Bihar Elections 2020: जिस शराबबंदी का दावा कर नीतीश मांग रहे वोट वो कितना सच ?
नई दिल्ली। बिहार के विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार (Nitish Kumar) एक बार फिर से मुख्यमंत्री बनने के लिए जोर लगा रहे हैं। नीतीश कुमार अपनी जिन उपलब्धियों को जनता के सामने बताकर वोट मांग रहे हैं उनमें सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक बिहार में शराबबंदी (Alcohol Prohibition) है। शराबबंदी को पूरी तरह लागू करने का दावा कर नीतीश कुमार एक बार फिर महिला वोटरों को अपनी तरफ खींचने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन शराबबंदी का दावा कितना सही है।
2015 का विधानसभा चुनाव नीतीश कुमार ने राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के साथ मिलकर लड़ा था। इस दौरान नीतीश कुमार ने प्रदेश की महिलाओ से वादा किया था कि अगर वह सत्ता में वापसी करते हैं तो शराबबंदी करेंगे। शराब के चलते महिलाओं के साथ घरेलू हिंसा के सबसे ज्यादा मामले होते हैं। यही वजह है कि महिलाओं ने इस मुद्दे पर नीतीश का साथ दिया। जब नीतीश लालू यादव की आरजेडी के साथ सत्ता में आए तो उन्होंने 2016 में एक कानून बनाकर पूरे राज्य में शराब को बेचने और उसके इस्तेमाल पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया।
शराबबंदी को सफल बनाने के लिए इस कानून को सख्त बनाया गया। इसके अंतर्गत जिस व्यक्ति के परिसर में शराब का सेवन किया जाता हो या फिर संग्रह और बनाई जा रही हो, उसकी संपत्ति को जब्त करने का प्रावधान किया गया। यही नहीं पुलिस को ये अधिकार दिया गया कि जिस भी परिसर में गुड़ या अंगूर के मिश्रण वाले बर्तन पाए जाते हैं उसे ये माना जाय कि यहां शराब बनाने का काम हो रहा है। इसके साथ पहली बार अपराध करने वालों को भी जेल भेजने का प्रावधान किया गया अगर वे 50 हजार का जुर्माना नहीं अदा करते हैं।
शराबबंदी
की
खुल
रही
पोल
इन
सबके
बावजूद
प्रदेश
में
शराब
धड़ल्ले
से
लोगों
को
मिल
रही
है।
इंडिया
टुडे
ने
अपनी
रिपोर्ट
इसका
दावा
किया
है।
कुछ
ऐसे
लोगों
से
बात
की
गई
जो
खुद
नशे
में
थे।
जब
उनसे
पूछा
गया
कि
शराब
तो
बंद
है
तो
कैसे
मिल
रही
है।
तो
लोगों
का
जवाब
था
कि
अगर
सरकार
का
पहरा
होता
तो
यहां
शराब
कैसे
मिलती
?
एक
व्यक्ति
ने
दावा
किया
वह
शराब
पीने
को
लेकर
जेल
भी
जा
चुका
है।
अगर
फिर
जाएंगे
तो
फिर
से
वापस
आकर
पिएंगे।
ये
सभी
खुद
को
नीतीश
सरकार
का
समर्थक
बताते
हुए
उनके
कामकाज
की
तारीफ
भी
कर
रहे
थे।
लोगों का कहना था कि शराबबंदी से शराब बिकनी नहीं बंद हुई है। हां ये जरूर हुआ है कि जो शराब पहले 50 और 100 रुपये में मिल रही थी अब दस गुना कीमत पर मिल रही है। बावजूद इसके लोग नीतीश सरकार की वापसी की बात कर रहे थे। इनमें से एक युवक ने कहा कि हमें लालटेन (आरजेडी का चुनाव चिह्न) नहीं चाहिए। लालटेन आएगा तो हमको अंधेरे में रख देगा। हमको नीतीश की सरकार चाहिए। खैर जेडीयू और आरजेडी की सरकार की तुलना फिर कभी अब शराबबंदी पर लौटते हैं।
शराबबंदी
का
दावा
नजर
आ
रहा
खोखला
नीतीश
कुमार
ने
2016
में
शराबबंदी
लागू
की
थी।
चार
साल
बीत
गए
हैं
और
नीतीश
कुमार
एक
बार
सीएम
बनने
के
लिए
लोगों
से
मौका
मांग
रहे
हैं।
वे
इस
दौरान
अपने
सात
निश्चयों
में
एक
शराबबंदी
की
बात
भी
कर
रहे
हैं
लेकिन
शराब
बंदी
का
दावा
तो
खोखला
ही
नजर
आता
है।
लोग
खुद
ही
बताते
हैं
कि
शराबबंदी
ने
केवल
अवैध
शराब
बिक्री
में
मदद
की
है।
लोगों
का
कहना
है
कि
बंदी
के
चलते
शराब
की
कीमतें
तो
बढ़ी
ही
हैं
पुलिस
विभाग
में
भ्रष्टाचार
भी
बढ़
गया
है।
देशी
शराब
ज्यादा
बनने
लगी
है
और
साथ
ही
दूसरे
प्रदेशों
से
शराब
की
तस्करी
भी
बढ़
गई
है।
ऐसे
में
जब
लोग
खुद
ही
शराब
का
उपयोग
करना
चाह
रहे
हैं
प्रशासन
के
पास
भी
इस
पर
पूरी
तरह
से
रोक
लगा
पाना
मुश्किल
हो
जाता
है।
वैसे शराबबंदी के इस दावे की हकीकत इससे ही पता चल जाती है जब पुलिस स्टेशन में रखे गए हजारों लीटर शराब को चूहे पी लेते हों। हम आपको कैमूर जिले की वो घटना याद दिला रहे हैं जिसमें पुलिस ने कहा था कि जब्त करके रखी गई 11 हजार बोतल अल्कोहल चूहों ने खराब कर दी। एक दूसरी घटना में पुलिस ने 9 लाख लीटर शराब खत्म होने का दोष चूहों पर डाल दिया था।
2
लाख
से
अधिक
गिरफ्तारी
जब
से
शराबबंदी
लागू
हुई
है
तब
से
पुलिस
काम
भी
कर
रही
है।
बिहार
के
सरकारी
डाटा
के
मुताबिक
अप्रैल
2016
से
जनवरी
2020
तक
प्रदेश
में
शराबबंदी
के
उल्लंघन
को
लेकर
47,395
केस
दर्ज
किए
गए।
इस
दौरान
78,78,540
लीटर
अवैध
शराब
भी
पुलिस
ने
जब्त
की।
28
हजार
से
अधिक
वाहन
शराब
ले
जाने
या
पहुंचाने
के
आरोप
में
जब्त
की
गई।
इस
दौरान
पुलिस
ने
2
लाख
12
हजार
लोगों
को
गिरफ्तार
किया
लेकिन
अगर
आरोप
सिद्ध
होने
की
बात
करें
तो
पुलिस
फेल
नजर
आती
है।
अभी
तक
मात्र
232
लोगों
पर
आरोप
सिद्ध
हो
पाया
है।
इसके
साथ
ही
500
सरकारी
कर्मियों
पर
भी
अनुशासनात्मक
कार्रवाई
की
गई
है
जिनमें
पुलिसकर्मी
भी
हैं।
अब
तक
70
लोगों
को
नौकरी
से
निकाला
जा
चुका
है।
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