इन कंधों पर टिका है, महाराष्ट्र उद्वव ठाकरे की गठबंधन सरकार का दारोमदार
बेंगलुरु। उद्धव ठाकरे ने अब महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के तौर पर अपना कार्यभार संभाल लिया है। लेकिन, इससे पहले उन्होंने कभी कोई प्रशासनिक दायित्व नहीं संभाला। उद्धव ठाकरे के पास सत्ता का अनुभव नहीं है। वह विधानमंडल के किसी सदन के सदस्य नहीं हैं। इसलिए उनके मुख्यमंत्री पद संभालने के बाद से ही लगातार यह प्रश्न उठ रहा है कि क्या वे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के तौर पर अपना काम सही ढंग से कर पाएंगे या नहीं?
हालांकि, उन्होंने पिछले कुछ सालों में जिस तरह से शिव सेना का नेतृत्व किया है और शिव सेना के ज़रिए उन्होंने मुंबई नगर निगम को चलाया है, लेकिन अब उन्हें सरकार चलाना है, इतना ही नही सरकार और संगठन दोनों संभालना है। भाजपा से गठबंधन से 30 वर्ष पुराना गठबंधन तोड़ कर एनसीपी और कांग्रेस के साथ गठबंधन कर सरकार बनाने वाले उद्वव ठाकरे की सीएम पद संभालने के बाद जिम्मेदारियां तो बढ़ी ही है, साथ ही यह गठबंधन की सरकार में दोनों पार्टियों से सामजस्य बिठा कर सरकार चलाना उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती हैं।
इसी को ध्यान में रखते हुए महाराष्ट्र सीएम उद्वव ठाकरे ने अपने विश्वासपात्र लोगों की एक कोर कमेटी बनायी है। जो सरकार और संगठन के बीच कामकाज करने में सहयोग करेंगी साथ ही शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस के गठबंधन की सरकार में एक ब्रिज की भूमिका निभाएंगी। उद्वव ठाकरे की इस कोर कमेटी में उनके पांच विश्वासपात्र लोग शामिल हैं। जिसमें उनके विधायक पुत्र आदित्य ठाकरे, शिवसेना प्रवक्ता संजय राउत, पार्टी विधायक दल के नेता चुने गए एकनाथ सिंदे, शिवसेना नेता सुभाष देसाई और पार्टी के सचिव मिलिंद नारवेकर शामिल हैं।
आदित्य ठाकरे
उद्वव ठाकरे के पुत्र 26 वर्षीय आदित्य ठाकरे जो वर्ली विधानसभा क्षेत्र से चुनाव जीत कर विधायक बने हैं। आदित्य ठाकरे शिवसेना के पिछले 50 इतिहास में ठाकरे परिवार के पहले सदस्य के रुप में चुनाव लड़ने का इतिहास बनाया हैं। चुनाव के समय तक शिवसेना का मुख्यमंत्री का चेहरा आदित्य ठाकरे ही थे। पहली बार विधायक बनें आदित्य छात्र समय से ही छात्र राजनीति में सक्रिय रहे। चुनाव से पूर्व वह लंबे समय से शिवसेना की युवाविंग की कमान संभालते रहे। वह अपने पिता के अच्छे सलाहकारों में से एक हैं। उद्वव के सीएम बनने से पूर्व से ही आदित्य पिता को सलाह देते रहे हैं। सिंगल यूज प्लास्टिक पर लगाने का सुक्षाव हो या महाराष्ट्र में आरे गांव में मेट्रो प्रोजेक्ट के अंतर्गत पेड़ो का कटान पर रोक लगाने का फैसला, इसमें भी आदित्य की मुख्य भूमिका में रहे। माना जा रहा है कि पिता उद्वव की गैर मौजूदगी में आदित्य ही शिवसेना की कमान संभालेगे।
संजय राउत
महाराष्ट्र में एनसीपी के साथ गठबंधन की सरकार बनने में जो सफलता हासिल हुई उसमें शिवसेना प्रवक्ता संजय राउत की भूमिका जो रही वो किसी से छिपी नही है। बीजेपी के साथ सरकार बनाने पर 50:50 पर बात नहीं बनने के बाद से महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री शिवसेना का हो इसके लिए संजय राउत ने एड़ी चोटी का दम लगा दिया था। वर्तमान सरकार गठन की प्रक्रिया और तीनों दलों के बीच गठबंधन कराने में संजय राउत ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। एनसीपी से शिवसेना की दोस्ती कराने के लिए शरद पावार को मनाने से लेकर सरकार बनने तक में संजय राउत महत्तपूर्ण कड़ी हैं। इसलिए सरकार बनने के बाद भी एनसीपी, शिवसेना के बीच दोस्ती सामान्य रहे इसकी जिम्मेदारी संजय राउत को ही सौंपी गई है। संजय दिल्ली में रहते रहकर शिवसेना का अन्य दलों के साथ रिश्ते बनाए रखने में विशेष भूमिका निभाते रहे हैं। इतना ही नहीं शिवसेना के मुखपत्र सामना में अपने संपादकीय के जरिए सदा से उद्वव ठाकरे के फैसलों को सही ठहराते रहे हैं।
