छत्तीसगढ़ के सुकमा नक्सली हमले में हिमाचल के शहीद हुए जवान के घर की काटी गई थी केबल
जवान की मौत से कहीं घरवाले ज्यादा परेशान न हो जाएं, परिवार में जवान की पत्नी और नन्ही मासूम बेटी को इस बात का कोई सदमा न लगे इसलिए लोकल यूनिट के जरिए उसके घर का केबल कनैक्शन ही काट दिया गया...
शिमला। छत्तीसगढ़ के सुकमा में हुए नक्सली हमले में हिमाचल प्रदेश के दो जवान शहीद हुए हैं। हमले में शहीद सीआरपीएफ जवानों में एक जवान जिला कांगड़ा का है तो दूसरा मंडी का। मंडी जिला के नेरचौक के सुरेंद्र कुमार तो डीसी मंडी से संदीप कदम सीआरपीएफ 74 बटालियन में तैनात थे। सुरेंद्र की अभी जल्द ही शादी हुई थी और एक नन्ही मासूम बेटी ने भी इसी शर्त पर पापा को पोस्टिंग पर जाने दिया था की वो जल्द ही उससे मिलने आएंगे। ऐसे में सुरेंद्र की इस हादसे में गई जान ने अधिकारियों को ये सोचने पर मजबूर कर दिया की उनके घर पर आखिर ये सूचना दी जाए तो कैसे?
मंगलवार सुबह तक सुरेंद्र कुमार की पत्नी और मां को शहादत के बारे में नहीं बताया गया। उन्हें यही बताया गया की सुरेंद्र कुमार घायल हैं। घर का केवल भी काट दिया गया ताकि वो टीवी ना देख सकें। रिश्तेदारों को घर के बाहर ही रोक दिया जा रहा था। दस अप्रैल को सुरेंद्र कुमार घर पर डेढ़ महीने की छुट्टी काट घर से रवाना हुआ थे। सुरेंद्र कुमार के शहीद होने की सूचना मिलते ही नेरचौक क्षेत्र में शोक की लहर दौड़ गई है। साल 2003 में सीआरपीएफ में भर्ती हुए सुरेंद्र कुमार छत्तीसगढ़ में पिछले तीन साल से तैनात थे। 13 साल की देश सेवा में सुरेंद्र कुमार ने इसी तरह के हमलों में दुश्मनों को धूल चटाई है और कभी हिम्मत नहीं हारी। सोमवार को नक्सलियों के हमले में वो शहीद हो गया। सुरेंद्र कुमार की पत्नी किरण कुमारी निजी तकनीकि संस्थान में प्रवक्ता के पद पर कार्यरत हैं। भाई जितेंद्र सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं। परिवार में शहीद की एक तीन साल की बेटी एलीना भी है।
जिला कांगड़ा के पालमपुर उपमंडल में एएसआई संजय कुमार भी इस हमले में शहीद हो गए हैं। सोमवार को हुए इस हमले में शहीद जवानों के बारे में पूरी जानकारी परिजनों को नहीं मिल पाने के चलते पहले शहीद संजय कुमार की सलामती के लिए दुआएं भी हुईं और पहले तो उनके शहीद होने की खबर को अफवाह मान लिया गया। लेकिन देर रात मीडिया में शहीदों की जानकारी आई तो परिजनों को मालूम चला। बाद में सीआरपीएफ की तरफ से भी उनके परिवार को इसकी सूचना दे दी गई है। मंगलवार सुबह गांव में जब ये खबर फैली तो मातम पसर गया।
शहीद के पिता 83 साल के रिटायर सुबेदार राजेंद्र शर्मा बेटे की खबर पर दुखी भी हैं और गौरवान्वित भी। वो खुद सीआरपीएफ में अपनी सेवा दे चुके हैं। यही हाल शहीद की मां शकुंतला देवी का है। संजय के परिवार में तीन भाई, एक बहन और पत्नी अंकिता है, जिससे संजय की दो बेटियां आशिमा और कशिश हैं। जहां छोटी बेटी आशिमा अभी पहली क्लास में पढ़ती है तो बड़ी बेटी कशिश सातवीं क्लास में है। संजय मार्च 1990 में सीआरपीएफ में भर्ती हुए थे।
उनके पड़ोसी मनोज सूद ने बताया कि शहीद संजय कुमार मिलनसार थे, जब भी घर आते वो सबसे मिलते और अपनी पोस्टिंग के दौरान नक्सलवाद से लड़ाई लडऩे के अपने अनुभव सबसे साझा करते। आज पूरे गांव को अपने बेटे के खो जाने का दु:ख है। वहीं एक युवा नेता ने सरकार की नक्सलवाद से लड़ाई लड़ने की नीति पर सवाल उठाया और कहा कि इस तरह से जवान मारे जाएंगे तो नक्सलवाद खत्म नहीं होगा बल्कि उसे बढ़ावा मिलेगा। सीआरपीएफ की टीम सुकमा के चिंतागुफा में सड़क निर्माण कार्य की सुरक्षा में लगी हुई थी। चिंतागुफा थाना क्षेत्र में सीआरपीएफ और जिला बल के संयुक्त दल को गश्त के लिए रवाना किया गया था। दल जब बुरकापाल क्षेत्र में था तब नक्सलियों ने उन पर हमला कर दिया। घटना उस समय घटी, जब सीआरपीएफ की 74वीं बटालियन रोड ओपनिंग के लिए निकली थी। सडक़ निर्माण की सुरक्षा में लगे ये जवान खाना खाने की तैयारी कर रहे थे। उसी दौरान घात लगाकर बैठे नक्सलियों ने जवानों पर गोलीबारी शुरू कर दी। खास बात ये है कि अप्रैल 2010 में दंतेवाड़ा में हुए नक्सली हमले में 75 जवानों की मौत हो गई थी।
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