आधी रात से जम्मू-कश्मीर में होगा दो केंद्र शासित प्रदेशों का उदय, सबकुछ बदल जाएगा
नई दिल्ली- गुरुवार सुबह जब देश सो कर उठेगा तो जम्मू-कश्मीर और लद्दाख दो केंद्र शासित प्रदेश अस्तित्व में आ चुके होंगे। इसके साथ ही प्रदेश में शासन-व्यवस्था में बहुत बड़ा बदलाव नजर आएगा। लद्दाख का प्रशासन एक तरह से सीधे केंद्रीय गृहमंत्रालय के हाथों में होगा, जबकि जम्मू-कश्मीर में लगभग उसी तरह की व्यवस्था विकसित होगी, जैसे दिल्ली या पुडुचेरी में चलती है। 31 अक्टूबर एक खास दिन भी है। इस दिन देश के साढ़े पांच सौ से ज्यादा राजे-रजवाड़ों को एकसूत्र में पिरोने वाले पहले गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल की जयंती भी है। इस दिन पूरे देश में रन फॉर यूनिटी या एकता की दौर का आयोजन है और केंद्र शासित प्रदेश बनने के पहले ही दिन दोनों प्रदेशों के लोग इस जश्न में भी शामिल होते दिखेंगे। प्रदेश में होने वाले बदलाव का असर वहां के शासन में काम करने वाले अधिकारियों और कर्मचारियों पर भी होगा और राजनेताओं को भी इसका असर महसूस होने लगेगा।
दो लेफ्टिनेंट गवर्नरों का शपथग्रहण
गुरुवार को जम्मू-कश्मीर और लद्दाख दोनों जगह वहां के पहले लेफ्टिनेंट गवर्नर शपथ लेंगे। जानकारी के मुताबिक जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट की चीफ जस्टिस गीता मित्तल लेह में सबसे पहले लद्दाख के पहले लेफ्टिनेंट गवर्नर राधा कृष्ण माथुर को पद और गोपनीयता की शपथ दिलाएंगी। उसके बाद वो श्रीनगर आएंगी फिर यहां पर गिरिश चंद्र मुर्मू को जम्मू-कश्मीर के पहले उपराज्यपाल के तौर पर शपथ दिलवाएंगी। 1985 बैच के आईपीएस जीसी मुर्मू केंद्र सरकार में एक्सपेंडिचर सेक्रेटरी रहे हैं और प्रधानमंत्री मोदी के साथ काम कर चुके हैं। जबकि, आरके माथुर भी पूर्व नौकरशाह हैं। इन औपचारिकताओं के साथ ही दोनों नए केंद्र शासित प्रदेशों में अपनी-अपनी आवश्यकताओं के हिसाब कामकाज शुरू हो जाएगा। बता दें कि जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन कानून, 2019 के तहत केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में एक विधानसभा की व्यवस्था है, जबकि लद्दाख बिना विधानसभा वाला केंद्र शासित प्रदेश है। यानि, लद्दाख का प्रशासन सीधे केंद्रीय गृहमंत्रालय उपराज्यपाल के माध्यम से संचालित करेगा। जबकि, जम्मू-कश्मीर में विधानसभा होने के चलते वहां लगभग उसी तरह सरकार काम करेगी, जैसे पुडुचेरी या दिल्ली में करती है।
अफसरों-कर्मचारियों का क्या होगा?
जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन कानून, 2019 के मुताबिक जम्मू और कश्मीर कैडर के आईएएस, आईपीएस और अन्य केंद्र सरकार के अधिकारी इन्हीं दोनों प्रदेशों में आगे भी अपनी सेवाएं देते रहेंगे। लेकिन, इन सेवाओं के लिए आगे से जब नई बहाली होगी तो उनकी नियुक्त एजीएमयूटी यानि अरुणाचल प्रदेश गोवा मिजोरम और केंद्र शासित प्रदेश कैडर के लिए होगी। जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन कानून, 2019 में यह भी व्यवस्था है कि राज्य सरकार के मौजूदा कर्मचारियों के पास ये विकल्प होगा कि वे लेफ्टिनेंट गवर्नर की अनुमति से जम्मू-कश्मीर या लद्दाख दोनों में से एक जगह तैनाती मांग सकते हैं। इस कानून में ये भी प्रावधान है कि इन मामलों से संबंधित लेफ्टिनेंट गवर्नर के आदेशों में केंद्र सरकार बलाव भी कर सकती है। केंद्र सरकार ने दो केंद्र शासित प्रदेश गठित करने का मकसद पर्यटन को बढ़ावा देने और इलाके का तेजी से विकास करना बताया है। इसमें लद्दाख की जनता काफी लंबे वक्त से इसकी मांग भी कर रही थी।
पूर्व मुख्यमंत्रियों से छिनेगा सरकारी बंगला
2018 में सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के बाद सभी राज्यों के पूर्व मुख्यमंत्रियों को अपना सरकारी बंगला खाली करन पड़ा था, जिसका इंतजाम नियम बनाकर उन्होंने जीवन भर के लिए कर रखा था। लेकिन, जम्मू-कश्मीर में विधानमंडल सदस्य पेंशन एक्ट, 1984 प्रभावी होने से (जिसमें कई बार संशोधन किए गए थे) वहां के सीएम अबतक सरकारी बंगलों में जमे हुए थे। गुरुवार के बाद महबूबा मुफ्ती और उमर अब्दुल्ला का भी ये अधिकार छिन जाएगा और उन्हें अपने सरकारी आवास खाली करने पड़ेंगे। जम्मू-कश्मीर के पूर्व सीएम और कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद पहले ही अपना सरकारी बंगला सरकार को वापस कर चुके हैं।
रन फॉर यूनिटी की तैयारी
मोदी सरकार ने दो केंद्र शासित प्रदेशों के अस्तित्व में आने की तारीख 31 अक्टूबर को शायद इसलिए रखी है, क्योंकि इसी दिन राष्ट्रीय एकता दिवस है। जानकारी के मुताबिक इसी के मद्देनजर गुरुवार को लेह, श्रीनगर और जम्मू में भी रन फॉर यूनिटी की तैयारी भी की गई है। बता दें कि राष्ट्रीय एकता दिवस देश के पहले गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल की जयंती के अवसर पर मनाई जाती है।
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