ब्रह्मोस सुपरसोनिक मिसाइल का एक ब्लॉक 3 टेस्ट भी पास, सेना को मिली और ज्यादा ताकत
सदर्न वेस्टर्न कमांड ने अंडमान निकोबार में ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल का एक और सफल टेस्ट किया। दो मई और तीन मई लगातार दो दिन हुए टेस्ट्स को ब्रह्मोस ने सफलतापूर्वक पास किया।
नई दिल्ली। तीन मई को सदर्न वेस्टर्न कमांड ने तीन मई को ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल का एक और सफल परीक्षण किया है। अंडमान निकोबार द्वीप समूह से ब्रह्मोस की ब्लॉक तीन जमीन पर मार कर सकने वाली मिसाइल का सफल परीक्षण किया गया है। दो मई को भी इस मिसाइल का परीक्षण किया गया था और यह परीक्षण भी सफल रहा था।
दो दिन और दोनों टेस्ट पास
इस मिसाइल का लगातार दूसरा सफल परीक्षण इसकी मारक क्षमता को और बढ़ाता है। इस टेस्ट के तहत ब्रह्मोस मिसाइल ने मोबाइल टोनॉमस लॉन्चर्स से जमीन से जमीन पर मार करने वाली ब्रह्मोस मिसाइल ने पूरी क्षमता के साथ अपनी ताकत दिखाई। ब्रह्मोस ने हाई लेवल के और कॉम्प्लेक्स युद्धाभ्यासों में इस मल्टी रोल मिसाइल ने सफलता पूर्वक जमीन पर स्थित अपने टारगेट्स को भेदा। दोनों ही ट्रायल में इसने अपनी विध्वंस करने वाली क्षमता का नमूना पेश किया। ब्रह्मोस के ब्लॉक 3 वर्जन को लगातार तीसरी बार टेस्ट किया गया था। मोबाइल टोनॉमस लॉन्चर्स से इसके तीनों ही टेस्ट सफल रहे हैं। मिसाइल ने सफलतापूर्वक 'टॉप अटैक' मोड में जमीन पर स्थित अपने टारगेट्स को निशाना बनाया। अभी तक इस श्रेणी के और कोई भी हथियार इस उपलब्धि को हासिल करने में सफल नहीं रहे हैं।
इंडियन नेवी ने भी किया है सफल परीक्षण
इंडियन आर्मी दुनिया की पहली सेना थी जिसने वष्र 2007 में ही ब्रह्मोस जैसी मिसाइल को डेप्लॉय करने में सफलता हासिल कर ली थी। ब्रह्मोस को भारत के डीआरडीओ और रूस के एनपीओ माशीनोस्ट्रोनिया मिलकर डेवलप कर रहे हैं। ब्रह्मोस को जमीन के अलावा, हवा और समंदर तीनों ही जगह से लॉन्च किया जा सकता है। 22 मार्च को इंडियन नेवी ने ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल का सफल परीक्षण किया । नेवी ने इसके समंदर से जमीन पर मार करने में सक्षम संस्करण का सफल टेस्ट किया है। इस मिसाइल को बंगाल की खाड़ी से आईएनएस तेग से लॉन्च किया गया था। इस परीक्षण के साथ ही इंडियन नेवी दुनिया की पांचवीं ऐसी नेवी बन गई जिसके पास समंदर से जमीन पर हमला करने वाली मिसाइल क्षमता मौजूद है। दुनिया में सिर्फ चार देश ही ऐसे हैं जिनके पास इस तरह की मिसाइल क्षमता मौजूद है और ये देश हैं अमेरिका, रूस, ब्रिटेन और चीन।