एकनाथ शिंदे
चुनाव परिणाम के बाद ही शिवसेना ने विधायक एकनाथ शिंदे को विधायक दल का नेता चुना था। यह उद्व्व ठाकरे सरकार में मंत्री भी बनाए गए हैं। उन्हें सरकार के कामकाज और विधानसभा में फ्लोर मैनेजमेंट का काम सौंपा गया है। क्योंकि शिवसेना के अंदर शिंदे की बात को सब सुनते हैं इसलिए पार्टी कैडर को संभालने की जिम्मेदारी एकनाथ शिंदे की ही हैं। मुंबई से सटे ठाणे जिले में शिंदे की तूती बोलती है। एकनाथ शिंदे महाराष्ट्र की फडणवीस सरकार में कैबिनेट मंत्री थे। एकनाथ शिंदे इससे पहले इसी विधानसभा क्षेत्र से लगातार तीन बार 2004, 2009 और 2014 में शिवसेना के टिकट पर विधायक चुने गए हैं। विधायक चुने जाने से पहले एकनाथ शिंदे ठाणे महानगर पालिका में दो कार्यकाल तक नगर सेवक भी रह चुके हैं। एकनाथ ठाणे के कोपरी-पंचपखाड़ी निर्वाचन क्षेत्र से एक बार फिर विधायक चुने गए हैं।
मिलिंद नारवेकर
मिलिंद नारवेकर उद्वव ठाकरे के करीबियों में से एक हैं। इस कोर कमेटी में शामिल नारवेकर को तीनों दलों के बीच गठबंधन करने और सरकार बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका रही है। वह शिवसेना में सचिव पद पर हैं उन्हें अब मुख्यमंत्री कार्यालय में ऑफिसर ऑफ स्पेशल ड्यूटी (ओएसडी) नियुक्त किया गया है। ओएसडी बन कर ठाकरे सरकार के सारे मामले पहले वो ही डील करेंगे। शिवसेना से पिछले 25 सालों से जुड़े नारवेकर को 'क्राइसिस मैनेजर' भी कहा जाता हैं। उनके अन्य दलों के साथ अच्छे संबंध हैं। महाराष्ट्र में जब तक शिवसेना की सरकार नहीं बनी तब तक वह दिल्ली में ही बने रहे और कांग्रेस नेता अहमद पटेल के द्वारा कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी मिलने पहुंचे। शरद पवार से उद्वव की मुबंई होटल में बैठक इन्होंने ही फिक्स करवाई थी।
सुभाष देसाई
सुभाष देसाई ने भी उद्वव ठाकरे के साथ शपथ समारोह में मंत्री पद की शपथ ली थी। गोरेगाव से तीन बार विधायक रह चुके 77 वर्षीय देसाई भी उद्वव ठाकरे के खासे विश्वासपात्र हैं। पिछली सरकार में वह उद्योग मंत्री रह चुके हैं। सीएम उद्वव ठाकरे को गवर्नेस और पॉलिसी से संबंधित मामलों पर सलाह देंगे। इतना ही नहीं देसाई सीएम की अनुपस्थिति में समारोहों को संबोधित करने और प्रतिनिधिमंडल से बातचीत करने की जिम्मेदारी सौंपी गई हैं। अब देखना हैं कि उद्वव सरकार के ये पांच नायाब रत्त क्या तीन पहिए वाली गठबंधन की सरकार को बिना अवरोध भगा पाने का दामोमदार संभाल पाएंगे?
शरद पवार की भी होगी अहम भूमिका
बता दें जबसे इस सरकार का गठन हुआ है तभी से यह माना जा रहा है कि शरद पवार की भूमिका भी काफ़ी अहम रहने वाली है। शरद पवार अब बैक सीट ड्राइविंग करेंगे, यानी पिछली सीट पर बैठकर गाड़ी चलाएंगे। लेकिन सबसे ज़्यादा वो एनसीपी के ऊपर ही निर्भर रहेंगे। शरद पवार रिमोट कंट्रोल की राजनीति करते नहीं वो एक दिशा तय करते हैं, एक प्रोग्राम तय करते हैं कि शहरों का विकास कैसे करना है, मज़दूरों को क्या देना है, कॉरपोरेट सेक्टर के लिए क्या करना है।
सालों से लोग शरद पवार को महाराष्ट्र के "अन क्राउन किंग" कहते आए हैं। अब महाराष्ट्र में वापस से वही स्थिति आ गई है कि सत्ता में रहे बगैर पूरी सत्ता शरद पवार के हाथ में है। "शरद पवार की राजनीति का स्टाइल अलग हैं। उन्होंने पूरे विश्वास से उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री बनाया है। उद्धव ठाकरे शुरू में मान नहीं रहे थे। लेकिन शरद पवार ने उनसे कहा कि अगर इस सरकार को स्थिर बनाना है तो आपको इसकी बागडोर संभालनी पड़ेगी। फिर उद्धव ठाकरे मान गए।
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