ने सत्ता के लिए छगन भुजबल को भी माफ कर दिया है।
करीब 30 वर्ष तक शिवसेना में रहे छगन भुजबल ने वर्ष 1999 महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के बाद शिवसेना छोड़ दिया था। वजह थी शिवसेना संस्थापक बालासाहेब ठाकरे द्वारा पूर्व महाराष्ट्र सीएम मनोहर जोशी को विधानसभा में विपक्ष की कुर्सी सौंप देना। यह छगन भुजबल का इतना नागवार गुजरा कि उन्होंने शिवसेना के 9 विधायकों को तोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गए थे।
गौरतलब है वर्ष 1990 में अयोध्या में राम मंदिर का मुद्दा काफी चर्चा में था, जिसकी वजह से शिवसेना का महाराष्ट्र में तेजी से उभार हुआ था और पार्टी 52 सीटों पर जीतकर नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी पर विराजमान हो गई थी। छगन भुजबल सदन में नेता प्रतिपक्ष पर अपना दावा मानते आए थे, लेकिन जब विपक्ष की कुर्सी पर मनोहर जोशी का बिठा दिया गया तो नाराज होकर 1991 में कांग्रेस में चले गए और बाद में उन्होंने एनसीपी का दामन थाम लिया।
कहा जता है कि छगन भुजबल के शिवसेना छोड़ने और उसके 9 विधायकों को तोड़ने को लेकर शिवसेना संस्थापक बालासाहेब ठाकरे बेहद नाराज थे, जिससे शिवसैनिकों ने छगन भुजबल के बंगले पर हमला भी कर दिया। हालांकि शिवसैनिकों के हमले में छगन भुजबल को कोई शारीरिक नुकसान नहीं पहुंचा था, लेकिन हमले से आहत जरूर हुए थे।
बाद में जब शरद पवार ने राष्ट्रवादी कांग्रेस का गठन किया और कुछ महीनों बाद हुए चुनावों में NCP-कांग्रेस का गठबंधन चुनाव जीता तो भुजबल को महाराष्ट्र का गृह मंत्री बनाया गया, उसके बाद से ही नए ठसक में छगन भुजबल अपनी पुरानी कसक को मिटाने का मौका ढूंढ रहे थे। इसी दौरान 6 दिसंबर, 1992 में अयोध्या में विवादित परिसर ढहा दिया गया, जिसकी आंच मुंबई तक पहुंची और मुंबई दंगा फैल गया।
वर्ष 1992-93 में हुए मुंबई दंगो के दौरान जब छगन भुजबल कांग्रेस-और एनसीपी की सरकार में गृहमंत्री थे, तो उन्होंने शिवसेना संस्थापक बालासाहेब ठाकरे को दंगो में साजिश आरोप में गिरफ्तारी का वारंट निकाल दिया था। हालांकि गिरफ्तारी वांरट के बावजूद छगन भुजबल बालासाहेब ठाकरे की गिरफ्तारी नहीं करवा सके थे, क्योंकि बालासाहेब ठाकरे को कोर्ट से राहत मिल गई थी।
माना जाता है छगन भुजबल और शिवसेना के बीच तब से दूरी बरकरार थी। इसकी तस्दीक वर्ष 2014 महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में बीजेपी-शिवसेना सरकार में छगन भुजबल के खिलाफ कार्रवाई है, जिसके लिए करीब 2 वर्ष तक छगन भुजबल को जेल की हवा खानी पड़ी और अभी वह जमानत पर बाहर हैं।
चूंकि अब समय बदल चुका है। शिवसेना हिंदूवादी विचारधारा को तिलांजलि देकर सियासत में प्रवेश कर चुकी है तो छगन भुजबल मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की मंत्री परिषद की शोभा बन चुके हैं। एनसीपी-कांग्रेस और शिवसेना गठबंधन के कॉमन मिनिमम प्रोग्राम की आड़ में यह सियासत खेला जा रहा है।
वैसे भी कहते हैं कि सियासत में कोई पक्का दोस्त और दुश्मन नहीं होता है। चूंकि महाराष्ट्र के किंगमेकर से अब किंग की भूमिका में आ चुके शिवसेना चीफ उद्धव ठाकरे को भी राजनीतिक मजबूरी के चलते समझौता करना पड़ा है। भले ही उस व्यक्ति के साथ जो कभी उनके पिता और शिवसेना के संस्थापक की गिरफ्तारी करवाना चाहते हैं।
हालांकि शिवसेना चीफ उद्धव ठाकरे अगर अभी भी किंगमेकर की भूमिका में होते तो ऐसा संभव नहीं था, क्योंकि पिछले 30 वर्षों का इतिहास खंगालेंगे तो पाएंगे कि शिवसेना-बीजेपी गठबंधन सरकार में रही या नहीं रही, लेकिन छगन भुजबल के साथ शिवसेना की दूरी बरकरार रही और बीजेपी और शिवसेना गठबंधन सरकार में ही पूर्म गृह मंत्री छगन भुजबल को दो वर्ष तक जेल की रोटी भी तोड़नी पड़ गई। सियासत में समझौते करने ही पड़ते हैं और शिवसेना चीफ और महाराष्ट्र के मुख्यमत्री उद्धव ठाकरे ने कुछ नया नहीं किया है।
क्या हुआ अगर उद्धव ठाकरे शपथ लेना के बाद अपनी प्रेस वार्ता में पत्रकारों द्वारा सेक्युलरिज्म पर पूछे गए सवाल पर नाराज हो जाते हैं और फिर बौखलाहट में पत्रकारों से यह पूछ बैठते हैं कि सेक्युलरिज्म का मतलब क्या है? उद्धव ठाकरे के जवाब सुनकर पत्रकार दीर्घा में बैठे पत्रकार स्तब्ध रह गए थे।
क्योंकि पिछले 53 वर्षो से कट्टर हिंदूवादी विचारधारा की राजनीति करने वाले शिवसेना चीफ उद्धव ठाकरे सेक्युलरिज्म का मतलब नहीं पता था। महाराष्ट्र की सत्ता के लिए मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे सेक्लुरिज्म का अर्थ ही नहीं भूले बल्कि ऐतिहासिक शिवसेना पार्क में शपथ ग्रहण वाले मंच पर पिता बालासाहेब ठाकरे की तस्वीर लगाना भी भूल गए।
ऐतिहासिक शिवाजी पार्क वह ऐतिहासिक पार्क है, जहां वर्ष 1966 में शिवसेना की स्थापना की गई थी, लेकिन वर्ष 2019 में जब उनके बेटे उद्धव ठाकरे पिता का सपना पूरा कर रहे थे, तो वहां उनकी गैर मौजूदगी जरूर शिवसैनिकों को खली होगी। बालासाहेब ठाकरे की तस्वीर शपथ ग्रहण समारोह स्थल पर नहीं लगाने के पीछे साझा सरकार में शामिल कांग्रेस और एनसीपी है, जिसे सेक्युलरिज्म की छवि की कोशिश के रूप में देखी जा रही है।
महाराष्ट्र की साझा सरकार में विधायक दल का नेता चुने जाने के बाद पिता बालासाहेब ठाकरे की तस्वीर के आगे नतमस्तक उद्धव ठाकरे की तस्वीर खूब सुर्खियां बंटोरी थी, लेकिन शपथ ग्रहण समारोह स्थल से गायब रही बालासाहेब ठाकरे की तस्वीर बतलाती है कि सियासत में पहुंचने के बाद उद्धव ठाकरे क्या कुछ भूल चुके हैं और आगे-आगे उन्हें क्या-क्या भूलने होंगे।
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